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Karnataka Hijab Ban : क्या उस स्कूल में यूनिफॉर्म के साथ हिजाब पहनना संभव है जहां पहले से ड्रेस तय है, ऐसे में कोई मिनी-मिडिस भी पहनकर आ सकता है

Janjwar Desk
6 Sep 2022 5:55 AM GMT
Hijab controversy : अगर हिजाब पर बैन लगा तो लड़कियां मजबूर होकर मदरसा चली जाएंगी, जस्टिस धुलिया बोले - ये कैसी दलील है
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Hijab controversy : अगर हिजाब पर बैन लगा तो लड़कियां मजबूर होकर मदरसा चली जाएंगी, जस्टिस धुलिया बोले - ये कैसी दलील है

Karnataka Hijab Ban : किसी भी व्यक्ति को धर्म का पालन करने का अधिकार है, लेकिन सवाल यह है कि क्या कोई छात्रा उस स्कूल में हिजाब ( Hijab ) पहन सकती है जहां ड्रेस ( dress ) निर्धारित है?

Karnataka Hijab Ban : शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब ( Hijab ) पहनने पर प्रतिबंध को बरकरार रखने के कर्नाटक उच्च न्यायालय ( karnataka High Court ) के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ( Supreme court ) ने पांच जुलाई यचिकाकर्ता के वकीलों से पूछा कि क्या आप हिजाब ( Hijab ban ) पहनने के धार्मिक अधिकार को उस स्कूल में ले जा सकते हैं जिसमें यूनिफॉर्म ( Uniform ) एक अनिवार्य ड्रेस कोड है। किसी भी व्यक्ति को धर्म का पालन करने का अधिकार है, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह अधिकार निर्धारित यूनिफॉर्म वाले स्कूल में भी लागू हो सकता है? सीधा सवाल है, क्या कोई छात्रा उस स्कूल में हिजाब पहन सकती है जहां निर्धारित ड्रेस है?

सरकार का इदारा कुछ वर्गों को शिक्षा से वंचित करने की है, पर कैसे?

न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता ने याचिकाकर्ताओं में से एक वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े से पूछा कि अगर हम एक पल के लिए यह स्वीकार कर लें कि आपको जहां भी आपका मन करता है वहां स्कार्फ या हिजाब ( Hijab ) पहनने का अधिकार है लेकिन क्या आप उस हिजाब को ऐसे स्कूल में ले जा सकते हैं जहां ड्रेस तय है। शीर्ष अदालत ने कहा कि वे यह नहीं कह रहे हैं कि वे किसी भी अधिकार से इनकार कर रहे हैं। राज्य जो कह रहा है, वह यह है कि छात्र वही ड्रेस पहनकर स्कूल जाते हैं जो उनके लिए निर्धारित है। ऐसे में आप यह कैसे कह सकते हैं कि कर्नाटक शिक्षा अधिनियम 1983 की आड़ में कुछ वर्गों को शिक्षा से वंचित किया जा रहा है। बता दें कि हिजाब को लेकर गठित पीठ जस्टिस सुधांशु धूलिया भी शामिल हैं।

हिजाब की तुलना चुन्नी-दुपट्टा और पगड़ी से नहीं कर सकते

इस जब वरिष्ठ वकील ने एक चुन्नी, दुपट्टा और हिजाब के बीच समानताएं खींचने की कोशिश की तो यह अदालत ने साफ तौर पर कह दिया कि दोनों की तुलना नहीं की जा सकती। न्यायमूर्ति धूलिया ने कहा हिजाब और चुन्नी-दुपट्टा में बहुत अंतर है। यदि आप एक चुन्नी को हिजाब के रूप में चित्रित कर रहे हैं तो आप शायद सही नहीं हैं। जस्टिस गुप्ता ने कहा कि चुन्नी का उपयोग कंधों को ढकने के लिए किया जाता है। बड़ों की उपस्थिति में महिलाओं द्वारा अपने सिर को ढंकने के लिए एक चुन्नी का भी उपयोग किया जाता है। जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा कि नहीं पंजाब में यह संस्कृति नहीं है। सिख महिलाएं गुरुद्वारे में माथा टेकने के लिए सिर ढकने के लिए इसका इस्तेमाल करती हैं। इससे ज्यादा कुछ नहीं।

