Gyanvapi Mosque Row : शिवलिंग और फव्वारे की लड़ाई में हिन्दू पक्ष को झटका, कोर्ट ने किया कार्बन डेटिंग की हास्यास्पद मांग को खारिज
Gyanvapi Mosque Row : शिवलिंग और फव्वारे की लड़ाई में हिन्दू पक्ष को झटका, कोर्ट ने किया कार्बन डेटिंग की हास्यपद मांग को खारिज
बनारस से पवन कुमार मौर्य की रिपोर्ट
Gyanvapi Mosque Row : उत्तर प्रदेश में कभी अयोध्या तो कभी मथुरा-काशी। इन दिनों वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद का मामला गरमाया हुआ है। जिसके अवसान के आसार दूर तक नहीं दिखाई दे रहे हैं, और आए दिन कोई न कोई वितंडा खड़ा ही किया जा रहा है। हिंदू पक्ष के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने कहा, "हम कार्बन डेटिंग की मांग कर रहे हैं। मुस्लिम पक्ष कहता है कि यह एक फव्वारा है। हम कहते हैं कि यह एक शिवलिंग है। एक स्वतंत्र जांच के जरिए इसका पता लगाना चाहिए।" अब सवाल यह उठता है कि आखिर ज्ञानवापी मस्जिद में मिले पत्थर के विवादित ढांचे की कार्बन डेटिंग कैसे की जा सकती है। वह भी तब जब विज्ञान और पुरातत्व विभाग के एक्सपर्ट्स कहते हैं कि पत्थरों की कार्बन डेटिंग नहीं होती है। बहरहाल, आज में ज्ञानवापी मस्जिद-श्रृंगार गौरी केस की सुनवाई में हिन्दू पक्ष को झटका लगा है। मस्जिद में मिले शिवलिंग की कार्बन डेटिंग और वैज्ञानिक जांच की मांग को वाराणसी कोर्ट ने खारिज कर दिया है।
अदालत में शुक्रवार की दोपहर में ढाई बजे से सुनवाई शुरू हुई तो दोनों ही पक्षों के लोग अदालत में मौजूद रहे, और अदालत के बाहर जबरदस्त भीड़ उमड़ी रही। लंबी जिरह और सुनवाई के बाद अदालत ने कार्बन डेटिंग की मांग को सिरे से ख़ारिज कर दिया। अदालत कहना था कि कार्बन डेटिंग से शिवलिंग को क्षति पहुंच सकती है और शिवलिंग के ढांचे को भी नुकसान पहुंच सकता है। इससे लंबे समय से अदालत में ज्ञानवापी मस्जिद में मिले शिवलिंग की कार्बन डेटिंग मामले की मांग ख़ारिज किए जाने से हिन्दू पक्ष की मांग यानि कार्बन डेटिंग पर बनारस में लोगों ने सवाल उठाना शुरू कर दिया था। इस फैसले से न सिर्फ विज्ञान का मजाक बनाने से बचा, बल्कि केस ने पिछड़ रहे मुस्लिम पक्ष को स्टैंड लिए रहने का मजबूत आधार भी मिला है। शुक्रवार को अदालत द्वारा इस मामले में फैसले का इंतजार दोनों पक्षों को था।
सुरक्षा के बीच आया फैसला
वाराणसी में सुनवाई के दौरान दोनों ही पक्षों के लोग अदालत में मौजूद रहे। अदालत ने अपने फैसले में खारिज करते हुए कहा कि इससे शिवलिंग को क्षति पहुंच सकती है। लोगों की आस्था को देखते हुए शिवलिंग की कार्बन डेटिंग की जांच करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। पूर्व में वजूखाने में मिले शिवलिंग को अदालत ने सुरक्षित रखते हुए यहां पर हर प्रकार की गतिविधि पर रोक लगा दी थी। ऐसे में अदालत ने पूर्व के फैसले को दोहराते हुए जन भावनाओं का ख्याल रखते हुए शिवलिंग की यथा स्थिति बरकरार रखने की बात कही है। वहीं अदालत से एक बड़े मामले में फैसला आने की संभावना के मद्देनजर सुबह से ही अदालत में पुलिस बल की मौजूदगी बनी रही।
