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पर्यावरण

Economics of Extreme Heat : अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती चरम गर्मी

Janjwar Desk
18 Jun 2022 5:47 AM GMT
Economics of Extreme Heat : अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती चरम गर्मी
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Economics of Extreme Heat : अमीर और मध्यम वर्ग तो वातानुकूलन द्वारा गर्मी को मात दे रहा है, पर गरीब इसकी सीधी मार झेल रहे हैं। गरीबों में भी महिलायें ऐसे समय अधिक प्रभावित होती हैं क्योंकि उनके जिम्मे ही पानी, जलावन की लकड़ी, मवेशियों का चारा और खेतों की गुडाई का काम रहता है...

महेंद्र पाण्डेय की रिपोर्ट

Economics of Extreme Heat : हमारे देश का उत्तरी भाग मार्च से लगातार चरम गर्मी की चपेट में है, तापमान के लगातार नए रिकॉर्ड कायम होते जा रहे हैं। मई से यूरोप के कुछ देश और अमेरिका के कुछ हिस्से भी बढ़ते तापमान से त्रस्त हैं| चरम गर्मी के सन्दर्भ में चर्चा केवल लोगों की स्वास्थ्य समस्याओं और मौतों तक सीमित रहती है, पर इसका असर आम-जीवन के हरेक पहलू पर पड़ता है।

अमीर और मध्यम वर्ग तो वातानुकूलन द्वारा गर्मी को मात दे रहा है, पर गरीब इसकी सीधी मार झेल रहे हैं। गरीबों में भी महिलायें ऐसे समय अधिक प्रभावित होती हैं क्योंकि उनके जिम्मे ही पानी, जलावन की लकड़ी, मवेशियों का चारा और खेतों की गुडाई का काम रहता है| गर्भवती महिलाओं (Pregnant women) पर अत्यधिक गर्मी घातक असर करती है। वैज्ञानिकों के अनुसार लम्बे समय तक औसत तापमान सामान्य से 1 डिग्री सेल्सियस से अधिक रहता है तब समय से पहले पैदा (premature babies), या फिर मरे शिशु के पैदा होने (stillbirths) की घटनाओं में 5 प्रतिशत तक की बृद्धि हो जाती है।

यह अध्ययन सितम्बर 2020 में ब्रिटिश मेडिकल जर्नल (British Medical Journal) में प्रकाशित किया गया था और इसका आधार वर्ष 1990 के बाद से इस विषय पर प्रकाशित 70 शोधपत्र थे। कोलंबिया यूनिवर्सिटी स्थित कंसोर्टियम ऑन क्लाइमेट एंड हेल्थ एजुकेशन की निदेशक सेसिलिया सोरेंसें (Cecilia Sorensen) के अनुसार यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसपर बहुत कम जानकारी उपलब्ध है, इसका कारण यह है कि ऐसा प्रभाव केवल गरीब महिलाओं तक सीमित है। जाहिर है, इस विषय पर आंकड़े इकट्ठे नहीं किया जाते और अधिकतर गरीब महिलायें अस्पतालों तक नहीं पहुँचती हैं।

सेसिलिया सोरेंसें के अनुसार चरम तापमान गर्भवती महिलाओं के लिए बहुत खतरनाक है| गरीब गर्भवती महिलायें पानी और मवेशियों के लिए चारा के लिए के लिए गर्मी सहती हुई लम्बी दूरी तय करती हैं, पर उनकी समस्या यहीं ख़त्म नहीं होती| भीषण गर्मी में भी उन्हें लकड़ी और दूसरे जैव-इंधनों की मदद से खाना बनाना पड़ता है| इन इंधनों से उत्पन्न प्रदूषण पर तो बहुत सारे शोधपत्र मौजूद हैं, पर 45-50 डिग्री सेल्सियस में चूल्हे के ताप को झेलती महिलाओं पर कोई अध्ययन नहीं किया जाता है|