हिजाब पहनना एक संवैधानिक सवाल : राजीव धवन

इस पर वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि इस मामले में संवैधानिक मुद्दे शामिल हैं जैसे कि हिजाब पहनना एक आवश्यक धार्मिक प्रथा है, एक संविधान पीठ को इस पर गौर करने की जरूरत है। इस पर न्यायमूर्ति गुप्ता ने कहा कि प्रश्न को अलग तरीके से संशोधित किया जा सकता है। हिजाब एक आवश्यक प्रथा हो सकता है या नहीं भी हो सकता है लेकिन क्या आप किसी सरकारी संस्थान में धार्मिक प्रथाओं पर जोर दे सकते हैं। संविधान की प्रस्तावना धर्मनिरपेक्ष देश की कल्पना है न कि धार्मिक देश की। इस पर राजीव धवन ने कहा कि उन्होंने कोर्ट में जजों को तिलक लगाते देखा है। कोर्ट 2 में एक जज की पगड़ी पहने एक पेंटिंग है। इस पर पीठ ने जवाब दिया कि इसे ;पगड़ी पहनना शाही राज्यों में एक प्रथा थी। जस्टिस गुप्ता ने कहा कि उनके दादा कानून की प्रैक्टिस के दौरान पगड़ी पहनते थे। इसे धार्मिक प्रतीक चिन्ह के साथ समानता न दें।

राजीव धवन ने कहा कि फ्रांस में धर्मनिरपेक्षता के एक सख्त फार्मेट का पालन होता है। शीर्ष अदालत के सामने संवैधानिक सवाल यह है कि लाखों छात्र जो ड्रेस कोड का पालन करते हैं लेकिन हिजाब पहनना भी चाहते हैं, वो ऐसा कर सकते हैं या नहीं? उन्होंने कहा कि दुनिया सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर नजर रखेगी। हिजाब एक ऐसी चीज है जो बड़ी संख्या में देशों और सभ्यताओं को प्रभावित करती हैं। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस मायने में महत्वपूर्ण होगा।

शैक्षिक संस्थान एक यूनिफार्म तय कर सकते हैं : कर्नाटक सरकार

कर्नाटक सरकार के 5 फरवरी 2022 के सरकारी आदेश का जिक्र करते हुए वहां के महाधिवक्ता पीके नवदगी ने कहा कि इससे वहां अशांति स्थिति बनी। कुछ शैक्षणिक संस्थानों और जिला अधिकारियों ने मार्गदर्शन के लिए सरकार को पत्र भी लिखा था।

उन्होंने कहा कि जीओ केवल यह कहता है कि छात्र अपने शासी निकाय द्वारा निर्धारित ड्रेस पहनेंगे। यानि राज्य सरकार ने ड्रेस को वर्दी नहीं माना है। हम केवल कर्नाटक शिक्षा प्रिस्क्रिप्शन ऑफ करिकुलर रूल्स का नियम 11 कहते हैं कि यह प्रत्येक मान्यता प्राप्त शैक्षणिक संस्थान के लिए अपने छात्रों को एक ड्रेस निर्धारित करने के लिए है। चूंकि आप हमसे निर्देश मांग रहे हैं इसलिए हम सभी शिक्षण संस्थानों को निर्देश देते हैं कि वे अपने छात्रों के लिए एक यूनिफॉर्म निर्धारित करें। एचसी के समक्ष मेरा तर्क जिसे स्वीकार कर लिया गया था, यह है था कि जीओ याचिकाकर्ताओं के किसी भी अधिकार में हस्तक्षेप नहीं करता है। हम यह नहीं कहते कि हिजाब पहनो या मत पहनो, हमारा जोर नियम 11 का पालन करने पर है।

