Corruption in MGNREGA,Jharkhand: भ्रष्टाचार के खुलासे के बाद उच्चाधिकारियों ने दिया वसूली का फरमान, अपनी गर्दन बचाने का एक सुरक्षित उपाय
Corruption in MGNREGA,Jharkhand: भ्रष्टाचार के खुलासे के बाद उच्चाधिकारियों ने दिया वसूली का फरमान, अपनी गर्दन बचाने का एक सुरक्षित उपाय
विशद कुमार की रिपोर्ट
Corruption in MGNREGA,Jharkhand: चतरा में 12 फरवरी 2022 को जिला स्तरीय जनसुनवाई के दौरान मनरेगा का किये गये सोशल ऑडिट में सिर्फ 5000 रुपये जुर्माना लगाकर खानापूर्ति का मामला सामने आया है। बता दें कि वर्ष 2018-19 का मनरेगा के तहत किये गये कार्यों की पंचायत व प्रखंड स्तर पर किये गये सोशल ऑडिट में भ्रटाचार के मामले सामने आने के बाद जिला स्तरीय जन सुनवाई के दौरान मुखिया, रोजगार सेवक पर 500-500 रुपये का जुर्माना लगाकर मामले का निष्पादन किया गया था।
सुनवाई के दौरान 500-500 रुपये जुर्माना लगाये जाने पर उपायुक्त अंजली यादव ने नाराजगी व्यक्त की। साथ ही कहा कि सिर्फ जुर्माना लगाना ही सोशल ऑडिट का मतलब नहीं, कार्रवाई होनी चाहिए। सुनवाई के दौरान सोशल ऑडिट टीम ने आरोप का साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया।
टीम से आरोप का आधार पूछे जाने पर बताया गया कि लाभुक व मजदूरों के द्वारा दिये गये लिखित शिकायत की जानकारी दी। इसपर उपायुक्त ने कई लाभुकों को बुलाकर पूछा, तो लाभुकों ने आरोप लगाने की बात से इनकार कर दिया, जिससे ऑडिट टीम को उपायुक्त ने पूरे साक्ष्य व सबूत के साथ मामले को लाने का निर्देश दिया। कई ऐसे मामले थे, जो साक्ष्य प्रस्तुत किया जाता तो आरोपियों पर भारी भरकम जुर्माना व कार्रवाई की जाती।
लेकिन टीम को पुख्ता सबूत पेश नहीं करने के कारण किसी तरह की कार्रवाई नहीं की गयी। दूसरी ओर कई मुखिया, पंचायत सेवक, रोजगार सेवक, जेइ ने सोशल ऑडिट टीम पर भयादोहन करने का आरोप लगाया। मतलब सोशल ऑडिट के नाम पर जो खानापूर्ति की गयी वह भी भ्रटाचार का एक हिस्सा बन गया, जबकि कई जिलों में सोशल ऑडिट के बाद मुखिया, पंचायत सेवक, रोजगार सेवक, जेई वगैरह पर भारी भरकम जुर्माना लगाया गया है।
राज्य के लातेहार जिला अंतर्गत सदर प्रखंड में मनरेगा घोटाला सामने आया है। सदर प्रखंड के पांडेयपुरा पंचायत में दो करोड 20 लाख 11 हजार 625 रुपये का मनरेगा घोटाला किया गया है, जिसका खुलासा 14 फरवरी 2022 को हुए पांडेयपुरा पंचायत सचिवालय में सोशल ऑडिट के दौरान हुआ।
पांडेयपुरा पंचायत में वित्तीय वर्ष 2020-21 में विभिन्न योजना के लिए कुल 824 योजना ली गयी थी। जिसमें सरकारी आंकड़ों के अनुसार 629 योजनाओं को पूर्ण दिखाया गया है। जबकि सोशल ऑडिट में मात्र 43 योजनाओं का ही अभिलेख उपलब्ध कराया गया है।
जिला से उक्त वित्तीय वर्ष में संबंधित पंचायत को दो करोड़ 30 लाख 70 हजार रुपये उपलब्ध कराया गया था। इसमें एक करोड 59 लाख 91 हजार 808 रुपये अकुशल मजदूर, 50 लाख 6 हजार 666 रुपये कुशल मजदूर तथा 55 लाख 72 हजार 299 रुपये सामग्री मद में उपलब्ध कराये गये थे। सोशल ऑडिट में जिन 43 योजनाओं का अभिलेख दिया गया है। उन योजनाओं में कुल सात लाख 68 हजार 164 रुपये खर्च होने की बात सामने आयी है।
