इतिहासकार लाल बहादुर वर्मा का देहरादून में हुआ निधन, हिंदीभाषी समाज की बड़ी क्षति
जनज्वार। देश के जाने माने इतिहासकार प्रोफेसर लाल बहादुर वर्मा का आज 17 मई के तड़के निधन हो गया। प्रो लाल बहादुर वर्मा का देहरादून के अस्पताल में इलाज चल रहा था। पिछल 10 दिनों से उनका ऑक्सीजन लेवल गिर रहा था। प्रोफेसर लाल बहादुर वर्मा इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर रहे थे।
उनके निधन की सूचना उनकी बेटी आशु वर्मा ने सोशल मीडिया पर शेयर की, जिसके बाद उन्हें श्रद्धांजलि देने वालों का तांता लग गया।
उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि देते हुए वरिष्ठ लेखक सुभाष चंद्र कुशवाहा कहते हैं, 'नहीं रहे सुप्रसिद्ध इतिहासकार, एक्टविस्ट और जनचेतना के प्रखर पुरोधा प्रो लालबहादुर वर्मा। वर्तमान में वह भले ही देहरादून में रह रहे थे मगर उनकी कर्मभूमि गोरखपुर थी। जब हम विश्वविद्यालय में थे, तब वह प्राचीन इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष थे। शहर के हर सांस्कृतिक कार्यक्रमों में उनकी उपस्थिति अनिवार्य थी। बाद में वह इलाहाबाद में रहे। वहाँ से इतिहास बोध नामक पत्रिका भी निकालते रहे। अंतिम दिनों में उन्होंने अपनी बेटी के पास, देहरादून में निवास बनाया। वहां भी वह लगातार सक्रिय थे। 2019 में उनके देहरादून निवास स्थान पर गया भी था। कोरोना का प्रकोप न होता तो 2020 में भी देहरादून जाता। आज वह हमारे बीच नहीं रहे। कोरोना ने अगर उन्हें नहीं छीना होना तो अभी उनके पास आने वाले दशकों के लिए जरूरी कार्यक्रम थे। वह उन पर काम कर रहे थे।'
पत्रकार महेंद्र मिश्रा कहते हैं, 'लग रहा है जैसे एक युग का अंत हो गया। इलाहाबाद से जुड़ी यादें सामने तैरने लगी हैं। आप केवल शिक्षक नहीं थे। उससे बढ़कर साथी और कामरेड थे। कितना कुछ आप से हम लोगों ने सीखा और अभी तो बहुत कुछ सीखना था। लेकिन इस कोरोना ने उस सिलसिले को रोक दिया। आप हमेशा हम लोगों के जेहन में बने रहेंगे। अलविदा।'
वरिष्ठ लेखक चौथीराम यादव कहते हैं, 'नहीं रहे जाने माने चर्चित इतिहासकार लालबहादुर वर्मा!इतिहास-लेखन के क्षेत्र में जो रिक्तता वह छोड़ गए हैं, उसकी पूर्ति कठिन है। उन्हें हमारी भावभीनी श्रद्धांजलि और परिवार के प्रति संवेदना!'
वरिष्ठ लेखक रामजी राय कहते हैं, लालबहादुर वर्मा जी इतिहासकार तो थे ही इतिहास की धारा को मोड़ने के पक्षकार और सक्रिय बुद्धिजीवी थे। इस दौर में उनके न होने की कमी लंबे समय तक महसूस होती रहेगी।'
राघवेंद्र दुबे उन्हें याद करते हुए लिखते हैं, 'पूरे देश में मुझ जैसे लाखों में इतिहास बोध, इतिहास सजगता जगाने, कभी न ठहरने और दुनिया बदलने की कोशिश में लगे रहे, वास्तविक 'पब्लिक इंटेलेक्चुअल' डा. वर्मा का चला जाना बहुत दुःखद है। उनसे जुड़ा था तब जब गोरखपुर से भंगिमा' निकल रही थी जो वैकल्पिक विचारधारा के अनुसंधान का सांस्कृतिक प्रयास था। उन सा प्रोफेसर नहीं देखा जो छात्रों से कह दे आप सभी हमें सीधे लालबहादुर कहा करिए। उनका सुना (व्याख्यान) दिमाग में चल रहा है। अभी कुछ और लिख पाना संम्भव नहीं है और उन्हें विदा भी दे पाना। इसलिए श्रद्धांजलि भी नहीं। तब जब कि सारे प्रतिक्रियावादी, लंपट, नवराष्ट्रवादी हो चुके हैं, इतिहास अध्ययन बम कारखानों में बदला जा रहा है उनका होना जरूरी था। अभी तो बहुत कुछ करना था उन्हें। उन्होंने कुछ अभियान शुरू भी किये थे।'
वकील और समाजसेवी अरविंद गिरी लालबहादुर वर्मा के निधन पर कहते हैं, 'इतिहास को सरल शब्दों में लिखने वाले और उसे सुलभ बनाने की कोशिश करने वाले, इतिहास को कल्पना पर नहीं बल्कि शोध और छानबीन कर प्रस्तुत करने वाले इतिहासकार डा.लालबहादुर वर्मा हमसे दूर हो गये। दुखद।'
सामाजिक कार्यकर्ता कमला पंत उन्हें याद कर कहती हैं, 'सभी विचारशील और संघर्षशील लोगों के लिये , लाल बहादुर वर्मा जी का जाना एक युग का अन्त। सभी देशभक्त जनपक्षधर लोगों के लिये एक अपूर्णीय क्षति। अत्यन्त दुखद। हार्दिक श्रद्धांजलि।'