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राष्ट्रीय

नए मसौदा कानून से ढह जाएगा पारिस्थितिकीय तंत्र, यह हमारा घर है प्रफुल पटेल का नहीं- लक्षद्वीप सांसद

Janjwar Desk
15 Jun 2021 3:23 PM IST
नए मसौदा कानून से ढह जाएगा पारिस्थितिकीय तंत्र, यह हमारा घर है प्रफुल पटेल का नहीं- लक्षद्वीप सांसद
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लक्षद्वीप के इकलौते सांसद पी.पी. मोहम्‍मद फैज़ल कहते हैं कि अगर नए मसौदा कानून को वापस लेने के लिए कदम नहीं उठाए गए तो द्वीपसमूह का नाज़ुक और विशिष्‍ट पारिस्थिति‍कीय तंत्र ढह जाएगा...

जनज्वार। अरब सागर में केरल के पश्चिम में हमेशा से प्रवालों, खाड़ि‍यों और अमनपसंद लोगों का शांत घर माने जाने वाले लक्षद्वीप के केंद्र शासित क्षेत्र ने अचानक से कुछ सप्‍ताह पहले से सुर्खियाँ बटोरी हुई हैं। लक्षद्वीप के नए प्रशासक प्रफुल खोदा पटेल द्वारा कदाचित एकतरफा ढंग से घोषित किए गए कई नए विकास अधिनियमों को लेकर एक व्‍यापक आंदोलन फूट चुका है।

लोकतंत्र की पुनर्स्‍थापना की माँग करते हुए इस द्वीप श्रृंखला के पंचायत सदस्‍यों और इकलौते सांसद पी.पी. मोहम्‍मद फैज़ल समेत इसके प्रतिनिधियों द्वारा 'असंवेदनशील' प्रशासक को वापस बुलाने के लिए चलाए जा रहे अभियान ने अब राष्‍ट्रीय स्‍तर पर गति पकड़ ली है। द हिंदू' के लिए एस. आनंदन ने मोहम्‍मद फैजल का एक साक्षात्‍कार लिया है, जिसका हिंदी उल्‍था प्रस्‍तुत है-

लक्षद्वीप के शांत राजनीतिक माहौल को नए 'विकास प्रस्तावों' ने क्‍यों खड़खड़ा दिया ?

श्रीमान् पटेल के आने से बहुत पहले से ही विकास परियोजनाएँ चल रही थीं। उदाहरण हेतु, सांसद के रूप में मेरे पहले कार्यकाल के दौरान जब हमें विशेषज्ञ चिकित्‍सकों की जरूरत थी, तो लक्षद्वीप में एक निश्चित अवधि के लिए चिकित्सकों को संविदा पर रखने के लिए हमने राष्‍ट्रीय स्‍वास्‍थ्‍य मिशन से मदद माँगी थी। अगत्‍ती द्वीप में कुछ विशेषज्ञों की सेवा उपलब्‍ध थी किंतु हम इसे पूरे कवरत्‍ती, एन्‍ड्रोट, अमीनी और मिनिकॉय द्वीपों में विस्‍तारित करना चाहते थे। 2 लाख रुपए मासिक अनुदान पेश किया गया और अनुभव की कसौटी पर छूट दी गई, किंतु प्रतिक्रिया उत्‍साहहीन थी।

अत: हमने नीति बदली और एक साल के लिए चिकित्‍सकों को नियुक्‍त करने के लिए चिकित्‍सालयों से निविदाएँ आमंत्रित कीं। इसने काम किया और 24 ⅹ 7 उपलब्‍ध रहने वाले 35 विशेषज्ञ हमें मिल गए। चिकित्‍सालय के आधारभूत संसाधनों और सुविधाओं में क्रमबद्ध ढंग से सुधार किया गया।

जब श्रीमान् पटेल पधारे तो इन निविदाओं की अवधि खत्‍म होने वाली थीं और उन्‍होंने किसी से विचार-विमर्श करने की परवाह किए बिना ही पुराने अलाभकारी तंत्र की ओर वापसी का आदेश दे दिया जिसने विशेषज्ञों की संख्‍या और उनकी 24 ⅹ 7 वाली उपलब्‍धता घटा दी है। और जमीनी वास्‍तविकताओं को समझने के लिए कितने दिन श्रीमान् पटेल ने द्वीपों में गुजारे हैं ? मुश्किल से 15 दिन !

