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Exclusive : एशिया की सबसे सुरक्षित तिहाड़ जेल में जाता कैसे है नशा व मोबाइल, यहां महिला कैदी भी इस तरह पूरा करती हैं शौक

Janjwar Desk
28 Sep 2021 5:52 PM GMT
dilli news
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(केंद्रीय कारागार तिहाड़ image/socialmedia)

Exclusive : यहां का वो काला सच जो आजसे पहले आपने शायद ही जाना हो, हम उसका खुलासा कर रहे हैं, कि आखिर कैसे इतनी चाक चौबंद सुरक्षा के बावजूद भी यहां मोबाइल से लेकर हर वो सामान जाता है, जो कानूनन अवैध है...

Janjwar Exclusive (जनज्वार) : जेल जिसका नाम सुनते ही आपके भीतर कहीं न कहीं सिहरन पैदा होती होगी। लेकिन इन्हीं जेलों के अंदर कुछ लोगों का कैरियर फलता फूलता है। जी यह बिल्कुल सच है। एशिया की सबसे बड़ी व सुरक्षित जेलों में शुमार तिहाड़ जेल (Tihar Jail) का नाम शायद ही ऐसा कोई हो जिसने सुना नहीं होगा। लेकिन यहां का वो काला सच जो आजसे पहले आपने शायद ही जाना हो, हम उसका खुलासा कर रहे हैं, कि आखिर कैसे इतनी चाक चौबंद सुरक्षा के बावजूद भी यहां मोबाइल से लेकर हर वो सामान जाता है, जो कानूनन अवैध है।

तिहाड़ के आधीन दिल्ली में तीन जेलें बनी हुइ हैं। जिनमें तिहाड़, रोहिणी व नई बनी मंडोली जेल शामिल है। इनमें रोहिणी जेल एक व छोटी है जबकि तिहाड़ ओर मंडोली जेल काफी बड़ी जेले है, इतनी बड़ी की इन जेलों के अंदर भी कई जेले हैं। तिहाड़ जेल नंबर एक से लगाकर 9 नंबर तक है, दसवीं जेल रोहिणी (Rohini Jail) को कहा जाता है। वहीं मंडोली जेल नंबर ग्यारह से शुरू होती है और 16 नंबर तक है। इनमें तिहाड़ की जेल नंबर 6 और मंडोली की जेल नंबर 16 महिला जेले हैं।

अवैध वस्तुओं का कोडवर्ड

जिला कारागार रोहिणी

दिल्ली की जेलो में हर उस चीज का कोडवर्ड बना हुआ है जिसे भीतर की दुनिया में अवैध माना जाता है। यहां कैदी बंदी प्रशासन से बचने के लिए अपने कोडवर्डों का सहारा लेते हैं। यहां मोबाइल को 'सिब्बा' सिमकार्ड को 'बिस्किट' तम्बाकू को 'चूरन और घास' चरस को 'दम' सर्जरी ब्लेड को 'चाभी' स्मैक को संजय दत्त और सनी लियोन कहा जाता है। यह भी जान लीजिए की यहां जलाने के लिए माचिस या लाइटर नहीं बल्कि कछुआ चलता है, कछुआ माने मास्क्यूटो कॉइल। बीड़ी या सिगरेट नहीं चलती जिसकी जगह रजिस्टर के पन्ने से सेल्फ मेड बीड़ी बनाकर काम चलाया जाता है। इसके अलावा यहां 500 के नोट को 'गांधी' हजार का 'थान' (अब यह नोट बंद हो गया) और दो हजार के नोट को 'चुकंदर' कहा जाता है।

यह सब भीतर आता कैसे है?

तिहाड़ जेल (Tihar Jail) में दिल्ली सहित यूपी, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान सहित कइ राज्यों के खूंखार कैदी बंदियों को रखा जाता है। इनके पास रूपये पैसे की कोई कमी नहीं होती। अपराध के जरिए कमाया गया हराम का पैसा जेल की सुख सुविधाओं को खरीदने में काम आता है। जेल के भीतर अगर कइ अफसर या बंदीरक्षक आपको ईमान वाले मिलते हैं तो उससे दुगनी संख्या बेइमानों की भरी है। तम्बाकू से लेकर मोबाइल और रूपया यहां तक की नशा सब यहां के सुरक्षाकर्मी अंदर लाते पहुँचाते हैं। प्रति पांच हजार की रकम लाने पर सिपाही या हवलदार का हजार रूपया हिस्सा होता है। तभी तो यहां का एक छोटा से छोटा सिपाही आपको स्विफ्ट डिजायर या इनोवा से घूमता धिखे तो हैरान मत होइयेगा।

कैदी बंदी भी लाते हैं नशा लेकिन इस तरह

जेलों में बंदी वो होता है जो अंडरट्रायल (UT) यानी जिसे सजा नहीं हुई होती है। और कैदी जो सजायाफ्ता हो जाता है इसे कन्विक्ट (CT) कहा जाता है। कैदी की कभी साल छह महीने में तारीख लगती है वहीं बंदी महीने में एक या एक से अधिक तारीख भुगतता है। अदालत में पेशी पर गया बंदी अपनी गारद (अदालत तक ले जाने वाले सिपाही को कहते हैं) या किसी दूसरे सिपाही को सेट कर तम्बाकू मंगवा लेता है। जिसे पन्नी में बांधकर निगल लेता है और फिर जेल आकर उल्टी द्वारा उसे निकाल लेता है। लेकिन इस प्रक्रिया से तम्बाकू या नशा लाता वही है जो अभ्यस्त होता है।

इसका रेट क्या होता है?

