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बीजेपी MP मनसुख वसावा ने छोड़ी पार्टी, आदिवासी महिलाओं की तस्करी और स्टैच्यू ऑफ यूनिटी पर उठाया था सवाल

Janjwar Desk
29 Dec 2020 9:10 AM GMT
बीजेपी MP मनसुख वसावा ने छोड़ी पार्टी, आदिवासी महिलाओं की तस्करी और स्टैच्यू ऑफ यूनिटी पर उठाया था सवाल
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मनसुख वसावा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राज्य के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी को पत्र लिख कर कुछ अहम सवाल उठाए थे, इसके बाद उन्होंने अपना इस्तीफा दे दिया है...

जनज्वार। गुजरात के भरूच से भारतीय जनता पार्टी के सांसद मनसुख वसावा (BJP MP Mansukh Vasava resigns) ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। मनसुख वसावा जल्द ही लोकसभा सदस्यता से भी इस्तीफा देंगे। मनसुख वसावा ने 28 दिसंबर को गुजराज प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सीआर पाटिल को पत्र लिख कर पार्टी छोड़ने की सूचना दी।

हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि उन्होंने किस कारण से भाजपा छोड़ने का निर्णय लिया है। प्रदेश अध्यक्ष को लिखे अपने पत्र में उन्होंने पार्टी से वफादारी निभाने का जिक्र किया है। उन्होंने कहा है कि उन्होंने पार्टी व जिंदगी के सिद्धांतों का पालन करने में बहुत सावधानी निभाई है। उन्होंने लिखा है कि लेकिन वे इंसान हैं और इंसान से गलती हो जाती है, इसलिए पार्टी से इस्तीफा देता हूं। उन्होंने यह भी कहा है कि लोकसभा सत्र से शुरू होने से पहले ही वे सांसद पद से भी इस्तीफा दे देंगे।

मनसुख वसावा हाल में अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में रहे थे। उन्होंने मुख्यमंत्री विजय रूपाणी को पत्र लिख कर राज्य में आदिवासी महिलाओं की तसकरी की बात कही थी।

उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के संबंध में में एक पत्र लिख कर सवाल उठाया था। इस महीने के आरंभ में पीएम मोदी को लिखा उनका पत्र सामने आया था जिसमें उन्होंने स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के आसपास इको-सेंसेटिव जोन रद्द करने की मांग की थी। उन्होंने इसके पीछे आदिवासी समुदाय की नाराजगी को कम करने को वजह बताया था।

मनसुख वसावा खुद आदिवासी समुदाय से आते हैं और गुजरात में इस वर्ग के बड़ा चेहरा माने जाते हैं। वे पूर्व में केंद्रीय मंत्री भी रह चुके हैं।

उन्होंने प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर नर्मदा जिले के 121 गांवों में इको सेंसेटिव जोन घोषित करने की पर्यावरण मंत्रालय की अधिसूचना को वापस लेने की मांग की थी। उन्होंने पत्र में कहा था कि अधिसूचना के नाम पर अधिकारियों ने आदिवासियों की निजी संपत्तियों में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया है। उनके अनुसार, इसके लिए स्थानीय आदिवासियों को विश्वास में नहीं लिया गया था।

गुजरात में अगले साल होने वाले निकाय चुनाव से पहले वसावा का पार्टी छोड़ना नुकसानदेह हो सकता है। उन्होंने पत्र में कहा है कि मुझे मेरी गलतियों के लिए माफ कर दें। मनसुख वसावा पहली बार 1998 में 12वीं लोकसभा का चुनाव जीत कर संसद पहुंचे थे।

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