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Abortion is legal in India? आधा-अधूरा अबॉर्शन बन रहा है महिलाओं की मौत का कारण, जानिए गर्भपात को लेकर भारत में क्या है कानून?

Janjwar Desk
9 July 2022 9:23 AM GMT
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Abortion is legal in India : भारत में गर्भपात को लेकर कानून बना हुआ है लेकिन आधे-अधूरे ज्ञान के चलते और अवैध तरीके से हो रहे गर्भपात महिलाओं की मौत की वजह बन रहा है...

Abortion is legal in India : भारत में गर्भपात को लेकर कानून बना हुआ है लेकिन आधे-अधूरे ज्ञान के चलते और अवैध तरीके से हो रहे गर्भपात महिलाओं की मौत की वजह बन रहा है। देश में महिलाओं या उनके परिजनों द्वारा असुरक्षित गर्भपात कराया जाता है, जो उनके सेहत के लिए खतरा बन जाता है। कभी-कभी तो मौत की वजह भी होता है। ऐसे में आपके लिए यह जानना जरुरी है कि भारत में गर्भपात को लेकर क्या कानून है और कानूनी तरीके से सुरक्षित गर्भपात कैसे किया जा सकता है।

आधा अधूरा गर्भपात बन रहा मौत की वजह

गर्भपात को लेकर बना कानून 'द मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रिग्नेंसी ऐक्ट' ने 50 साल से भी पहले एबॉर्शन को लीगल कर दिया था लेकिन इसके बारे में जागरूकता की कमी और लोगों में कलंक की धारणा के चलते सड़क छाप डॉक्टर या नीम हकीम अपना धंधा चला रहे हैं। इतना ही नहीं, लोग कच्चे पपीते, जड़ी-बूटी के भरोसे रहते हैं या काफी ज्यादा दवाएं खा जाते हैं। असुरक्षित गर्भपात देश में माताओं की मृत्यु का तीसरा बड़ा कारण बन चुका है। पिछले हफ्ते ही, तमिलनाडु में एबॉर्शन की दवाएं खाने से 15 साल की लड़की की मौत हो गई। पता चला कि रेपिस्ट ने ही फर्जी डॉक्टर से उसे दवा दिलवाई थी। लड़की का रेप करने वाला उसका दूर का रिश्तेदार था।


असुरक्षित गर्भपात से रोज 13 महिलाओं की मौत

चिंताजनक बात यह है कि भारत में 56% गर्भपात, असुरक्षित रूप से किये जाते हैं। भारत में मातृ-मृत्यु के 8.5% मामले, असुरक्षित गर्भपात के कारण होते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रतिदिन 13 महिलाओं की मौत हो रही है। अनचाहे या अवांछित गर्भधारण के मामले, गर्भनिरोधक की कमी, गर्भनिरोधक की विफलता या बलात्कार के कारण उत्पन्न हो सकते हैं।

किन परिस्थितियों में गर्भपात है वैध?

बात दें कि भारत में गर्भपात, कानूनी रूप से वैध है, और इसके लिए मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 जिम्मेदार है। हालांकि, कानूनी तौर पर, गर्भधारण के केवल 20 सप्ताह तक ही गर्भपात कराया जा सकता है। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट की धारा 3 (2) के तहत, गर्भधारण के 20 सप्ताह तक (या 12 सप्ताह तक, जैसा भी मामला हो) गर्भ को इन परिस्थितियों में समाप्त किया जा सकता है-

  • यदि गर्भनिरोधक विफल रहा है।
  • यदि गर्भावस्था, बलात्कार का परिणाम है।
  • यदि यह सम्भावना है कि बच्चा (यदि जन्म लेता है) तो वह गंभीर शारीरिक या मानसिक दोष के साथ पैदा होगा।
  • यदि गर्भावस्था की निरंतरता, गर्भवती महिला के जीवन पर खतरा डालेगी या उसके शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य पर इसके गंभीर प्रभाव होंगे।

