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पूर्वोत्तर राज्यों में लॉकडाउन से चौपट हुई आजीविका, संकट में फंसी पर्यटन, रोजगार, कृषि और शिक्षा व्यवस्था

Janjwar Desk
31 Aug 2020 5:01 PM IST
पूर्वोत्तर राज्यों में लॉकडाउन से चौपट हुई आजीविका, संकट में फंसी पर्यटन, रोजगार, कृषि और शिक्षा व्यवस्था
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(पूर्वोत्तर भारत : कोरोना लॉकडाउन का सभी सात राज्यों पर बुरा असर)

होटल व्यवसाय पर सबसे ज्यादा मार पड़ी है। मेफेयर स्पा रिजॉर्ट एंड कसीनो के निदेशक और राइटक्लाइक हॉस्पिटैलिटी के सह-संस्थापक ब्योर्न डी नीसे का कहना है कि होटल क्षेत्र ने गर्मी के सीजन को खो दिया है, इसका गंभीर प्रभाव स्टार्टअप्स के साथ-साथ बड़े व्यवसायों पर पड़ा है....

दिनकर कुमार की रिपोर्ट

उस समय सिक्किम में पर्यटकों के आगमन का समय था जब भारत ने अपने पहले कोविड-19 मामले की पुष्टि की थी। इस छोटे हिमालयी राज्य को इसकी पारदर्शिता और अनुशासन के लिए जाना जाता है। कोविड-19 पर काबू पाने के लिए इसने सख्त उपायों को लागू किया। इसका पहला निर्णय पर्यटकों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाना था और राज्य में पहले से ही मौजूद पर्यटकों को बाहर निकालने का सिलसिला शुरू हो गया था। सिक्किम में प्रति वर्ष 20 लाख से अधिक पर्यटक आते हैं और यह राज्य पूरी तरह पर्यटन पर निर्भर करता है।

फलता-फूलता पर्यटन उद्योग एक वायरस के प्रभाव को महसूस करने वाला पहला उद्योग था जो वाइरस अभी भी हजारों मील दूर था। रातों रात होटल खाली हो गए थे, बुकिंग रद्द कर दी गई थी और टैक्सियों की रफ्तार थम गई थी। पूर्वोत्तर के तमाम राज्यों में लॉकडाउन के चलते इसी तरह पर्यटन उद्योग चौपट हो गया।

छेत्री कहते हैं, 'गंगटोक के रेवाज़ छेत्री एनई टैक्सी के संस्थापक हैं। 35 कंपनियों की स्थापना के बाद वह आर्थिक मंदी को अच्छी तरह समझते हैं, लेकिन मौजूदा परिस्थिति अलग है। 'लॉकडाउन की अनिश्चितता इस समय सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है जिसका उद्यमी सामना कर रहे हैं।'

होटल व्यवसाय पर सबसे ज्यादा मार पड़ी है। मेफेयर स्पा रिजॉर्ट एंड कसीनो के निदेशक और राइटक्लाइक हॉस्पिटैलिटी के सह-संस्थापक ब्योर्न डी नीसे का कहना है कि होटल क्षेत्र ने गर्मी के सीजन को खो दिया है। इसका गंभीर प्रभाव स्टार्टअप्स के साथ-साथ बड़े व्यवसायों पर पड़ा है। उन्होंने कहा, 'पूरे परिदृश्य में सबसे अधिक पर्यटन क्षेत्र प्रभावित हुआ है। यह कहना सही है कि बहुत बड़ी मात्रा में नौकरियां अभी से अधर में लटकी हुई हैं।'

मेघालय में एक और युवा उद्यमी कोविड-19 से लड़ाई लड़ रहा है। सेंटर ऑफ लर्निंग, नॉलेज एंड सर्विसेज के प्रबंध निदेशक आरके विजय बायर्सैट किसानों के साथ काम करते हैं। वह किसानों को सूचनाएं प्रदान करते हैं और वित्तीय संबंध बनाते हैं।

बायर्सैट कहते हैं, 'यह देश भर में फसल का मौसम है, और फसलों को शुरुआती नुकसान हुआ था क्योंकि लॉकडाउन के कारण उपज को बाजारों में नहीं भेजा जा सकता था।' उन्होंने अन्य उद्यमियों के साथ मिलकर मेघालय सरकार से मदद ली और किसानों से शहरों और कस्बों में आपूर्ति करने के लिए सीधे खरीद शुरू की। उन्होंने होम डिलीवरी भी शुरू कर दी। बायर्सैट ने कहा, 'हालांकि मौजूदा परिदृश्य को देखते हुए इसे ठीक होने में समय लगेगा। यह न्यू नॉर्मल है। बाजार सामान्य नहीं हैं।'

