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जनज्वार विशेष

Madhya Pradesh में अब Adani Group के पास साल 2056 तक पावर ट्रांसमिशन का जिम्मा, सालाना 157 रुपए महंगी होगी बिजली

Janjwar Desk
20 Oct 2021 12:36 PM GMT
Madhya Pradesh में अब Adani Group के पास साल 2056 तक पावर ट्रांसमिशन का जिम्मा,  सालाना 157 रुपए महंगी होगी बिजली
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(मध्यप्रदेश : अडाणी ग्रुप के पास 2056 तक पावर ट्रांसमिशन का ठेका)

Madhya pradesh Power Transmision : अडाणी समूह को एमपी के 18 जिलों में ट्रांसमिशन नेटवर्क खड़ा करने लिए दिए गए ठेके पर सरकार का कहना है कि इससे प्रदेश में ट्रांसमिशन लाइन की क्षमता बढ़ेगी। इससे उपभोक्ताओं के पास सही वोल्टेज की लाइन पहुंचेगी।

Madhya pradesh Power Transmision : मध्यप्रदेश में कोयले की किल्लत से जहां राज्य में चौतरफा बिजली संकट है। वहीं सरकार ने पावर ट्रांसमिशन का ठेका उद्योगपति गौतम अडाणी (Gautam Adani) के समूह को दे दिया है। सरकारी कंपनी ग्रामीण विद्युतीकरण कॉरपोरशन (REC) ने मध्यप्रदेश में पावर ट्रांसमिशन-2 का ठेका 1200 करोड़ रुपए में अडाणी समूह को दिया है। अगले 35 साल तक यानी 2056 तक अडाणी समूह ट्रांसमिशन लाइन की देखरेख से संचालन तक जिम्मा अडाणी की कंपनी के पास होगा।

1700 करोड़ के प्रोजेक्ट में अडाणी को 500 करोड़ की छूट

ट्रांसमिशन लाइन के विस्तार बिड में एमपी की सरकारी पावर ट्रांसमिशन सहित अन्य कंपनियां भी शामिल हुई थीं। बिड की जितनी बोली लगाई गई उसमें से सबसे कम बोली 1200 करोड़ रूपए पर गौतम अडाणी की कंपनी अडाणी ट्रांसमिशन लिमटेड (ATL ) को मिली है। अडाणी कंपनी 2056 तक ट्रांसमिशन प्रोजेक्ट के निर्माण, स्वामित्व, संचालन और रखरखाव का काम करेगी। अडानी को इतने कम बोली पर बिड कैसे मिली ये तो सरकार ही बता सकती है।

अडाणी को ट्रांसमिशन लाइन प्रोजेक्ट में क्या क्या मिला

220 केवीए क्षमता के सब -स्टेशन - बेगमगंज रायसेन , बरगवान सिंगरौली, अजयगढ़ पन्ना, मानपुर उमरिया

132 केवीए सब स्टेशन - नरवार शिवपुरी, मेलुहआ चौराहा विदिशा, वीरपुर श्योपुर , MES ग्वालियर, कन्हैया शिवपुरी, कनेथर भिंड, केवलारी सिवनी, हर्रई छिंदवाड़ा, सिमरिया पन्ना, खैरा रीवा, देवन्द्र नगर पन्ना और बहोरीबंद कटनी।

पावर ट्रासंमिशन का काम

पावर प्लांटों से आपके घर तक जो बिजली पहुंचती है उसकी जिम्मेदारी पावर ट्रांसमिशन कम्पनियों की होती है। ऐसे समझिए की पावर प्लांट से बिजली पहले हजारों और लाखों वोल्ट के तारों के जरिए छोटे-छोटे सब स्टेशन पर बिजली भेजी जाती है। यहां से गांव और शहर के ट्रांसफार्मर से होते हुए घर तक बिजली जाती है। इसे ही पावर ट्रांसमिशन कहते हैं। मध्यप्रदेश में पावर ट्रांसमिशन का काम 'एमपी पावर ट्रांसमिशन' करती थी। वहीं अब पावर ट्रांसमिशन का काम अडाणी की (ATL) कंपनी करेंगी। कंपनी इसका खर्च बिजली वितरण कंपनियों से लेती थी और बिजली वितरण कंपनियां ये पैसा चार्ज के नाम पर उपभोक्ता से लेती थी। अब अडाणी की (ATL ) कंपनी बिजली वितरण कंपनियों से अधिक चार्ज वसूलेगी। इसका मप्र के ग्रामीण उपभोक्ताओं अधिक असर होगा।

सरकार का तर्क

अडाणी समूह (Adani Group) को एमपी के 18 जिलों में ट्रांसमिशन नेटवर्क खड़ा करने लिए दिए गए ठेके पर सरकार का कहना है कि इससे प्रदेश में ट्रांसमिशन लाइन की क्षमता बढ़ेगी। इससे उपभोक्ताओं के पास सही वोल्टेज की लाइन पहुंचेगी।

हर साल कंपनी को देने पड़ेंगे 157 रुपये

कंपनी को हर साल ट्रासंमिशन लाइन (Power Transmission Line) का उपयोग करने के एवज में विद्युत वितरण कंपनियों से 250 करोड़ रुपए के लगभग भार पड़ेगा। विद्युत वितरण कंपनियां ये रकम आम उपभोक्ताओं को महंगी बिजली करके जुटाएंगी। सूबे के 1.59 करोड़ उपभोक्ताओं को औसतन 157 रुपए सालाना और अधिक देना होगा।

ट्रांसमिशन लाइन की क्षमता का 32 प्रतिशत ही उपयोग

ऊर्जा मामलों के जानकार आरके अग्रवाल (RK Agrawal) के मुताबिक मध्यप्रदेश में 31 मार्च 2020 तक 287 सब स्टेशन 132KV के थे। इनकी कुल क्षमता 29 हजार 831 MVA की थी। मतलब इस ट्रांसमिशन नेटवर्क से 27 हजार मेगावाट बिजली की सप्लाई आराम से की जा सकती थी। वर्तमान में कुल क्षमता 31 हजार 743 MVA की हो चुकी है। अगर अडाणी द्वारा स्थापित ट्रांसमिशन लाइन 900 MVA को जोड़ दे तो 32 हजार MVA हो जाएगी। इससे 30 हजार मेगावाट बिजली सप्लाई हो सकती है। अभी प्रदेश में औसतन 8 से 10 हजार मेगावाट की खपत होती है। रबी की फसल के सीजन में अधिकतम मांग 17 हजार मेगावाट तक पहुंच सकती है। प्रदेश में बिजली उत्पादन की क्षमता 22 हजार 607 मेगावाट की है।

रिटायर इंजीनियर ने लिखा सीएम शिवराज को पत्र

रिटायर इंजीनियर आरके अग्रवाल ने इस मामले में सीएम शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chouhan) को पत्र लिखा है। पत्र में उन्होंने प्रदेश में ट्रासंमिशन कम्पनी के नेटवर्क और उसके अधिकतम उपयोग का डाटा साझा करते हुए नए अनुबंध को गैर वाजिब बताया है। उन्होंने पत्र में लिखा कि अभी ट्रांसमिशन की जितनी क्षमता है उतनी बिजली तो मध्यप्रदेश में बनती ही नहीं है। निजी क्षेत्र के हाथ में पावर ट्रांसमिशन का काम देना मतलब आम उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त शुल्क बढ़ाना है।

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