दूसरा, चिकित्‍सकीय जरूरतों के लिए कोच्चि जाने वाले सभी द्वीपवासी लक्षद्वीप के लिए विशेष रूप से निर्धारित सर्वसमावेशी चिकित्‍सा बीमा योजना अंतर्गत आया करते थे। श्रीमान् पटेल ने इसे आयुष्‍मान भारत से प्रतिस्‍थापित कर दिया जिसने इस लाभ को सिर्फ बीपीएल परिवारों तक सीमित कर दिया है। और भी ज्‍यादा बदतर यह है कि कोच्चि के बहुत कम चिकित्‍सालय ही आयुष्‍मान भारत के तहत सूचीबद्ध किए गए हैं। इसका परिणाम यह है कि इलाज का खर्चा अब द्वीपवासियों पर आता है।

राष्‍ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद द्वारा कवरत्‍ती में 100 शैय्याओं वाले जिस चिकित्‍सालय की नींव रखी गई थी, उसका काम जब जिलाधिकारी ने लक्षद्वीप विकास प्राधिकरण विनियमन मसौदा (एलडीएआर) का हवाला देते हुए रुकवाया और संवाददाता सम्‍मेलन में दावा किया कि प्रशासन एक नया चिकित्‍सालय बना देगा, तब उसका काम 30 प्रतिशत पूरा हो गया था। सैकड़ों मजदूरों को हटा दिया गया है। प्रचंड महामारी के बीच लोगों को अकथनीय विपत्ति में पटक दिया गया है।

सभी मसौदा अधिसूचनाएँ अंग्रेजी में थीं और इन्‍हें लोगों की प्रतिक्रिया हेतु सिर्फ 20 दिनों के लिए इंटरनेट पर डाला गया था। ऐसी प्रचंड जल्‍दबाजी क्‍यों की गई थी ? जन प्रतिनिधियों को भी आम आदमी की जैसे ही इन प्रस्‍तावों का पता चला था। यद्यपि वे संघवाद के बारे में खूब बोलते हैं, लेकिन यहाँ संघीय व्‍यवस्‍था कहाँ है ?

तो जब इन सुधारों का मसौदा तैयार हुआ, तो कोई विचार-विमर्श न हुआ था ?

हमारे यहाँ द्विस्‍तरीय पंचायती व्‍यवस्‍था और जिला योजना समिति है जिसमें ग्राम पंचायतों के अध्‍यक्ष, सांसद, जिला पंचायत अध्‍यक्ष और सभासद और अधिकारी इसके सदस्‍य होते हैं। इन मसौदों पर कहीं चर्चा नहीं की गई। अपना कार्यकाल खत्‍म होने पर श्रीमान् पटेल तो वापस चले जाएँगे किंतु यह द्वीप हमारा है और हम ही यहाँ रहते हैं। लोकतंत्र का यह तकाजा है कि सुधारों पर हमारे साथ चर्चा की जाए।

लेकिन तर्क है कि अधिनियम अभी मसौदा रूप में ही हैं ...

गुंडा कानून (लक्षद्वीप असामाजिक गतिविधि निरोधक विनियमन) की मसौदा अधिसूचना दिसंबर में आई थी और मैं सुनिश्चित नहीं हूँ कि इसे मंत्रालय को अग्रेषित करने से पूर्व क्‍या लोगों की टिप्‍पणियाँ इसमें समाहित की गई थीं या नहीं। लक्षद्वीप पशु संरक्षण विनियमन (जो मुसलिम बहुसंख्‍यक द्वीपों में गौमांस को प्रतिबंधित करता है); लक्षद्वीप पंचायत विनियमन (जो लोकतांत्रिक ढंग से चुने गए प्रतिनिधियों के पंख कतरता है) - सभी को प्रेषित किया जा चुका है। सिर्फ एलडीआर ही कदाचित बचा हुआ है।

लेकिन क्‍या पिछले कुछ समय से इस पर काम नहीं होता रहा है ? तकरार यह है कि एकीकृत द्वीप प्रबंधन योजना (इंटेग्रेटेड आइलैंड मैनेजमेंट प्‍लान - आईआईएमपी) को ध्‍यान में रखते हुए 'समग्र विकास' हेतु द्वीप विकास एजेंसी गठित की गई थी।

केंद्रीय गृहमंत्री की अध्‍यक्षता वाली उस सलाहकार समिति का मैं सदस्‍य हूँ जो द्वीपों के समग्र विकास और केंद्र प्रायोजित योजनाओं का मूल्‍यांकन करती है। समिति में इन विनियमनों में से किसी पर चर्चा ही नहीं हुई है।

जहाँ तक आईआईएमपी की बात है, तो इसे स्‍वीकार किया जा चुका है और सरकार द्वारा अधिसूचित किया जा चुका है, जिसके आधार पर स्‍थानीय उद्यमियों ने कई प्रस्‍ताव पेश किए थे जो अभी कई सालों से पर्यटन विभाग के पास लंबित पड़े हुए हैं। जिलाधिकारी जो पर्यटन विभाग के अध्‍यक्ष होते हैं, वे स्‍थानीय उद्यमियों को अनुमति क्‍यों नहीं दे रहे हैं ?

लक्षद्वीप एक ऐसा स्‍थान है जहाँ अतिविशिष्‍ट लोग भी बिना किसी सुरक्षा के घूमते हैं। जिलाधिकारी ने यह कहते हुए इस द्वीप को बदनाम किया है कि एके-47 जब्‍त की गई हैं, मादक द्रव्‍यों की तस्‍करी का पता लगाया गया है। यह द्वीप समूह अंतर्राष्‍ट्रीय समुद्री इलाके से घिरा हुआ है जहाँ ये ज़ब्तियाँ हुई थीं। किंतु आज की तारीख़ तक एक भी द्वीपवासी इन घटनाओं से जुड़ा नहीं रहा है।

क्‍या इन कदमों के पीछे आप एक गुप्‍त मंशा इंगित कर रहे हैं ?

