Fatima Sheikh : जानिए भारत की पहली महिला शिक्षिका फातिमा शेख की कहानी, गूगल ने भी डूडल बनाकर किया है सम्मानित
भारत की पहली महिला शिक्षिका फातिमा शेख की कहानी
Fatima Sheikh : आज भारत के पहले मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख की 191वीं जयंती है। इस खास मौके पर आज गूगल ने भी एक बेहतरीन डूडल बनाकर उन्हें सम्मानित और आभार व्यक्त किया है। बता दें कि फातिमा शेख ने समाज सुधारक ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर 4818 में एक स्वदेशी पुस्तकालय की शुरुआत भी की थी। यही पुस्तकालय देश में लड़कियों का पहला स्कूल में माना जाता है।
फातिमा शेख ने फुले दंपति को थी शरण
बता दें कि फातिमा शेख का जन्म आज ही के दिन यानी 9 जनवरी 1831 को पुणे में हुआ था। फातिमा शेख अपने भाई उस्मान शेख के साथ रहती थी। बता दें कि जब फुले दंपति को दलित व गरीबों को शिक्षा देने के विरोध में उनके पिता ने घर से बाहर निकाल दिया था तो उस उस्मान शेख और फातिमा शेख ने ही उन्हें अपने घर में शरण देती। इसके बाद का स्वदेशी पुस्तकालय की स्थापना इन्ही शेख के घर में की गई थी। फिर बाद में फातिमा शेख और फुले दंपति ने आज के गरीब व वंचित तबकों और मुस्लिम महिलाओं को शिक्षा देने का एक जुझारू और पुनीत कार्य शुरू किया था। बता दें कि एक तरह से पुणे के इसी स्कूल में उन लोगों को शिक्षा देने का महायज्ञ शुरू हुआ था, जिन्हें हमेशा से ही जाति, धर्म और लिंग के आधार पर उस वक्त के शिक्षा से वंचित रखा जाता था।
2014 में मिली पहचान
इस काम के बदले में फातिमा शेख को भी काफी ज्यादा विरोध सहना पड़ा था लेकिन वह पीछे नहीं हटीं। उन्होंने घर-घर जाकर अपने समुदाय के दलितों को स्वदेशी लाइब्रेरी में आकर पढ़ने और भारतीय जाति व्यवस्था से बाहर निकलने के लिए जागरूक किया। बता दें कि सत्यशोधक आंदोलन का भी हिस्सा रहीं| बता दें कि भारत सरकार ने 2014 में फातिमा शेख को पहचान दी और उनकी कहानी उर्दू पाठ्यक्रमों में शामिल की गई।
लोगों द्वारा किया गया था विरोध
फातिमा शेख और सावित्रीबाई फुले ने महिलाओं और उत्पीड़ित जातियों के लोगों को शिक्षा देना शुरू किया तो स्थानीय लोगों द्वारा उन्हें धमकी दी गई। उनके परिवार को भी निशाना बनाया गया था और उन्हें अपने सभी गतिविधियों को रोकने या अपने घर छोड़ने का विकल्प दे दिया गया था। जब फातिमा और सावित्रीबाई ने ज्योतिबाफुले द्वारा स्थापित स्कूलों में जाना शुरु कर दिया तो लोगों द्वारा उन्हें परेशान किया गया। लोगों ने उन पर पत्थर फेंके और कभी-कभी गाय का गोबर भी उन पर फेंका गया था।
फातिमा शेख बच्चों को घर-घर जाकर बुलाते थीं
बता दें कि फातिमा तमाम बच्चों को अपने घर में पढ़ने बुलाने के लिए लोगों के घर-घर जाते थीं| वह हमेशा से ही चाहती थीं कि भारतीय जाति व्यवस्था की बाधा पार कर वंचित तबके के बच्चे पुस्तकालय में आए और पढ़ें। इसी प्रकार फातिमा शेख फुले दंपति की तरह जीवनभर शिक्षा व समानता के लिए संघर्ष में जुटी रहीं। फातिमा शेख और फुले दंपति इस प्रकार भारतीय इतिहास में हमेशा के लिए अमर हो गए।