हिन्दू पक्ष को झटका, मुस्लिम का विरोध सही
दिल्ली की राखी सिंह और वाराणसी की चार महिलाओं की ओर से जिला जज डा. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत में श्रृंगार गौरी के नियमित दर्शन -पूजन समेत अन्य मांगों को लेकर दाखिल मुकदमे में फैसला शुक्रवार की दोपहर में आ गया। इसमें ज्ञानवापी परिसर में मिले शिवलिंग के आयु निर्धारण के लिए की जा रही कार्बन डेटिंग या पुरातत्वविदों की टीम द्वारा इसकी और आसपास के स्थान की जांच की मांग की गई थी। शिवलिंग की कार्बन डेटिंग कराने की मांग जहां हिंदू पक्ष ने की थी वहीं कार्बन डेटिंग का मुस्लिम पक्ष विरोध कर रहा था।
जांच की कोई जरूरत नहीं
वाराणसी में शुक्रवार को विवादित ढाँचे की सुनवाई ढाई बजे से शुरू हुई और कुल 58 लोग कोर्ट में मौजूद रहे। हिंदू और मुस्लिम पक्ष से जुड़े पक्षकार, उनके पैरोकार और एडवोकेट कोर्ट रूम में मौजूद हैं। एक वादिनी राखी सिंह कोर्ट में नहीं पहुंची, जबकि, अन्य चार वादिनी सीता साहू, मंजू व्यास, रेखा पाठक और लक्ष्मी उपस्थित रहीं। मसाजिद कमेटी ने कहा कि कथित शिवलिंग की वैज्ञानिक जांच की कोई जरूरत नहीं है। हिंदू पक्ष ने अपने केस में ज्ञानवापी में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष देवी-देवताओं की पूजा की मांग की है। फिर यह शिवलिंग की जांच की मांग क्यों कर रहे हैं...? हिंदू पक्ष ज्ञानवापी में कमीशन की ओर से सबूत इकट्ठा करने की मांग कर रहा है। सिविल प्रक्रिया संहिता में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।
किसने की थी कार्बन डेटिंग की मांग ?
अदालत के आदेश के बाद हिंदू पक्ष के एडवोकेट शिवम गौड़ ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कथित शिवलिंग मिलने की जगह को सुरक्षित और संरक्षित किया जाए। इसका हवाला देते हुए जिला कोर्ट ने कार्बन डेटिंग या अन्य वैज्ञानिक पद्धति से जांच की मांग खारिज कर दी है। पहले की तरह आज भी याचिका लगाने वाली महिलाओं में से राखी सिंह कोर्ट में मौजूद नहीं थीं। बाकी चार महिलाएं सीता साहू, मंजू व्यास, रेखा पाठक और लक्ष्मी देवी सुनवाई के दौरान मौजूद थीं।
इतिहास पर एक नजर
बनारस में ज्ञानवापी मस्जिद काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में है। मौजूदा समय में मस्जिद का विवाद काफी पुराना अदालती मामला बन गया है। हालांकि साल 1986 में बाबरी मस्जिद का ताला खुलने और उसके बाद राम मंदिर आंदोलन में आई तेज़ी के बीच, अक्सर मथुरा और काशी का नाम उछलता रहा है। बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के करीब तीन दशक पूरे हो चुके हैं। काशी के साथ मथुरा के मामले अब कई अदालतों में चल रहे हैं। फिलहाल ज्ञानवापी मस्जिद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद से नमाज हो रही है। ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर पहला विवाद साल 1809 में खड़ा हुआ था, जो सांप्रदायिक दंगे में तब्दील हो गया। इसके बाद साल 1936 में एक मामला कोर्ट में दायर किया गया, जिसका निर्णय अगले साल आया। फ़ैसले में पहले निचले कोर्ट और फिर उच्च न्यायालय ने मस्जिद को वक़्फ़ प्रॉपर्टी माना था।
