भूमिहीन दलितों के लिए जमीन की मांग वाले आंदोलन में शामिल पूर्व आईपीएस 3 हफ्ते बाद जेल से रिहा, कर दिया योगी पर बड़ा खुलासा
file photo
Lucknow news : उत्तर प्रदेश में योगी की भाजपा सरकार आजकल जगह जगह दलितों का सम्मेलन करके उनका कल्याण करने तथा दलित हितैषी होने का दावा कर रही है। उसके इस दावे के सच की पोल गोरखपुर में पिछले महीने सरकार द्वारा दलितों के लिए जमीन मांगने पर दलित नेताओं को जेल में डालने की घटना से पूरी तरह से खुल जाती है जिसके बारे में पूर्व आईपीएस एसआर दारापुरी ने चौंकाने वाला सच बताया।
गौरतलब है कि पूर्व आईजी समेत अंबेडकर जनमोर्चा के दलित नेता श्रवण कुमार निराला, पत्रकार रामू सिद्धार्थ समेत दर्जनों लोगों को इस धरना प्रदर्शन के बाद गिरफ्तार कर लिया गया था और 3 हफ्ते बाद जमानत पर रिहा हुए हैं।
एसआर दारापुरी बताते हैं, 'दिनांक 10 अक्तूबर, 2023 को गोरखपुर में अंबेडकर जनमोर्चा द्वारा भूमिहीन दलितों को एक एक एकड़ भूमि आवंटन की माँग को लेकर गोरखपुर कमिश्नर कार्यालय के प्रांगण में एक धरने का आयोजन किया गया था। उसमें मुझे भी एक वक्ता के रूप में आमंत्रित किया गया था। मैं 10 अक्तूबर को प्रात: ट्रेन द्वारा गोरखपुर पहुँचा था और एक होटल में रुका था। वहाँ से मैं लगभग 12.30 बजे धरना स्थल पर पहुंचा था और मैंने लगभग 15 मिनट तक भाषण दिया था जिसमें मैंने दलितों के लिए भूमि की आवश्यकता, भूमि आवंटन की मांग का औचित्य तथा पूर्व में इंदिरा गांधी द्वारा भूमि आवंटित किए जाने की बात कही थी। उसके लगभग आधा घंटा बाद मैं होटल पर वापस आ गया था।'
बकौल दारापुरी, 'धरनास्थल पर लगभग 8-9 हजार की भीड़ थी और उसमें लगभग 90% महिलाएं थीं जो जमीन की मांग को लेकर बहुत उत्साहित एवं मुखर थीं। वहाँ पर पुलिस तथा मजिस्ट्रेट मौजूद थे और सारा कार्यक्रम बहुत अनुशासित ढंग से चल रहा था। मौके पर मेरी भेंट धरने के मुख्य संयोजक श्रवण कुमार निराला तथा डॉ. सिद्धार्थ रामू तथा कुछ अन्य परिचित लोगों से हुई थी। अगले दिन 11 अक्तूबर को सवेरे 6 बजे मुझे होटल वाले ने बताया कि पुलिस इंस्पेक्टर मुझसे मिलने के लिए आया है। मैं नीचे लॉबी में गया तो उसने मुझे बताया कि आपको थाने पर चलना है। मैंने उसे बताया कि मैं फ़्रेश होकर तथा नहा धोकर एवं नाश्ता आदि करके ही जा सकता हूँ। इस पर मैं अपने रूम में वापस आया और धरने के संयोजक श्रवण कुमार निराला से बात करने की कोशिश की, परंतु उनका मोबाइल बंद पाया।'
वजह कहते हैं 'मुझे कुछ गड़बड़ होने की आशंका हुई और मैंने अपनी फेसबुक पर लगभग 07.15 बजे पोस्ट लिखी- 'मैं कल गोरखपुर अंबेडकर जन मोर्चा की तरफ से दलित एवं नागरिक अधिकार के मुद्दों को लेकर आयोजित जनसभा में भाग लेने के लिए आया था तथा सभा बिल्कुल शांतिपूर्ण ढंग से सम्पन्न हुई थी, आज सुबह गोरखपुर की पुलिस मुझे थाने पर ले जाने के लिए आई है।' इस पर हमारी पार्टी आल इंडिया पीपुल्स फ्रन्ट के प्रदेश महासचिव दिनकर कपूर ने तुरंत फेसबुक पर मेरी गिरफ्तारी के विरुद्ध पोस्ट डाल दी। इसके बाद नाश्ता आदि करके लगभग 08.30 बजे इंस्पेक्टर मुझे थाना रामगढ़ ताल पर ले गए और मुझे वहाँ बैठा लिया गया। उसके बाद मुझे दो अन्य के साथ थाना कैंट ले जाया गया। वहाँ से शाम को अस्पताल में डॉक्टरी के बाद मुझे तथा अन्य आठ लोगों को गोरखपुर जेल भेज दिया गया। हम लोग जेल में लगभग 1.30 बजे बैरेक में दाखिल हो सके, परंतु उस दिन सारा दिन खाने को कुछ नहीं मिला। जैसाकि स्पष्ट है कि मेरी गिरफ़्तारी प्रात: 8.15 बजे रामा होटल से की गई थी, परंतु पुलिस के कागजों में मेरी गिरफ़्तारी शाम को 4 बजे रेलवे बस स्टैंड से दिखाई गई है।'
