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Gauri Lankesh : क्यों हुई थी गौरी लंकेश की हत्या, एक पढ़े-लिखे इंजीनियर की कहानी
Gauri Lankesh : क्यों हुई थी गौरी लंकेश की हत्या, एक पढ़े&लिखे इंजीनियर की कहानी
गौरी लंकेश की हत्या की साजिश पर प्रज्वल भट्ट की रिपोर्ट
Gauri Lankesh assassination : अमोल काले ( Amol Kale ) पुणे में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करने वाले 23 वर्षीय मैकेनिकल इंजीनियर थे। एक दिन जब वह एक शिव मंदिर में प्रार्थना सभा के लिए गए थे तो वहां पर उनकी मुलाकात एक करिश्माई दंपति से हुई, जिनसे उन्होंने हिंदू धर्म के बारे में गहरी बातचीत की। 2003 के इस मुलाकात ने अमोल के जीवन को इतना बदल दिया कि जल्द ही उन्होंने फैसला किया कि वह एक आध्यात्मिक हिंदू जीवन शैली अपनाएंगे। उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी, आध्यात्मिकता से जुड़ी किताबें बेचना शुरू कर दिया। साथ ही सत्संग और धार्मिक आयोजनों में बढ़ चढ़कर शामिल होने लगे। हिंसक हिंदुत्व को बढ़ावा देने वाले भाषणों को सुनने में ज्यादा रुचि लेने लगे। बहुत जल्द अमोल की आध्यात्मिक यात्रा उन्हें हिंसक उपदेश के मार्ग पर लेकर चला गया। वही 5 सितंबर, 2017 को बेंगलुरु में पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या का बड़ा कारण बना।
जांच अधिकारियों के मुताबिक वह कहा करता था कि अगर किसी ने हिंदू धर्म के बारे में कुछ भी अपमानजनक कहा तो मुझे बहुत दुख होगा। ऐसे लोगों के खिलाफ हिंसक कार्रवाई करने में उसे कोई गुरेज नहीं होगा। पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या मामले में 17 लोगों को गिरफ्तार करने वाली एसआईटी ने अपराध के पीछे अमोल काले को मास्टरमाइंड माना है। इस मामले में एसआईटी द्वारा गिरफ्तार किए गए 17 लोगों में से अमोल काले अकेला तर्कवादी है जो नरेंद्र दाबोलकर और गोविंद पानसरे की हत्या और तर्कवादी केएस भगवान की हत्या की साजिश में भी शामिल है। जांच अधिकारियों की नजर में अमोल काले से पूछताछ करना और कुछ जानना सबसे ज्यादा दुष्कर कार्य में से एक था। कहा जाता है कि वह अपनी जेल की कोठरी में तेज आवाज में मंत्रों का जाप करता था और पूछताछ के समय किसी भी सवाल का जवाब देने से इनकार कर देता था।
जैसे ही गौरी लंकेश ( Gauri Lankesh ) मामले की सुनवाई बेंगलुरु की एक अदालत में आगे बढ़ते ही ये बातें सामने आई कि गौरी लंकेश की हत्या के पीछे आरोपी समूह इसलिए इकट्ठा नहीं हुआ क्योंकि वे उनकी हत्या करना चाहते थे। वे देशद्रोही की पहचान करने, उन्हें खत्म करने के लिए सालों पहले एक साथ आए थे। ताकि एक हिंदू राष्ट्र की स्थापना की दिशा में आगे बढ़ना संभव हो सके। गौरी की हत्या के पीछे उनका मकसद पत्रकारिता का कार्य नहीं था, बल्कि हिंदू धर्म के बारे में उनके द्वारा किए गए एक अपमानजनक भाषण का एक छोटा वीडियो क्लिप था।
अमोल काले का कट्टरवाद