साल 1996 में सोहन लाल आर्य नाम के एक शख्स ने सर्वे की मांग को लेकर बनारस के कोर्ट में अर्ज़ी दाख़िल की, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। बाद में सर्वे की मांग उठाने वाली पांच महिला याचिकाकर्ताओं में से एक बनारस की लक्ष्मी देवी हैं जो सोहन लाल की पत्नी हैं। कांग्रेस की नरसिम्हा राव सरकार ने 18 सितंबर, 1991 को उपासना स्थल क़ानून पास किया, जो बाबरी मस्जिद छोड़कर सभी दूसरे धार्मिक स्थलों पर लागू होता है। यह कानून कहता है कि भविष्य में विवादित धार्मिक स्थलों का रूप नहीं बदला जा सकता।
औरंगजेब के बिना हर विवाद अधूरा
मान्यता रही है कि मुग़ल बाहशाह औरंगज़ेब आलमगीर के आदेश पर काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ा गया और उसकी जगह ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण कराया गया। इस मामले में इतिहासकारों की राय एक-दूसरे से जुदा है। मौजूदा समय में काशी विश्वनाथ मंदिर है, उसे मराठा रानी अहिल्याबाई होलकर ने तैयार करवाया था। ज्ञानवापी मस्जिद की देख-रेख करनेवाली संस्था अंजुमन इस्लामिया मसाजिद कमेटी का दावा है कि काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद दोनों का निर्माण अकबर के समय में हुआ था। हालांकि वो यह भी मानते हैं कि मंदिर को औरंगज़ेब के शासनकाल में तोड़ा गया था। मस्जिद को पीछे से देखने पर दो तरह की कलात्मक परंपराओं का फ़र्क़ साफ़ दिख जाता है। मंदिर की सुसज्जित पत्थर की दीवार, जो विखंडित होने के बाद भी शानदार दिखती है, जिसके ऊपर पलस्तर किया हुआ मस्जिद की साधारण गुंबद है।
वितंडे पर कब लगेगा ब्रेक
बीएचयू के पूर्व छात्र व स्थानीय मोहम्मद नशीम कहते हैं कि "जब से शहर में ज्ञानवापी मस्जिद और विवादित ढांचे के मामले ने जोर पकड़ा है,तब से शहर का एक अजीब सा माहौल हो गया है, जो दिख तो नहीं रहा, लेकिन, गंगा-जमुनी तहजीब को नुकसान नहीं हो रहा है, इस बात से इनकार भी नहीं किया जा सकता है। विवादित ढांचा केस का कोई अंत नहीं दिख रहा है। सिवाय सियासी नफा के। देश को इंसानी मूलभूत जरूरतों के मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए कुछ साल पहले तक अयोध्या, मथुरा, ताजमहल, कुतुब मीनार के साथ ज्ञानवापी मस्जिद को तूल दिया जा रहा है। जबकि, हकीकत यह है कि जनता महंगाई, बेरोजगारी से तंग है। दिनोदिन यूनिवर्सिटी की फ़ीस आसमान छूती ही जा रही है। शहर और जनपद में अपराध का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। हाल ही में गंगा में आई भयंकर बाढ़ से लाखों लोगों का जीवन प्रभावित हुआ और हजारों किसानों की फसलें जल समाधि लेकर नष्ट हो गई। जिसका आज तक सर्वे नहीं किया जा सका है। ऐसे में विवादित मुद्दे को हथियार बनाकर जमकर भुनाया जा रहा है। कोरोना, फिर बाढ़ और अब विवादित ढांचे के विवाद ने बनारस की अर्थव्यवस्था को तगड़ा नुकसान पहुंच रहा है। आप बुनकरों, हथकरघा, हैण्डीक्राफ्टेड आइटम बनाने वाले श्रमिकों से मिलिए। मोहल्ले के बेरोजगार युवाओं से मिलिए। जनपद, राज्य और देश को वाकई में विकास देना है तो जितना जल्दी हो सके - विवादों से किनारा कर जनहित के मुद्दों पर बात होनी चाहिए। इस विवादित मुद्दे में कुछ नहीं रखा है।
