चुनाव आयोग पर बिफरे CJI Ramana , बोले - फ्री स्कीम्स पर हलफनामा कब दाखिल किया, हमें तो सुबह अखबार देखकर पता चला
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Free Schemes : फ्री स्कीम्स के सियासी वादों यानि रेवड़ी कल्चर ( Revari culture ) पर सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) में गुरुवार को सुनवाई हुई। 20 मिनट की सुनवाई के दौरान सीजेआई एनवी रमना ( CJI NV Ramana ) ने चुनाव आयोग ( Election Commission ) को जमकर फटकार लगाई। सीजेआई एनवी रमना ने चुनाव आयोग से पूछा कि आपने हलफनामा ( Affidavit ) कब दाखिल किया। रात में हमें तो मिला ही नहीं। सुबह अखबार देखकर पता चला।
अगली सुनवाई 17 अगस्त को
सुप्रीम कोर्ट ( Supreme court ) के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ( CJI NV Ramana ) और जस्टिस कृष्ण मुरारी ( Justice Krishna Murari ) की बेंच ने फ्रीम स्कीम्स ( free schemes ) मामले की शुक्रवार को सुनवाई की। वरिष्ठ अधिवक्ता और सांसद कपिल सिब्बल ने शीर्ष अदालत के कोर्ट सलाहकार और अभिषेक मनु सिंघवी आप की ओर से पेश हुए। इस मसले पर अगली सुनवाई अब 17 अगस्त को होगी।
Free Schemec : किसने क्या कहा
चीफ जस्टिस एनवी रमना :
भारत जैसे गरीब देश में इस तरह का रवैया सही नहीं है। चुनाव में घोषणा के वक्त पॉलिटिकल पार्टी ये नहीं सोचती कि पैसा कहां से आएगा। मुफ्त चुनावी वादे और सोशल वेलयफेयर स्कीम में फर्क है।
कपिल सिब्बल :
फ्री स्कीम्स एक जटिल मुद्दा है। इस पर सुनवाई के लिए जरूरी डेटा चाहिए। मेरे यहां एक महिला कर्मचारी काम करती हैं। कल उनके पास मेट्रो से जाने के लिए पैसे नहीं थे तो मैंने दिए। उन्होंने बताया कि दिल्ली में बस सेवा फ्री है और ट्रैवलिंग के लिए उसी का ज्यादा उपयोग कर रही हूं। क्या ये फ्री स्कीम्स है?
तुषार मेहता :
ये एक तरह से आर्थिक आपदा है। सुप्रीम कोर्ट फ्री स्कीम्स पर कोई दिशा.निर्देश बना दें। पैनल का सुझाव भी बढ़िया है।
अभिषेक मनु सिंघवी :
इस पर पैनल का गठन गैर जरूरी है। चुनाव के वक्त मतदाताओं और उम्मीदवारों के बीच कल्याणकारी योजना एक सेतु की तरह काम करता है, जिससे वोटर्स अपना वोट तय करने की दिशा में बढ़ता है। कोर्ट का हस्तक्षेप राजनीतिक हो जाएगा।
चुनाव आयोग :
इससे पहले चुनाव आयोग ने कोर्ट में कहा है कि फ्री का सामान या फिर अवैध रूप से फ्री का सामान की कोई तय परिभाषा या पहचान नहीं है। आयोग ने 12 पन्नों के अपने हलफनामे में कहा है कि देश में समय और स्थिति के अनुसार फ्री सामानों की परिभाषा बदल जाती है। ऐसे में विशेषज्ञ पैनल से हमें बाहर रखा जाए। हम एक संवैधानिक संस्था हैं और पैनल में हमारे रहने से फैसले को लेकर दबाव बनेगा।
सियासी दल इस पर बहस नहीं करना चाहते
4 अगस्त को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आयोग ने इस मसले पर पहले कदम उठाए होते तो आज ऐसी नौबत नहीं आती। कोर्ट ने आगे कहा कि शायद ही कोई पार्टी मुफ्त की योजनाओं के चुनावी हथकंडे छोड़ना चाहती है। इस मुद्दे को हल करने के लिए विशेषज्ञ कमेटी बनाने की जरूरत है, क्योंकि कोई भी दल इस पर बहस नहीं करना चाहेगा।
अश्विनी उपाध्याय :
भाजपा नेता और सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने जनहित याचिका दायर की है। इसमें मांग की है कि चुनाव में उपहार और सुविधाएं मुफ्त बांटने का वादा करने वाले दलों की मान्यता रद्द की जाए।