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आंदोलन

Kaimur Tiger Reserve : '...गांव छोड़ब नाही, जंगल छोड़ब नाही, माई-माटी छोड़ब नाही, लड़ाई छोड़ब नाही', छलका आदिवासियों के सब्र का पैमाना

Janjwar Desk
28 March 2022 3:47 PM IST
Kaimur Tiger Reserve :
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Kaimur Tiger Reserve : बिहार के कैमूर पठार में बाघ अभयारण्य बनने से आदिवासियों के उजड़ने का खतरा, जिला मुख्यालय पर जबर्दस्त प्रदर्शन

Kaimur Tiger Reserve : वीर कुंवर सिंह की धरती कैमूर पठार का इलाका इन दिनों आदिवासियों के आंदोलन का गवाह बन रहा है। कैमूर पठार इलाके में प्रस्तावित टायगर रिजर्व के विरोध में क्षेत्र के लोगों ने पहले पदयात्रा निकाली और आज भभुआ में जिला समाहरणालय के सामने प्रदर्शन कर टाइगर ​रिजर्व बनाने के फैसले को बदलने की मांग की। कैमूर मुक्ति मोर्चा के बैनर तले उन्होंने इससे संबंधित ज्ञापन भी जिलाधिकारी को सौंपा।

Kaimur Tiger Reserve : 1800 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला कैमूर पठार (Kaimur Plateau) बिहार (Bihar) का सबसे बड़ा जंगली पहाड़ी इलाका है। समुद्र तल (Sea Level) से इसकी उंचाई लगभग 1800 से 3000 फुट तक है। कैमूर का पठार जंगलों-पहाड़ों, नदियों और घाटियों के बीच स्थित है। इस इलाके में ज्यादातर आदिवासी (Tribes) आबादी है। यहां खरवार, उरांव, चेरो, अगरिया, कोरवा आदिवासी समुदाय के लोग बसते हैं। इसके आलावा यहां गैर परम्परागत वन निवासी भी रहते हैं। पर हाल के दिनों में यहां की आदिवासी आबादी के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है।

इस इलाके में बसे आदिवासियों को फिलहाल यह कहकर हटाने की कोशिश हो रही है कि आदिवासी जंल-जंगल-जमीन और वन्यजीवों के लिए खतरा हैं। इसी कवायद के तहत पहले कैमूर पठार को सेंच्यूरी का नाम दिया गया और अब इसे बाघ अभ्यारण्य घोषित कर दिया गया है। सरकार का यह कहना है कि अब यहां बाघ पाले जाएंगे। जिसके लिए आदिवासियों को आज नहीं तो कल इन जंगलों को खाली करना पड़ेगा।

स्थानीय लोगों के अनुसार दरअसल यह पूरी कवायद ही संदेह के घेरे में हैं। बाघ अभ्यारण्य के पीछे की मंशा है वह बाघों की रक्षा नहीं बल्कि आदिवासियों के जल-जंगल-जमीन पर कब्जा करना है। क्योंकि पर्यावरण और बाघ के नाम पर आदिवासियों को विस्थापित करना आजमाया हुआ और आसान हथकंडा है। इस हथकंडे से बाहरी दुनिया का भी समर्थन प्राप्त करना आसान होता है। आज पूरे देश में 52 बाघ अभ्यारण्य हैं। कैमूर बाघ अभ्यारण्य 53 वां और भारत का सबसे बड़ा टाइगर रिजर्व बनेगा। यह टाइगर रिजर्व 1134 वर्गकिलोमिटर में बनाए जाने की प्लानिंग चल रही है। इस अभ्यारण्य को 450 वर्ग किलोमीटर में कोर एरिया और 850 वर्ग किलोमीटर बफर एरिया के रूप में विभाजित किया जाएगा।

कोर एरिया में सबसे ज्यादा गांवों के उजड़ने का खतरा है। बफर एरिया में भी धीरे-धीरे जो गांव प्रभावित होंगे पर उन्हें बाद में हटाया जायेगा। ऐसी प्रथा रही है कि जहां-जहां भी सेंच्युरी और बाघ अभ्यारण्य बनाए जाते हैं वहां आदिवासियों के हित में बनाए गए कानून जैसे वनाधिकार कानून और पेसा कानून को निष्प्रभावी कर दिया जाता है। पर जैसा कि स्पष्ट है कि जंगल ही आदिवासियों की जीविका का मुख्य स्रोत है। जंगल के उत्पाद महुआ, पियार, जंगी, लाशा, भेला, लकड़ी आदि पर ही आदिवासियों का रोजगार और पेट चलता है। जंगल एक तरह से आदिवासियों के लिए बहुत हद तक खेती की तरह है। अगर भोले-भाले आदिवासियों को वहीं से विस्थापित होना पड़े तो उनका जीवन ही संकट में पड़ जाएगा। इस इस बात पर सरकारों का ध्यान नहीं जाता है।

आदिवासी मामलों के जानकारों का कहना है कि असल बात तो जंगलों-पहाड़ों में दबे प्राकृतिक संसाधनों को पूंजीपतियों के हाथों कौड़ियों के भाव बेचना ही अभियानों का लक्ष्य होता है। इससे पूर्व भी देश में तेलंगाना के अमराबाद टाईगर रिजर्व से सरकार ने आदिवासियों को पहले एक साजिश के तहत हटाया और अब उसे यूरेनियम माइनिंग के लिए पूंजीपतियों के हाथों में सौंप दिया गया है।

