Begin typing your search above and press return to search.
राष्ट्रीय

लोकमाता अहिल्याबाई होलकर के स्मृति दिवस पर महेश्वरी साड़ी बुनकरों को भी याद किया जाना चाहिए

Janjwar Desk
13 Aug 2022 2:16 PM GMT
लोकमाता अहिल्याबाई होलकर के स्मृति दिवस पर महेश्वरी साड़ी बुनकरों को भी याद किया जाना चाहिए
x

लोकमाता अहिल्याबाई होलकर के स्मृति दिवस पर महेश्वरी साड़ी बुनकरों को भी याद किया जाना चाहिए 

लोकमाता अहिल्याबाई होलकर जिन्होंने दुनिया में पहली बार 500 महिलाओं की एक सैन्य टुकड़ी बनाई जिसमें ज्वाला नामक तोप भी शामिल थी...

कमल उसरी की टिप्पणी

लोकमाता अहिल्याबाई होलकर जिन्होंने दुनिया में पहली बार 500 महिलाओं की एक सैन्य टुकड़ी बनाई जिसमें "ज्वाला" नामक तोप भी शामिल थी, उनकी सेना एक फ्रांसीसी सेनाधिकारी दादूरनेक द्वारा यूरोपीय पद्धति पर प्रशिक्षित की गई थी, जिसका नेतृत्व स्वयं लोकमाता अहिल्याबाई होलकर करती थी। अपने राज्य मालवा मे जनता को परेशान करने वाले डकैतो व पिंडारो को पकड़ने वाले गैर जाति के युवा से अपनी बेटी का विवाह किया और पिंडारो और डकैतों को सुधार कर उन्हें अपने सैन्य दल में शामिल किया। जिन पेशवाओं ने इनके ससुर की बहादुरी पर उन्हें मालवा की सूबेदारी दिया था।

वहीं पेशवा के विश्वस्त राघवा मालवा की संवृद्धि से प्रभावित होकर और अहिल्याबाई होलकर के ससुर, पति और बेटे की अल्पायु में मृत्यु हो जाने कारण मालवा को हड़पने की योजना बनाने लगा, जिसे अपनी कूटनीतिक रण कौशल से लोकमाता अहिल्याबाई होलकर ने हराया था, इनका जन्म चौंडी, जामखेड़ा, अहमदनगर, महाराष्ट्र में गांव के पटेल पिता मन्कोजी शिंदे जी के घर 31 मई 1725 में हुआ था, बारह वर्ष की आयु में मालवा के सूबेदार मल्हारराव होलकर के पुत्र खंडेराव होलकर से विवाह हुआ था, उन्तीस वर्ष में विधवा हो गई, फिर तैंतालीस वर्ष की उम्र में पुत्र मालेराव का देहान्त हो गया।


बासठ वर्ष की आयु में दौहित्र नत्थू चल बसा। चार वर्ष पीछे दामाद यशवन्तराव फणसे की मृत्यु हुई तो इनकी पुत्री मुक्ताबाई सती हो गई। दूर के सम्बन्धी तुकोजीराव के पुत्र मल्हारराव को राजपाट सौंपने का निश्चय किया, अपने ससुर मल्हार राव होल्कर के अटूट समर्थन के साथ अहिल्याबाई होल्कर ने नारी सशक्तिकरण का मार्ग प्रशस्त किया, 13 अगस्त 1795 में इंदौर (महेश्वर) में मृत्यु हो गई,

देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहते है कि- "जिस समय वह गद्दी पर बैठीं, वह 30 वर्ष की नौजवान विधवा थीं और अपने राज्य के प्रशासन में वह बड़ी खूबी से सफल रहीं वह स्वयं राज्य का कारोबार देखती थीं, उन्होंने युद्धों को टाला, शांति कायम रखी और अपने राज्य को ऐसे समय में खुशहाल बनाया, जबकि भारत का ज्यादातर हिस्सा उथल-पुथल की हालत में था इसलिए यह ताज्जुब की बात नहीं कि आज भी भारत में सती की तरह पूजी जाती हैं" |

लोकमाता अहिल्याबाई होलकर को आज इसलिए भी याद किया जाना चाहिए कि इन्होंने न केवल अपने राज्य में साहित्यिक क्षेत्र में कविवर मोरोपंत, खुशालीराम, अंनत फंदी जैसे महान लवानियां गायक को दरबारी रत्नो में शामिल किया बल्कि कन्याकुमारी से हिमालय तक और द्वारिका से पुरी तक़ अनेकानेक मंदिर घाट, कुएं, तालाब, बावड़ियां, धर्मशालाएं, काशी, मथुरा, गया, नासिक इत्यादि मंदिरों का जीर्णोद्धार भी करवाया था।

