वीडियो विश्लेषण : रेलवे कभी घाटे में नहीं जाता तो मोदी किसके लिए बेच रहे रेलवे?
हिमांशु जोशी का वीडियो विश्लेषण
जनज्वार। सोशल मीडिया एक खुला मंच है, जहां लोग किसी घटना या मुद्दे पर अपनी राय खुल कर रखते हैं । जिससे कभी-कभी दूध का दूध पानी का पानी हो जाता है, हमें पता चल जाता है कि जो काम हो रहा है वह गलत है या सही।
जनज्वार' ने एक विशेष श्रृंखला 'पत्रकारिता में पहला प्रयोग, ख़बर का दर्शकों की राय के आधार पर विश्लेषण' पर शुरू की है, इसी श्रृंखला का चौथा वीडियो विश्लेषण 'रेलवे के निजीकरण' पर जनता के विचार सामने लाता है और सरकार के मनमाने निर्णय का पर्दाफ़ाश करता नज़र आता है।
मोदी किसके लिए बेच रहे रेलवे? शीर्षक से यह वीडियो 'जनज्वार' के फ़ेसबुक पेज़ पर 21 अगस्त 2020 को पोस्ट किया गया था। अब तक साढ़े आठ लाख से ज्यादा बार देखे जा चुके इस वीडियो पर पन्द्रह हज़ार लोगों ने अपनी प्रतिक्रियाएं दी हैं। अठारह हज़ार बार साझा किए जा चुके इस वीडियो पर 876 लोगों की टिप्पणी आई हैं।
वीडियो में रेलवे के निजीकरण पर रेलवे कर्मचारी यूनियन के नेता कमल उसरी से बात की गई है। कमल बताते हैं कि 'तेजस' नाम की निजी ट्रेन चला रेलवे में निजीकरण की शुरुआत कर दी गई है। रेल बज़ट को आम बज़ट में मिलाना रेल के निजीकरण करने की रणनीति का हिस्सा था। दुनिया के बहुत से देशों में सार्वजनिक यात्रा मुफ़्त है जबकि हमारे यहां इसे निजी हाथों में सौंप रहे हैं।
सरकार कहती है कि रेलवे में घाटा हो रहा है यह झूठ है, रेलवे कभी घाटे में नही जाती। रेलवे का 70% मुनाफा माल ढोने से होता है तो गरीबों के अस्तित्व पर हमला क्यों किया जा रहा है, हर कार्य मुनाफ़े के लिए नहीं किया जाना चाहिए।
पुणे में 3 रुपए का प्लेटफॉर्म टिकट 50 रुपए का हो गया है, जो गरीब प्लेटफॉर्म पर सोता है उसका क्या होगा। जो फ़ेरी लगाने वाले रेलवे में अलग-अलग सामान बेचकर रोज़गार प्राप्त करते हैं, उनका क्या होगा। डॉक्टरों, बच्चों, सैनिकों, दिव्यांगों को रेलवे में छूट मिलती है, निजीकरण के बाद यह सब समाप्त हो जाएगी।
वीडियो विश्लेषण के लिए पहली चार सौ टिप्पणियों में हर बीसवीं को लेने का प्रयास गया, बाकी टिप्पणियों पर भी सरसरी निगाहें दौड़ाई गई और अमर्यादित भाषा का प्रयोग हुई टिप्पणियों को छोड़ दिया गया।
रेवती रमन अपनी टिप्पणी देते हैं भाई मेरे इनको देश और देशवासियों से कोई लेना देना नही है, यह बात कब समझेंगे। ये न तो देश बचाएंगे न संविधान, हिटलर इनका आदर्श है और ये चाहते हैं कि भारत में कत्लेआम शुरू हो जाए, संवैधानिक व्यवस्था ख़त्म हो जाए। विश्व की आपराधिक संस्थाओं से गठजोड़ कर भारत में एकछत्र तानाशाही सरकार को स्थापित किया जाए।
इशक पठान की टिप्पणी रोचक है और हमारा शीर्षक भी, वह लिखते हैं एजुकेशन भी प्राइवेट हो रही है, फ़िल्म सुपर 30 का डायलॉग 'राजा का बेटा ही राजा बनेगा'। कमलजीत ग्रेवाल क्या कहना चाहते हैं सही से समझ तो नही आता पर लगता है कि वह निजीकरण के पक्ष में हैं, वह लिखते हैं गलत बयानबाजी न करें प्लीज़। मंजू देवी भावुक होकर लिखती हैं सोच कर रोना आ रहा है।
फतेह लाल गुर्जर लिखते हैं अन्य सेक्टर की अपेक्षा रेलवे विभाग का वेतन अधिक होने से सरकार को सालाना बज़ट में हज़ारों करोड़ रुपए का बज़ट जारी करना पड़ता है और राजस्व कम एकत्रित होता है। सरकार चाहती है विभाग खुद कमाए और खुद खाए, साथ ही मुनाफ़े के रूप में एकमुश्त राशि सरकार निवेशक से प्राप्त कर ले। सारी जिम्मेदारी निजी क्षेत्र को सौंप देने से सरकार का कार्यभार कम पड़ जाएगा।
