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Jalore Kand : जालौर के सुराणा गांव से दलित छात्र इंद्र मेघवाल के घर पहुंचा जनज्वार, जानिये सवर्ण शिक्षक के मटके से पानी पीने के बाद मृतक की प्रताड़ना का खौफनाक सच
Jalore kand : देश के सामंतवादी मूल्यों की रक्षा में अग्रणी राजस्थान से एक दलित बच्चे की खौफनाक पिटाई के बाद मौत की खबर मीडिया में छाई हुई है। बच्चे का कसूर यह था कि वह इस तथ्य से अनजान था कि कथित तौर पर नीची जात में जन्म लेने के कारण ऊंची जात के शिक्षक की मटकी का पानी पीना उसके हक में शामिल नहीं था। रोंगटे खड़े कर देने वाली यह घटना 20 जुलाई की है। करीब तीन सप्ताह से अधिक समय तक आधा दर्जन से अधिक अस्पतालों में इलाज कराने के बाद स्वतंत्रता दिवस की 75वीं वर्षगांठ से दो दिन पूर्व इस बच्चे की मौत हो गई थी।
जनज्वार टीम इस मामले की पड़ताल करने के लिए मृतक के परिजनों से मिलने उसके घर पहुंची, जोकि जालौर जिले के सुराणा में है। मृतक इंद्र मेघवाल के घर के सदस्यों से बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि जब शिक्षक द्वारा बच्चे की पिटाई की गई तो वो स्कूल से भाग कर घर वापस आ गया।
इंद्र के पिता रूंधे गले से बताते हैं, 'जब इंद्र ने मुझे बताया कि शिक्षक ने उसे मारा है तो मैंने सोचा की बच्चे को स्कूल में बदमाशी करने की वजह से मारा गया होगा। तभी बच्चे ने मामले का खुलासा करते हुए बताया कि उसे शिक्षक ने मटके से पानी पीने के कारण बेरहमी से मारा गया है।'
बकौल इंद्र के परिजन, हम अपने बच्चे का इलाज करने के लिए कई अस्पतालों में भटके थे। अस्पतालों के चक्कर काटने की इस दौड़भाग में उन्हें एफआईआर करने का समय नहीं मिला और न ही इस तरफ ध्यान गया। अभी तक सरकार की तरफ से उन्हें किसी तरह की कोई मदद नहीं मिली है सरकार केवल आश्वासन देती है। परिजनों को सरकार की तरफ से कोई मुआवजा नहीं मिला है केवल उन्हें आश्वासन दिया जाता है। पता कहते हैं, इंद्र के इलाज में 25 लाख रुपये से भी ज्यादा लग गया, बावजूद इसके उसकी जान नहीं बच पायी।
मासूम इंद्र की रोती बिलखती मां और दादी हिंदी बोलना नहीं जानती, मगर उनकी आंसुओं से भरी आंखें मानो न्याय की गुहार लगा रही हैं कि उनके कलेजे के टुकड़े के हत्यारे को कतई मत बख्शना।
मृतक की परिजनों की मांग है कि मुजरिमों को सख्त से सख्त सजा दी जाए। परिजनों की मांग है की मुजरिमों को सजा उनके द्वारा लगाई गई धाराओं की अनुसार मिले। बता दें कि परिजनों ने मुजरिमों की खिलाफ 307, 302, धाराएं लगाई गई हैं।
परिजनों का कहना है कि अब उन्हें भी जान का खतरा भी है। सदियों से राजपूतों का दबदबा होने की कारण इस इलाके में केवल उन्हें की चलती है और उन्ही के अनुसार हमें रहना होता हैं। चूंकि शिक्षक छैल सिंह भी राजपूत बिरादरी का है तो हमारी जान को हर समय खतरा बना हुआ है। हमारे याहं जातिवाद अभी तक खत्म नहीं हुआ है, हम आज भी जमीन पर ही बैठते हैं। राजपूतों ने हमें मूंछें रखने तक की इजाजत तक नहीं दी है। हमारा इस्तेमाल केवल वोट बैंक की लिए किया जाता है। जब चुनाव आते हैं तो सरकार हमें याद करती है और हम हिन्दू बन जाते हैं और चुनाव खत्म होते ही हम दलित बन जाते हैं।