Mahatma Gandhi Jayanti : महिलाओं के बारे में महात्मा गांधी के विचार
Mahatma Gandhi Jayanti जनज्वार। देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी महिलाओं (Womens) को पुरुष के मुकाबले अधिक शक्तिशाली और सुदृढ़ मानते थे । महिलाओं के अधिकारों के मामले में आज जो भी वातावरण है। उसकी नींव गांधी ने बहुत पहले ही रख दी थी। महिलाओं के प्रति उनके ऐसे विचार, उनके लेखों तथा व्याख्यान में अनेक बार प्रकट हुए। एक बार महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) ने कहा था, 'अबला पुकारना महिलाओं की आंतरिक शक्ति को दुत्कारने जैसा है।'
गांधी के महिलाओं के बारे में स्पष्ट विचार
महात्मा गांधी (Gandhi Jayanti) का कहना था, 'मैं बेटे और बेटियों के साथ बिलकुल एक जैसा व्यवहार करूंगा। जहां तक स्त्रियों के अधिकार का सवाल है, मैं कोई समझौता नहीं करूंगा। नारी पर ऐसा कोई कानूनी प्रतिबंध नहीं लगाना चाहिए जो पुरुषों पर ना लगाया गया हो। नारी को अबला कहना उसकी मानहानि करना है। स्त्री और पुरुष एक दूसरे के पूरक है। आपसी सहयोग के बिना दोनों का अस्तित्व असंभव है। स्त्री पुरुष की सहचरी है। उसकी मानसिक शक्तियां पुरुष से जरा भी कम नहीं है।'
गांधी कहते थे, 'यदि मैं स्त्री रूप में पैदा होता तो मैं पुरुष द्वारा थोपे गए हर अन्याय का जमकर विरोध करता।' महात्मा गांधी ने कहा, 'दहेज को खत्म करना है, तो लड़के लड़कियों और माता-पिता उनको जाति बंधन तोड़ने होंगे। सदियों से चली आ रही बुराइयों को खोजना होगा और उन्हें नष्ट करना होगा। जागरूक स्त्रियों का विशेषाधिकार होना चाहिए।'
अपनी पत्नी और माँ को प्रेरणा माना
महात्मा गांधी की महिलाओं के बारे में जो सोच है। उसे उनकी आत्मकथा 'सत्य के साथ मेरे प्रयोग' के तौर पर ज्यादातर जोड़कर देखा गया। उस दौर में भी उनकी सोच महिलाओं के सशक्तिकरण (Women Empowerment) को लेकर जितने सदृढ़ थी, वह इस दौर के लोगों के लिए एक मिसाल है। आज के समाज में बापू (Bapu) के विचारों को फिर से याद करने का समय है।
महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) ने यह स्वीकार किया था कि उन्हें अहिंसा और सत्याग्रह (Satyagreh) के मार्ग पर चलने की प्रेरणा अपनी मां और पत्नी से मिली। महात्मा गांधी अपने मां और पत्नी को अपनी शक्ति के रूप में मानते थे। पत्नी कस्तूरबा (Kasturba) उस उस समय की पत्नियों से अलग थीं। उनकी सोच काफी अलग थी। वह भी गांधी के साथ उनके इस विचार को सहयोग देती और उनके कार्यों में कंधे से कंधा मिलाकर चलती थीं। महात्मा गांधी का मानना है, कि दांडी मार्च और सत्याग्रह महिला कार्यकर्ताओं की वजह से ही सफल हो पाया था।
महिलाओं को समाज के बंधनों को तोड़ना होगा