इन वस्तुओं की अगर हम बात करें तो जमीन आसमान का फर्क है। बाहर जो तम्बाकू की पुड़िया (Tobacco Pouch) आपको पांच रूपये की मिलती है वही जेल के भीतर एक गांधी यानी 500 की बिकती है। दम गांधी का एक तोला। स्मैक के रेट और भी हाई-फाई हैं। सिब्बा यानी मोबाईल की कीमत 20 से 50 हजार तक होती है। तस्करों को जो जैसा कस्टमर मिले या फंसे उसके उपर होता है। ओर मोबाइल जितना छोटा हो उसकी कीमत उतनी अधिक होती है। इन्हीं फोन और सुविधाओं के जरिए बड़े क्रिमिनल्स तिहाड़ के भीतर बैठकर बाहर अपने शूटरों से रंगदारी और हत्या जैसी वारदातों को अंजाम दिलवाते हैं।

बैरक व सेल भी बिकती हैं

जेल के भीतर भृष्टाचार इस कदर फैला है कि कोइ भी नया व्यक्ति जाकर अमूमन चक्कर खा जाता है। सेल को अंदर चक्की भी कहा जाता है। एक छोटा कमरा होता है। जिसमें अकेले रहने के लिए आपको 25-30 हजार रूपये देने होते हैं। एक वार्ड से दूसरे वार्ड में गिनती कटवाने पर दो, पांच या फिर 10 हजार तक की चढ़ौती चढानी पड़ती है। वहीं एक बैरक से दूसरी बैरक में गिनती करवाने पर गांधी, थान अथवा चुकंदर की पेशगी लगती है। अन्यथा जैसे प्रशासन रखे पड़े रहिए।

गलती पर मिलता है थर्ड डिग्री टॉर्चर

जेल के भीतर सबसे बड़ी बात होती है कि आप सभी से अच्छा व्यवहार करें। कोई आपसे लड़े भी तो आपमें बर्दाश्त करने की शहनशीलता होनी चाहिए। क्योंकि, यहां झगड़ा करने पर आपको नर्क का अहसास कराते देर नहीं लगती। यहां मौजूद प्रशासन कैदियों से ही आपको पिटवाता है। प्रशासन भी पीटता है, लेकिन ज्यादा बुराई नहीं लेता। रबड़ की चप्पलों से सिर पर लगातार वार किया जाता है। अगर आपने ज्यादा बड़ा अपराध कर दिया तो झूले में (लोहे का झूलानुमा स्टैंड होता है) हाथ पांव बांधकर लटका दिया जाता है, और पैरों के तलवों में लट्ठ बरसाए जाते हैं। सिर पर लगातार रबड़ की चप्पलें मारी जाती हैं। यह महसूसकर लगेगा यमराज आकर पिटने वाले को लें जाएं।

महिला कैदी बंदी भी करती हैं नशा

केंद्रीय कारागार मंडोली

तिहाड़ की जेल नंबर 6 और मंडोली की जेल नंबर 16 महिला जेल हैं। इन कैदियों बेदियों में भी एक से एक खतरनाक मुजरिम महिलाएं बंद होती हैं। पुरूषों की तरह यह भी दम-तम्बाकू चरस गांजा का शौक रखती हैं। मोबाइल भी चलाती हैं। वह सब होता है जो किसी पुरूष जेल में होता है। आखिर है तो वह भी जेल जिसपर तिहाड़ का पार्ट है। पुरूष जेल में जिस तरह मुंशी या ठीक ठाक बदमाश को भाई कहा जाता है, ठीक उसी तरह महिला जेल में ठीकठाक क्रिमिनल महिला को सभी दीदी कहकर पुकारती हैं।

किरण बेदी ने की थी तिहाड़ से नशा बंद कराने की कोशिश

तिहाड़ की सभी जेलों यानी तिहाड़, रोहिणी और मंडोली (Mandoli Jail) का बहुत लंबा इतिहास है। यहां पहली महिला आईपीएस रही किरण बेदी भी डीजी रह चुकी हैं। पहले तिहाड़ में नशा खुला चलता था, लेकिन किरण बेदी के कार्यकाल में इसे बंद करवा दिया गया। बात कुछ ऐसी है की किरण बेदी ने अपने कार्यकाल में कैदियों से पूछा था की उन्हें नशा चाहिए या अच्छा खाना। जिस पर सभी कैदियों ने मिलकर कहा खाना। इसपर तिहाड़ में सप्ताह के दो दिन कैदियों को खीर दी जाने लगी थी। जो अब भी जारी है। लेकिन नहीं बंद हुए तो नशा और अपराध।

डिस्क्लेमर : यह लेख जेल पर लिखी गई चर्चित किताब जेल जर्नलिज्म से साभार लिया गया है। जनज्वार इसकी पुष्टी नहीं करता

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