कुछ इसी तरह उत्तराखंड में हाथी पार्क के नाम पर आदिवासियों की जमीन पर कब्जा किया गया और आगे चलकर पावर प्रोजेक्ट के नाम पर हाथी पार्क को खत्म करने की साजिश चल रही है। ऐसे और भी कई उदाहरण हैं जहां रिजर्व क्षेत्र के नाम पर खनन का काम किया जा रहा है। जैसे सप्तकोशी टाइगर रिजर्व (ओडीसा), सिमलीपाल टाइगर रिजर्व (ओडीसा), टाइगर प्रोजेक्ट (छत्तीसगढ़), सहयाद्री टाईगर रिजर्व (महाराष्ट्र), पलामू टाइगर रिजर्व (बेतला) आदि कई बाघ अभ्यारण्य हैं जहां अदिवासियों को हटाने के बाद वहां बाद में खनन का काम शुरू कर दिया गया।

वापस कैमूर पठार की बात करें तो इसे सबसे पहले सरकार ने 1982 में वन्यजीव अभ्यारण्य घोषित किया था। उस समय यहां छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम लागू था। इस कानून के अनुसार कोई भी गैरआदिवासी न तो आदिवासियों की जमीन खरीद सकता है और न ही बेच सकता है। जंगलों पर पूरा अधिकार आदिवासियों का माना गया है। पर आज वन विभाग वनाधिकार कानून 2006, पेसा कानून 1996 आदि की धज्जियां उड़ाते हुए आदिवासियों को जंगल में खेती करने से रोक रहा है, लोगों के घर गिरा रहा है। इसी से यहां भी संघर्ष का माहौल बनता जा रहा है।

कैमूर पठार शुरू से ही संघर्षाें का केन्द्र रहा है। आजादी के जमाने में वीर कुंवर सिंह ने कैमूर पठार में ही रहकर अदिवासियों केे सहयोग से अपने छापामारों के साथ अंग्रजों से दो-दो हाथ किया था। अस्सी और नब्बे के दशक में कैमूर पठार का नाम सुनते ही वन विभाग और भारत सरकार के अफसरों के होश उड़ जाते थे। इन जंगलों-पहाड़ों में कभी बागियों (मोहन बिन्द, रामाशीष, हाकिम आदि) का राज हुआ करता था, जिनकी मदद यहां के आदिवासियों ने ही की थी। जिन्होंने सामन्ती उत्पीड़न के खिलाफ यहां से ही युद्ध का बिगुल फूंका था।

उसके बाद यहां 1990 दशक में तेंदु पत्ता का दाम बढ़ाने, सामंती शक्तियों को कुचलने में यहां के आदिवासियों ने नक्सलियों का साथ दिया था। तब से लेकर आज तक पठार की जनता ने अपने अधिकारोें की रक्षा के लिए कभी नक्सलियों के नेतृत्व में हथियारबन्द संघर्ष किया तो कभी डा. विनयन (कैमूर मुक्ति मोर्चा) के नेतृत्व में कानूनी तरीके से लड़ाई लड़ी। आज जब पहाड़ में न तो डा. विनयन जिन्दा हैं, ना ही नक्सली आंदोलन बचा है तो यहां कि जनता अपने संघर्ष के लिए रास्ता नहीं तलाश पा रही है।

साल 2020 में 10-11 सितम्बर को कैमूर पठार की जनता ने टाइगर प्रोजेक्ट, वन सेंच्यूरी और वन विभाग के अत्याचारों के खिलाफ कैमूर मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व में 10 हजार आदिवासियों ने गोलबन्द होकर जोरदार संघर्ष चलाया था। जिस दौरान भीषण संघर्ष हुआ था। इस संघर्ष में पुलिस द्वारा लाठी-गोली चलाने के बाद जनता ने भी उग्र होकर संघर्ष किया जिसमें दोनों तरफ से जनता और पुलिस वाले घायल हुए। 32 लोगों पर मुकदमा चलाया गया। कुल 400 लोग नामजद हुए। तब से वन विभाग तथा सरकार दलालों के माध्यम से जनता में फूट डालने की कोशिश कर रही है।


पर यहां के आदिवासियों ने उम्मीद नहीं छोड़ी है। वे समय-समय पर पदयात्रा और शांतिपूर्ण प्रदर्शन का आयोजन कर अपने अधिकारों की बात प्रशासन के सामने रख रहे हैं। अभी भी कैमूर मुक्ति मोर्चा की ओर से प्रखंड से लेकर जिला मुख्यालय तक पदयात्रा का आयोजन किया गया है। जिसमें बड़ी संख्या में इलाके को आदिवासी शामिल हो रहे हैं। सोमवार 28 मार्च को आदिवासियों के एक ऐसे ही समुह ने कैमूर जिले में समाहरणालय के सामने प्रदर्शन किया और जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंप कर कैमूर पठार क्षेत्र में वन्य जीव अभ्यारण्य और बाघ अभ्यारण्य बनाने के फैसले के तत्काल वापस लेने की मांग की है। इस प्रदर्शन और आदिवासियों के प्रदर्शन के दौरान जोर-शोर से अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए नारे लगाए जा रहे थे, "गांव छोड़ब नाही, जंगल छोड़ब नाही, माई माटी छोड़ब नाही, लड़ाई छोड़ब नाही।"

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