इस संबंध में प्रखंड विकास पदाधिकारी मेघनाथ उरांव ने बताया कि मामला संज्ञान में आया है। देखना पड़ेगा कि किस मद में कितनी राशि का भुगतान किया गया है। सोशल ऑडिट में जूरी सदस्यों का क्या निर्णय होता है। इसका अध्ययन करने के बाद उचित कार्रवाई की जायेगी।
धनबाद जिला में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत गोविंदपुर प्रखंड की चार पंचायतों में आवंटन से अधिक राशि की निकासी का मामला पकड़ में आया है। इन पंचायतों में 14.17 लाख रुपये से अधिक निकासी की गड़बड़ी पकड़ में आने के बाद हड़कंप मच गया है। चारों पंचायतों के प्रधान (मुखिया), रोजगार सेवक व पंचायत सचिव को शो-कॉज किया गया है।
मनरेगा के तहत प्रखंड की खरनी, आसनबनी टू, बिराजपुर व बरियो पंचायत में राज्य स्तर से चालू वित्त वर्ष में 35 लाख 63 हजार 676 रुपये स्वीकृत हुआ था। सामग्री मद में इतनी ही राशि खर्च करने की अनुमति थी। लेकिन इन चारों पंचायतों में सामग्री मद में 49 लाख 81 हजार रुपये की निकासी हो गयी। मतलब 14 लाख 17 हजार 324 रुपये अधिक निकासी हो गयी।
सूत्रों के अनुसार अधिक राशि निकासी की सूचना मिलते ही प्रशासन रेस हो गया है। मामले की प्रारंभिक जांच शुरू हो गयी है। प्रखंड विकास पदाधिकारी संतोष कुमार ने प्रधान, पंचायत सचिव एवं रोजगार सेवकों को शो-कॉज कर पूछा है कि किस परिस्थिति में सामग्री मद में राज्य स्तर से निर्धारित राशि से अधिक की निकासी हुई? यह दिशा-निर्देश का घोर उल्लंघन है। सभी कर्मियों तथा चारों प्रधान को जवाब देने को कहा गया है। इसके बाद आगे की कार्रवाई होगी।
बता दें कि मनरेगा में लगातार मिल रही शिकायतों के आलोक में ग्रामीण विकास विभाग ने नया निर्देश जारी किया है। इसके तहत अब मनरेगा के तहत चल रहे विकास कार्यों के स्थल पर सुबह-शाम फोटोग्राफी होगी। रोजगार सेवक एवं पंचायत सचिव को सुबह नौ तथा अपराह्न चार बजे कार्यस्थल में कार्यरत मजदूरों का समूह फोटो लेकर भेजना है। इसमें वैसे मजदूरों का ही फोटो लेने को कहा गया है, जिनका नाम उस योजना के मस्टर रोल में हो। इससे मनरेगा के क्रियान्वयन में लगे कर्मियों को परेशानी बढ़ गयी है।
उल्लेखनीय है कि गुमला जिले में ऑडिट के लिए 92 योजनाओं का चुना गया था। मस्टर रोल में दर्ज आंकड़ों के अनुसार, इन योजनाओं में 731 मजदूरों को कार्यरत होना चाहिए था, जबकि सिर्फ 20 मजदूर ही काम करते पाये गये। राज्य में चल रही योजनाओं में 1787 ऐसे मजदूर काम करते मिले, जिनके नाम मस्टर रोल में थे ही नहीं। गढ़वा,साहिबगंज और गिरिडीह में ऐसे मजदूरों की संख्या सबसे ज्यादा पायी गयी।
उल्लेखनीय है कि सोशल ऑडिट के दौरान मनरेगा की योजनाओं में कुल 52.37 करोड़ रुपये की गड़बड़ी पकड़ी गयी है। सरकार ने इसके आलोक में अब तक सिर्फ 5.21 करोड़ रुपये की ही वसूली कर सकी है। सबसे ज्यादा गड़बड़ी गढ़वा जिले में 5.93 करोड़ की गड़बड़ी पकड़ी गयी है। इस मामले में गिरिडीह दूसरे नंबर और तीसरे नंबर पर रामगढ़ जिले का नाम है। गिरिडीह में 4.95 करोड़ और रामगढ़ में 4.93 करोड़ की गड़बड़ी पकड़ी गयी है।
