Begin typing your search above and press return to search.
बिहार

200 रुपये की कमाई के लिए मोकामा में अंडा-बिस्कुट बेच रहे हैं अंतरराष्ट्रीय कबड्डी खिलाड़ी सुधीर कुमार

Janjwar Desk
1 July 2020 10:00 AM IST
200 रुपये की कमाई के लिए मोकामा में अंडा-बिस्कुट बेच रहे हैं अंतरराष्ट्रीय कबड्डी खिलाड़ी सुधीर कुमार
x
बिहार के मोकामा के अंतरराष्ट्रीय कबड्डी खिलाड़ी सुधीर कुमार विदेश भी जाकर खेल चुके हैं। पर, घर की खराब माली हालत के कारण वे गुमटी चलाने और अंडा-बिस्कुट बेचने को मजबूर हैं।

आलोक कुमार की रिपोर्ट

जनज्वार, मोकामा। भारत में क्रिकेट के प्रति लोगों की दिवानगी गजब की हैं। इसकी चकाचैंध में परंपरागत खेल कबड्डी को लोग भूलते जा रहे थे। भारत में कबड्डी के स्तर को ऊंचा रखने में अंतरराष्ट्रीय कबड्डी खिलाड़ी सुधीर कुमार का भी बड़ा योगदान है। पर, इन दिनों वे खेल के मैदान में जूझने के बजाय अपनी जिंदगी में आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। सुधीर कुमार पटना जिले के मोकामा के औंटा ग्राम पंचायत के रामटोला गांव के रहने वाले हैं।

आपबीती बयान करते हुए सुधीर कुमार कहते हैं कि कब्बडी फेडरेशन ऑफ इंडिया के द्वारा भारतीय टीम का चयन किया गया। विभिन्न राज्यों के 12 सदस्यों को शामिल किया गया। इस टीम की बागडोर हरियाणवी खिलाड़ी को सौंपी गई। इसमें बिहार से सुधीर कुमार व रोहित कुमार भी थे। चयन के बाद ये लोग थाइलैंड गये। वहां पर 26 से 28 अक्टूबर 2017 तक प्रतियोगिता आयोजित की गयी। इसमें 14 टीम शामिल हुई थी। मेजबान थाइलैंड को मेहमान भारतीय टीम ने छट्टी का दूध याद करा दिया। इसके बाद भारतीय टीम मलेशिया को परास्त कर फाइनल में जा पहुंची थी। इरान को शिकस्त देकर भारत ने जीत हासिल की।

लेकिन, उपलब्धियों भरे वे सुनहरे दिन अब अतीत की बात हो गये। हथिदह-मोकामा मुख्य मार्ग के किनारे अंतरराष्ट्रीय कबड्डी खिलाड़ी सुबोध कुमार अब रेलवे की जमीन पर आशियाना बनाकर रहने को बाध्य हैं। सुबोध कुमार के पिता धनिक महतो का 15 साल पहले निधन हो गया। उनके तीन भाई व एक बहन हैं। भाइयों के नाम अजय कुमार, विजय कुमार और सुबोध कुमार हैं। बहन का नाम लक्ष्मी कुमारी हैं। अजय कुमार की शादी मीना कुमारी के संग हुई है। दोनों के 2 लड़की और 1 लड़का है।

सुबोध कुमार की मां उषा देवी कहती हैं कि लक्ष्मीबाई सामाजिक सुरक्षा पेंशन मिलती है। इधर कुछ माह से नहीं मिल पा रही है। सुबोध इस बीच वह बीए उर्त्तीण हो गये। इसके बाद पढ़ाई तथा कमाई साथ-साथ चलने लगी। वे परिवार का बोझ उठाने वाले बन गए।

इस पर सुबोध कुमार की मां उषा देवी कहती हैं कि कष्ट से जी रहिलिये है, न कपड़ा लता के ठिकान है, न घर के ठिकान है। ठेहुना भर गरीबी है। इसका बोझ सुबोध पर पड़ रहा है। वे सात साल से कब्बडी खेल रहे हैं और घर चलाने के लिए पांच साल से पान की गुमटी चला रहे है। पिछले तीन साल से अपनी आय बढाने के लिए अंडा भी बेच रहे हैं। विवाह, पर्व, पार्टी आदि के मौके पर कैशियो भी बजाते हैं। दिन भर में बामुश्किल 200 रुपये कमा लेते हैं। उनकी मां को यह भय है कि पैसे कमाने की मजबूरी में उनके बेटे की खेल प्रतिभा कुंद न हो जाए।

अंतरराष्ट्रीय स्तर के कबड्डी खिलाड़ी सुबोध कुमार जन्म 20 अप्रैल 1996 को हुआ था। वे बीए उर्त्तीण हैं। सात साल से कब्बडी खेलते हैं। इनके कोच हैं मोहम्मद शलाउद्दीन। इनके प्रयास से ही खिलाड़ियों की सात स्टार टीम बनायी गई। रामटोला के शंभु कुमार, शशि कुमार, मो जलालुद्दीन, राहुल कुमार, गोलू कुमार, विष्णु कुमार, राहुल कुमार 2 और राहुल कुमार 3 खिलाड़ी हैं। ये लोग सरकारी स्कूल में निर्मित ग्राउण्ड में खेलते हैं। शाम 4 से 6 तक ट्रेनिंग लेते हैं। 40 मिनट और 20 मिनट तक गेम खेला जाता है।

सुधीर कुमार ने मिले मेड्ल और प्रशस्ति पत्र को सजाकर रखा है। बरौनी-मोकामा छोटी लाइन बंद होने के बाद रेलवे की जमीन पर पान की गुमटी के बगल में अंडा बेचते सुबोध कुमार ने कहा कि दर्जनों टूर्नांमेंट खेले हैं। पदकों व प्रशस्ति पत्र को टांगकर रखा है। मोकामा की माटी में दम है। सभी पंचायतों के खिलाड़ियों को लोकल टूर्नार्मेंट में शामिल किया जाता है। इनमें श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले बाढ़ और पंडारक खेलने जाते हैं। वहीं, सुबोध कुमार पटना, मध्य प्रदेश आदि जगहों में जाकर खेले हैं।

सुधीर कहते हैं कि वे क्रिकेट खिलाड़ी नहीं हैं। वे लोग थोड़ा-बहुत भी प्रदर्शन करते हैं तो प्रिंट व इलेक्ट्रोनिक मीडिया उन्हें अपनी आंखों में चढ़ा लेता है। मगर हमलोगों को थाइलैंड में फतह करने के बाद भी सुर्खिया नहीं मिली। वे खुद को माटी से जुड़ा खिलाड़ी मानते हैं। वे कहते हैं कि कई देश को पछाड़ कर भारत का परचम लहरा कर घर आने पर भी कोई पूछने तक नहीं आया। सम्मान तो सपना है।

Next Story

विविध