गांधी महिलाओं को सशक्तिकरण (Empowerment) का विषय नहीं बनाना चाहते थे बल्कि उनका मानना था कि महिलाएं स्वयं इतने सबल हैं कि खुद का ही नहीं बल्कि संपूर्ण मानव जाति के कल्याण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। उनका कहना था कि अगर महिलाओं को आजाद होना है, तो उन्हें निडर बनना होगा। परिवार और समाज के बंधनों को तोड़ते हुए थोपे गए अन्याय (Injustice) का विरोध करना होगा और यही ताकत उन्हें जुल्मों से मुक्ति दिला सकती है। समाज में एक नई पहचान बनाने की हिम्मत दे सकती है। महात्मा गांधी ने भाषणों में कई बार कहा कि जिन्हें हम अबला मानते हैं वह अगर सबला बन जाए तो हर असहाय शक्तिशाली हो जाएगा।
प्रगति के लिए शिक्षा को आधार बनाना होगा
उस समय महिलाओं का औसत जीवन काल सिर्फ 27 से 30 साल तक का होता था। उस समय डिलीवरी के बाद अक्सर महिलाओं की मौत हो जाती थी। महिलाओं की शिक्षा (Women Education) का स्तर भी केवल 2 फ़ीसदी था। उस समय पर्दा प्रथा भी चलन में थी। महिलाओं को किसी भी पुरुष के सामने पर्दे में रहने क रिवाज था। साथ ही अकेले बाहर जाने की मनाही थी। उसके साथ किसी पुरुष पर जाना अनिवार्य माना जाता था। यह सभी चीजें महिलाओं को आगे बढ़ने से रोक रही थी।
गांधी ने महसूस किया कि, जब तक महिलाओं को इन बंधनों से मुक्त न किया जाए, जब तक उन्हें शिक्षित ना किया जाए, तब तक हमरा समाज प्रगति नहीं कर सकता। इसलिए उन्होंने अपने भाषणों और कार्य में हमेशा महिलाओं को महत्वपूर्ण स्थान दिया और देश की प्रगति में महिलाओं को अहम भूमिका निभाने के लिए सदैव प्रेरित करते रहे।
महात्मा गांधी ने महिलाओं की छवि को बदलने के लिए व्यापक प्रयास किए। उनका कहना था कि महिलाएं पुरुषों के हाथ का खिलौना नहीं है और ना ही उनके प्रतिद्वंदी है। महिला और पुरुषों में आत्मा एक ही है और उनके समस्याएं भी एक जैसे हैं। महात्मा गांधी ने महिलाओं के शिक्षित होने पर सबसे ज्यादा जोर दिया। क्योंकि यही वह आधार था जो महिलाओं को पुरुषों के बराबर ले जाकर खड़ा कर सकता था।
उनका मानना था कि महिलाएं ज्ञान, विनम्रता, धैर्य, त्याग और विश्वास की मूर्ति है महात्मा गांधी ने जिस अहिंसा का उपदेश दिया। उस में सहन शक्ति का होना अनिवार्य है और यह चीज महिलाओं का एक प्रमुख गुण है। गांधी ने द्रौपदी, सावित्री और दमयंती जैसे रोल मॉडल्स का जिक्र करके लोगों को बताया कि महिलाएं कभी कमजोर नहीं हो सकती।
महिलाओं के नेतृत्व का करते थे समर्थन
महात्मा गांधी ने कांग्रेस की महिला नेतृत्व को प्रोत्साहन दिया और हर आंदोलन में उनकी सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की। वर्ष 1921 में जब महिलाओं के मतदान का मुद्दा उठाया गया था तो महात्मा गांधी ने इसका भरपूर समर्थन किया। 2 मई 1936 के हरिजन में भी गांधी ने देश की शिक्षा पर अपना दृष्टिकोण व्यक्त करते हुए स्पष्ट रूप से यह विचार सामने रखा, कि स्त्री इतनी सशक्त हो जाए कि अपने पति को भी 'न' कहने में संकोच ना हो।
गांधी के विचार में महिलाओं को अपने अधिकारों और कर्तव्यों का ज्ञान होना चाहिए और उन्हें सशक्त बनना है, तो इसकी पहल परिवार से ही करनी होगी। गलत बातों को जब तक वह सहेगी, उसके साथ जुल्म होता रहेगा। गांधी ने कहा था, जिस दिन एक महिला रात में सड़कों पर स्वतंत्र रूप से चलने लगेगी उस दिन हम कह सकते हैं कि भारत ने स्वतंत्रता हासिल कर ली है।