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मशहूर लेखक और गीतकार जावेद अख्तर को मिला रिचर्ड डॉकिंस पुरस्कार, बने पहले भारतीय

Janjwar Desk
8 Jun 2020 3:04 PM IST
मशहूर लेखक और गीतकार जावेद अख्तर को मिला रिचर्ड डॉकिंस पुरस्कार, बने पहले भारतीय
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इस सम्मान को लेकर मशहूर अभिनेत्री शबाना आज़मी ने कहा कि आज के समय में जब धर्मनिरपेक्षता खतरे में हैं तो इस पुरस्कार की प्रासंगिकता बढ़ जाती है।

मुंबई। मशहूर लेख और गीतकार जावेद अख्तर को साल 2020 के प्रतिष्ठित रिचर्ड डॉकिंस पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। अख्तर को यह सम्मान तर्कसंगत विचार, धर्मनिरपेक्षता और मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए दिया गया है। इसके साथ ही यह सम्मान पाने वाले वह पहले भारतीय बन गए हैं।

रिचर्ड डॉकिंस पुरस्कार विज्ञान, शोध, मनोरंजन और शिक्षा के क्षेत्र में उस प्रतिष्ठित व्यक्ति को दिया जाता है जो सार्वजनकि रूप से तर्गसंगत तरीके से धर्मनिरपेक्षता की रक्षा के लिए प्रयास करता है और वैज्ञानिक सत्य का नेतृत्व करता है।

हीं इस सम्मान को लेकर अख्तर की पत्नी और प्रख्यात अभिनेत्री शबाना आज़मी ने कहा कि आज के समय में जब धर्मनिरपेक्षता खतरे में हैं तो इस पुरस्कार की प्रासंगिकता बढ़ जाती है।

बाना आजमी ने को कहा, 'मैं बहुत खुश हूं। मैं जानती हूं कि रिचर्ड डॉकिंस जावेद के लिए एक प्रेरणस्त्रोत नायक की तरह रहे हैं। यह पुरस्कार अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि आज के समय में जब सभी धर्मों के धार्मिक कट्टरपंथियों द्वारा धर्मनिरपेक्षता पर हमला किया जा रहा है तो यह पुरस्कार धर्मनिरपेक्षता की रक्षा के लिए जावेद के प्रयासों को प्रमाणित कर रहा है।'

ह पुरस्कार विश्व प्रसिद्ध अंग्रेजी विकासवादी जीवविज्ञानी रिचर्ड डॉकिंस के नाम पर दिया जाता है। बालीवुड अभिनेता अनिल कपूर और अभिनेत्री दिया मिर्जा ने ट्वीट कर जावेद अख्तर को इस पुरस्कार के लिए बधाई दी।

कौन हैं रिचर्ड डॉकिंस

ब्रिटिश क्रम-विकासवादी जीवविज्ञानी और लेखक रिचर्ड डॉकिन्स का जन्म 26 मार्च 1941 को हुआ। वह 1995 से 2008 के दौरान वे ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्रफ़ेसर थे। 1976 में प्रकाशित हुई किताब 'द सॅल्फ़िश जीन' के ज़रिये उन्होंने जीन-केन्द्रित क्रम-विकास मत को लोकप्रिय बनाया था।

रिचर्ड डॉकिन्स एक नास्तिक हैं और 'भगवान ने दुनिया बनाई' वाले मत के आलोचक के रूप में जाने जाते हैं। 2006 में प्रकाशित द गॉड डिलुज़न (भगवान का भ्रम) में उन्होंने लिखा कि किसी विश्व-निर्माता देवता के अस्तित्व में विश्वास करना बेकार है और धार्मिक आस्था एक भ्रम मात्र है। जनवरी 2010 तक इस किताब के अंग्रेज़ी संस्करण की 2,000,000 से अधिक प्रतियाँ बेची जा चुकी हैं और 31 भाषाओं में इसका अनुवाद किया जा चुका है।

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