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Mi-17V5 Helicopter Crash : कुन्नूर में हेलिकॉप्टर हादसे वाली जगह से मिला ब्लैक बॉक्स, खुल सकते हैं हादसे के राज

Janjwar Desk
9 Dec 2021 1:11 PM IST
Army Helicopter Crash : पिछले 5 साल में 15 सैन्य हेलीकॉप्टर हुए क्रैश, लोकसभा में सरकार ने बताएं आंकड़े
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पिछले 5 साल में 15 सैन्य हेलीकॉप्टर हुए क्रैश

ब्लैक बॉक्स बिना बिजली के भी 30 दिन तक काम करता रहता है। जब यह बॉक्स किसी जगह पर गिरता है तो प्रत्येक सेकेंड एक बीप की आवाज/तरंग लगातार 30 दिनों तक निकालता रहता है। इसकी आवाज को 2 से 3 किलोमीटर की दूरी से पहचान लिया जाता है। मजेदार बात यह है कि यह 14000 फीट गहरे समुद्री पानी के अन्दर से भी संकेतक भेजता रहता है।

Mi-17V5 Helicopter Crash : तमिलनाडु के कुन्नूर में वायुसेना के हेलिकॉप्टर Mi-17 के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद सशस्त्र बलों के सामने सबसे बड़ा सवाल ये है कि भारत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत जैसे एक महत्वपूर्ण व्यक्तियों को ले जाने वाला एक हेलिकॉप्टर कैसे दुर्घटनाग्रस्त हो गया? अब इस हादसे की वजह सामने आ सकती है। ऐस इसलिए कि घटनास्थल से ब्लैक बॉक्स बरामद हो गया है।

ब्लैक बॉक्स से मिलेगी इस बात की जानकारी

ब्लैक बॉक्स से यह जानकारी मिलेगी की तकनीकी खराबी या खराब मौसम में से किस वजह से दुर्घटना हुई। यदि सब कुछ सामान्य था, तो एक संभावना यह है कि हेलिकॉप्टर कुन्नूर के पास था, यह नीचे उड़ रहा होगा या पहाड़ी में बादलों के बीच दब गया होगा। हेलिकॉप्टर में एक ब्लैक बॉक्स होगा और उसके अध्ययन से दुर्घटना के कारणों पर अधिक जानकारी मिल सकती है। हादसे के बाद से ही ब्लैक बॉक्स और फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर की तलाश चल रही थी। ब्लैक बॉक्स हेलीकॉप्टर की अंतिम उड़ान स्थिति और अन्य पहलुओं के बारे में डेटा बता सकता है।

वहीं डिफेंस एक्सपर्ट मेजर जनरल एसपी सिन्हा ने टाइम्स नाउ से बातचीत में बताया कि हेलीकॉप्टर क्रैश होने के आठ संभावित कारण बताएं हैं। प्री फ्लाइट चेकअप, पायलट एरर, टेक्निकल फेलियर, नेविगेशन एरर, विजिबिलिटी कम होना, क्लाउड इफेक्ट और वायर ऐंगल जैसे कारण इस क्रैश के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। इसके साथ ही एक्सट्रा फ्यूल भी क्रैश का कारण बन सकता है।

उठ रहे हैं ये सवाल

फिलहाल, सवाल उठ रहे हैं कि Mi-17 V-5 हेलीकॉप्टर को बहुत सुरक्षित माना जाता है। इसलिए इसे पीएम समेत अन्य वीवीआईपी यूज करते हैं। इसमें डबल इंजन होता है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि यदि यह हेलीकॉप्टर इतना सुरक्षित है तो आखिर यह हादसा कैसे हो गया। क्या इस हादसे की वजह तकनीकी गड़बड़ी है या कुछ और। इसके अलावा जानकारों का मानना है कि कुन्नूर में हुए इस हादसे की वजह कोहरा और सही दृश्यता नहीं होना भी हो सकती है। इसमें तकनीकी गड़बड़ी का आशंका बहुत कम है।

क्या होता है ब्लैक बॉक्स?

