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राष्ट्रीय

चुनाव सामने देख उमड़ा भाजपा का दलित प्रेम, वन गांवों के निवासियों को एक बार फिर 'गांव में रोशनी' की उम्मीद

Janjwar Desk
25 July 2021 8:29 AM GMT
चुनाव सामने देख उमड़ा भाजपा का दलित प्रेम, वन गांवों के निवासियों को एक बार फिर गांव में रोशनी की उम्मीद
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इन गांवों के निवासी कई बार अपनी रिहाइश की जगहों पर बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं की बहाली की मांग को लेकर आंदोलन भी कर चुके हैं। लेकिन नतीजा वही 'ढाक के तीन पात' निकलता है...

सलीम मलिक की रिपोर्ट

रामनगर। आगामी विधानसभा के पास आते ही भारतीय जनता पार्टी का दलित प्रेम एकाएक हिलोरे मारने लगा है। उत्तराखण्ड राज्य की स्थापना के साथ अभी तक कि सरकारों द्वारा छले गए वन गांवों के निवासियों को भाजपा ने एक बार 'गांव में रोशनी' की उम्मीद दिखानी शुरू कर दी है। स्थानीय विधायक ने इसकी बाबत सम्बंधित अधिकारियों की बैठक लेकर वन गांवों को रोशन करने का प्रस्ताव तैयार करने के निर्देश दिए हैं।

यहां बताते चलें कि विधानसभा क्षेत्र में करीब दर्जन भर से अधिक वन गांव, टोंगिया गांव, खत्ते आदि हैं। इन सभी जगहों पर करीब-करीब दलित आबादी ही निवास करती है। किशनपुर छोई निवासी राजाराम विद्यार्थी की माने तो इन टोंगिया गांवों में बसे लोग ब्रिटिश शासन से यहां निवास करते हैं। इन लोगों को अंग्रेज इस इलाके में वन विभाग के प्लांटेशन के लिए सल्ट क्षेत्र के इलाकों से लाये थे, जो बाद में यहीं वनों के बीच अपना आशियाना बनाकर रहने लगे।

ऐसे ही इन अधिकांश गांवों में आज के इस आधुनिक दौर में भी न तो पक्की सड़कें हैं और न ही इलाज मुहैया कराने लायक स्वास्थ्य सुविधाएं। सभी के लिए चलाया जाने वाला 'सर्व शिक्षा अभियान' भी कुछ गांव के निवासियों के लिए अभी दूर की कौड़ी है। जिसके चलते वहां निवास करने वाली दलित आबादी के बच्चे अपने-अपने गांव से कई किमी. दूर दूसरे इलाकों में जाकर आधी-अधूरी शिक्षा प्राप्त करते हैं। सभी गांव, टोंगिया गांव, खत्ते आदि वन भूमि पर बसे होने के कारण वन-विभाग की दिलचस्पी भी अब इनके लिए कुछ सुविधाएं मुहैया कराने के बजाए इन्हें यहां से हटाने में अधिक होती है।

यही वजह है कि यह इलाके आज भी बिजली तक की रोशनी से महरूम हैं। ऐसा नहीं है कि इन इलाकों में बिजली पहुंचाना कोई दुष्कर काम हो। मालधन क्षेत्र के निकट कुम्भगाडर, पटरानी जैसे क्षेत्रों में भारी दिकत्तों के बाद ही सही, बिजली पहुंच ही चुकी है। लेकिन नेशनल हाईवे के किनारे बसे ऐसे ही वन गांव सुंदरखाल की कसैली सच्चाई यह भी है कि गांव के ऊपर से बिजली की हाईटेंशन लाइन होकर गुजरती है। लेकिन वन विभाग की आपत्ति की वजह से इस लाइन से इन गांव को बिजली नहीं दी जाती। जिसकी वजह से बेबस गांव वाले अपने आप को मुंह चिढ़ाती इन हाईटेंशन लाइनों को केवल टुकुर-टुकुर देखने के लिए अभिशप्त हैं।