जब किल्‍तान के लोगों ने जिलाधिकारी के असंवेदनशील वक्‍तव्‍य का विरोध किया, तो कर्फ्यू का उल्‍लंघन करने के लिए उन्‍हें गिरफ्तार कर लिया गया। राजद्रोह के आरोप थोपने की भी कोशिश हुई थी। यह गुंडा अधिनियम को न्‍यायोचित ठहराने के लिए एक संगठित कार्यवाही थी। उनकी मंशा एलडीआर को लागू करना है लेकिन देखिए कि पूरी बहस को कैसे गौमांस पर प्रतिबंध लगाने और द्वीपों में शराब का सूत्रपात करने की ओर मोड़ दिया गया। कई सारे निहायत ही मूर्खतापूर्ण अनुच्‍छेद वाले एलडीएआर पर अगर बहस की जाती है, तो कोई भी पूछेगा कि जिस लक्षद्वीप के सबसे बड़े द्वीप का सतही इलाका सिर्फ 4.9 वर्ग किमी ही है, उसे किसी राजमार्ग या खदान की जरूरत क्‍यों है।

क्‍या आपको शक है कि कोई आबादी विहीन द्वीपों की जमीन पर नज़र गड़ाए है ?

इस मसले का मूल बिंदु यही है - जमीन। दशकों से द्वीपवासि‍यों ने पंडाराम की जमीन पर खेती की है और पंडाराम की जमीन के संदर्भ में दिसंबर, 2019 तक के सभी सौदों को अधिसूचित करने और वैध करने की कोशिश हुई थी। इसे गजट में अधिसूचित किया गया था और कब्‍ज़ा प्रदान करने के लिए कानून बनाया जाना जब अपने अंतिम चरण में था, तो श्रीमान् पटेल आए और सवाल किया कि आबादी रह‍ित द्वीपों पर लोगों के पास जमीन क्‍यों होनी चाहिए। एलडीएआर का गठन आबादीविहीन द्वीपों पर द्वीपवासियों के नियंत्रण वाली कृषि भूमि, निचली भूमि और अविकसित भूमि को लक्ष्‍य में रखकर किया गया है। पर्यटन विकास के नाम पर इन इलाकों को आसानी से हथि‍याया जा सकता है। यह जमीन को सरकारी तौर पर हड़पने और फिर पट्टे पर देने का एक तरीका है।

क्‍या द्वीपवासी पारिस्थितिकीय तौर पर जागरुक हैं ?

ये द्वीप प्रवालों से बने हैं जिन्‍हें बढ़ने में शताब्दियाँ लगती हैं। मालद के साथ तुलना त्रुटिपूर्ण है क्‍योंकि उसके पास असंख्‍य आबादी विहीन द्वीप हैं। लक्षद्वीप छोटा सा है और घना बसा हुआ है और कोई विकास आईआईएमपी के अनुकूल होना चाहिए। अगर आप विवेकहीन ढंग से ऐसा करेंगे, तो इस द्वीप का पारिस्थितिकीय तंत्र ढह जाएगा और यह हमारा घर है, पटेल जी का नहीं। बहुत बड़ी संख्‍या में द्वीपवासी समय के साथ इसकी पारिस्थितिकी की नाज़ुकता को लेकर जागरुक हो चुके हैं। सी क्‍यूकम्‍बर इन द्वीपों पर बड़ी संख्‍या में देखे जाते हैं और इनका अपशिष्‍ट प्रवाल खाते हैं। द्वीपवासी अब यह जानते हैं कि अगर बहुत ज्‍यादा दोहन किया जाता है, तो प्रवालों के अस्तित्‍व के लिए खतरा पेश करते हुए यह भोजन श्रृंखला टूट जाएगी।

अधिनियमों के अभी मसौदा रूप में होने पर भी यह आरोप लगाया गया है कि पंचायतों से शक्ति छीनी जा रही है।

लोगों की आजीविका और कल्‍याण में प्रत्‍यक्ष योगदान देने वाले कृषि, मत्‍स्‍य पालन और पशु पालन जैसे पाँच महत्‍वपूर्ण विभागों से पंचायतों को वंचित करके वे लोकतंत्र के सीने में खंजर घोप चुके हैं। हम राष्‍ट्रपति और प्रधानमंत्री को लिख चुके हैं। हम अदालत में भी लड़ने जा रहे हैं। हम अभी केंद्र की प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहे हैं। हम किसी दबाव के सामने सिर नहीं झुकाएँगे और परिणामों को झेलने के लिए तैयार हैं।

(यह इंटरव्यू 'द हिंदू' से लिया गया है। इसका हिंदी अनुवाद महात्मा गांधी केद्रीय विश्वविद्यालय बिहार के हिंदी विभाग के प्रोफेसर डॉ. प्रमोद मीणा के द्वारा किया गया है।)

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