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राष्ट्रीय

बकस्वाहा जंगल बचाने की मुहिम में मानव श्रृंखला, लोगों ने पूछा- विकास के नाम पर पानी-हवा रोकना क्या उचित?

Janjwar Desk
29 Jun 2021 5:20 AM GMT
बकस्वाहा जंगल बचाने की मुहिम में मानव श्रृंखला, लोगों ने पूछा- विकास के नाम पर पानी-हवा रोकना क्या उचित?
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बकस्वाहा जंगल को बचाने की कोशिशें तेज, हीरा खदान का विरोध करते हुए बनायी गयी मानव श्रृंखला

इंदौर. बुंदेलखंड के बकस्वाहा जंगल को बचाने और इसे हीरा खदान में तब्दील करने से बचाने का नारा अब मध्य प्रदेश के राज्यपाल तक पहुंचाया गया है। 28 जून को इंदौर के बकस्वाहा बचाओ समर्थक समूह ने मानव श्रृंखला बनाकर अपना विरोध दर्ज कराया। उधर, 30 जून को एनजीटी इस मामले पर फिर सुनवाई करेगी। जहां हीरा खदान कंपनी भी अपनी सफाई पेश करेगी।

बता दें कि बुंदेलखंड के सीमावर्ती छतरपुर जिले में बकस्वाहा जंगल को हीरा खनन के लिए बिड़ला ग्रुप की एक्सल माइनिंग इंड्रस्ट्रीज कंपनी को 50 साल के पट्टे पर एमपी सरकार ने दे दिया है। इसका रकबा लगभग 382।13 हेक्टेयर है। जंगल के लगभग 2।15 लाख हरे-भरे पेड़-पौधे काटे जाएंगे। इतनी बड़ी हरियाली पर मंडराते खतरे से पर्यावरण प्रेमी और उनके संगठनों ने आंदोलन छेड़ दिया है। बकस्वाहा जंगल में कई प्रदर्शन हो चुके हैं। वेबिनार के जरिये देश भर के पर्यावरण प्रेमी विरोध जता रहे हैं।

बकस्वाहा जंगल बचाने के लिए मानव श्रृंखला

मध्य प्रदेश की पर्यावरण विरोधी और पूंजीपतियों की रक्षक सरकार द्वारा प्रदेश के पर्यावरण और जंगल को नष्ट करने के फैसले के खिलाफ पूरे मध्यप्रदेश में राजनीतिक दलों ट्रेड यूनियनों और जन संगठनों द्वारा जोरदार आंदोलन हुआ।

उसी के तहत इंदौर में भी बारिश के बीच बकस्वाहा बचाओ समर्थक समूह ने पूर्व महाधिवक्ता आनंद मोहन माथुर के नेतृत्व बकस्वाहा जंगल बचाओ पर्यावरण बचाओ की मांग के समर्थन में संभाग आयुक्त कार्यालय के समक्ष मानव श्रृंखला बनायी गयी। जिसमें विभिन्न राजनीतिक दलों, ट्रेड यूनियनों, सामाजिक संगठनों के सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने भागीदारी दी। इस दौरान संभाग आयुक्त कार्यालय पर विरोध प्रदर्शन के बाद राज्यपाल के नाम पर ज्ञापन दिया गया।

बकस्वाहा बचाओ समर्थक समूह इंदौर की ओर से रामस्वरूप मंत्री ने जानकारी देते हुए बताया कि ऑक्सीजन को तरस रहे देश में छतरपुर स्थित बकस्वाहा के जंगलों में सवा दो लाख हरे भरे पेड़ों को काटने की तैयारी प्रदेश सरकार ने कर ली है। सरकार के इस फैसले के बाद देश भर के पर्यावरण प्रेमियों में रोष है।

छद्म विकास के नाम पर पूंजीपतियों को फायदा

इस दौरान प्रदर्शन में शामिल विभिन्न संगठनों के पदाधिकारियों ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि दुनिया के आदिवासियों और जंगलों के किनारे बसने वालों का दुर्भाग्य ही है कि उन्हें बार-बार उजड़ना पड़ता है, वह भी उनके अपने देशों के छद्म विकास के नाम पर। छद्म विकास इसलिए क्योंकि यह दुखद विस्थापन चंद पूंजीपतियों की तिजोरी भरने के लिए ही होता है । वक्ताओं ने कहा कि आप किसी भी स्थान के विस्थापन को देख सकते हैं। यह हत्यारा विकास एक तरफ पूंजीपतियों को जमीन से आसमान पर पहुंचा देता है, तो दूसरी तरफ उस इलाके के निवासियों का घर छीनकर बेघर करता है और जीविका छीन कर बेरोजगार।