सन् 1766 में होलकर राज्य की राजधानी इंदौर से महेश्वर स्थानांतरित किया और धार्मिक रूप से सहिष्णु हिंदू धर्म की उपासिका होने के साथ ही वे मुस्लिम धर्म के प्रति भी अत्युदार थीं। इन्होंने महेश्वर में मुसलमानों को बसाया तथा मस्जिदों के निर्माण हेतू धन भी दिया। लोकमाता अहिल्याबाई होलकर ने महेश्वर में 5वी शताब्दी में अपनी दूरदर्शिता से राज्य के बाहर मांडू, गुजरात, कर्नाटक, हैदराबाद इत्यादि जगह से मुस्लिम समुदाय के बुनकरों को बुलाकर सन् 1767 में महेश्वर में कुटीर उद्योग स्थापित करवाया, जिसमें पहले केवल सूती साड़ियां ही बनाई जाती थी, परन्तु बाद में उच्च गुणवत्ता वाली रेशमी तथा सोने व चांदी के धागे से बनी साड़ियां भी बनाई जाने लगी।

ब्रिटिश साम्राज्यवाद की गुलामी और आज़ादी के बाद सरकारी सरंक्षण के आभव में बुनकर इस काम से दूर होने लगें, और माहेश्‍वरी साड़ियाँ जैसे गायब होने लगीं, लेकिन सन् 1979 में होल्‍कर वंश के रिचर्ड होल्‍कर और उनकी पत्‍नी सल्‍ली होल्‍कर ने जब रेहवा सोसायटी (एक गैर लाभकारी संगठन) की स्‍थापना की तो महेश्‍वर की गलियों में एक बार फिर करघे की खट-पट सुनाई देने लगी, कुल 8 करघों और 8 महिला बुनकरों के साथ शुरू हुई इस सोसायटी के साथ बुनकर जुड़ते गए और आज इस सोसायटी के दिल्‍ली और मुंबई में रिटेल आउटलेट हैं, चूंकि सोसायटी नॉन प्रोफिट संगठन है इसलिए इसके लाभ को बुनकरों और स्‍टाफ पर ही खर्च किया जाता है।


आज भी शिव मंदिर के आसपास छोट- छोटे घरों से हथकरघा पर माहेश्वरी साड़ी को बुनते हुए देखा जा सकता है, महेश्वर में लगभग तीन हज़ार से भी अधिक हैंडलूम है, जिसमें हजारों की संख्या में बुनकर और सहायक काम करते है। यहां 3 लघु हैंडलूम इकाइयां भी कार्यरत हैं, महेश्वर की साड़ियां जीवंत, चटकीले रंग, धारीदार या चेकनुमा बॉडर, खासढंग की किनारी, सुंदर डिजाइन,की वजह से दुनिया में पहचानी जाती है, माहेश्वरी साड़ी अक्‍सर प्लेन ही होती हैं, जबकि इसके बॉर्डर पर फूल, पत्ती, बूटी आदि की सुन्दर डिजाइन होती हैं, इसके बॉर्डर पर लहरिया (wave), नर्मदा (Sacred River), रुई फूल (Cotton flower), ईंट (Brick), चटाई (Matting), और हीरा (Diamond) प्रमुख हैं। पल्लू पर हमेशा दो या तीन रंग की मोटी या पतली धारियां होती हैं। इन साड़ियों की एक विशेषता इसके पल्लू पर की जाने वाली पाँच धारियों की डिजाइन- 2 श्वेत धारियाँ और 3 रंगीन धारियाँ (रंगीन-श्वेत-रंगीन-श्वेत-रंगीन) होती है। मूल माहेश्‍वरी साड़ी के 9 यार्ड लंबाई वाले अकेले पल्‍लू को तैयार करने में ही 3-4 दिन लग जाते हैं। वहीं पूरी साड़ी को तैयार करने में 3 से 10 दिन का वक्‍़त लग सकता है, महेश्वरी साड़ी दोनों तरफ़ से पहनी जा सकती हैं।


अलाउद्दीन अंसारी उर्फ़ अकील अन्ना जैसे महेश्वरी साड़ी कारीगरों को राष्ट्रीय स्तर पर बुनकर पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। लोकमाता अहिल्याबाई होलकर द्वारा स्थापित हजारों हुनरमंद बुनकरों और सैकड़ों व्यापारी वाले महेश्वरी साड़ी उद्योग जीएसटी की मार से आज बर्बाद हो रहा है। वर्तमान सरकार लोकमाता अहिल्याबाई होलकर को हिंदू प्रतीक के रूप में तो खूब इस्तेमाल कर रही है, लेकिन उनके द्वारा किए गए महिला सशक्तिकरण, शांतिपूर्ण तरीके से न्याययुक्त प्रशासन, जातिवाद विरोध, गंगा जमुनी तहजीब, रोजी, रोजगार सहित जनहित के सार्थक कामों का प्रचार प्रसार और सरंक्षण नही कर रही है।

Janjwar Desk

Janjwar Desk

    Next Story

    विविध