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International Day of Yoga : योग केवल आसन नहीं, इसका लाभ उठाना चाहते हैं तो इन 8 चीजों को जानना सबके लिए है जरूरी

Janjwar Desk
21 Jun 2022 1:56 AM GMT
International Day of Yoga : योग केवल आसन ही नहीं, इसका प्रभावी लाभ उठाने के लिए इन 8 चीजों को जानना भी जरूरी
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International Day of Yoga : योग केवल आसन ही नहीं, इसका प्रभावी लाभ उठाने के लिए इन 8 चीजों को जानना भी जरूरी

International Day of Yoga : योग केवल आसन तक तक सीमित नहीं होता। योग का जीवन में प्रभावी व संपूर्ण लाभ उठाने के लिए उसके आठ अंगों को जानना भी जरूरी है।

International Day of Yoga : आज यानि 21 जून को दुनियाभर में 8वां अंतरराष्ट्रीय योग दिवस ( International Day of Yoga ) मनाया जा रहा है। पहला अंतरराष्ट्रीय योग दिवस 21 जून 2015 को मनाया गया था। पीएम मोदी आज मैसूर में योग कार्यक्रम में हुए ओर उन्होंने सभी को इसकी शुभकामनाएं दी।

सामान्यतया जब भी योग की चर्चा होती है तो लोग इसे आसन के रूप में लेते हैं, लेकिन योग यहीं तक सीमित नहीं है। योग का जीवन में प्रभावी व संपूर्ण लाभ उठाने के लिए उसके आठ अंगों को जानना भी जरूरी है। इन आठ अंगों में येाग में अष्टांग योग कहा गया है। आइए, हम आपको बताते हैं ये आठों अंग क्या है, जो सभी को मन को वश में करना और वृत्तियों से मुक्त करना सिखाता है।

1. यम

यम शब्द अर्थ है संयम यानी मर्यादित आचरण-व्यवहार। यम के पांच अंग हैं। इनमें अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह शमिल है। अहिंसा यानि मन, वचन और कर्म से किसी को कष्ट न पहुंचाना। सत्य का मतलब भ्रम से परे सच का ज्ञान। अस्तेय यानि नकल या चोरी से दूर रहना। ब्रह्मचर्य - चेतना को ब्रह्म तत्व से एकाकार रखना] अपरिग्रह यानि संग्रह या संचय का अभाव।

2. ​नियम

योग के यम की तरह नियम भी पांच होते हैं। इनमें शौच, सतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान शामिल है। शौच में आंतरिक और बाहरी सफाई, संतोष यानि जो है उसे पर्याप्त मानना, तप का मतलब स्वयं को तपाकर असत को जलाना, स्वाध्याय का अर्थ आत्मा—परमत्मा को समझने के लिए अध्ययन और ईश्वर प्रणिधान का मतलब ईश्वर के पति समर्पण या अहम का त्याग है।

3. आसन

आसन से मतलब महज शारीरिक कसरत या लचीलापन नहीं है। महर्षि पतंजलि इसकी अवस्था को बताते हुए कहा था कि स्थिरं सुखम् आसन। यानि शरीर की स्थिरता और मन के तल पर आनंद और सहजता ही आसन है। अगर आप इन दो स्थिति को नहीं पाते हैं तो आप आसन में नहीं हैं।

4. प्राणायाम

शरीर में सूक्ष्म प्राण शक्ति को विस्तार देने की साधना को प्राणायाम कहा जाता है। याज्ञवल्क्य संहिता में प्राण (आती साँस) और अपान (जाती साँस) के प्रति सजगता के संयोग को प्राणायाम बताया गया है। सांस की डोर से हम तन-मन दोनों को साध सकते हैं। हठयोग तेज सांस होने से हमारा चित्त-मन तेज़ होता है और सांस को लयबद्ध करने से चित्त में शांति आती है। सांस के प्रति सजगता से सिद्धार्थ गौतम ने बुद्धत्व को साधा और गुरु नानक ने एक-एक सांस की पहरेदारी को परमात्मा से जुड़ने की कुंजी बताया।

5. प्रत्याहार

हमारी 11 इंद्रियां हैं। इनमें पाँच ज्ञानेंद्रियां। पाँंच कर्मेन्द्रियाँ और एक मन है। प्रत्याहार शब्द प्रति और आहार से बना है यानी इंद्रियां जिन विषयों को भोग रही हैं यानी उनका आहार कर रही हैं, वहां से उसे मूल स्रोत की तरफ मोड़ना है।ज्ञानीजन कहते हैं हर चीज जो सक्रिय है वो ऊर्जा की खपत करती है। इंद्रियों की निरंतर दौड़ हमें ऊर्जाहीन करती है। इंद्रियों की दौड़ को त्याग कर मगन रहना प्रत्याहार है।

6. धारणा

अधिकांश लोग अक्सर धारणा अभ्यास को समझते हैं जबकि धारणा मन को एकाग्र करने की साधना है। इसके कई स्वरुप हैं। धारणा दरअसल ध्यान से पहले की स्थिति है। धारणा मन के विचारों की बाढ़ को नियंत्रित कर हमें शांति देती है।

7. ध्यान

योगसूत्र के मुतबिक जब धारणा लगातर बनी रह जाती है तो ध्यान की अवस्था में लोग पहुंचते हैं। यानि ध्यान हम कर नहीं सकते बल्कि यह घटित होता है। ध्यान के नाम पर जो भी विधि या प्रक्रिया हम अपनाते हैं वो महज हमें धारणा यानी एकाग्रता की ओर ले जा सकती है। ध्यान वो अवस्था है जहां कर्ता, विधि या प्रक्रिया सब कुछ समाप्त हो जाती है बस एक शून्यता होती है। जैसे-नींद से पहले हम तैयारी करते हैं लेकिन यह तैयारी नींद की गारंटी नहीं है, वो अचानक आती है यानी घटित होती है।

8. समाधि

याज्ञवल्क्य संहिता में जीवात्मा और परमात्मा की समता की अवस्था को समाधि कहा गया है। महर्षि पतंजलि कहते हैं कि जब योगी स्वयं के सत चित् आनंद स्वरुप में लीन हो जाता है तब साधक की वह अवस्था समाधि कहलाती है। समाधि पूर्ण योगस्थ स्थिति का प्रकटीकरण है। बु्द्ध ने इसे ही निर्वाण और महावीर ने कैवल्य कहा है।

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