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बिहार के ग्रामीण इलाकों में स्वच्छता की अग्रदूत बनी लाड़ली खातून, पहले मिलते थे ताने-अब मिल रहा सम्मान

Janjwar Desk
12 Jun 2020 6:30 AM GMT
बिहार के ग्रामीण इलाकों में स्वच्छता की अग्रदूत बनी लाड़ली खातून, पहले मिलते थे ताने-अब मिल रहा सम्मान
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महिलाओं को स्वच्छता के मायने और खुद के लिए जरूरत समझाती लाडली खातून
शौचालय विहीन घरों की महिलायें यदि अहले सुबह शौच के लिए नहीं गयीं तो दिन के उजाले में शौच के लिए जाना मुश्किल हो जाता था, लाडली ने महसूस किया कि समाज की अधिकतर महिलाएं इसी कारण गंदगी में जीने और अनचाही बीमारियों से घिरी रहती हैं...

जनज्वार ब्यूरो, पटना। 'कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता,एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों' यह अक्सर उसके लिए कहा जाता है, जिसने अकेले दम पर कोई बड़ा काम किया हो। बिहार के मोतिहारी जिले कर अरेराज की लाड़ली खातून ने भी कुछ इसी तरह का काम किया है।

उसके एकल भगीरथ प्रयास से आज उसके गांव सहित कई गांवों में स्वच्छता के प्रति लोग जागरूक हुए हैं और सैकड़ों की संख्या में शौचालय बनाए जा चुके हैं। यही नहीं महिला स्वयंसहायता समूहों का गठन कर सैकड़ों महिलाएं रोजगार से जुड़ चुकी हैं।

बिहार के मोतिहारी जिला के अरेराज प्रखंड स्थित मामरखा पंचायत के दरगाह टोला निवासी लाडली खातून उजाला जीविका महिला ग्राम संगठन के तहत स्वच्छता की एक मिसाल बन गई है। लाडली खातून मुस्लिम जाति से आती है। जब वह छोटी थी तो टोले-मोहल्ले की महिलाएं खुले में शौच के लिए जाती थीं और उनके साथ लाडली भी जाती थी।

हालांकि छोटे पर लाडली स्वच्छता और खुले में शौच का मतलब नहीं समझती थी, लेकिन लाडली खातून जैसे-जैसे बड़ी होती गई इसका फर्क समझने लगी और बाहर में शौच को शर्म की बात मानने लगी। इस बारे में जब अपने मां से बात करती थी तो मां डांट देती थी। मां का कहना था कि गांव की तुम अकेली लड़की नहीं हो जो शौच के लिए जाती है, बल्कि पूरा गांव ही जाता है।

घर में शौचालय नहीं बनवाने का कारण सोच के साथ आर्थिक स्थिति का खराब होना भी था। परिवार की जो आमदनी थी उससे घर का खर्च चलाना भी मुश्किल था। इधर लाडली के मन में यह बात घर कर गई कि जहां शादी होगी वहां तो शौचालय होगा। लेकिन जब लाडली की शादी हुई तो उसका यह सपना भी बिखर गया, क्योंकि ससुराल में भी गरीबी थी, घनी आबादी थी, अहले सुबह में ही शौच के लिए बाहर जाना पड़ता था। यदि अहले सुबह शौच नहीं गए तो दिन के उजाले में शौच के लिए जाना मुश्किल हो जाता था। इसके चलते वह देखती थी कि वहां समाज की अधिकतर महिलाएं गंदगी में हैं और बीमार हैं।

इसी बीच लाडली खातून जीविका समूह से जुड़ गई और उसे जीविका में सीएम का पद मिला। वह घर-घर जाकर लोगों को प्रेरित करने लगी कि बाहर में शौच करने नहीं जाना चाहिए इससे गंदगी फैलती है। पहले तो गांव के लोगों ने उसे गंभीरता से नहीं लिया और मजाक उड़ाया पर धीरे-धीरे लाडली की बातों का असर लोगों पर होने लगा और लोग अपने घरों में शौचालय बनाने के लिए उत्प्रेरित होने लगे। इधर लाडली खातून जीविका से जुड़कर स्वास्थ्य संबंधी जानकारी भी प्राप्त करने लगी।

लाडली खातून ने सीएलटीएस एवं बीसीसी की ट्रेनिंग ली और जोर-शोर से लोगों को अपने घरों में शौचालय बनाने के लिए प्रेरित करने लगी और अंततः लोग उसकी बातों को समझने लगे। उसने खुद जीविका समूह से कर्ज लेकर छोटा-मोटा धंधा शुरू किया।उसने गांव की अन्य महिलाओं को भी समूह बनाकर कर्ज दिलाया और घरेलू धंधे शुरू करने में मदद की।

जीविका समूह से कर्ज लेकर ही उसने अपने घर में शौचालय का निर्माण करवाया, साथ में अन्य ग्रामीणों को भी जीविका समूह से कर्ज़ दिलाकर उनके घरों में स्वच्छता मिशन के तहत शौचालय का निर्माण करवाने लगी। आज लाडली खातून के प्रयास से उजाला जीविका महिला ग्राम संगठन में 14 समूह हैे, जिसमें 157 महिलाएं जुड़ी हुई हैं। इनके समूह से जुड़ी महिलाओं के घरों में शौचालय है और सभी शौचालय का उपयोग करते हैं। अब कई गांवों में बाहर जाकर शौच करना बीते दौर की बात हो गयी है।

अब लाडली खातून पूरे गांव की लाडली है। उसके बचपन का सपना सच हो रहा है। वह जीविका समूह को धन्यवाद देती है जिसने उसे रास्ता और पहचान दिया। जीविका ने लाडली को स्वच्छता लाडली के रूप में पहचान दिलवायी है।

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