बता दें एक सोशल ऑडिट के हवाले बताया गया कि पिछले वर्ष राज्य के 24 जिलों की 1,118 पंचायतों में क्रियान्वित मनरेगा 29,059 योजनाओं में से 36 योजनायें JCB से कराये जाने के स्पष्ट प्रमाण मिले। कुल 1,59,608 मजदूरों के नाम से मस्टर रोल (हाजरी शीट) निकले गए थे, उसमें सिर्फ 40,629 वास्तविक मजदूर (25%) ही कार्यरत पाए गए। शेष सारे फर्जी नाम के मस्टर रोल थे। 1,787 मजदूर ऐसे मिले जिनका नाम मस्टर रोल में थे ही नहीं। 85 योजनायें ऐसी मिली जिनमें कोई मस्टर रोल सृजित नहीं किये गए थे, परन्तु काम शुरू कर दिया गया था। 376 मजदूर ऐसे मिले जिनका जॉब कार्ड बना ही नहीं था। पूर्व के वर्षों में भी सोशल ऑडिट के माध्यम से करीब 94 हजार विभिन्न तरह की शिकायतें दर्ज की जा चुकी हैं, जिसमें करीब 54 करोड़ राशि गबन की पुष्टि हो चुकी है। राज्य में मनरेगा के तहत संचालित योजनाओं में यदि मनरेगा के MIS के आंकड़ों को देखे तो स्पष्ट है कि वित्तीय वर्ष 2017-18, 18-19 और 19-20 में कुल मिलाकर एक बार ही सोशल ऑडिट हो पाया, इससे यह स्पष्ट है कि यदि तीन सालों में हर वर्ष सभी पंचायतों का सोशल ऑडिट किया गया होता तो यह राशि तीन गुना यानी कि 150 करोड़ की होती, साथ ही यह भी दिखाई देता है कि 13% योजनाओं का रिकॉर्ड ही उपलब्ध नहीं कराया गया, जिसकी वजह से ऐसी योजनाओं का ऑडिट नहीं हो पाया। वित्तीय वर्ष 2020-21 के आंकड़े पूरी तरह अपलोड नहीं है। पर यदि समवर्ती सोशल ऑडिट की रिपोर्ट जो जारी हुई है, उस पर ध्यान दिया जाय तो सिर्फ 25% मजदूर कार्यस्थल पर काम करते मिले। जिसका अर्थ है कि 75% राशि का विचलन सिर्फ मजदूरी भुगतान में हुआ है, जो प्रति वर्ष करीब 1500 -1600 करोड़ के करीब होता है। अतः यह निष्कर्ष निकला जा सकता है कि यदि पिछले दो सालों में हर वर्ष प्रत्येक पंचायत का एक बार नियमित सोशल ऑडिट होता तो यह वित्तीय हेराफेरी इन दो सालों में ही शायद करोड़ों में सामने आती। मनरेगा में मशीन का प्रयोग और ठेकेदारी व्यवस्था जो कानूनन वर्जित है, आज वह झारखण्ड की जमीनी हकीकत बन गई है।
बता दे कि मनरेगा मजदूरों के द्वारा नहीं, बल्कि जॉब कार्ड सूचि के आधार पर ठेकेदार और बिचौलिए सीधे कम्प्यूटर ऑपरेटर से मिलकर काम की मांग कर रहे हैं। ठेकेदार और बिचौलिए अधिकांश वैसे मजदूरों का काम मांग कर रहे हैं। जो उनके करीबी हैं या फिर जिनको आसानी से बेवकूफ बनाकर या थोड़े पैसे का लालच देकर मजदूरी राशि निकासी कराई जा सकती है। कोविड महामारी में आपदा को अवसर का लाभ उठाते हुए मजदूरों के परिवार के आधार पर नहीं परन्तु व्यक्तिगत जॉब कार्ड बनवा लिया गया है। कई ऐसे भी व्यक्तिगत जॉब कार्ड बनवा लिए गए हैं जिनकी आयु 18 वर्ष से कम की हैैं।
