बिहार के पैक्स सेंटरों पर भी नहीं हो रही एमएसपी पर धान की खरीददारी, 1835 की जगह मिल रहे सिर्फ 1700 रुपये प्रति क्विंटल
जनज्वार ब्यूरो, पटना। केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन कर रहे हैं। इस दौरान सरकार द्वारा एमएसपी पर फसल खरीददारी का मुद्दा लगातार सुर्खियों में है। बिहार में हालांकि 14 साल पहले यानी वर्ष 2006 में ही कृषि उत्पादन बाजार समितियों को भंग कर दिया गया था, पर सरकार द्वारा पैक्सों के माध्यम से धान और गेहूं की खरीददारी की जाती है।
राज्य सरकार दावा करती रही है कि निर्धारित लक्ष्य के अनुसार पैक्सों के माध्यम से अनाज की खरीद की जाती है, पर विपक्षी दल लगातार यह आरोप लगाते रहे हैं कि राज्य में पैक्सों के माध्यम से निर्धारित लक्ष्य में अनाज की अधिप्राप्ति नहीं की जाती है और खरीददारी भी निर्धारित न्यूनतम दर से कम में की जाती है।
वैसे तो बिहार में नवंबर माह से खरीफ की फसल यानी धान की खरीददारी की बात कही जाती है, पर सरकार द्वारा हाल में कहा गया था कि दिसंबर से धान की खरीददारी शुरू है।
हालांकि राज्य के विभिन्न जिलों से आ रही खबरों के मुताबिक दिसंबर माह के 20 दिन गुजर जाने के बाद भी पैक्सों द्वारा कई जगहों पर धान की खरीददारी अभी शुरू नहीं की गई है तो कई प्रखंडो के किसानों की यह भी शिकायत है कि निर्धारित दर से कम कीमत पर धान की खरीददारी की जा रही है।
बिहार के औरंगाबाद जिले के कुटुंबा प्रखंड के बैराव पंचायत के निवासी किसान कुंदन कुमार सिंह ने कहा 'उन्होंने 10 बीघे में धान की खेती की है। यहां बाजार में महज 1300 से 1350 रुपये प्रति क्विंटल धान का रेट दिया जा रहा है। पैक्स द्वारा खरीददारी तो की जा रही है, पर वहां भी 1600 से 1700 रुपये प्रति क्विंटल रेट दिया जा रहा है। मेरे यहां सरकार द्वारा निर्धारित दर पर खरीददारी नहीं की जा रही है।'
उन्होंने यह भी शिकायत किया कि पैक्सों में धान बेचने के बाद उनका मूल्य प्राप्त करना भी कठिन काम होता है। उन्होंने कहा 'पिछले साल गांव के कई किसानों ने अपनी फसल पैक्सों को बेची थी। पैक्सों द्वारा अनाज तो ले लिया गया, पर उनके पैसे नहीं दिए गए। कहा गया कि अभी राशि उपलब्ध नहीं है। बाद में फसल बेचने वाले किसानों ने आंदोलन किया तब जाकर लगभग 5 महीने बाद किसानों को भुगतान किया गया।'
सारण जिला में भी कई प्रखंडों से ऐसी शिकायतें सामने आ रही हैं। मशरक प्रखंड के किसान संपत राय बताते हैं 'पैक्सों में धान बेच पाना बहुत ही कठिन काम है। यहां किसानों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। निर्धारित दर मिलने में भी दिक्कत होती है। कई जगह अब भी खरीददारी नहीं हो रही है।'
बिहार में पैक्सों की आम शिकायत रहती है कि फसल खरीद के लिए उन्हें सरकार से समय पर राशि नहीं मिल पाती, इसलिए भी खरीददारी करने में देरी और दिक्कत होती है। हालांकि सरकार लगातार कहती है कि सभी पैक्सों को समय पर राशि उपलब्ध करा दी जाती है।
राष्ट्रीय जनता दल के मढ़ौरा से विधायक जितेंद्र कुमार राय ने कहा 'किसानों की परेशानी की कोई सीमा नहीं। हालत यह है कि बड़ी संख्या में उनके क्षेत्र के किसान खेती बाड़ी छोड़ रहे हैं, चूंकि खेती में जितनी लागत आ रही है, फसल बेचने से वह भी नहीं निकल पा रही। ऐसे किसान अब प्रवासी मजदूर बनने को विवश हो रहे हैं।'
उन्होंने बिहार सरकार पर किसानों के साथ छल करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा 'कहने को तो बिहार सरकार कई तरह की योजनाएं चला रही है, पर धरातल पर सब फेल है। हम लगातार इन मुद्दों को विधानसभा में उठाते रहे हैं और आगे भी उठाएंगे। सड़क पर उतरकर भी आंदोलन किया जाएगा।'
किसानों के आंदोलन को बिहार के तमाम विपक्षी दल समर्थन दे रहे हैं। सीपीआई माले किसानों की समस्या को लेकर लगातार मुखर रहा है। अभी चल रहे किसान आंदोलन के समर्थन में माले कई दफा सड़क पर भी उतर चुकी है।
सीपीआई माले विधायक दल के नेता महबूब आलम ने कहा 'किसानों के मामले में बिहार सरकार लगातार झूठ बोल रही है। ज्यादातर जगहों पर अभी धान की खरीददारी भी शुरू नहीं हुई है। खुद उनके गृह प्रखंड, जो कटिहार जिला में है, वहां धान की खरीददारी शुरू नहीं हुई है। स्थानीय एसडीएम ने कहा है कि आज यानी 20 दिसंबर से धान खरीदा जाएगा। किसानों के लिए हम सड़क से लेकर सदन तक संघर्ष करते रहे हैं। धान के फसल की जल्द से जल्द निर्धारित दर पर खरीददारी नहीं की गई तो हमारी पार्टी बिहार में बड़ा आंदोलन करेगी।'