महाराष्ट्र के ठाणे से उत्तर जोगदंड की टिप्पणी
जनज्वार। पुणे (महाराष्ट्र) में एक व्यक्ति द्वारा 'मोदी मंदिर' बनाए जाने और दूसरे ही दिन उस जगह से मोदी मूर्ति के हटाये जाने से संबन्धित समाचार आपने विगत दो-तीन दिनों में शायद पढ़ लिया होगा। इसे आप 'अंधभक्ति', 'मूर्खता', 'पागलपन', अंधविश्वास, मान कर शायद नज़रअंदाज़ कर सकते हैं। लेकिन इस प्रकार नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। ऊपरी तौर पर भले ही यह 'अंधभक्ति', 'मूर्खता', 'पागलपन', अंधविश्वास लग रहा हो, इस के पीछे संघ परिवार की एक गहरी चाल हो सकती है जिस की उन के द्वारा इस बार आज़माइश की गयी है। कुछ विरोध हो जाने के कारण उन्हों ने फ़िलहाल मोदी मूर्ति को यद्यपि हटाया है, अपनी गलतियाँ सुधार कर वे यह प्रयास किसी अन्य जगह दुबारा जरूर कर सकते हैं।
मोदी मंदिर बनाने की संकल्पना का अवलंब क्यों किया गया और क्यों किया जाएगा, इस बारे में अब चर्चा करते हैं:
1) इस देश का प्रधानमंत्री कैसा 'नहीं' होना चाहिए इस की मिसाल नरेंद्र मोदी द्वारा समय समय पर पेश की गयी है। इस कारण मोदी जी की लोकप्रियता, प्रतिमा और साख काफी गहराई तक नीचे गिर चुकी है और उन्हें कठोर आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। साथ ही, सभी मोर्चों पर देश की काफी अधोगति हो चुकी है और होना जारी है। इस स्थिति को देखते हुए उन्हें प्रधानमंत्री पद से हटा देना और देश के विनाश को रोकना ही उचित कदम है। लेकिन देश हित की अपेक्षा मोदी जी की साख, प्रतिमा को सँवारना 'परिवार' को ज्यादा महत्वपूर्ण लग रहा है।
2) नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री अवश्य है, लेकिन वे केवल नश्वर मनुष्यप्राणी ही है। इस कारण, उन पर हो रही आलोचना को रोकना 'परिवार' के बस के बाहर हो रहा है। प्रधानमंत्री के कार्य की आलोचना करना हर भारतीय नागरिक का भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त मूलभूत अधिकार भी है। अतः, आलोचना को रोकना काफी मुश्किल हो रहा है। ऐसी स्थिति में अगर मोदी जी को देवत्व बहाल किया जाये तो 'देव', 'ईश्वर' कोई गलती कर ही नहीं सकते और देव के कर्मों पर प्रश्न नहीं पूछे जा सकते, इस धारणा का लाभ क्यों न लिया जाए, यह विचार 'परिवार'ने अवश्य किया होगा। (इस 'परिवार'के लोग नथुराम गोडसे का मंदिर बनाने में भी रुचि रखते हैं।)
3) 'बोलने' के मौलिक संवैधानिक अधिकार का दमन करने हेतु इसी संविधान द्वारा प्रदत्त 'आस्था' के मौलिक अधिकार का उपयोग चालाकी से करना, यह 'मोदी मंदिर' निर्माण का उद्देश्य है यह स्पष्ट होता है। ताकि, एक बार अगर मोदी ईश्वर बन जाते हैं तो वे कुछ लोगों की आस्था का विषय बन जाते हैं। और उन की आलोचना करना मतलब, आस्था को आहत करना! आस्था आहत हो जाने के बाद अगला कदम है भारतीय दंड संहिता की धारा 153 ए और 295 ए के अनुसार मुकदमें दायर करना। इस प्रकार, बोलने के अधिकार की छुट्टी!
4) मोदी मंदिर के निर्माण पर भाजपा और संघ परिवार द्वारा जो प्रतिक्रियाएँ व्यक्त की गयी है उन का ऊपरी तौर पर अवलोकन किया जाये तो यह प्रतीत होता है की वे इस मंदिर निर्माण से तो पल्ला झाड़ रहे हैं। (जैसा गांधी हत्या प्रकरण में झाड़ा था!) लेकिन किसी व्यक्ति द्वारा एक नश्वर मनुष्यप्राणी को देवत्व बहाल करना, उसका मंदिर बनाया जाना इस बात का 'भावना' के नाम पर समर्थन ही कर रहे हैं।
5) कहा जाता है की सैकड़ों लोगों द्वारा इस मंदिर में आ कर मोदी मूर्ति का दर्शन किया गया है। देश में आसानी से उल्लू बनने वाले भोले लोगों की तादाद तो विशाल है। अगर मोदी जी को देवत्व बहाल किया जाता है तो ये भोले भाले लोग देश के अलग अलग हिस्से में मोदी मंदिर बनाएँगे। मोदी मंदिर में मन्नतें माँगी जाएंगी। ग्रामीण इलाकों में तो मुर्गा, बकरे की बली भी मोदी मंदिर में चढ़ाई जाएगी। किसी ओझा, भगत, बाबा के शरीर में मोदी भगवान प्रवेश करें और भूत-प्रेत-टोना-टोटका आदि के इलाज करें यह भी संभव हो सकता है। करोना देवी मंदिर के बारे में आप ने सुना ही होगा। तो इस देश में कुछ भी संभव है।
6) विश्व जब विज्ञान में प्रगति की बुलंदी हासिल कर रहा है तब देश की भोली भाली जनता के मानसिकता का लाभ उठा कर उन्हें अंधविश्वास में लीन करना ये बात तो देश को दो सौ साल पीछे ले जाने वाली हैं। इतना ही नहीं, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 ए में उल्लिखित 'वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें' इस मौलिक कर्तव्य का हनन करने वाली भी है।
7) इस मंदिर का विरोध अन्य प्रमुख पार्टियां, संगठनों द्वारा जितना कड़ाई से होना आता, उतना नहीं किया गया है। क्यों की, शायद, आस्था के बारे में ये संघटन कुछ बोलना नहीं चाहते। इस से यह साबित होता है की मोदी मंदिर को आस्था का विषय बनाने की चाल कामयाब हो सकती है।
8) अगर इसे रोका नहीं जाता तो आस्था के नाम पर कई लोग अपनी अपनी आस्था के अनुसार अपने अपने प्रिय व्यक्ति को देवत्व बहाल करने आगे आ जाएंगे। नए नए 'देवों', 'देवियों' के मंदिर बनने शुरू हो जाएंगे और इस पर नियंत्रण पाना बहुत मुश्किल हो जाएगा। देश की मूलभूत समस्याओं पर बोलना लोग बंद करेंगे, आस्था के नाम पर मंदिरों के बाज़ार शुरू होगे। 21वीं सदी के भारत की यह तस्वीर विवेकी लोगों को बेचैन करने वाली है।
व्यक्तिगत भावना, आस्था के नाम पर ये जो हो रहा है (बल्कि किया जा रहा है) उसे रोकना बहुत आवश्यक है। क्योंकf अपने राजनीतिक, धार्मिक स्वार्थ के लिए ये किया जा रहा है। यह चाल हमारे देश के लिए खतरनाक है। अतः, अपने व्यक्तिगत, पक्षीय, धार्मिक, वैचारिक मतभेदों को दूर रख कर, सब लोगों द्वारा इकट्ठे हो कर इस का विरोध किया जाना चाहिए।