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Maulana Abul Kalam ने मौजूदा सांप्रदायिक खतरों को 75 वर्ष पहले कर लिया था महसूस

Janjwar Desk
12 Nov 2021 3:13 PM IST
Maulana Abul Kalam ने मौजूदा सांप्रदायिक खतरों को 75 वर्ष पहले कर लिया था महसूस
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राष्ट्रीय एकता के प्रबल हिमायती थे मौलाम अब्दुल कलाम। 

मैं दृढ़ता के साथ मुसलमानों से कहना चाहूंगा कि यह उनका कर्तव्य है कि वे हिंदुओं के साथ प्रेम और भाईचारे का रिश्ता कायम करें। ताकि हम आगे चलकर एक सफल राष्ट्र का निर्माण कर सकें।

जनज्वार। मौलाना अबुल कलाम आजाद ( Maulana Abul Kalam ) आज से 75 वर्ष पूर्व भी हिन्दू मुस्लिम साझा संकृति के हिमायतियों के लिए प्रेररणास्रोत थे और आज भी उनके विचार गंगा—जमुनी तहजीब की मिसाल पेश करते हैं। भारत-पाकिस्तान की खिंची जा रही सीमा रेखा के दौरान ही कलाम साहब ने भविष्य में बंग्लादेश के गठन से लेकर मौजूदा राजनीतिक हालात के पैदा होने का अंदेशा जता दिया था। ऐसे में आज उनके वे विचार मूल्यों की प्रासंगिकता पहले से ज्यादा बढ़ गई है।

वर्तमान में हम लोग एक ऐसे दौर में खड़े हैं जहां धार्मिक उन्मादियों की कट्टरता देश को खंडित करने में लगी हैं।जिसकी शुरूआत अघोषित तौर पर सर्वप्रथम लोकतांत्रिक अधिकारों को छिनते हुए की जा चुकी है। आज लोकतांत्रिक देश में गाय, गोबर, धार्मिक जेहाद, लव जेहाद जैसे भावनात्मक मुददों को उछालकर सियासतदान अपनी राजनीति की रोटी सेकने में कामयाब होते नजर आ रहे है। ऐसे समय में मौलाना अबुल कलाम आजाद के अमूल विचार राष्ट्रीय एकता के लिए बड़ा हथियार साबित हो सकता है।

मौलाना अब्दुल कलाम ( Maulana Abul Kalam ) एक प्रसिद्ध भारतीय मुस्लिम विद्वान जिसकी पहचान कवि, लेखक, पत्रकार और भारतीय स्वतंत्रता सेनानी के रूप में रही। हम बात कर रहे हैं मौलाना अबुल कलाम आजाद की। 11 नवंबर, 1888 को भारतीय मूल के परिवार में सउदी अरब के मक्का में जन्में मौलाना साहब का परिवार बाद के दिनों में कोलकता में आकर रहने लगे थे।

राष्ट्रीय एकता के सवाल पर देश को एकजुट

सार्वजनिक जीवन में उतरने के साथ ही आजाद ने स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रीय एकता को सबसे जरूरी हथियार बताया। साल 1921 को आगरा में दिए अपने एक भाषण में उन्होंने कहा, मैं यह बताना चाहता हूं कि मैंने अपना सबसे पहला लक्ष्य हिंदू-मुस्लिम एकता रखा है। मैं दृढ़ता के साथ मुसलमानों से कहना चाहूंगा कि यह उनका कर्तव्य है कि वे हिंदुओं के साथ प्रेम और भाईचारे का रिश्ता कायम करें ताकि हम आगे चलकर एक सफल राष्ट्र का निर्माण कर सकें। उनके लिए स्वतंत्रता से भी ज्यादा महत्वपूर्ण थी राष्ट्र की एकता।