अकीफ़ अबरार अपनी टिप्पणी देते हैं कार्ल मार्क्स ने ऐसे ही नही कहा था कि 'धर्म एक अफ़ीम है' आज जनता को धर्म नामक अफ़ीम पिलाकर गलत लोग सत्ता में बैठे हुए हैं। ख़ालिद अनवर रेलवे निजीकरण को सही ठहराते हुए लिखते हैं मोदी जी का सराहनीय क़दम।
राजेंद्र सिंह परिहार वीडियो पर अपनी टिप्पणी देते हैं कि रेल यूनियन के नेता आपने कभी ईमानदारी से ड्यूटी करने के लिए कर्मचारियों को प्रेरित किया होता तो आज यह दुर्दशा रेलवे की न होती, जैसे बीएसएनल की दुर्दशा का जिम्मेदार यूनियन और कर्मचारियों का निकम्मापन है।
वीडियो विश्लेषण का निष्कर्ष
वीडियो में जनज्वार के पाठकों की बहुत सारी टिप्पणियां आई हैं, इससे यह पता चलता है कि सरकार के हर निर्णयों पर जनता अपनी बात दिल खोल कर रखना चाहती है। जनतंत्र में जनता क्या कह रही है यह सुनना आवश्यक है क्योंकि जब जनतंत्र में जनता की आवाज़ ही दबा दी जाए तो वह तानाशाही बन जाती है।
टिप्पणियों से पता चलता है कि कुछ लोग सरकार के रेलवे को निजी हाथों में सौंपने की वज़ह रेलवे कर्मचारियों की अपने काम में अक्सर बरते जाने वाली लापरवाही को मानते हैं। वीडियो में दी गई टिप्पणियों में महिलाओं का प्रतिशत बारह है और वह सभी टिप्पणियां रेलवे के निजीकरण के विरोध में की गयी हैं। रेलवे निजीकरण के पक्ष में 25 प्रतिशत लोग हैं तो इसका विरोध करने वालों का प्रतिशत 75 है।
जो लोग निजीकरण के पक्ष में हैं उनका यह मानना है कि यह फैसला देश के विकास में है, हालांकि ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम है। रेलवे निजीकरण का विरोध करने वाले लोग सरकार की इस नीति को गरीबों को दबाने वाली नीति मानते हैं और उनका यह मानना है कि यह नीति सिर्फ़ बड़े-बड़े उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने वाली है, इससे राजा का बेटा राजा ही बनेगा।
नोट: यह श्रंखला जनज्वार के फेसबुक पेज पर आने वाले वीडियो की टिप्पणियों पर आधारित होगी। यह भारतीय पत्रकारिता के इतिहास में पहला प्रयोग है जिसका प्रयोग पत्रकारिता में अब तक लगभग असंभव माने जाने वाले फीडबैक को प्राप्त करने के लिए होगा। इस विश्लेषण का प्रयोग शोधों और आंदोलनों में सहायता प्राप्त करने के लिए किया जा सकता है।
विश्लेषण से हम यह जान सकेंगे कि समाचारों में दिखाई जा रही इन खबरों के प्रति समाज के लोगों का क्या नज़रिया है, क्या ऐसी खबरों को दिखाए जाने के बाद लोग अपराध कम करते हैं , क्या अपने मन में इतनी नफ़रत पाले लोगों को पत्रकारिता के माध्यम से जागरूक कर सुधारा जा सकता है, क्या वह खबरों के आधार पर किसी चुनाव में अपनी पार्टी चुनते हैं, क्या वह किसी छुपी प्रतिभा को सामने लाने में सहयोग करते हैं, क्या पाठक किसी भ्रष्ट व्यक्ति को सजा दिलाने में अहम किरदार निभाते हैं। यह वीडियो विश्लेषण उन वीडियो का होगा जिनको कम से कम 5 लाख पाठकों ने देखा होगा और 500 से अधिक कमेंट होंगे।
जाते जाते
भारत में मेनस्ट्रीम मीडिया पर आपको जो दिखाया जा रहा है वह आपकी आंखों पर पट्टी बांध रहा है (कल्टीवेशन थ्योरी ऑफ कम्युनिकेशन पढ़ सकते हैं), वैकल्पिक मीडिया कोशिश कर रहा है कि आप सच जानें। janjwar.com का यह प्रयोग इस थ्योरी को सही साबित कर रहा है, वैकल्पिक मीडिया को सहारा दीजिए क्योंकि यही लोकतंत्र बचा रहे हैं। मेनस्ट्रीम मीडिया तो अपने मरे पत्रकारों तक का साथ नही दे रही, आपका क्या देगी!