दूसरी तरफ असम के 180 साल पुराने चाय उद्योग को कोरोनोवायरस लॉकडाउन ने गंभीर संकट में डाल दिया है और बड़े पैमाने पर राजस्व घाटा हो रहा है। राज्य के चाय बागानों में लाखों नियमित और अस्थायी कर्मचारी काम करते हैं। चाय बागानों को 22 मार्च को बंद किया गया। फिर अप्रैल के मध्य में अधिकतम 50 प्रतिशत कर्मचारियों के साथ कार्य संचालन शुरू करने की अनुमति दी गई।

चाय की पहली खेप मार्च और अप्रैल के बीच उत्पादित होती है। इसी अवधि में सबसे अच्छी गुणवत्ता वाली चाय का उत्पादन होता है जो इस साल प्रभावित हुआ है। टी एसोसिएशन ऑफ इंडिया की असम शाखा सचिव दीपांकर डेका ने कहा, 'हम पहले मौके पर उत्पादन करने से चूक गए और उम्मीद है कि हमें दूसरा मौका मिलेगा।'

डेका ने कहा, 'असम के पूरे चाय उद्योग को लगभग 1,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।' अब उत्पादन फिर से शुरू हो गया है लेकिन बिक्री की समस्या बनी हुई है। डेका महाराष्ट्र और राजस्थान जैसे राज्यों के खरीदारों तक नमूने पहुंचाने में उत्पादकों के सामने आने वाली कठिनाइयों की ओर इशारा करते हैं।

उन्होंने कहा, 'हम नहीं जानते कि उन्हें उत्पादन के नमूने कैसे भेजें।' डेका ने यह भी कहा कि बिक्री के बिना कर्मचारियों को भुगतान करना मुश्किल होगा। चाय बागानों को अधिकतम 50 प्रतिशत कार्यबल के साथ खोला गया है और बागानों को सभी खर्चों को वहन करना पड़ता है। चाय बेचे बगैर हम श्रमिकों को भुगतान करने के लिए पैसा कैसे प्राप्त करेंगे?

उन्होंने कहा, 'एक मध्यम आकार के चाय बागान में लगभग 2,000 श्रमिक काम करते हैं। हमें न केवल उनके वेतन का भुगतान करना है, बल्कि राशन भी प्रदान करना है।' लॉकडाउन के समय देश के अधिकांश स्कूलों ने ऑनलाइन कक्षाओं की ओर रुख किया, लेकिन पूर्वोत्तर में छात्र इस प्रक्रिया का ठीक से हिस्सा नहीं बन सकते हैं। अंग्रेजी और विदेशी भाषा विश्वविद्यालय, शिलांग परिसर के एक शिक्षक ने कहा- 'खराब इंटरनेट कनेक्टिविटी का मतलब है कि पूर्वोत्तर के छात्रों को इस शिक्षण पद्धति से बाहर ही रहना होगा'।

पूर्वोत्तर क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवा का बुनियादी ढांचा बेहाल है और इसने महामारी के खिलाफ लड़ाई के वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बुरी तरह प्रभावित किया है। चिकित्सा सुविधाओं की कमी, अपर्याप्त परीक्षण, पुलिस की क्रूरता आदि से केवल जनता में भय बढ़ा है।

इन सभी समस्याओं के बीच प्रवासी श्रमिकों और दैनिक मजदूरों को एक असाधारण चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। लॉकडाउन का मतलब कोई रोजगार का नहीं होना है और यहां जीवित रहना एक चुनौती से कम नहीं है। कृषि गतिविधियों को भी इस क्षेत्र में गंभीर झटका लगा है। आवश्यक वस्तुओं की कीमत आसमान छू रही है। राज्य की सीमाओं को सील करने से सब्जियों, मांस प्रोटीन और अन्य वस्तुओं की कमी हुई है। हालाँकि प्रतिबंधों को वापस लिया जा रहा है, लेकिन पुरानी सामान्य स्थिति वापस आने में अभी समय लगेगा।

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