क्या गुरनाम सिंह चढूनी के हाथों से निकल रहा किसान आंदोलन, टोहाना की घटना क्या कर रही इशारा?
(यह पहला मौका है, जब इस तरह के विरोध प्रदर्शन में किसान दो गुट में बंट गए हैं।)
जनज्वार ब्यूरो चंडीगढ़। क्या अब किसान आंदोलन भारतीय किसान यूनियन के प्रदेशाध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी और संयुक्त किसान मोर्चा के हाथ से निकल गया है। कम से कम टोहाना में आज जो हुआ वह तो इसी ओर इशारा कर रहा है।
जब गुरनाम सिंह चढूनी ने काल दिया था कि जेजेपी विधायक देवेंद्र बबली और किसानों के बीच हुए विवाद पर क्रमवार आंदोलन चलाया जाएगा। हिसार और आसपास के युवा किसानों ने चढूनी के इस क्रम को मानने से इंकार कर दिया। युवा किसान विकास ने बताया कि वह जब तक वापस नहीं जाएंगे जब तक कि उन्हें जवाब न मिल जाए। उन्होंने आंदोलन की लाइन से हटने की घोषणा कर दी।
इधर युवा किसानों के विरोध को देखते हुए गुरनाम सिंह चढूनी करीब साढ़े तीन बजे टोहाना से निकल लिए। गुरनाम सिंह के टोहाना से निकल जाने से भी युवा किसानों में नाराजगी बढ़ गई। उनका कहना है कि जब लड़ाई विधायक देवेंद्र बबली के साथ है, फिर एसडीएम कार्यालय का घेराव क्यों? उनका आरोप है कि इसमें कुछ न कुछ गड़बड़ है। इसलिए उन्होंने गुरनाम सिंह चढ़नी और संयुक्त किसान मोर्चा का विरोध करते हुए आंदोलन की अपनी लाइन पकड़ी है। इस ऐलान के साथ ही
देखते ही देखते 100 के करीब युवा किसान नेता विकास के नेतृत्व में विधायक देवेंद्र बबली के गांव बढ़ई खेड़ा की ओर निकल पड़े। यह देख कर प्रशासन के हाथ पांव फूल गए। क्योंकि पहले ही किसानों की भीड़ के सामने पुलिस व्यवस्था खासी लाचार महसूस कर रही थी। अब जबकि सब कुछ ठीक से निपट रहा था, अचानक ही युवा किसानों के इस निर्णय ने स्थिति को एक बार फिर से गंभीर कर दिया।
जैसे ही युवा किसान विधायक के गांव की ओर निकले तो बड़ी संख्या में पुलिस कर्मियों ने विधायक के घर को सुरक्षा कवर में ले लिया। गांव की ओर जाने वाले सभी रास्ते बंद कर िदिए।युवाओं का दल जैसे ही विधायक के गांव के कुछ दूरी पर नहर पुल के पास पहुंचा तो पुलिस ने इन युवाओं को गिरफ्तार कर लिया है।
यह पहला मौका है, जब इस तरह के विरोध प्रदर्शन में किसान दो गुट में बंट गए हैं। इससे एक बात तो साफ है कि किसी न किसी स्तर पर किसान गुरनाम सिंह चढूनी से नाराज है।
गुरनाम सिंह चढूनी का विरोध करने वाले युवा किसानों का कहना है कि हिसार में 16 मई को सीएम के विरोध प्रदर्शन पर किसानों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था, तब इसके विरोध में 24 मई को किसान हिसार में एकजुट हुए, उसी दिन सरकार ने सारे मामले वापस ले लिए।
विधायक देवेंद्र बबली के मामले में यह रणनीति क्यों नहीं अपनाई जा रही है? इस आंदोलन को लंबा क्यों किया जा रहा है। ध्यान रहे मंगलवार को विधायक देवेंद्र बबली का किसानों ने विरोध किया था, इसी बीच विधायक की गाड़ी पर डंडे से वार किया गया, जिससे विधायक की गाड़ी का शीशा टूट गया था। आरोप है कि विधायक ने किसानों को मां बहन की गालियां दी। इसी के विरोध में बुधवार को टोहाना में किसान एकजुट हुए थे।
किसानों के एक गुट का तर्क था कि विधायक के निवास का घेराव कर उनसे जवाब तलब किया जाना चाहिए। क्योंकि इस बार मामला विधायक और मतदाताओं के बीच है। उन्होंने विधायक से गाली खाने के लिए उन्हें वोट नहीं दिया।
लेकिन गुरनाम सिंह चढूनी ने इस बार आंदोलन को लंबा कर दिया। इसमें सात जून को प्रदेश के थानों का घेराव, 11 जून को विधायक के पुतले को जलाने और 12 जून को विधायक के गांव में प्रदर्शन का निर्णय लिया था।
युवा किसान आज ही विधायक के गांव जाने पर अड़ गए। जब मनाने पर भी युवा किसान नहीं माने तो गुरनाम सिंह वहां से निकल लिए, इसके बाद युवाओं ने मंच संभाला। इतना ही नहीं अपने निर्णय पर अमल करते हुए वह विधायक के गांव की ओर गए भी।
जानकारों का मानना है कि युवाओं की यह बगावत अचानक नहीं है। इसके पीछे कई कारण है। एक तो यह है कि किसानों का एक बड़ा वर्ग यह मान रहा है कि गुरनाम सिंह आंदोलन की आड़ में अपनी राजनीतिक जमीन तैयार कर रहे हैं। टोहाना में आंदोलन के दौरान किसान यह भी मान रहे हैं कि गुरनाम सिंह चढ़ूनी इतने आक्रामक नहीं है, जितने हिसार में थे। इसकी वजह वह तलाश कर रहे थे। इनका मानना था कि गुरनाम सिंह किसी न किसी स्तर पर प्रशासन के दबाव में है। इसलिए विधायक के गांव जाकर उसके निवास को घेरने से बच रहे हैं।
किसान इस बात से भी खफा थे कि देवेंद्र बबली उनका विधायक है, वह उससे जवाब मांग सकते हैं। फिर क्यों गुरनाम सिंह चढूनी खुद ही आंदोलन को लंबा चलाने की रणनीति बना रहे हैं। उनका यह भी कहना था कि यह मामला उनका और विधायक के बीच का है। वह उसे निपटा लेंगे।
किसान आंदोलन को लंबे समय से कवर कर रहे वरिष्ठ पत्रकार सतनाम सिंह ने बताया कि आंदोलन लंबा चल गया है, इतने समय तक किसानों को एकजुट रखना बड़ी चुनौती है। दूसरा गुरनाम सिंह चढूनी दो कदम आगे चार कदम पीछे की रणनीति पर काम कर रहे हैं। लेकिन युवा किसान इस नीति को मानने को तैयार नहीं है। वह अब आरपार की बात कर रहे हैं। ठीक उसी तरह से जिस तरह से किसान नेताओं पर 26 जनवरी की परेड का दबाव था।
अब युवा किसान चाहते हैं कि मसले का हल निकले, वह चाहे कुछ भी हो। सतनाम सिंह का कहना है कि सरकार भी यही चाहती है कि किसान दो गुटों में बंट जाए। क्योंकि इससे आम जनता की सहानुभूति कम होगी। जिससे आंदोलन कमजोर हो सकता है। बहरहाल अब किसान नेताओं की जिम्मेदारी है कि कैसे वह इस आंदोलन को एकजुट रख सकते हैं। यदि इस ओर जल्दी ही ध्यान नहीं दिया तो आंदोलन बिखर सकता है।