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राष्ट्रीय

कोविड लॉकडाउन के बाद साइबर फ्रॉड के केसों में भारी बढ़ोत्तरी, एक साल में 25 हजार करोड़ का नुकसान

Janjwar Desk
11 Jun 2021 3:05 PM GMT
Prophet Remark Row : भारत की 70 निजी और सरकारी वेबसाइट्स पर साइबर हमला, अकेले महाराष्ट्र में 50 वेबसाइटें प्रभावित
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Prophet Remark Row : भारत की 70 निजी और सरकारी वेबसाइट्स पर साइबर हमला, अकेले महाराष्ट्र में 50 वेबसाइटें प्रभावित

साइबर फ्रॉड से देश को हर साल 25,000 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ रहा है, बीत साल 28 प्रतिशत मामले बढ़ गए। मतलब साफ है कि साइबर पुलिस के बाद भी ठगों पर रोक लगाने की दिशा में ज्यादा कामयाबी नहीं मिल रही है....

मनोज ठाकुर की रिपोर्ट

जनज्वार ब्यूरो। करनाल निवासी प्रीति बाहेती को नोएडा में अपना मकान किराए पर देना था। उन्होंने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट डाल दी। कुछ दिन बाद उनके पास विकास पटेल नाम से एक कॉल आया। काल करने वाले ने खुद को सैनिक बताते हुए जानकारी की वह दिल्ली ट्रांसफर होकर आया है। उसे यह मकान पसंद है। वह किराया और एडवांस दे देता है। प्रीति ने उस पर यकीन कर लिया। सैनिक बताने वाले अपनी आईडी और अन्य दस्तावेज भी भेज दिए। जब उन्हें पूरा यकीन हो गया तो खुद को सैनिक बताने वाले पेमेंट करने की बात बोली।

उसने बताया कि वह पेटीएम से भुगतान करेगा। प्रीति बहेती ने बोला कि आप बैंक में सीधे ट्रांसफर कर दो, उसने ऐसा करने से मना कर दिया। उसने एक कोड भेजा और इसे स्कैन करने को बोला। प्रीति बहेती ने स्कैन किया तो उनके खाते में दस रुपये आ गए। इसके बाद उसने कई बार कोड भेज कर स्कैन करने को बोला। जब तक समझती तब तक उनके अकाउंट से 90 हजार रुपए गायब हो गए।

साइबर ठग के हाथों रुपए गंवाने के बाद भी प्रीति की दिक्कत खत्म नहीं हुई। वह जब पुलिस के पास साइबर ठगी की शिकायत दर्ज कराने गई तो मामला दर्ज करने की बजाय कई तरह की नसीहत दी गई। पुलिस की जांच टीम ने बोल दिया कि शिकायत दर्ज कर ली जाएगी। अब तक शिकायत दर्ज नहीं हुई।

देश में इस तरह के साइबर फ्रॉड के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। अपराधी ठगी के नए नए तरीके इजाद कर रहे हैं। लोग इनके झांसे में आकर अपनी खून पसीने की कमाई लूटाने पर मजबूर है। इतना होने के बाद भी पुलिस साइबर ठगी पर नकेल कसने में कामयाब साबित हो रही है।

दैनिक भास्कर में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक साइबर फ्रॉड से देश को हर साल 25,000 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ रहा है। बीते साल 28 प्रतिशत मामले बढ़ गए। मतलब साफ है कि साइबर पुलिस के बाद भी ठगों पर रोक लगाने की दिशा में ज्यादा कामयाबी नहीं मिल रही है।

वहीं ग्लोबल इनफार्मेशन कंपनी ट्रांसयूनियन की एक रिपोर्ट के मुताबिक इंटेलिजेंस आधारित बिजनेस के लेनदेन में सबसे अधिक साइबर फ्रॉड हुए हैं। दिल्ली में साइबर ठगी के सबसे ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं। यहां हर साल छह से सात हजार करोड़ का नुकसान हो रहा है। दूसरे नंबर पर मुंबई जहां पांच से हजार करोड़, गुजरात में चार से पांच हजार करोड़ रुपए के साइबर फ्रॉड हुए हैं। हरियाणा,पंजाब, यूपी और मध्य प्रदेश में दो हजार करोड़ से लेकर चार हजार करोड़ रुपए का फ्रॉड हुआ है।