इन गांवों के निवासी कई बार अपनी रिहाइश की जगहों पर बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं की बहाली की मांग को लेकर आंदोलन भी कर चुके हैं। लेकिन नतीजा वही 'ढाक के तीन पात' निकलता है। अभी हाल तक आमडंडा खत्ते के निवासियों का भी खत्ते में मूलभूत सुविधाओं के लिए आंदोलन चरम पर था। ग्रामीणों ने प्रदेश की सत्ता सहित देश के प्रधानमंत्री तक से अपनी समस्याओं की बाबत गुहार लगाई थी।


हर चुनाव से पहले राजनैतिक दलों द्वारा इन्हें गांव स्तर पर सुविधाएं मुहैया कराए जाने के सब्जबाग दिखाए जाते हैं, लेकिन चुनाव बीतते-बीतते चुनावी पार्टियों के दिखाए गए सब्जबाग भी बिखर जाते हैं। नतीजन उत्तराखण्ड राज्य की स्थापना के 21 साल बीतने और काँग्रेस-भाजपा दोनों ही दलों के दो-दो बार सत्ता में रहने के बाद भी यह गांव आज भी उन मामूली सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं, जो अन्य जगह के निवासियों के लिए सहज ही सुलभ हैं।

जनांदोलनों के नतीजे के तौर पर बीते दिनों रामनगर आये मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने एक बार फिर इन गांवों के निवासियों को 'गांव में रोशनी' का वायदा किया था। जिसके बाद आसन्न विधानसभा चुनावों को देखते हुए स्थानीय विधायक स्तर से वन गांवों में बिजली सुविधा मुहैया कराए जाने की 'कवायद' शुरू की गई। शनिवार को बिजली विभाग के साथ ही वन महकमें के अधिकारियों के साथ बैठक करते हुए विधायक दिवान सिंह बिष्ट ने बिजली विभाग के अधिकारियों को इन गांवों में बिजली पहुंचाने के लिए विभागीय प्रस्ताव तैयार करने के निर्देश दिए।

विधायक बिष्ट ने मुख्यमंत्री की घोषणा में शामिल वन ग्राम रिगोड़ा खत्ता, आमडण्डा खत्ता, टेड़ा खत्ता, रामपुर टोनिया, चोपड़ा में निवास करने वाले ग्रामवासियो को मूलभूत सुविधाएं प्रदान किये जाने को लेकर रामनगर वन प्रभाग के वन क्षेत्राधिकारी बलवन्त साही व विधुत विभाग के अधिशासी अभियंता विवेक काण्डपाल के साथ बैठक में एक सप्ताह के अंदर दोनों विभाग द्वारा संयुक्त सर्वे कर आवश्यक औपचरिकता पूर्ण कर सम्बंधित फाइल को शासन की मंजूरी के लिए भेजने के निर्देश दिए।

विधायक बिष्ट ने कहा कि सभी औपचारिकताओं को पूरा करते समय पूर्व में किये गए सर्वे, रिपोर्ट में लगी आपत्तियों का भी निस्तारण कर लिया जाये जिससे बार- बार की लगने वाली विभागीय आपत्तियों से बचा जाये। बैठक के दौरान कार्बेट टाईगर रिजर्व के निदेशक राहुल कुमार के साथ भी कार्बेट नेशनल पार्क की सीमा के दायरे में आने वाले ग्राम रिगोड़ा खत्ता, आमड़ण्डा खत्ता में विद्युतीकरण को लेकर कार्यवाही शुरू करने को कहा गया। बैठक में भारत सरकार के वाइल्ड लाइफ़ बोर्ड से भी एनओसी लेने पर भी चर्चा की गई।

चुनावी साल में शुरू हुई वन गांवों को रोशन करने की इस कवायद की बड़ी परीक्षा अभी शासन स्तर पर होनी है तो दूसरी बड़ी परीक्षा इस योजना को वाइल्ड लाइफ बोर्ड की आपत्तियों से पार पाने की है। मुख्यमंत्री की वन गांवों के विद्युतीकरण की इस घोषणा ने यदि यह बाधाएं निर्विघ्न पार कर ली तो इन गांवों के रोशन होने का सपना आज़ादी के 75 साल बाद साकार हो सकेगा। अन्यथा इन गांवों की आबादी चुनाव से पहले हर बार ठगे जाने को अभिशप्त तो है ही, एक बार और सही।

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