1923 में कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में अपने अध्यक्षीय संबोधन में उन्होंने ( Maulana Abul Kalam ) कहा था कि आज अगर कोई देवी स्वर्ग से उतरकर भी यह कहे कि वह हमें हिंदू-मुस्लिम एकता की कीमत पर 24 घंटे के भीतर स्वतंत्रता दे देगी, तो मैं ऐसी स्वतंत्रता को त्यागना बेहतर समझूंगा। स्वतंत्रता मिलने में होने वाली देरी से हमें थोड़ा नुकसान तो जरूर होगा, लेकिन अगर हमारी एकता टूट गई तो इससे पूरी मानवता का नुकसान होगा। एक ऐसे दौर में जब राष्ट्रीयता और सांस्कृतिक पहचान को धर्म के साथ जोड़कर देखा जा रहा था, उस समय मौलाना आज़ाद एक ऐसे राष्ट्र की परिकल्पना कर रहे थे जहां धर्म, जाति, सम्प्रदाय और लिंग किसी के अधिकारों में आड़े न आने पाए।

मुस्लिम लीग के अलग द्विराष्ट्रवार का किया था विरोध

हिंदू-मुस्लिम एकता के पैरोकार मौलाना आजाद कभी भी मुस्लिम लीग की द्विराष्ट्रवादी सिद्धांत के समर्थक नहीं बने। उन्होंने खुलकर इसका विरोध किया। 15 अप्रैल, 1946 को कांग्रेस अध्यक्ष मौलाना आजाद ने कहा कि मैंने मुस्लिम लीग की पाकिस्तान के रूप में अलग राष्ट्र बनाने की मांग को हर पहलू से देखा और इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि यह फैसला न सिर्फ भारत के लिए नुकसानदायक साबित होगा बल्कि इसके दुष्परिणाम खुद मुसलमानों को भी झेलने पडेंगे। यह फैसला समाधान निकालने की जगह और ज्यादा परेशानियां पैदा करेगा।

मौलाना आजाद ने बंटवारे को रोकने की हरसंभव कोशिश की। साल 1946 में जब बंटवारे की तस्वीर काफी हद तक साफ होने लगी और दोनों पक्ष भी बंटवारे पर सहमत हो गए, तब मौलाना आजाद ने सभी को आगाह करते हुए कहा था कि आने वाले वक्त में भारत इस बंटवारे के दुष्परिणाम झेलेगा।

पाकिस्तान के टूटने की कर दी थी भविष्यवाणी

मौलाना आजाद ने पाकिस्तान के संबंध में कई और भविष्यवाणियां भी पहले ही कर दी थीं। उन्होंने पाकिस्तान बनने से पहले ही कह दिया था कि यह देश एकजुट होकर नहीं रह पाएगा। राजनीतिक नेतृत्व की जगह सेना का शासन चलेगा। यह देश भारी कर्ज के बोझ तले दबा रहेगा। पड़ोसी देशों के साथ युद्ध के हालातों का सामना करेगा। यहां अमीर-व्यवसायी वर्ग राष्ट्रीय संपदा का दोहन करेंगे और अंतरराष्ट्रीय ताकतें इस पर अपना प्रभुत्व जमाने की कोशिशें करती रहेंगी।

उन्होंने कहा था कि नफरत की नींव पर तैयार हो रहा यह नया देश तभी तक जिंदा रहेगा जब तक यह नफरत जिंदा रहेगी, जब बंटवारे की यह आग ठंडी पडने लगेगी तो यह नया देश भी अलग-अलग टुकडों में बंटने लगेगा। मौलाना ने जो दृश्य 1946 में देख लिया था, वह पाकिस्तान बनने के कुछ सालों बाद ही 1971 में सच साबित हो गया। आखिरकार पूर्वी पाकिस्तान के अगल रूप में बंग्लादेश का गठन दुनिया के सामने आया। इसी तरह मौलाना ने भारत में रहने वाले मुसलमानों को भी यह सलाह दी कि वे पाकिस्तान की तरफ पलायन न करें। उन्होंने मुसलमानों को समझाया कि उनके सरहद पार चले जाने से पाकिस्तान मजबूत नहीं होगा बल्कि भारत के मुसलमान कमजोर हो जाएंगे।

