नागरिक अधिकारों का उल्लंघन हो तो मूकदर्शक नहीं बन सकती अदालतें, टीका नीति मनमानी व तर्कहीन - सुप्रीम कोर्ट
टीकाकरण नीति को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को फिर कटघरे में खड़ा किया है.कहा केंद्र और राज्यों में हो सकते हैं मतभेद. file photo - janjwar
जनज्वार, नई दिल्ली। 18-44 उम्र के लोगों के लिए केंद्र सरकार की कोविड टीकाकरण नीति के तीसरे चरण को सुप्रीम कोर्ट ने मनमानी व तर्कहीन करार दिया है। अदालत ने सरकार से इसके पीछे की सोच का कारण पूछा है। साथ ही कोर्ट ने टीकों की खरीद पर सवाल भी खड़े किए हैं।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस नागोश्वर राव व जस्टिस एस रवींद्र भट ने टीकों की खरीद पर सवाल करते हुए कोवेक्सीन, कोविशील्ड तथा स्पूतनिक-वी सहित अब तक खरीदे गए सभी कोविड-19 टीकों का पूरा हिसाब देने का निर्देश दिया है। साथ ही कोर्ट ने पूछा कि तीनो चरणों की शेष आबादी को टीका कब तक उपलब्ध करवाया जा सकेगा, बताया जाए।
पीठ ने अपने दिए आदेश में कहा पहले दो श्रेणियों वाले लोगों के लिए निशुल्क टीकाकरण और बाद में 18-44 आयु के लोगों के लिए राज्य या निजी अस्पतालों पर टीका खरीदने की जिम्मेदारी डालने की केंद्र सरकार की नीति पहली नजर में मनमानी और तर्कहीन है। अदालत ने अब तक खरीदे टीकों का हिसाब मांगते हुए कहा कि 'खरीद के विवरण में टीकों के लिए खरीद के विवरण में तारीखें भी दर्ज होनी चाहिए.'
सुप्रीम केर्ट ने केंद्र सरकार से सवाल दागा कि 'सरकार यह बताए कि बजट में टीकों के लिए निर्धारित 35 हजार करोड़ रूपये में से अब तक कितने खर्च हुए हैं। आकिर इस फंड का इस्तेमाल 18-44 आयु वर्ग के लोगों के लिए निशुल्क टीकाकरण करने में इस्तेमाल किया जाना चाहिए।'
शीर्ष अदालत ने केंद्र से यह भी जवाब मांगा है की दूसरे और तीसरे चरण में शेष बच गई आबादी का टीकाकरण कैसे और कब होगा? सरकार को इसकी रूपरेखा पेश करने का निर्देश दिया है। कोविड-19 प्रबंधन से संबंधित मुद्दों पर शीर्ष अदालत द्वारा स्वयं ही संज्ञान शुरू किए गए मामले में सुनवाई के दौरान पीठ ने यह आदेश दिया है।
इसके अलावा केंद्र ने यह भी कहा कि एक मई से शुरू 'उदार टीकाकरण नीति' केंद्र व राज्यों के बीच जिम्मेदारियों के सांविधानिक संतुलन में टकराव वाली बात है। 18-44 वर्ष की उम्र वालों को टीका लगाने का पूरा बोझ राज्यों पर डाल दिया गया है।
अदालत ने कहा कि सिर्फ एक पोर्टल कोविन पर निर्भरता से टीकाकरण का उद्देश्य पूरा नहीं होता। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में डिजिटल असमानता मौजूद है। उन्होने कहा कि जादातर आबादी तक डिजिटल साक्षरता और पहुँच नहीं है। कोर्ट की इस टिप्पणी पर केंद्र ने जवाब देते हुए कहा कि 'टीकाकरण नीति में सुप्रीम कोर्ट के अतिउत्साही न्यायिक हस्तक्षेप से अनपेक्षित हालात हो सकते हैं।'