दारापुरी कहते हैं, 'अगले दिन दिनांक 12 अक्तूबर को समाचार पत्र के माध्यम से हमें पता चला कि हम लोगों के विरुद्ध थाना कैंट में दिनांक 11 अक्तूबर को मुकदमा अपराध संख्या 717/2023 धारा 147/188/342/332/353/504/506/307/120 बी/ भाo दंo विo, धार 7 क्रिमिनल ला एमेंडमेंट एक्ट व धारा 3 लोक संपत्ति निवारण अधिनियम तथा 138 विद्युत अधिनियम के अंतर्गत मुकदमा पंजीकृत किया गया है, जिसमें 13 लोगों को नामजद किया गया तथा 10-15 अज्ञात आरोपी हैं। इसमें हमारे ऊपर बिना अनुमति के सभा करने, धारा 144 का उल्लंघन करने, सरकारी कर्मचारी के कार्य में बाधा डालने, चोट पहुँचाने तथा धमकाने, सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुँचाने, साजिश करने तथा विद्युत चोरी करने का आरोप लगाया गया है। हमारे ऊपर लगाए गए आरोप बिल्कुल फर्जी एवं निराधार हैं जैसाकि निम्नलिखित विश्लेषण से स्पष्ट है:-
1. बिना अनुमति के मीटिंग करना- आयोजक श्रवण कुमार निराला द्वारा अनुमति हेतु काफी दिन पूर्व प्रार्थना पत्र दिया गया था तथा वह अधिकारियों से व्यक्तिगत तौर पर मिला भी था जिस पर अधिकारियों ने उसे पूरी व्यवस्था करने का मौखिक आश्वासन दिया था। मीटिंग के दिन प्रातः: 9 बजे से सभास्थल पर शामियाना आदि लगना शुरू हो गया था परंतु इस पर किसी भी अधिकारी द्वारा कोई आपत्ति नहीं की गई थी। उसके बाद 11 बजे से शाम तक सारा कार्यक्रम शांतिपूर्ण ढंग से चलता रहा और पुलिस फोर्स एवं अधिकारी वहाँ उपस्थित रहे तथा किसी ने भी उस पर आपत्ति नहीं की। शाम 9 बजे जिलाधिकारी मौके पर आए और उसने ज्ञापन प्राप्त किया तथा भूमि आवंटन की मांग उचित बताते हुए एक कमेटी बनाने का आश्वासन दिया तथा धरने को समाप्त कराया। यह देखने की बात है की यदि धरना बिना अनुमति के था तो प्रशासन ने उसे शुरू में ही रोका क्यों नहीं और जिलाधिकारी ने मौके पर आ कर ज्ञापन क्यों लिया और कमेटी बनाने का आश्वासन क्यों दिया?
2. बिजली चोरी का आरोप : यह सरासर फर्जी एवं निराधार है, क्योंकि वहाँ पर किसी भी प्रकार से बिजली का कनेक्शन लेना संभव नहीं था। मौके पर जनरेटर की व्यवस्था थी और उसी से माइक तथा प्रकाश की व्यवस्था की गई थी।
3. कमिश्नर कार्यालय के कर्मचारी के साथ मारपीट एवं गला दबाने का आरोप : यह एकदम निराधार एवं असत्य है क्योंकि शिकायतकर्ता ने थाने पर दी गई लिखित तहरीर में इसका कोई उल्लेख नहीं किया था। डाक्टरी मुआयना के अनुसार उसने केवल सूंघने की समस्या एवं दाहिने कंधे में दर्द की बात कही थी जिस के लिए डाक्टर ने ईएनटी सर्जनको रेफर करने तथा एक्स रे कराने की बात कही थी। यह उल्लेखनीय है कि इस मामले में 10 तारीख की 11 बजे की घटना की प्रथम सूचना 11 तारीख को प्रात: 6 बजे लगभग 18 घंटे के विलंब से लिखाई गई। उसमें शिकायतकर्ता का गला दबाने की कोई बात नहीं कही गई थी, परंतु बाद में 5 घंटे बाद उसके 161 के बयान में गला दबाने की बात जोड़ दी गई, जोकि बिल्कुल फर्जी है। इसका मुख्य उद्देश्य हमारे अपराध को गैर जमानतीय बना कर जेल में डालना था।
4. कमिश्नर कार्यालय में तोडफोड़ : यह आरोप भी एकदम फर्जी एवं निराधार है, क्योंकि वहाँ किसी भी प्रकार की शांति भंग नहीं हुई थी।
5. जेल में राजनीतिक बंदियों का दर्जा न दे कर सामान्य अपराधियों के साथ रखना : जबकि कुछ दिन पहले गोरखपुर विश्वविद्यालय के वीसी के मारपीट करने वाले एबीवीपी के सदस्यों को अलग बैरक में रख कर विशेष व्यवस्था की गई थी। जेल में प्रवास के दौरान हमें यह भी ज्ञात हुआ कि इससे से पहले हत्या के आरोपी नेता अमरमणि त्रिपाठी को पूरी बैरेक खाली कराकर अकेले ही रखा गया था। जबकि हम लोगों के साथ सामान्य अपराधियों जैसा व्यवहार किया गया।
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि हम लोगों पर लगाए गए सभी आरोप बिल्कुल असत्य, फर्जी एवं निराधार हैं और यह केवल हमें तथा अन्य को डराने तथा दलितों की जमीन की मांग को दबाने के लिए लगाए गए हैं। इन्हीं आरोपों के आधार पर हम 9 लोगों जिनमें दिल्ली से आए एक महिला सहित 4 पत्रकार भी थे, को गिरफ्तार कर 3 हफ्ते तक जेल में रखा गया। इसका मुख्य उद्देश्य यह संदेश देना था कि यदि भविष्य में कोई भी जमीन की मांग उठाएगा तो उसका हश्र भी हम लोगों जैसा ही होगा।