उन्होंने कहा था कि वह वक्त दूर नहीं जब पाकिस्तान में पहले से रहने वाले लोग अपनी क्षेत्रीय पहचान के लिए उठ खडे होंगे और भारत से वहां जाने वाले लोगों से बिन बुलाए मेहमान की तरह पेश आने लगेंगे। मौलाना ने मुसलमानों से कहा था कि भले ही धर्म के आधार पर हिंदू तुमसे अलग हों लेकिन राष्ट्र और देशभक्ति के आधार पर वे अलग नहीं हैं। वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान में तुम्हें किसी दूसरे राष्ट्र से आए नागरिक की तरह ही देखा जाएगा। कलाम साहब महात्मा गांधी के खिलाफत आंदोलन का प्रमुख चेहरा थे। जब खिलाफत आंदोलन छेड़ा गया तो उसके प्रमुख लीडरों में से एक आजाद भी थे। खिलाफत आंदोलन के दौरान उनका महात्मा गांधी से सम्पर्क हुआ। उन्होंने अहिंसक नागरिक अवज्ञा आंदोलन में गांधीजी का खुलकर समर्थन किया और 1919 के रॉलट ऐक्ट के खिलाफ असहयोग आंदोलन के आयोजन में भी अहम भूमिका निभाई। महात्मा गांधी उनको ज्ञान सम्राट कहा करते थे।

कन्या शिक्षा के हिमायती

पंडित जवाहरलाल नेहरू की कैबिनेट में 1947 से 1958 तक मौलाना अबुल कलाम आजाद शिक्षा मंत्री रहे। 22 फरवरी, 1958 को हृदय आघात से उनका निधन हो गया। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया। उन्होंने आईआईटी, आईआईएम और यूजीसी (यूनिवर्सिटी ग्रांट कमिशन) जैसे संस्थानों की स्थापना में उल्लेखनीय भूमिका निभाई। उनके योगदानों को देखते हुए 1992 में उनको भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया और उनके जन्मदिन को भारत में नैशनल एजुकेशन डे यानी राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाया जाता है। खास बात यह है कि जिस शिक्षा के अधिकार को लेकर बाद की सरकारों ने तमाम दावे किए, वे केन्द्रीय सलाहकार शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष होने के नाते और एक शीर्ष निकाय के तौर पर अबुल कलाम आजाद ने सरकार से केन्द्र और राज्यों दोनों के अलावा विश्वविद्यालयों में, खासतौर पर सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा, 14 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों के लिए निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा, लड़कियों की शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण और तकनीकी शिक्षा जैसे सुधारों की सिफारिश की थी।

अबुल कलाम आजाद ने निःशुल्क शिक्षा, भारतीय शिक्षा पद्धति, उच्च शिक्षा संस्थानों की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने शिक्षा और संस्कृति को विकसित करने के लिए संगीत नाटक अकादमी (1953), साहित्य अकादमी (1954) और ललित कला अकादमी (1954) जैसी उत्कृष्ट संस्थानों की स्थापना की। मौलाना मानते थे कि ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय शिक्षा में सांस्कृतिक सामग्री काफी कम रही और इसे पाठयक्रम के माध्यम से मजबूत किए जाने की जरूरत है।

तकनीकी शिक्षा के मामले में अबुल कलाम आजाद ने 1951 में अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद ( खड़गपुर ) की स्थापना की और इसके बाद श्रृंखलाबद्ध रूप में मुंबई, चेन्नई, कानपुर और दिल्ली में आईआईटी की स्थापना की गई। स्कूल ऑफ प्लानिंग और वास्तुकला विद्यालय की स्थापना दिल्ली में 1955 में हुई। इसके अलावा मौलाना आजाद को ही विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना का श्रेय जाता है। वह मानते थे कि विश्वविद्यालयों का कार्य सिर्फ शैक्षिक कार्यों तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसके साथ-साथ उनकी समाजिक जिम्मेदारी भी बनती है।

उन्मादी ताकतों से लड़ने में उनके विचार कारगर

प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता डा. जनार्दन सिंह का कहना है कि आज अबुल कलाम आजाद के विचार बड़े हथियार के रूप में साबित हो सकते हैं। जिससे सांप्रदायिक व उन्मादी ताकतों का मजबूती से मुकाबला किया जा सकता है। राष्ट्रीय एकता के लिए समर्पित मौलाना अबुल कलाम आजाद का जीवन भारतवासियों के लिए सबसे बड़ी प्रेरणा स्रोत है। आज सांप्रदायिकता ताकतों से मुकाबला के लिए जरुरी है कि हम सब उनके विचारों को आत्मसात करें।

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