विश्व मौसम संस्था के अनुसार वर्ष 1970 से 2019 के बीच चरम मौसम के कारण दुनिया में 20 लाख मौतें दर्ज की गयी हैं, जिसमें से 10 प्रतिशत से अधिक का कारण अत्यधिक तापमान है। पिछले दशक के दौरान ऐसी कुल 185000 मौतों में से आधी से अधिक मौतों का कारण अत्यधिक गर्मी थी| यूरोपियन एनवायर्नमेंटल एजेंसी (European Environmental Agency) के अनुसार यूरोप में 1980 से 2021 के बीच चरम प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली कुल मौतों में से 90 प्रतिशत मौतों का कारण अत्यधिक गर्मी है| चरम गर्मी से अर्थव्यवस्था के प्रभाव का आकलन कठिन है, पर असामयिक मौतें, स्वास्थ्य सेवाओं पर बढ़ता बोझ, मानव कार्य दक्षता में कमी और कृषि के साथ कंस्ट्रक्शन परियोजनाओं पर इसका व्यापक असर पड़ता है।

यूरोपियन एनवायर्नमेंटल एजेंसी के अनुसार वर्ष 1980 से 2000 के बीच यूरोप के 32 देशों में चरम गर्मी के कारण 27 से 70 अरब यूरो का नुकसान हुआ| इसके आगे के दो दशकों में यूरोप में चरम गर्मी की घटनाएं बढी और जाहिर है आर्थिक नुकसान भी अधिक होने लगा| अकेले फ्रांस में वर्ष 2015 से 2020 के बीच चरम गर्मी के कारण 22 से 37 अरब यूरो का नुकसान हुआ| नेचर कम्युनिकेशंस (Nature Communications) नामक जर्नल में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार यूरोप के देशों को वर्ष 2003, 2010, 2015 और 2018 में अत्यधिक गर्मी का सामना करना पड़ा था और इन वर्षों के दौरान यूरोप में जीडीपी में औसतन 0.3 से 0.5 प्रतिशत तक गिरावट दर्ज की गयी थी| दक्षिणी यूरोपीय देशों में तो यह गिरावट 2 प्रतिशत तक थी| अनुमान है कि वर्ष 2060 तक केवल अत्यधिक तापमान के कारण यूरोप की अर्थव्यवस्था में औसतन 10 प्रतिशत तक नुकसान होगा।

इंटरनेशनल लेबर आर्गेनाईजेशन (International Labor Organization) के अनुसार यदि कार्य क्षेत्र का तापमान लम्बे समय तक 34 डिग्री सेल्सियस से अधिक रहे तब मानव कार्य क्षमता में 50 प्रतिशत की कमी आ जाती है| केवल अत्यधिक गर्मी के कारण वर्ष 2030 तक दुनिया में मानव कार्य घंटों में 2 प्रतिशत की कमी होगी, यह समय 8 करोड़ पूर्णकालिक रोजगार के बराबर होगा और इससे 2.4 ख़रब डॉलर का नुकसान उठाना पड़ेगा। संयुक्त राष्ट्र के इन्टरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज की रिपोर्ट के अनुसार तापमान बृद्धि के कारण दुनिया के अधिकतर हिस्सों में वर्ष के 250 दिनों तक खुले में काम करना कठिन और खतरनाक हो जाएगा।

हमारे देश में इस वर्ष अत्यधिक गर्मी के कारण गेहूं की पैदावार में 15 प्रतिशत तक की कमी का अनुमान है, और शेष गेहूं की गुणवत्ता भी प्रभावित होगी| फ्रांस के कृषि मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2019 में गर्मी के कारण फ्रांस में मक्के के उत्पादन में 9 प्रतिशत और गेहूं के उत्पादन में 10 प्रतिशत तक कमी आंकी गयी थी| अमेरिका में वर्ष 2012 में भयानक गर्मी के कारण मक्के की पैदावार में 12 प्रतिशत तक कमी आई थी| अत्यधिक गर्मी मवेशियों और दुग्ध उद्योग के भी प्रभावित करते है।

चरम तापमान के कारण जो नुकसान उठाना पड़ रहा है, वह आने वाले वर्षों में लगातार बढ़ने वाला है क्योंकि दुनिया तापमान बृद्धि रोकने के लिए कहीं से गंभीर नजर नहीं आ रही है। ऐसी विपदा से आर्थिक नुकसान उठाने वाले और जान गंवाने वाले समाज का सबसे गरीब तबका होता है और जाहिर है पूंजीवादी दुनिया में गरीबों की आवाज कोई नहीं सुनता है।

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