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Champaran News: चंपारण में महात्मा गांधी की प्रतिमा तोड़ने के ख़िलाफ़ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने मौन सत्याग्रह किया शुरू

Janjwar Desk
19 Feb 2022 11:59 AM IST
Champaran News: चंपारण में महात्मा गांधी की प्रतिमा तोड़ने के ख़िलाफ़ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने मौन सत्याग्रह किया शुरू
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Champaran News: 12 फरवरी की रात महात्मा गांधी की प्रतिमा को तोड़ा गया था। वेब पोर्टल 'मीडिया स्वराज' की खबर के अनुसार 14 फरवरी की रात पुलिस ने प्रतिमा तोड़ने वाले को गिरफ्तार कर लिया है और राजकुमार मिश्र नाम के इस आदमी से पुलिस पूछताछ कर रही है।

हिमांशु जोशी की रिपोर्ट

Champaran News: 12 फरवरी की रात महात्मा गांधी की प्रतिमा को तोड़ा गया था। वेब पोर्टल 'मीडिया स्वराज' की खबर के अनुसार 14 फरवरी की रात पुलिस ने प्रतिमा तोड़ने वाले को गिरफ्तार कर लिया है और राजकुमार मिश्र नाम के इस आदमी से पुलिस पूछताछ कर रही है। गांधीवादी सौरभ बाजपेयी ने इस पर कहा '"गांधी को मर जाने दो— बिरला हाउस में गांधी उपवास में थे. उसके बाहर खड़े स्वयंसेवक यही नारा लगाते थे. लेकिन गांधी नहीं मरे, तीन गोली खाकर नहीं मरे. तो गांधी की मूर्तियाँ तोड़ने से क्या होगा? गांधी ख़ुद अपनी मूर्तियों को तोड़ने को कहते थे. तो आपने कौन बड़ा काम कर दिया?

बेचारे निर्बुद्धि लोग गांधी की मूर्ति तोड़ रहे हैं. मैं उनसे प्रार्थना करता हूँ कि वो दिन की रौशनी में ऐसा करें. यकीन मानिए हम कोई मुक़दमा नहीं करेंगे. हम तो बस जानना चाहते हैं कि आपमें इतनी हिम्मत है कि नहीं? अगर आपमें इतनी हिम्मत है तो सामने आइये. क्योंकि जिनके दिल में गांधी के लिए नफरत है वो भी ऐसी हरकतों को "दिल से माफ़" नहीं कर पाते. आज गांधी फिर सीना तान नफ़रत की ताकतों के सामने खड़े हैं. "गांधी को मर जाने दो"— गांधी नहीं मरेंगे. गांधी की देह मर्त्य थी, मिट गई। गांधी का विचार अमर्त्य है, नहीं मिटेगा।"

बीते कुछ समय से वाट्सएप यूनिवर्सिटी के ज़रिए युवाओं में महात्मा गांधी के नाम को लेकर जो नफ़रत फैलाई जा रही थी, यह घटना उसी का परिणाम जान पड़ती है। हाल ही में मध्य प्रदेश के ग्वालियर में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे की पूजा की गई थी। समय की सुई को थोड़ा उल्टा घुमाया जाए तो पता चलता है कि दो अक्टूबर, 1944 को महात्मा गांधी के 75वें जन्मदिवस पर आइंस्टीन ने अपने संदेश में लिखा था, 'आने वाली नस्लें शायद मुश्किल से ही विश्वास करेंगी कि हाड़-मांस से बना हुआ कोई ऐसा व्यक्ति भी धरती पर चलता-फिरता था'।

वर्तमान हालातों को देखते आइंस्टीन का यह कथन न सिर्फ सत्य साबित होता दिखता है बल्कि अब हालात और भी बदतर होकर विश्वास न करने से आगे बढ़कर मूर्ति खंडित करने तक पहुंच गए हैं। महात्मा गांधी ने वर्ष 1908 में लंदन से दक्षिण अफ्रीका लौटते 'हिन्द स्वराज' को लिखा था और उसमें उन्होंने जो लिखा वो आज उसे लिखने के सौ सालों से ज्यादा के अंतराल बाद भी प्रासंगिक है।

हिंद स्वराज में महात्मा गांधी दादाभाई नौरोजी, प्रोफ़ेसर गोखले जैसी हस्तियों की इज़्ज़त करने के लिए कहते हैं उनका कहना था ' हम बचपन से जवानी में आते हैं तब बचपन से नफ़रत नही करते, बल्कि उन दिनों को प्यार से याद करते हैं। स्वराज भुगतने की इच्छा रखने वाली प्रजा अपने बुजुर्गों का तिरस्कार नही कर सकती '। इसे लिखते महात्मा गांधी को शायद यह नही पता होगा कि उनके इस दुनिया से चले जाने के सालों बाद उनके प्रति खोते सम्मान को वापस लाने मुझ जैसे किसी लेखक को उनके लिए कुछ ऐसे ही शब्द लिखने पड़ेंगे।

तब गांधी के पास 'हिन्द स्वराज' के अपने विचार लोगों तक पहुंचाने के लिए एकमात्र साधन 'इंडियन ओपिनियन' था पर अब हमारे पास उनके विचारों को समझने के लिए ढेरों डिजिटल, प्रिंट साधन उपलब्ध हैं। दुख इस बात का है कि इन सब के बावजूद आज की पीढ़ी से गांधी को समझने में गलती हो रही है और उनकी मूर्ति को इस तरह खंडित किया जा रहा है।

