Marital Rape : पत्नी के साथ जबरन सेक्स अपराध है या नहीं? दिल्ली HC का आज फैसला, जानिए रेप और मेरिटल रेप में क्या है फर्क?
Marital Rape : पत्नी के साथ जबरन सेक्स अपराध है या नहीं? दिल्ली HC का आज फैसला, जानिए रेप और मेरिटल रेप में क्या है फर्क?
Marital Rape : दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) आज भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवादों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला जारी करेगा। आईपीसी की धारा 375 एक व्यक्ति द्वारा अपनी पत्नी के साथ जबरन सेक्स को रेप के अपराध से छूट देता है। केंद्र सरकार को जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस सी हरिशंकर की बेंच ने 21 फरवरी को अपना लिखित बयान देने के लिए और वक्त देने से इनकार कर दिया था। यह याचिकाओं पर सुनवाई की आखिरी तारीख की थी। बता दें कि बेंच ने कहा था कि हम इसे बंद कर रहे हैं। फैसला सुरक्षित है। 2 मार्च को निर्देशों की लिस्ट आएग। इस बीच पक्षकारों के वकील अपनी लिखित दलीलें और संकलन दाखिल कर सकते हैं।
यह पूरा मामला
भारतीय दंड संहिता की धारा 375 रेप के अपराध को परिभाषित करती है, जबकि इस सेक्शन में पुरानी मानसिकताओं को हटाने, सहमति के महत्व पर जोर देने और सभी प्रासंगिक सेक्सुअल एक्ट्स को कवर करने के लिए संशोधन किया गया है, फिर भी यह एक पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ किया गैर- सहमति वाले यौन संबंध के लिए एक अपवाद को बरकरार रखता है।
सीनियर एडवोकेट रेबेका जॉन ने न्याय मित्र (कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ) के रूप में उन्होंने बताया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 में बलात्कार के अपराध को क्या माना जाता है। उन्होंने बताया कि महिला की सहमति 375 में मौलिक है और इसलिए हम इसे दूर नहीं कर सकते हैं। इस 'वैवाहिक बलात्कार अपवाद' को दिल्ली हाईकोर्ट में इस आधार पर चुनौती दी गई है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून द्वारा समान व्यवहार का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) सहित विवाहित महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
इन दोनों देश में मैरिटल रेप चर्चाओं में हैं। रेप को जहां बड़ा अपराध माना जाता है, वहीं मैरिटल रेप को अभी अपराध की श्रेणी में रखने या ना रखने को लेकर बहस हो रही है। मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में रखने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका भी दायर की गई है, जिस पर सुनवाई चल रही है। हाल ही में हाई कोर्ट में जवाब देते हुए इस याचिका के खिलाफ केंद्र सरकार की ओर से कहा गया है कि मैरिटल रेप को आधार के श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। इससे विवाह के संस्था और अस्थिर हो सकती है। इसके अलावा पतियों को सताने के लिए पत्नियां इसका एक आसान औजार के रूप में प्रयोग कर सकती है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि रेप और मैरिटल रेप में क्या फर्क है और विवाह संस्था से इसका क्या संबंध है।
जानिए रेप और मैरिटल रेप में क्या है फर्क
रेप : आईपीसी की धारा 375 के मुताबिक कोई व्यक्ति अगर किसी महिला के साथ उसकी इच्छा के विरुद्ध या उसकी मर्जी के बिना संबंध बनाता है तो वह रेप कहा जाएगा। महिला की सहमति से संबंध बनाया गया हो लेकिन यह सहमति उसकी हत्या, उसे नुकसान पहुंचाने या फिर उसके किसी करीबी के साथ ऐसा करने का डर दिखाकर हासिल की गई हो तो यह भी रेप होगा। महिला के मर्जी से संबंध बनाया गया हो लेकिन सहमति देते वक्त महिला की मानसिक स्थिति ठीक नहीं हो या फिर, वह नशे में हो और उस सहमती के नतीजे को समझने की स्थिति में ना हो, तो रेप होगा। इसके अलावा महिलाओं की उम्र अगर 16 साल से कम है तो उसकी मर्जी से या उसकी सहमति के बिना बनाया गया संबंध रेप है। हालांकि पत्नी अगर 15 साल से कम की हो तो पति का उसके साथ संबंध बनाना रेप नहीं है।
मैरिटल रेप : आईपीसी में रेप की परिभाषा तो तय की गई है लेकिन उसमें मैरिटल रेप या वैवाहिक बलात्कार के बारे में कोई जिक्र नहीं है। आईपीसी की धारा 376 रेप के लिए सजा का प्रावधान करती है। आईपीसी की इस धारा में पत्नी से रेप करने वाले पति के लिए सजा का प्रावधान है। बशर्ते पत्नी 12 साल से कम उम्र की हो। इसमें कहा गया है कि 12 साल से कम उम्र की पत्नी के साथ पति अगर बलात्कार करता है तो उस पर जुर्माना या उसे 2 साल तक की कैद या फिर दोनों सजाएं दी जा सकती हैं।
यानी धारा 375 और 376 के प्रावधानों के अनुसार संबंध बनाने के लिए सहमति देने की उम्र 16 वर्ष है, लेकिन 12 साल से बड़ी उम्र की पत्नी की सहमति या असहमति का रेप से कोई लेना देना नहीं है। वहीं घर के अंदर महिलाओं के यौन शोषण के लिए 2005 में घरेलू हिंसा कानून लाया गया था। यह कानून महिलाओं को घर में यौन शोषण से संरक्षण देता है। इसमें घर के भीतर यौन शोषण को परिभाषित किया गया है।
हिंदू मैरिज एक्ट : हिंदू विवाह अधिनियम पति और पत्नी के लिए एक दूसरे के प्रति कई जिम्मेदारियां तय करता है। इनमें संबंध बनाने का अधिकार भी शामिल है। कानूनन यह माना गया है कि शारीरिक संबंध बनाने से इनकार करना क्रूरता है। इस आधार पर तलाक भी मांगा जा सकता है।