वगैर ग्राम सभा की जानकारी और प्रस्ताव के ठेकेदार मनरेगा योजनाओं की फ़ाइल लेकर अधिकारियों / कर्मियों के साथ साठगांठ कर स्वीकृति करवा रहे हैं। मिट्टी मोरम सड़क निर्माण, डोभा निर्माण और TCB जैसी योजनाओं को JCB से कराने के उपरान्त कुछ दिनों के लिए मजदूरों से काम कराते हैं, जिससे कि मशीन निर्मित कार्य के निशान को मिटाया जा सके और मजदूरों की सहानुभति भी ठेकेदार बटोर सकें। प्रज्ञा केंद्र संचालक या मोबाइल बैंकिंग के जरिये ठेकेदार मजदूरों के घरों तक पहुंचकर अंगूठे के निशान लगवा ले रहे हैं। सोशल ऑडिट जैसी प्रक्रिया में ग्राम सभाओं में भी ठेकेदार हावी हैं और मुद्दों को स्थापित नहीं होने दे रहे हैं।
बता दें कि इस रिपोर्ट के आने के बाद राज्य के पलामू जिला के उप विकास आयुक्त ने इसे गंभीरता से लिया और जिले के हुसैनाबाद प्रखंड के प्रखंड विकास पदाधिकारी को पत्र भेजकर फर्जीवाड़े में हुई पैसों की लूट को संबंधित कर्मियों से रिकवरी का आदेश दिया।
पलामू जिला अंतर्गत हुसैनाबाद प्रखंड के प्रखंड विकास पदाधिकारी ने उप विकास आयुक्त, पलामू ने मनरेगा योजना के समवर्ती सोशल ऑडिट के आधार पर पायी गई अनियमितता की पुष्टि करते हुए राशि 18,63,290 रुपये एवं 12 प्रतिशत ब्याज को जोड़ते हुए कुल राशि 20,86,885 रुपये तथा कुल 16 योजनाओं में मशीन का उपयोग करने सम्बंधी पुष्टि होने के बाद प्रत्येक योजना में 1,000 - 1,000 रुपये की दर से कुल 16,000 रुपये जोड़कर यानी कुल 21,02,885 रुपये वसूली हेतु निम्न कर्मियों को चिन्हित किया।
जिसमें क्रमवार रूप से मेठ से वसुली जाने वाली राशि 4,20,577 रु०, रोजगार सेवक — सत्यम कुमार से 4,20,577 रु०, पंचायत सेवक — रामजनम राम से 4,20,577 रु०, कनीय अभियंता — विवेक कुमार से 4,20,577 रु०, मुखिया — अखिलेश राम से 4,20,577 रु०, कुल मिलाकर 21,02,885 रु० वसूली जाने वाली राशि है। जिसमें किसी ने कोई पैसा जमा नहीं किया है।
जबकि प्रखंड विकास पदाधिकारी हुसैनाबाद द्वारा 9 फरवरी 2022 को निर्गत किए गए पत्र में संबंधित रोजगार सेवक, पंचायत सेवक, कनीय अभियंता, मुखिया को साफ कहा गया है कि सूचनार्थ एवं अनुपालनार्थ प्रेषित निर्देश दिया जाता है कि आपके द्वारा चयनित संबंधित सभी मेठों से राशि की वसूली करते हुए कार्यालय में जमा करना सुनिश्चित करें। राशि जमा नहीं होने की स्थिति में मेठों की सम्पूर्ण राशि आप सभी के बीच विभाजित कर आप सभी से वसूलने की कार्रवाई की जायेगी।
पत्र में आगे कहा गया है कि पत्र प्राप्ति के 24 घंटे के अन्दर दर्शायी गई राशि को कार्यालय में जमा करना सुनिश्चित करें, अन्यथा राशि जमा नहीं होने की स्थिति में प्राथमिकी दर्ज की जायेगी। लेकिन आज तक मामला ढाक के तीन पात बना हुआ है।
बता दें कि मेठ की भूमिका एक ऐसे मजदूर की होती है जो मनरेगा में कार्यरत मजदूरों का नाम हाजिरी पुस्तिका में दर्ज करते हैं एवं मजदूरों द्वारा किए जा रहे काम पर नजर रखते हैं, जिसे केद्र सरकार द्वारा निधारित न्यूतम दैनिक मजदूरी दी जाती है। मेठ प्रायः महिला होती है, विकल्प के रूप में पुरुष मजदूर को मेठ का पदभार दिया जाता है।