उन्होंने कहा कि जब छात्रों को पता चला कि संस्थानों ने हिजाब पहनने पर रोक लगाने के लिए नियम 11 लागू किया गया है तो उन्होंने यह कहने के लिए अपना तर्क बढ़ाया कि यह धार्मिक प्रथाओं का हिस्सा है और अनुच्छेद 25 के तहत अधिकारों का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि सरकारी कॉलेजों में कॉलेज विकास परिषद को अधिकार दिया गया था वो ड्रेस तय करें। उक्त परिषद में छात्रों, अभिभावकों, शिक्षकों, स्थानीय विधायक, अनुसूचित जनजाति के सदस्यों आदि के प्रतिनिधि भी शामिल थे।

इससे पहले सुनवाई में हेगड़े ने कर्नाटक शिक्षा अधिनियम और नियमों के दायरे पर सवाल उठाया और पूछा- क्या आपको ;छात्र कक्षा से वंचित किया जा सकता है यदि आप एक विशेष पोशाक पहनते हैं। क्या आप महिलाओं को उनकी पोशाक के आधार पर शिक्षा प्रदान कर सकते हैं। क्या आप किसी को कॉलेज से सिर्फ इसलिए बाहर कर सकते हैं क्योंकि आपको लगता है कि उन्होंने ऐसी वर्दी पहनी है जो ड्रेस कोड की सदस्यता नहीं लेती है। क्या आप एक वयस्क महिला को बता सकते हैं कि शील के अपने विचार पर उसका नियंत्रण नहीं होगा। उन्होंने तर्क दिया कि कॉलेज विकास परिषद में स्थानीय विधायक और राजनेता शामिल हैं और अधिनियम के तहत इसकी कोई कानूनी वैधता नहीं है।

इस पर जस्टिस गुप्ता ने कहा कि गोल्फ कोर्स का भी एक ड्रेस कोड होता है। क्या हम कह सकते हैं कि हम इसका पालन नहीं करेंगे? इसका जवाब हेगड़े ने दिया कि गोल्फ कोर्स एक निजी संपत्ति है। पीठ ने कहा कि यह एक सार्वजनिक स्थान है। इसके बाद बेंच ने उन रेस्त्रां को रेफर कर दिया जिनका ड्रेस कोड होता है। हेगड़े ने जवाब दिया कि सब कुछ संदर्भ में आता है।

अदालत : ऐसे में तो कोई मिनी या मिडिस भी पहनकर आ सकता है

संतोष हेगड़े ने कहा कि कर्नाटक शिक्षा अधिनियम 1983 में एक शिक्षा की परिकल्पना की गई है। अदालत ने पूछा क्या यह ड्रेस संस्कृति के किसी भी निर्धारण को प्रतिबंधित करता है। ताकि छात्र मिनी, मिडिस, जो चाहें में आ सकें। हेगड़े ने जवाब दिया कि ऐसा कोई नुस्खा नहीं है। पीठ ने जवाब दिया कि उस मामले में राज्य की कार्यकारी शक्ति आ जाएगी।

कर्नाटक हाईकोर्ट : हिजाब पहनना इस्लाम में धार्मिक प्रथा नहीं, समर्थन वाली याचिका खारिज

Karnataka Hijab Ban : बता दें कि 15 मार्च को कर्नाटक उच्च न्यायालय की एक पूर्ण पीठ ने उडुपी में प्री.यूनिवर्सिटी कॉलेजों में पढ़ रही मुस्लिम लड़कियों द्वारा कक्षाओं में हिजाब पहनने का अधिकार मांगने वाली याचिकाओं के एक बैच को खारिज कर दिया था। एचसी ने कहा था कि हिजाब पहनना इस्लाम में एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है और संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत धर्म की स्वतंत्रता उचित प्रतिबंधों के अधीन है। एचसी ने 5 फरवरी को जारी सरकारी आदेश को भी बरकरार रखा था जिसमें सुझाव दिया गया था कि हिजाब पहनना उन सरकारी कॉलेजों में प्रतिबंधित किया जा सकता है जहां ड्रेस निर्धारित है। फैसला सुनाया कि कॉलेज की ड्रेस के मानदंडों के तहत इस तरह के प्रतिबंध संवैधानिक रूप से अनुमेय हैं।

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