हिंदुत्व विचारधारा के साथ अपने प्रयास से पहले अमोल पुणे में अपने परिवार के साथ रहने वाले एक युवा इंजीनियर थे। एक सत्संग कार्यक्रम के दौरान शहर के पिंपरी के एक मंदिर में अमोल दंपति से मिलने के बाद उन्होंने क्षत्र धर्म साधना सहित हिंदू धर्म पर और किताबें पढ़ना शुरू कर दिया था। सनातन संस्था के संस्थापक जयंत बालाजी आठवले ने 1995 में में छात्र धर्म साधना का प्रकाशन शुरू किया था। यह पुस्तिका दुर्जन और साधक को समाज के अंदर दो हिस्सों में बांटकर देखता है। दुर्जन यानि एक दुष्ट व्यक्ति और साधक यानि एक ऐसा व्यक्ति जो हिंदू धर्म के मार्ग का अनुसरण करता है।
बुकलेट के अनुसार समाज में कई प्रकार के दुर्जन हैं जिनमें राष्ट्रद्रोही और देशद्रोही, राष्ट्र के खिलाफ गद्दार, और धर्मद्रोही यानि धर्म या धर्म के खिलाफ गद्दार शामिल हैं। दरअसल, लेखक जयंत बालाजी आठवले एक आकर्षक प्रतिभा के धनी व्यक्तित्व थे। उन्होंने दुर्जन में दुष्ट शक्तियों के बारे में बात की जो उन्हें धर्म और राष्ट्र के खिलाफ देशद्रोह करने के लिए मजबूर करती हैं। उनका कहना था कि इस तरह की बुरी ऊर्जा को खत्म करने का एकमात्र तरीका दुर्जन के अस्तित्व को समाप्त करना है। ऐसे दुर्जन को मार डाला जाना चाहिए। अन्यथा, वे साधकों को मार डालेंगे और यहां अपना असुरी राज्य स्थापित करेंगे। यह पुस्तिका क्षत्र धर्म साधना अमोल काले और उनके जीवन की पुकार और दुर्जन के खात्मे का घोषणापत्र बन गई।
जयंत बालाजी आठवले का संगठन सनातन संस्था गोवा में स्थित एक कट्टर हिंदुत्व चरमपंथी समूह है। 1990 में एक धर्मार्थ ट्रस्ट के रूप में स्थापित इस संस्था ने गोवा के पोंडा में स्थित अपने आश्रम के आसपास गोपनीयता बनाए रखी। 2007 और 2009 के बीच संस्था के सदस्यों को महाराष्ट्र और गोवा में सार्वजनिक स्थानों पर चार अलग-अलग बम विस्फोटों में संदिग्ध के रूप में गिरफ्तार किया गया था। महाराष्ट्र, गोवा और कर्नाटक सरकारों ने 2011 में संगठन पर प्रतिबंध लगाने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय को एक लंबा डोजियर प्रस्तुत किया था। हालांकि, केंद्र सरकार ने इस अनुरोध को नजरअंदाज कर दिया था। यही वजह है कि इस समूह ने काम करना जारी रखा। अगले छह वर्षों में समूह के सदस्य चार प्रमुख धर्मनिरपेक्ष विचारकों दाभोलकर, पानसरे, लंकेश और एमएम कलबुर्गी की हत्याओं के प्रमुख संदिग्ध के रूप में उभरे।
इस समूह ने 2008 की शुरुआत में उस समय आकार लेना शुरू किया जब सनातन संस्था आश्रम के निवासी अमित देगवेकर उर्फ प्रदीप महाजन ने पहली बार अमोल काले को महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग में एक सत्संग में देखा। यही पर दोनों की मित्रता हुई और धार्मिक आयोजनों में भाग लेने के लिए राज्य में एक साथ यात्रा करना शुरू किया। इसी अवधि में अमोल हिंदू जनजागृति समिति का एक सक्रिय सदस्य बन गया जिसे सनातन संस्था का एक ऑफशूट माना जाता है और सनातन प्रभात के दिवंगत संपादक शशिकांत राणे उर्फ काका के संपर्क में आया जो संस्था का मुखपत्र है।