महात्मा गांधी उस वक्त अपनी पीढ़ी के ऐसे ही बहके लोगों के लिए 'हिन्द स्वराज' में लिखते हैं ' लंदन में रहने वाले हर एक नामी अराजकतावादी हिन्दुस्तानी के सम्पर्क में मैं आया था। उनकी शूरवीरता का असर मेरे मन पर पड़ा था, लेकिन मुझे लगा कि उनके जोश ने उलटी राह पकड़ ली । मुझे लगा कि हिंसा हिंदुस्तान के दुखों का इलाज नही है और उसकी संस्कृति को देखते हुए उसे आत्मरक्षा के लिए कोई अलग और ऊंचे प्रकार का शस्त्र काम में लाना चाहिए'।

मेरे विचार से वही जरूरत आज के युवाओं की भी है, जिनमें देशभक्ति तो है पर उनकी उस देशभक्ति को सत्ता के भूखों द्वारा धर्मभक्ति में बदल दिया गया है। उनको बरगलाने के लिए धर्म की सुरक्षा का हवाला दिया जा रहा है। जहां युवाओं को पढ़ लिख कर देश को विकसित राष्ट्र बनाना था, वही युवा अब धर्म के उन्माद में डूब इस देश को किसी एक धर्म के खूंटे पर टांगना चाहता है। जबकि धर्म एक बेहद ही निजी मसला होता है, पर अब युवाओं को भरमाने के बाद इसे सार्वजनिक रूप से राष्ट्रीय मसला बना दिया गया है।

तब उनके पास बड़े से बड़े असंतोष का भी था जवाब

हाल ही में पेगासुस और राफेल डील जैसे विवाद सामने आए हैं। किसान आंदोलन को लेकर देश के एक हिस्से में भारी असंतोष देखने को मिला है। बैंक के घोटालों को लेकर भी मुख्यधारा के समाचारों और सोशल मीडिया पर जोरों की चर्चा छिड़ी हुई है।

बैंकों में इन्हीं घोटालों को लेकर राहुल गांधी ट्वीट करते हैं- मोदी काल में अब तक ₹5,35,000 करोड़ के बैंक फ़्रॉड हो चुके हैं- 75 सालों में भारत की जनता के पैसे से ऐसी धांधली कभी नहीं हुई। लूट और धोखे के ये दिन सिर्फ़ मोदी मित्रों के लिए अच्छे दिन हैं। #KiskeAccheDin

महात्मा गांधी ने हिन्द स्वराज में लिखा था कि सुधार के लिए असंतोष होना ठीक है। 'यह असंतोष बहुत उपयोगी चीज़ है। जब तक आदमी अपनी चालू हालत में खुश रहता है , तब तक उसमें से निकलने के लिए उसे समझाना मुश्किल है। इसलिए हर एक सुधार से पहले असंतोष होना ही चाहिए। चालू चीज़ से ऊब जाने पर ही उसे फेंक देने का मन करता है'।

दो भाई साथ रहेंगे तो तकरार होगी ही

पिछले कुछ दिनों से हिन्दू-मुसलमान के बीच नफ़रत की दीवार को खड़ा करने की कोशिश करी जा रही है, इसको लेकर सबसे ताज़ा उदाहरण हिजाब विवाद है। कर्नाटक के उडुपी में स्कूल-कॉलेजों में हिजाब पहनने को लेकर शुरू हुआ विवाद लगातार बढ़ता जा रहा है। इस विवाद की शुरुआत पिछले साल 31 दिसंबर को हुई थी जब उडुपी के सरकारी पीयू कॉलेज में हिजाब पहन कर आई छह छात्राओं को कक्षा में प्रवेश करने से रोक दिया गया था। इसके बाद कॉलेज के बाहर प्रदर्शन भी हुआ था।

हिन्द स्वराज में इसका समाधान कुछ इस तरह से है, महात्मा गांधी ने लिखा ' मैं यह नही कहना चाहता कि हिन्दू मुसलमान कभी झगड़ेंगे ही नही। दो भाई साथ रहते हैं तो उनके बीच तकरार होती है । कभी हमारे सिर भी फूटेंगे । ऐसा होना जरूरी नही है , लेकिन सब लोग एक सी अक्ल के नही होते। दोनों जोश में आते हैं तब अकसर गलत काम कर बैठते हैं। उन्हें हमें सहन करना होगा।'

हिजाब को लेकर अब कानूनी, राजनीतिक और धार्मिक विवाद पर कर्नाटक हाईकोर्ट में सुनवाई चल रही है। हिन्द स्वराज में इसको लेकर लिखा है ' हिन्दू-मुसलमान आपस में लड़े हैं। तटस्थ आदमी उनसे कहेगा कि आप गयी-बीती को भूल जायें। इसमें दोनों का कसूर रहा होगा। अब दोनों मिलकर रहिये। लेकिन वे वकील के पास जाते हैं। वकील का फर्ज हो जाता है कि वह मुवक्किल की ओर जोर लगाये। मुवक्किल के खयाल में भी न हों ऐसी दलीलें मुवक्किल की ओर से ढुंढ़ना वकील का काम है। अगर वह ऐसा नहीं करता तो माना जायेगा कि वह अपने पेशे को बट्टा लगाता है। इसलिए वकील तो आम तौर पर झगड़ा आगे बढ़ने की ही सलाह देगा।'

कोर्ट कचहरी के चक्कर में पड़ने से पहले हिन्द स्वराज के अनुसार अगर चला जाए तो जब यह विवाद शुरू हुआ था तब ही इसे थाम लिया जाना चाहिए था और शहर के सभी सम्भ्रान्त लोगों को आपस में बैठ कर यह कोशिश करनी थी कि यह विवाद बने ही न । जब अब यह विवाद बन ही गया है तो अब भी कौन सा देर हुई है, गांधी हमारे विचारों में तो ज़िंदा हैं ही।

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