'ब्लैक बॉक्स' हर किसी प्लेन का सबसे जरूरी हिस्सा होता है। ब्लैक बॉक्स सभी प्लेन में रहता है चाहें वह पैसेंजर प्लेन हो, कार्गो या फाइटर. यह वायुयान में उड़ान के दौरान विमान से जुडी सभी तरह की गतिविधियों को रिकॉर्ड करने वाला उपकरण होता है। इसे या फ्लाइट डाटा रिकॉर्डर भी कहा जाता है। आम तौर पर इस बॉक्स को सुरक्षा की दृष्टि से विमान के पिछले हिस्से में रखा जाता है. ब्लैक बॉक्स बहुत ही मजबूत मानी जाने वाली धातु टाइटेनियम का बना होता है और टाइटेनियम के ही बने डिब्बे में बंद होता है ताकि ऊंचाई से जमीन पर गिरने या समुद्री पानी में गिरने की स्थिति में भी इसको कम से कम नुकसान हो।



कैसे करता है काम

दरअसल 'ब्लैक बॉक्स' में दो अलग-अलग तरह के बॉक्स होते हैं

1. फ्लाइट डाटा रिकॉर्डर

इसमें विमान की दिशा, ऊँचाई (altitude) , ईंधन, गति (speed), हलचल (turbulence), केबिन का तापमान इत्यादि सहित 88 प्रकार के आंकड़ों के बारे में 25 घंटों से अधिक की रिकार्डेड जानकारी एकत्रित रखता है। यह बॉक्स 11000°C के तापमान को एक घंटे तक सहन कर सकता है जबकि 260°C के तापमान को 10 घंटे तक सहन करने की क्षमता रखता है। इस दोनों बक्सों का रंग काला नही बल्कि लाल या गुलाबी होता है जिससे कि इसको खोजने में आसानी हो सके।

2. कॉकपिट वोइस रिकॉर्डर

यह बॉक्स विमान में अंतिम 2 घंटों के दौरान विमान की आवाज को रिकॉर्ड करता है. यह इंजन की आवाज, आपातकालीन अलार्म की आवाज , केबिन की आवाज और कॉकपिट की आवाज को रिकॉर्ड करता है; ताकि यह पता चल सके कि हादसे के पहले विमान का माहौल किस तरह का था।

कैसे करता है काम 'ब्लैक बॉक्स'




ब्लैक बॉक्स बिना बिजली के भी 30 दिन तक काम करता रहता है। जब यह बॉक्स किसी जगह पर गिरता है तो प्रत्येक सेकेंड एक बीप की आवाज/तरंग लगातार 30 दिनों तक निकालता रहता है। इस आवाज की उपस्थिति को खोजी दल द्वारा 2 से 3 किलोमीटर की दूरी से ही पहचान लिया जाता है। इसके एक और मजेदार बात यह है कि यह 14000 फीट गहरे समुद्री पानी के अन्दर से भी संकेतक भेजता रहता है।

'ब्लैक बॉक्स' का इतिहास

ब्लैक बॉक्स का इतिहास 50 साल से भी ज्यादा पुराना है। दरअसल 50 के दशक में जब विमान हादसों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही थी तो 1953-54 के करीब एक्सपर्ट्स ने विमान में एक ऐसे उपकरण को लगाने की बात की जो विमान हादसे के कारणों की ठीक से जानकारी दे सके ताकि भविष्य में होने वाले हादसों से बचा जा सके। इसी को देखते हुए विमान के लिए ब्लैक बॉक्स का निर्माण किया गया। शुरुआत में इसके लाल रंग के कारण 'रेड एग' के नाम से पुकारा जाता था। शुरूआती दिनों में बॉक्स की भीतरी दीवार को काला रखा जाता था, शायद इसी कारण इसका नाम ब्लैक बॉक्स पड़ा।

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