गौरी लंकेश हत्याकांड में दो प्रमुख आरोपी व्यक्तियों द्वारा दिए गए बयानों से पता चलता है कि वो शशिकांत राणे थे जिन्होंने 2018 में दिल का दौरा पड़ने से पहले तर्कवादियों और लेखकों को लक्षित करने वाले समूह को एक साथ रखा था। राणे ने अमोल से कहा कि हिंदू धर्म खतरे में है और कानूनी व्यवस्था के माध्यम से न्याय संभव नहीं है। राणे ने कहा कि एक ही विकल्प है कि धर्म के लिए हिंदू पुरुषों को एकजुट किया जाए और संगठित किया जाए। राणे ने अमोल को वीरेंद्र तावड़े उर्फ बड़े भाईसाहब से मिलवाया जो उस समय धर्म के लिए लड़ने और हिंदू राष्ट्र की स्थापना के लिए पुरुषों की भर्ती कर रहे थे।
गौरी लंकेश को क्यों बनाया गया निशाना
गौरी एक तेजतर्रार पत्रकार और कार्यकर्ता थीं जिन्होंने अपने पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए कन्नड़ भाषा के टैब्लॉयड गौरी लंकेश पत्रिका की शुरुआत की थी। उनके पिता पी लंकेश एक प्रसिद्ध कवि और लेखक ने पहले 1980 में लंकेश पत्रिका शुरू की थी। 2000 में उनकी मृत्यु के बाद गौरी ने अपने नाम से एक शुरू करने से पहले, अपने पिता के समाचार पत्र को संपादित करने के लिए अंग्रेजी भाषा की पत्रकारिता में एक बेहतर कैरियर को छोड़ दिया।
गौरी ने ज्यादातर लेख कन्नड़ में लिखा। उनका लेखन मजबूत भाषा और दक्षिणपंथ की निडर आलोचना के लिए जाना जाता है। हालांकि, उनके अखबार का प्रसार केवल 10,000 के आसपास था लेकिन उनकी राजनीतिक सक्रियता और अल्पसंख्यक अधिकारों की उनकी जोशीली भाषणों ने उन्हें कर्नाटक में एक लोकप्रिय व्यक्ति बना दिया।
उनका महत्व एक संपादक के रूप में उनकी भूमिका से आगे बढ़ गया। वह एक प्रभावी राजनीतिक संगठनकर्ता थीं, जिनमें दलितों, आदिवासियों, वामपंथियों, मुसलमानों और हिंदू दक्षिणपंथियों के विरोध करने वालों सहित सामाजिक और राजनीतिक समूहों को एक साथ लाने की क्षमता थी। इसके बावजूद गौरी लंकेश की हत्या तर्कवादियों ने इस वजह से नहींं की। वो तो गौरी के भाषण का एक वीडियो था जिसने सबसे पहले उन्हें अमोल काले की नजर में उन्हें एक दुर्जन बनाया। मेंगलुरु में अपने भाषण में गौरी ने हिंदू धर्म को अनाथ बताया। हिंदू धर्म को किसने बढ़ावा दिया। यह एक ऐसा धर्म है जिसके मां-बाप का ही पता नहीं है। इसमें कोई अच्छा शास्त्र नहीं है। हिंदू धर्म जैसी कोई चीज नहीं है। यह कुछ ऐसा है जो अंग्रेजों के यहां आने के बाद सामने आया। क्या यह भी कोई धर्म है, उसने कथित तौर पर कहा।
गुस्से में अमोल ने इस वीडियो का इस्तेमाल अपने सह-साजिशकर्ताओं के समूह को जुटाने के लिए किया, जिसमें वह व्यक्ति भी शामिल था जिसने अंततः गौरी परशुराम वाघमोर को गोली मार दी थी। गौरी की हत्या से एक साल पहले अमोल ने इस भाषण की एक वीडियो क्लिप अपने गुप्त समूह को दिखाई थी। उसने समूह से कहा कि उसके हिंदू विरोधी विचारों के लिए उसे मार दिया जाना चाहिए। अमोल ने कथित तौर पर कहा कि अगर उसे इस तरह बात करने की अनुमति दी गई तो वह समाज में हिंदू धर्म के बारे में गलत राय बनाएगी। बस, चरम हिंदूवादियों की यही सोच गौरी लंकेश की हत्या की वजह बनी।
(प्रज्वल भट की यह रिपोर्ट पहले मूल रूप से अंग्रेजी में The News Minute में प्रकाशितI)