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Farmer Protest : कृषि बिल के विरोध में आंदोलनकारी किसानों ने जानिए अब तक कैसे लड़ी अपनी लड़ाई

Janjwar Desk
19 Nov 2021 6:41 AM GMT
Farmer Protest : कृषि बिल के विरोध में आंदोलनकारी किसानों ने जानिए अब तक कैसे लड़ी अपनी लड़ाई
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(किसान आंदोलन का संघर्ष)

Farmer Protest : सरकार की तरफ से किसान आंदोलन को जाट बनाम गूजर करार दिया गया। दलालों का आंदोलन करार दिये जाने जैसे बातें कही गईं लेकिन इन सबसे बेअसर कोरोना काल से लेकर आज तक किसान आंदोलन जोर पर रहा।

Farmer Protest : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) का तीनों विवादित कृषि कानून वापस लेने का एलान किसानों के लिए एक बहुत बड़ी जीत है। कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) यानी गुरुपर्व (Gurpurab) का दिन किसानों के लिए बड़ी खुशखबरी लेकर आया है। बता दें कि सितंबर 2020 में संसद ने तीन किसान बिलों (New Farm Laws) को पास किया। किसान इन तीनों बिलों का विरोध कृषि बिल के पास होने के पहले से ही कर रहे थे लेकिन संसद में पास होकर यह कानून बन गया। जिसके बाद इन बिलों का तीखा विरोध किया गया। इसके बाद जनवरी 2021 ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इन कृषि कानूनों (Krishi Kanoon) पर रोक लगा दी। कृषि बिल के विरोध में पंजाब, हरियाणा, पश्चिम उत्तर प्रदेश से शुरू हुआ ये आंदोलन (Kisan Andolan) 26 नवंबर 2020 को दिल्ली की सीमाओं पर आकर थम गया। किसानों ने दावा किया है कि आंदोलन के दौरान 750 से अधिक किसान शहीद हुए है।

आंदोलन का राजनीतिकरण

पिछले साल सितंबर 2020 से शुरू हुए इस आंदोलन के दौरान अनगिनत घटनाएं हुईं। साथ ही किसानों को कई उतार-चढ़ाव का सामना भी करना पड़ा। इस आंदोलन के दौरान कई ऐसी हिंसातमक घटनाएं घटी जिसमें जान-माल का भारी नुकसान हुआ। आंदोलन को राजनितिक मोड़ देने की भी कोशिश की गई। किसानों से जुड़ा किसान आंदोलन का राजनितिक पार्टियों द्वारा किसानों की जरूरतों से अलग कर राजनीतिकरण करने की कोशिशें होती रही। सरकार की तरफ से किसान आंदोलन को जाट बनाम गूजर करार दिया गया। दलालों का आंदोलन करार दिये जाने जैसे बातें कही गईं लेकिन इन सबसे बेअसर कोरोना काल से लेकर आज तक किसान आंदोलन (Farmers Protest) जोर पर रहा। इस आंदोलन को कुचलने की कोशिशों के बीच भी आंदोलन जारी रहा। किसान आंदोलनकारियों ने अपने क्षेत्रों में भाजपा नेताओं (BJP Neta) के प्रवेश पर बैन लगाया तो उसको लेकर भी दोनों पक्षों के बीच भीषण टकराव हुआ। बता दें कि 14 अक्टूबर 2020 से लेकर 22 जनवरी 2021 तक किसानों सरकार के बीच कई दौर की बातचीत भी हुई।

किसान आंदोलन के दौरान हुई हिंसा

26 नवंबर 2020: 5 नवंबर को देशभर में "चक्का जाम" के बाद पंजाब और हरियाणा में किसान संगठनों ने "दिल्ली चलो" आंदोलन का आह्वान किया। जिसके बाद से किसान आंदोलन ने रफ्तार पकड़ी। हरियाणा पुलिस ने किसानों को रोकने की कोशिश की और आंसू गैस के गोले भी दागे लेकिन प्रदर्शनकारी किसान दिल्ली पहुंच गए और बॉर्डर पर डेरा डाल दिया। सिंघु बॉर्डर पर हंगामे के बाद दिल्ली पुलिस ने किसानों को दिल्ली में घुसने और निरंकारी मैदान में, बुराड़ी में विरोध करने की अनुमति दी।

26 जनवरी 2021 : केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले साल 26 नवंबर से दिल्ली के विभिन्न नाकों पर शुरू हुआ किसान आंदोलन 26 जनवरी को हिंसक हो गया। ट्रैक्टर रैली निकाल रहे प्रदर्शनकारियों ने बैरिकेड्स तोड़े, तय रूट के बजाय अलग रास्ता पकड़ा, इस दौरान दिल्ली में कई स्थानों पर झड़प देखने को मिली। जिसके बाद पुलिस को लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोले दागने पड़े।

लखीमपुर खीरी नरसंहार : लखीमपुर खीरी में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र (Ajay Mishra) के बेटे आशीष मिश्र ने प्रदर्शन कर रहे किसानों पर कथित तौर पर गाड़ी चढ़ा दी थी। ये किसान उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य (Keshav Prasad Maurya) का विरोध कर रहे थे। इस घटना में आठ लोगों की मौत हो गई। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र और यूपी के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य एक कार्यक्रम के लिए लखीमपुर खीरी (Lakhimpur Kheri) पहुंचे थे। इसकी जानकारी जैसे ही कृषि कानूनों (Agriculture Laws) का विरोध कर रहे किसानों को हुई तो वे हेलिपैड पहुंच गए। किसानों (Farmers) ने रविवार सुबह आठ बजे ही हेलिपैड पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद करीब दोपहर 2.45 बजे सड़क के रास्ते मिश्र और मौर्य का काफिला तिकोनिया चौराहे से गुजरा तो किसान काले झंडे लेकर दौड़ पड़े। इसी दौरा भारी बवाल हो गया और इन सबके बीच हुई हिंसा में आठ लोगों की मौत हो गई।

आंदोलन में राज्यों की भूमिका

इस आंदोलन के दौरान छह राज्य विधानसभाओं केरल, पंजाब, छत्तीसगढ़, राजस्थान, दिल्ली और पश्चिम बंगाल ने इन कृषि कानूनों के विरोध में प्रस्ताव पारित किया। कृषि कानूनों के खिलाफ पहले तो राज्य स्तर पर प्रदर्शन होते रहे फिर किसान यूनियनों ने एकजुट होकर दिल्ली चलो का आह्वान किया और आंदोलन दिल्ली की सीमाओं पर आकर थम गया। नवंबर में किसानों के समर्थन में राष्ट्र्व्यापी हड़ताल भी हुई थी। किसान आंदोलन के दौरान किसानों को खालिस्तानी राष्ट्रविरोधी (Khalistani Rashtravirodhi) तक कह दिया गया था। जिसके बाद किसानों पर आंसूगैस, लाठियां, गोलियां तक चलाईं गई लेकिन अंततः किसानों के दबाव में सरकार को आज झुकना ही पड़ा और तीनों विवादित कृषि बिल को वापस लेने की घोषणा की गई।

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