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Electric Shutdown : अगले चार दिनों में ठप्प हो सकती है देश की बिजली आपूर्ति, जानें क्या है असली वजह

Janjwar Desk
7 Oct 2021 8:41 AM GMT
Electric Shutdown : अगले चार दिनों में ठप्प हो सकती है देश की बिजली आपूर्ति, जानें क्या है असली वजह
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(देश गंभीर विद्युत संकट के मुहाने पर खड़ा है)

Electric Shutdown : देश में अगले चार दिनों में बिजली आपूर्ति ठप्प होने की खबरें सुर्खियां बटोर रहीं हैं। इसके पीछे की जो मुख्य वजह है वह गंभीर व चौंकाने वाली है..

Electric Shutdown : (जनज्वार)। देश में अगले चार दिनों में बिजली आपूर्ति ठप्प (Electric shutdown) होने की खबरें सुर्खियां बटोर रहीं हैं। इसके पीछे की जो मुख्य वजह है वह गंभीर व चौंकाने वाली है। चूंकि विद्युत आपूर्ति ठप्प होने का आसन्न संकट किसी तकनीकी समस्या (Technical problem) के कारण नहीं आने वाला है बल्कि, एक ऐसी समस्या आई है, जिसका फिलहाल समाधान दिखता नजर नहीं आ रहा। ऊपर से त्यौहारी सीजन शुरू हो गए हैं जिनमें बिजली की मांग बहुत ज्यादा होती है इसलिए समस्या और गंभीर बन गई है।

देश के ताप बिजली घरों में विद्युत उत्पादन कोयले (Coal) से होता है और देश के प्रमुख बिजली घरों के पास अब महज तीन-चार दिनों तक उपयोग लायक ही कोयला बचा हुआ है। कोयले की आपूर्ति भी हाल-फिलहाल संभव नहीं दिख रही, क्योंकि देश के कई कोयला खदानों के बंद होने की नौबत आ गई है।

केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) की बुधवार की रिपोर्ट के मुताबिक, 90 से ज्यादा पावर प्लांट (Power plants) के पास चार दिन से कम कोयला भंडार है। वहीं 16 पावर प्लांट ऐसे हैं, जिनके पास फौरन कोयला नहीं पहुंचा तो किसी भी वक्त उत्पादन बंद करना पड़ सकता है।

सीईए की बिजली संयंत्रों के लिए कोयला भंडार पर चार अक्तूबर की रिपोर्ट के मुताबिक, 25 संयंत्रों के पास एक दिन, 20 के पास दो दिन, 14 के पास तीन दिन और 16 संयंत्रों के पास चार दिन का कोयला उपलब्ध है। इसके अलावा 8 बिजली उत्पादन संयंत्रों के पास पांच दिन, 8 संयंत्रों के पास छह दिन और एक संयंत्र के पास सात दिन का कोयला उपलब्ध है। किसी भी संयंत्र के पास आठ दिन का स्टॉक नहीं है।

सीईए की रिपोर्ट के मुताबिक, चार अक्तूबर को 135 बिजली संयंत्रों में कुल 7717 हजार टन कोयला का भंडार है। यह भंडार सिर्फ चार दिन के लिए पर्याप्त है। सरकार की दलील है कि दो-तीन दिन में कोयले की आपूर्ति कर दी जाएगी। पर पिछले दिनों में कोयला की उपलब्धता के आंकड़े बताते हैं कि बिजली संयंत्रों के पास कोयला लगातार कम हो रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक, बिजली संयंत्रों के पास दो अक्तूबर को 7928 हजार टन कोयला था। जबकि तीन अक्तूबर को 7809 हजार टन कोयला था।

अब चूंकि भारत में बिजली उत्पादन (Electricity manufacturing) के लिए सबसे ज्यादा इस्तेमाल कोयले का ही होता है इसलिए पावर कट की आशंका बन गई है। इस्के कारण कई विद्युत उत्पादन इकाइयां ठप्प हो सकती हैं। ऊर्जा मंत्रालय के मुताबिक कोयले पर आधारित बिजली उत्पादन केंद्रों में कोयले का स्टॉक बहुत कम हो चुका है।

देश में खानों से दूर विभिन्न राज्यों में स्थित (नॉन-पिटहेड) 64 बिजली उत्पादन यूनिट हैं। बताया जा रहा है कि इन विद्युत उत्पादन संयंत्रों के पास अब चार दिन से भी कम का कोयला भंडार (Coal stock) शेष बचा है। बता दें कि जो विद्युत उत्पादन संयंत्र कोयला खानों से दूर स्थित होते हैं, उन्हें नॉन-पिटहेड कहते हैं।

सरकारी आंकड़े (Government data) बताते हैं कि इन बिजली उत्पादन केंद्र में कोयले का स्टॉक खत्म हो रहा है और आने वाले तीन-चार दिनों में इनके पास का समूचा स्टॉक ही खत्म हो जाएगा।