एक नजर में ज्ञानवापी विवाद
1991: कांग्रेस की पीवी नरसिम्हा राव की सरकार ने उपासना स्थल क़ानून (विशेष प्रावधान) पास किया। भाजपा ने इसका विरोध किया, लेकिन अयोध्या को अपवाद माने जाने का स्वागत किया और मांग की कि काशी व मथुरा को भी अपवाद माना जाना चाहिए। कानून के मुताबिक केवल अयोध्या ही अपवाद है।
1991: ज्ञानवापी मामला कोर्ट पहुंचा। ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर पहली बार कोर्ट में याचिका दाखिल की गई। काशी के साधु-संतों ने सिविल कोर्ट में याचिका दाखिल करके वहां पूजा-अर्चना करने के लिए कोर्ट में अर्जी लगाई। मस्जिद कमेटी ने इसका विरोध किया और दावा किया कि ये उपासना स्थल क़ानून का उल्लंघन है।
2019: अयोध्या फ़ैसले के क़रीब एक महीने बाद बनारस के सिविल कोर्ट में नई याचिका दाख़िल करके ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे कराने की मांग की गई।
2020: वाराणसी के सिविल कोर्ट से मूल याचिका पर सुनवाई की मांग उठाई गई।
2020: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सिविल कोर्ट की कार्यवाही पर रोक लदा दी। साथ ही इस मामले पर फ़ैसला सुरक्षित रखा।
2021: हाईकोर्ट की रोक के बावजूद वाराणसी सिविल कोर्ट ने अप्रैल में मामला दोबारा खोला और मस्जिद के सर्वे की अनुमति दी।
2021: इंतजामिया मसाजिद कमेटी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। हाईकोर्ट ने फिर सिविल कोर्ट की कार्यवाही पर रोक लगाई और फटकार भी।
2021: अगस्त में पांच हिंदू महिलाओं ने वाराणसी सिविल कोर्ट में श्रृंगार गौरी की पूजा की अनुमति के लिए याचिका दाखिल की।
2022: अप्रैल में सिविल कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे करने और उसकी वीडियोग्राफ़ी के आदेश दिया।
2022: अंजुमन इंतज़ामिया मसाजिद कमेटी ने कई वाराणसी के सिविल कोर्ट के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी, जिसे खारिज कर दिया गया।
2022: मई में मस्जिद इंतज़ामिया ज्ञानवापी मस्जिद की वीडियोग्राफ़ी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अर्जी डाली गई।
2022: सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से पहले 16 मई को सर्वे रिपोर्ट फ़ाइल की गई। इसी दौरान वाराणसी सिविल कोर्ट ने मस्जिद के अंदर उस इलाक़े को सील करने का आदेश दिया, जहां विवादित आकृति मिली। वहां नमाज़ पढ़ने पर भी पाबंदी लगा दी गई।
2022: सुप्रीम कोर्ट ने 17 मई को 'कथित शिवलिंग' की सुरक्षा वुजूख़ाने को सील करने का आदेश दिया, लेकिन मस्जिद में नमाज़ जारी रखने की अनुमति दे दी।
2022: सुप्रीम कोर्ट ने 20 मई को इस मामले को वाराणसी की ज़िला अदालत में भेज दिया। कोर्ट ने बनारस की अदालत को यह भी तय करने को कहा कि मामले की सुनवाई चलने लायक है अथवा नहीं?