साइबर विशेषज्ञ वीरेंद्र राईका ने बताया कि कोविड में यह मामले ज्यादा बढ़ गए हैं। अब लोग आसानी से ठगी के ज्यादा शिकार हो रहे हैं। वीरेंद्र राईका ने बताया कि परेशानी यह है कि पुलिस इन मामलों को गंभीरता से नहीं लेती। अव्वल तो एफआईआर दर्ज नहीं होगी। यदि हो गई तो जांच के नाम पर बस खानापूर्ति होती है। हरियाणा के कई जिलों में पुलिस के साइबर सैल है, लेकिन उनके पास प्रशिक्षित स्टाफ नहीं है।


राईका कहते हैं कि साइबर ठग को पकड़ा थोड़ा मुश्किल तो हैं, लेकिन ऐसा नहीं कि उसे पकड़ा नहीं जा सकता। पिछले साल अगस्त माह में हरियाणा के फरीदाबाद पुलिस ने पलवल के घाघोट गांव के युवाओं को डेबिट कार्ड बदल कर ठगी के आरोप में पकड़ा था। इस गांव के 50 से ज्यादा युवा अलग अलग राज्यों में इस तरह की वारदात में गिरफ्तार हो चुके हैं।

देखने में आया कि लगभग 60 प्रतिशत साइबर ठगी के मामले बिहार और झारखंड से जुड़े हैं। झारखंड के जामताड़ा में बड़ी संख्या में साइबर ठग है। यह जानकारी पुलिस के पास भी है। इसके बाद भी कार्यवाही नहीं होती। क्योंकि एक तो पुलिस के पास साधनों की कमी है। दूसरा एक राज्य से दूसरे राज्यों की पुलिस के बीच तालमेल का अभाव है। इस बात को ठग भी जानते हैं। इसलिए वह अपने गृह राज्यों में वारदात को अंजाम देने से बचते हैं। वह दूसरे राज्यों के लोगों को अपना शिकार बनाते हैं।

साइबर विशेषज्ञ वीरेंद्र राईका ने बताया कि कई ठग तो ज्यादा पढ़े लिखे भी नहीं होते। इसके बाद भी वह इतने शातिर होते हैं कि पढ़े लिखे व समझदार इंसान को भी अपने चंगुल में ले लेते हैं। वह साइबर ठगी के लिए हर हथकंडा अपनाते हैं। सामने वाला चाह कर भी उन पर शक नहीं कर सकता। उनकी यही खूबी साइबर अपराध के बढ़ते ग्राफ की बड़ी वजह बन रही है।

उन्होंने बताया कि पिछले साल हरियाणा में क्षेत्रीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र बनाने की प्रक्रिया शुरू हुई थी। लेकिन अभी तक इस दिशा में कुछ नहीं हुआ। हरियाणा के डीजीपी मनोज यादव ने बताया कि यह प्रस्ताव केंद्र को भेजा गया है। इसके पीछे सोच यह है कि यह एक नोडल एजेंसी की तरह काम करें। क्योंकि साइबर क्राइम पुलिस के लिए बड़ा चैलेंज बन कर उभर रहा है।

डीजीपी ने कहा कि पुलिस को निर्देश है कि साइबर से जुड़े हर अपराध की तुरंत एफआईआर दर्ज होनी चाहिए। पुलिस ऐसा करती भी है।

साइबर ठगी की जांच में जुटे एक सीनियर पुलिस अधिकारी ने बताया कि अपराधी बहुत ही शातिर तरीके से वारदात को अंजाम देते हैं। उनके पास बड़ी संख्या में सिम होते हैं। यह सिम व बिहार, पश्चिम बंगाल के गरीब लोगों के नाम पर लेते हैं। कई बार उनके नाम पर ही बैंक खाता भी खुलवा लेते हैं। वारदात की रकम इस खाते में जमा करा, निकाल कर फरार हो जाते हैं। जब पुलिस खाता धारक के नाम पते पर पहुंचती है, तब वहां गरीब आदमी मिलता है, जिसका ठगी से कोई लेना देना नहीं होता। ऐसे लोगों को पकड़ कर पूछताछ भी की जाए तो कुछ जानकारी नहीं मिलती। उन्होंने बताया कि ऐसे कई मामले सामने आए हैं। इस वजह से गिरोह तक पहुंचना पुलिस के लिए मुश्किल हो जाता है।

उन्होंने बताया कि इस मामले में दूसरी दिक्कत यह आती है कि जहां का ठग है, वहां की स्थानीय पुलिस भी सहयोग नहीं करती। यदि पकड़ने के लिए दूसरे राज्य का पुलिस दस्ता जाता भी है तो उस पर हमला कर दिया जाता है, या उसके सामने दिक्कत पैदा कर दी जाती है। इस तरह से गिरोह तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है। यदि केंद्र स्तर पर ही कोई ऐसी व्यवस्था हो जाए तो साइबर ठग पर नकेल कसना आसान हो सकता है।

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