बिहार-झारखंड की लाइफ लाइन NH - 33 के एक टोल प्लाजा से अरबों में कमाई, सिंगल जर्नी की पर्ची काट बढाते हैं राजस्व
रांची-रामगढ रोड पर ओरमांझी के निकट स्थित टोला प्लाजा। फोटो : सोशल मीडिया से।
जनज्वार। बिहार-झारखंड में एनएच-33 रोड को यहां का लाइफ लाइन भी कहा जाता है। इस रोड को रांची-पटना, पटना-टाटा रोड के नाम से भी जाना जाता है। बिहार-झारखंड से गुजरने वाले एनएच - 2 यानी जीटी रोड के बाद यह सबसे व्यस्त सड़क है। इस रोड पर रांची और रामगढ के बीच ओरमांझी के निकट स्थित एक टोल प्लाजा की कमाई अरबों में है। इसकी कमाई और इसका खुलासा एक आरटीआइ याचिका के जवाब में हुआ है।
रांची-पटना एनएच का आधुनिक निर्माण कार्याें की वजह से रांची-हजारीबाग का हिस्सा एक्सप्रेस कहलाता है और इस पर ही 2013 में टोल प्लाजा का निर्माण 2013 में हुआ था। इस संबंध में रांची के आरटीआइ कार्यकर्ता दिपेश निराला द्वारा मांगी गयी जानकारी में यह खुलासा हुआ कि निर्माण के बाद से सूचना मांगे जाने की तारीख 22 अगस्त 2020 तक इस टोल प्लाजा से तीन अरब 85 करोड़ 73 लाख 47 हजार 38 रुपये के राजस्व की वसूली हुई है।
इस टोल प्लाजा को पुंदाग टोल प्लाजा भी कहते हैं और यहां चार सितंबर 2013 से शुल्की की वसूली आरंभ हुई थी। पहले वर्ष यानी 2013 में कम अवधि के कारण 8 करोड़ 95 लाख 52 हजार 904 रुपये के टोल टैक्स की वसूली हुई। जबकि उसके बाद हर साल लगातार इसके राजस्व संग्रह में इजाफा होता रहा। जबकि लागत की वसूली होने पर इसमें कमी आनी चाहिए। यह भी गौरतलब है कि केंद्र सरकार दो साल में हाइवे पर टोल की वसूली बंद करने की बात कह चुकी है।
2014 में इस टोल से 34 करोड़ 89 लाख 74 हजार 568 रुपये, 2015 में 47 करोड़ 46 लाख तीन हजार 271 रुपये, 2016 में 48 करोड़ 91 लाख, 91 हजार 93 रुपये वसूले गए। फिर 2017 में 62 करोड़ 57 लाख, 30 हजार 753 रुपये, 2018 में 70 करोड़ 26 लाख 74 हजार 801 रुपये, 2019 में 87 करोड़ 61 लाख 97 हजार एक रुपये और 2020 में 22 अगस्त तक 25 करोड़ दो लाख 22 हजार 647 रुपये की वसूली हुई। अब अगर 2020 के पहले के आठ महीने में भी कम राजस्व वसूली दिख रहा है तो उसका मुख्य कारण मार्च से जुलाई-अगस्त के महीने तक चला लंबा लाॅकडाउन है जिस कारण वाहनों का आवागमन बंद था और विशिष्ट स्थितियां में व बाद के महीनों में कुछ वाहनों का परिचालन आरंभ हुआ।
दिलचस्प बात यह है कि टोल प्लाजा पर अगर आपको वापसी यात्रा करनी है तो दोनों की पर्ची एक साथ काटी जाती है और पैसों की बचत होती है, लेकिन आरटीआइ कार्यकर्ता का कहना है कि वहां पर्ची एक ही ओर की काटी जा रही है, ताकि राजस्व संग्रह अधिक हो। 2014 की तुलना में अब टोल भी काफी बढा दिया गया है।