बता दें कि 12-20 सप्ताह तक की गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए जो आवश्यकताएं एक्ट में दी गयी हैं, वही आवश्यकताएं 12 सप्ताह तक की गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए भी लागू होती हैं। यह भी समझना आवश्यक है कि, नाबालिगों या मानसिक रूप से विक्षिप्त महिला की गर्भावस्था के मामले में, गर्भपात के लिए माता-पिता से लिखित सहमति की आवश्यकता होती है। इसके अलावा एक अविवाहित महिला, गर्भपात के कारण के रूप में गर्भनिरोधक की विफलता का हवाला नहीं दे सकती है।

भारत में गर्भपात को लेकर कानून

वर्ष 1971 के इस कानून की धारा 3 (2) (बी), गर्भावस्था समाप्त करने की अवधि को 20 सप्ताह तक सीमित रखती है, और यदि 2 चिकित्सकों की यह राय है कि गर्भावस्था की निरंतरता, भ्रूण या मां को काफी जोखिम में डाल सकती है, तो गर्भपात कराया जा सकता है। हालांकि यह प्रावधान केवल 12 सप्ताह से अधिक एवं 20 सप्ताह तक की गर्भावस्था के मामले में लागू होता है।

इस कानून का एक अन्य खंड, 3 (2) (ए), की यह आवश्यकता है कि यदि गर्भधारण के 12 सप्ताह तक गर्भपात कराया जाना है तो ऐसा केवल तभी किया जा सकता है, जब केवल 1 डॉक्टर की यह राय है कि गर्भावस्था की निरंतरता, मां या भ्रूण के जीवन को खतरे में डालेगी। इस एक्ट में वर्ष 2002 और 2003 में संशोधन किया गया ताकि डॉक्टरों को गर्भावस्था के सातवें सप्ताह तक, प्रिस्क्रिप्शन पर Mifepristone और Misoprostol (जिसे "मॉर्निंग-आफ्टर पिल" कहा जाता है) प्रदान करने की अनुमति दी जा सके।

वर्ष 2003 में स्वास्थ्य मंत्रालय के दिशानिर्देशों के अनुसार, एक गर्भपात केवल एक पंजीकृत स्त्री रोग विशेषज्ञ और प्रसूति रोग विशेषज्ञ द्वारा किया जा सकता है। MTP act की धारा 2(d) के अनुसार, एक रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर का मतलब, एक ऐसे मेडिकल प्रैक्टिशनर से है, जो कि इंडियन मेडिकल काउंसिल एक्ट, 1956 की धारा 2 (1956 का 102) के क्लॉज (h) में परिभाषित, कोई भी मान्यता प्राप्त मेडिकल योग्यता रखता है और जिसका नाम राज्य मेडिकल रजिस्टर में दर्ज किया गया है। जिसे स्त्री रोग और प्रसूति में ऐसा अनुभव या प्रशिक्षण है जैसा कि इस अधिनियम के तहत बनाए गए नियमों (वर्ष 2003 के नियम) द्वारा निर्धारित किया जा सकता है।

अस्पतालों से बाहर ज्यादा एबॉर्शन

डेटा से पता चलता है कि देश में ज्यादातर एबॉर्शन स्वास्थ्य केंद्रों यानी अस्पतालों से बाहर होते हैं। लांसेट में प्रकाशित 2015 Guttmacher इंस्टिट्यूट स्टडी से पता चला कि भारत में हर साल करीब 15.6 मिलियन एबॉर्शन होते हैं, जिसमें से 11.5 मिलियन यानी 73 प्रतिशत गर्भपात मेडिकल एबॉर्शन (दवाएं दी गईं) थे, जिसे स्वास्थ्य केंद्रों के बाहर किया गया। केवल 0.8 मिलियन (5 प्रतिशत) गर्भपात के मामले मेडिकल एबॉर्शन नहीं थे लेकिन अस्पताल के बाहर किया गया और पूरी प्रक्रिया नीम हकीम या सड़क छाप डॉक्टरों द्वारा की गई।

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