बता दें कि प्रखंड कार्यालय द्वारा एक और पत्र जारी कर बताया गया है कि सोशल ऑडिट दलों के द्वारा प्रखंड हुसैनाबाद के पंचायत डंडीला में मनरेगा के अन्तर्गत वित्तीय वर्ष 2020-21 में कार्यान्वित योजनाओं का फेज-2 के अन्तर्गत विशेष ऑडिट किया गया, तो इस ऑडिट के दौरान संबंधित पंचायत में मनरेगा अन्तर्गत योजनाओं में पायी गई अनियमितता का उजागर किया गया। उक्त बरती गई अनियमितता से संबंधित मामले में ज्युरी सदस्यों के द्वारा अनियमितता से संबंधितों से निकासी की गई राशि को वापसी कराने एवं पुनः पुनरावृत्ति न हो, इस हेतु संबंधित दोषी कर्मियों को आर्थिक दण्ड लगाया गया, जिसके अनुसार राशि को विखंडित करते हुए अविलब वसूली करने का निर्देश दिया गया।
अतः उक्त आदेश के आलोक में ग्राम पंचायत डंडीला में स्पेशल ऑडिट ईकाई पलामू के द्वारा निर्धारित वसूली की जाने वाली कुल राशि ग्यारह लाख पचपन हजार एक सौ चौबीस रुपये (11,55,124 रू) को संबंधितों से वसूली करने का आदेश दिया गया है। संबंधितों पर जिला कार्यालय द्वारा लगातार स्पेशल ऑडिट में लंबित मामले को 24 घंटे के अन्दर निष्पादन करने हेतु आदेश निर्गत किया गया है।
मेठ से 3,46,537 रु०, शम्मू तिवारी, रोजगार सेवक से 25,000 रु० की वसुली का आदेश है, सत्यम कुमार, रोजगार सेवक से 1,48,269 रु०, राम भजन राम, पंचायत सेवक से 2,31,025 रु०, विवेक कुमार कुमार, कनीय अभियंता से 1,73,269 रु० तथा अखिलेश मुखिया से 2,31,025 रु० की वसूली का आदेश पत्र भेजा गया है, जिसके तहत कुल 11,55,124 रु० की वसूली है जिसमें किसी ने कोई राशि जमा नहीं की है।
बताते चलें कि मनरेगा योजना में व्याप्त भ्रष्टाचार के आलोक में उप विकास आयुक्त, पलामू के द्वारा मनरेगा योजना के समवर्ती सामाजिक अंकेक्षण के उभरे मामले में पायी गई अनियमित्ता की पुष्टि करते हुए ग्राम पंचायत जमआ में निम्न कर्मियों को चिन्हित किया गया। जिनसे कुल 12,14,838 रुपये वसूली हेतु इन कर्मियों में विक्रम पासवान, मेठ से 1,39,280 रु० की वसूली का आदेश गया जिसमें उसने 10,000 जमा की, अतः 1,29,280 बकाया रहा। वहीं राजेश यादव मेठ द्वारा 2,25,170 रु० की वसूली में 10,000 रु० जमा की गई, अतः उस पर 2,15,170 रु० का बकाया रहा।
बिनोद कुमार, रोजगार सेवक पर 1,82,225 रु० की वसूली में उसने सब जमा कर दिया। नरेश प्रसाद पंचायत सेवक 1,82,225 रु० की वसूली में उसने 95,000 रु० जमा की, बकाया 87,225 रु० रहा। वहीं रजा अंसरी, कनीय अभियंता ने 3,03,709 रु० की वसूली में जमा की 50,000 रु० और बकाया 2,53,709 रु० रहा। अनिता देवी मुखिया ने 1,82,225 की वसूली में सब जमा कर दी।मतलब वसूली की 12,14,838 रु० में जमा हुई 5,29,450 रु० और कुल बकाया रहा 6,85,388 रु०।
बता दें कि भले ही सोशल ऑडिट से मनरेगा में भ्रष्टाचार का खुलासा होने के बाद उच्चाधिकारी प्रखंड व पंचायत स्तर के कर्मियों पर वसूली की तलवार उनकी गर्दन पर रख दी है, जबकि सच यह है कि भ्रष्टाचार की इस गंगोत्री में पंचायत, प्रखंड, जिला व राज्य स्तर तक के लोग डुबकी लगाए हुए हैं। नीचले स्तर के कर्मियों से वसूली का फरमान केवल अपनी गर्दन बचाने का एक सुरक्षित माध्यम है।