वक्ताओं का कहना था कि बकस्वाहा जंगल क्षेत्र का लगभग 383 हेक्टेयर क्षेत्र हीरा खनन के लिए आदित्य बिड़ला की कंपनी एसेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड को 50 वर्षों की लीज पर दिया गया है। इसके खनन क्षेत्र का क्षेत्रफल मात्र 62।64 हेक्टेयर है शेष लगभग 320 हेक्टेयर में खनन का मालवा रखा जाएगा।

विभिन्न राजनीतिक दलों और श्रम संगठनों के नेताओं ने कहा कि देश के संसाधनों का स्वामित्व समुदाय का है, इसलिए सरकार के इस लुटेरी निर्णय को बदलने के लिए इस देश की सभी नागरिकों को इस लीज के खिलाफ अपनी-अपनी योग्यता के अनुसार बकस्वाहा के इस संघर्ष में साथ देना चाहिए।

वायुमंडल पर प्रभाव इस वर्तमान विकास की लौ में वन संपदा को मात्र घन फीट में लकड़ी का टुकड़ा माना जाता है इसी कारण इसके कटने का दर्द इन विकास के एजेंटों को नहीं होता है। सरकार के विकास के दावों पर नेताओं का कहना था कि प्रशासनिक पदाधिकारी, राजनेता और कंपनी इस परियोजना के लाभ के रूप में 400 स्थानीय युवकों के रोजगार को सामने रखकर विकास की बात कर रहे हैं उनसे पूछा जाना चाहिए कि क्या 400 लोगों के रोजगार के लिए 3,20,000 लोगों का दैनिक उपयोग का पानी और 27000 लोगों की सांसें रोक दी जाए।

कौन-कौन हुए शामिल

मानव श्रृंखला में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ,सोशलिस्ट पार्टी इंडिया, आम आदमी पार्टी ,एसयूसीआई, लोकतांत्रिक जनता दल समाजवादी पार्टी, इंटक ,एटक, सीटू, एचएमएस, संयुक्त ट्रेड यूनियन काउंसिल, सिटी ट्रेड यूनियन काउंसिल, जयस, नर्मदा बचाओ आंदोलन जनता श्रमिक संघ कामकाजी महिला संगठन, भारतीय जन नाट्य संघ(इप्टा), प्रगतिशील लेखक संघ, जनवादी लेखक संघ, भारतीय महिला फेडरेशन, फूलन आर्मी साक्षी सेवा समिति गतसिंह दिवाने ब्रिगेड, लोहिया विचार मंच, अम्बेडकर विचार मंच सहित विभिन्न जन संगठनों और सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ताओं ने भागीदारी कर बिरला घर आने को हीरा खनन के लिए 50 साल की लीज पर दी जा रही जंगल की साढ़े तीन सौ हेक्टेयर भूमि का अनुबंध नहीं करने की मांग की।

इस दौरान कार्यकर्ताओं ने संभाग आयुक्त कार्यालय पर प्रदर्शन कर राज्यपाल के नाम ज्ञापन दिया, जिसमें बकस्वाहा जंगल को आदित्य बिरला समूह की कंपनी एचएल को 50 साल की लीज पर दिए जाने और सवा दो लाख से ज्यादा पेड़ों के काटे जाने से होने वाले नुकसान की विस्तार से जानकारी की गयी।

ज्ञापन में बकस्वाहा जंगल को हीरा खनन के लिए नहीं देने कि अपील करते हुए कहा कि बकस्वाहा के जंगलों को कटने की सरकारी योजना को वापस लेकर देश की प्राकृतिक ऑक्सीजन की आपूर्ति, पर्यावरण, लाखों पेड़, करोङों जीव जंतु, बुंदेलखंड के पेयजल, वहां के नागरिकों, मूल निवासी आदिवासियों का जीवन बचाने का कष्ट करें।

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