केंद्रीय बिजली प्राधिकरण (सीईए) की बिजली संयंत्रों के लिए कोयला भंडार पर ताजा रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि 25 ऐसे बिजली संयंत्रों में तीन अक्टूबर को सात दिन से भी कम समय का कोयला भंडार था। देश के 64 ताप बिजली संयंत्रों के पास चार दिनों से भी कम समय का ईंधन बचा है।

बता दें कि सीईए 135 बिजली संयंत्रों में कोयले के भंडार की निगरानी करता है, जिनकी कुल उत्पादन क्षमता दैनिक आधार पर 165 गीगावॉट है। उधर, देश में कोयले के संकट का असर राज्यों की बिजली उत्पादन इकाइयों पर पड़ने लगा है। उत्तरप्रदेश के हरदुआगंज (अलीगढ़) और पारीक्षा (झांसी) (Aligadh and Jhansi) की दो-दो कुल चार इकाइयों से बिजली का उत्पादन पूरी तरह ठप कर दिया गया है। कोयले से चलने वाली अन्य उत्पादन इकाइयां भी कम क्षमता पर चल रही हैं।

बताया जाता है कि उत्पादन कम होने से प्रबंधन को बिजली की कमी पूरी करने के लिए अतिरिक्त बिजली खरीदनी पड़ रही है। हरदुआगंज की एक 110 मेगावाट और एक 250 मेगावाट की इकाई से बिजली का उत्पादन कोयले की कमी के कारण पूरी तरह बंद कर दिया गया है।

यहां की 250 मेगावाट (250 megawatt) क्षमता की तीसरी इकाई को 100 मेगावाट कम क्षमता पर चलाया जा रहा है। वहीं पारीक्षा की 210 और 250 मेगावाट क्षमता की एक-एक इकाइयों से बिजली उत्पादन ठप करना पड़ा है। यहां की शेष दो इकाइयों को 130 मेगावाट क्षमता से चलाया जा रहा है।

वहीं, ओबरा (Obera) की इकाइयों के पास चार दिन और अनपरा की इकाइयों के पास तीन दिन के लिए ही कोयले का स्टाक बचा है। यदि जल्द की कोयला इन इकाइयों के पास नहीं पहुंचा तो यहां भी उत्पादन ठप हो सकता है। कोयला स्टाक में आई कमी के लिए पावर कारपोरेशन प्रबंधन की खामियां सामने आ गई हैं।

कोयला संकट की वजह से कई बिजली संयंत्रों को बंद करना पड़ा है। विद्युत मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, कोयला जल्द उपलब्ध नहीं हुआ, तो कुछ और बिजली संयंत्रों को बंद करना पड़ सकता है। कोयला की खपत कम करने के लिए कई बिजली संयंत्रों को कम क्षमता पर चलाया जा रहा है। बिजली संयंत्रों को कोयला की आपूर्ति सामान्य होने की जल्द कोई संभावना नहीं दिख रही है। ऐसे में आने वाले वक्त में बिजली की मांग बढ़ने और उत्पादन कम होने से संकट और गहरा सकता है।

कोयला मंत्रालय ने बुधवार को कहा कि वह तीन प्रमुख पहलुओं- संस्थागत संचालन व्यवस्था, लोग और समुदाय तथा पर्यावरण सुधार एवं न्यायसंगत बदलाव के सिद्धांतों पर भूमि के पुन: उपयोग-के आधार पर खान को बंद करने की रूपरेखा को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में है। किसी खदान को बंद करने की प्रक्रिया तब अपनाई जाती है जब संबंधित खदान के परिचालन का चरण समाप्त हो रहा होता है या हो गया है।

कोयला मंत्रालय ने बयान में कहा कि वह इस कार्यक्रम में सहायता के लिए विश्व बैंक के साथ परामर्श कर रहा है। विश्व बैंक के पास विभिन्न देशों में खदान बंद करने के मामलों को संभालने का व्यापक अनुभव है। यह हमारे लिए फायदेमंद है और खदान बंद करने के मामलों को संभालने में बेहतर गतिविधियों और मानकों को अपनाने में मदद करेगा।

मंत्रालय ने कहा कि फिलहाल देश का कोयला क्षेत्र कोयला उत्पादन बढ़ाकर देश की ऊर्जा मांग को पूरा करने की पूरी कोशिश कर रहा है। साथ ही यह पर्यावरण और खदानों के आसपास रहने वाले समुदाय की देखभाल पर जोर देने के साथ सतत विकास का रास्ता अपनाने की दिशा में भी विभिन्न पहल कर रहा है।

हालांकि, कोयला क्षेत्र व्यवस्थित खदान बंद करने की अवधारणा के लिए अपेक्षाकृत नया है। खदान बंद करने के दिशा-निर्देश पहली बार 2009 में पेश किए गए थे। इसे 2013 में फिर से जारी किया गया और अभी भी विकसित हो रहा है।

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