Modi @ 8 Schemes : मोदी सरकार के 8 साल और 8 योजनाओं का खेल, सब के सब फेल
Modi @ 8 Schemes : मोदी सरकार के 8 साल और 8 योजनाओं का खेल, सब के सब फेल
मोदी सरकार के 8 साल पूरे होने पर सौमित्र रॉय का विश्लेषण
Modi @ 8 Schemes : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के आज 8 साल (Modi @ 8 Schemes) पूरे हो गए। इससे पहले कि मैं उनकी सरकार के पहले और अब तक के दूसरे कार्यकाल के बारे में कुछ लिखूं, कुछ दिलचस्प अंकगणितीय जानकारियां बताता हूं। 26 मई 2014 को नरेंद्र मोदी ने देश के 14वें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी। 26 के दोनों अंकों को जोड़ें तो जोड़ आता है 8 और अगले आम चुनाव के साल 2024 के अंकों को जोड़ें तो भी 8 का ही योग मिलेगा। अपने पहले और दूसरे कार्यकाल में मोदी सरकार ने 8 फ्लैगशिप कार्यक्रम (Modi @ 8 Schemes) लागू किए। कुल मिलाकर उनकी सरकार के लिए 8 का आंकड़ा बहुत महत्व रखता है और आगे भी रखेगा।
अमूमन किसी भी सालगिरह पर कुछ खरीदने, जश्न मनाने की परंपरा है। लेकिन अपने कार्यकाल के 8 साल पूरे होने से एक दिन पहले केंद्रीय कैबिनेट ने सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी हिंदुस्तान जिंक के बाकी बचे शेयर भी बेचने का फैसला कर लिया। इस कंपनी को बेचने की शुरुआत 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान हुई थी, जब वेदांता समूह ने कंपनी के 26 फीसदी शेयर खरीदे थे। बाद में वेदांता ने अपनी हिस्सेदारी 65% तक बढ़ा ली। बुधवार को सरकार ने बाकी बचे 29.5% शेयर भी बेचने को मंजूरी दे दी। सरकार को इससे 39385 करोड़ से ज्यादा मिलने की उम्मीद है और यह पैसा देश की ढहती अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए जरूरी है।
यह है 8 फ्लैगशिप कार्यक्रमों का हाल
1. प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना- प्रधानमंत्री ने 2018 में इसे आयुष्मान भारत के नाम से शुरू किया था, जिसमें देश के 10.74 करोड़ लोग जुड़े हैं। कोविड महामारी की पहली और दूसरी लहर में जब इस योजना की सबसे कठिन परीक्षा होनी थी, तब अस्पताल में दाखिल केवल 12% मरीजों को ही आयुष्मान भारत के तहत 5 लाख रुपए तक का मुफ्त इलाज उपलब्ध हुआ। यह हाल भारत जैसे उस देश का है, जहां हर साल 6.3 करोड़ लोग सिर्फ इसलिए गरीबी की रेखा के नीचे चले जाते हैं, क्योंकि महंगा इलाज करवाते उनका सब-कुछ बिक चुका होता है। बावजूद इसके, सरकार ने इसी साल मार्च में संसद में झूठ बोला कि धनराशि के अभाव में किसी भी लाभार्थी को योजना के लाभ से वंचित नहीं किया गया है।
2. उज्ज्वला योजना: 2016 में शुरू हुई इस योजना के तहत 2019 तक 9 करोड़ गरीब परिवार की महिलाओं के नाम गैस कनेक्शन उपलब्ध कराया गया है। लेकिन असलियत यह है कि एलपीजी के दाम में बेतहाशा बढ़ोतरी के चलते लगभग 2 करोड़ परिवारों ने गैस सिलेंडरों की या तो रीफिलिंग ही नहीं करवाई या फिर साल में केवल एक बार ही सिलेंडर खरीदा है। इस कड़वी सच्चाई से वाकिफ मोदी सरकार ने इसी महीने गैस सिलेंडर पर 200 रुपए की सब्सिडी देने का ऐलान किया है, जबकि इसी सरकार ने कांग्रेस सरकार से एलपीजी पर मिल रही सब्सिडी छीनी थी।
3. जन-धन योजना- लाल किले से 15 अगस्त 2014 को शुरू की गई योजना के तहत देश में 44 करोड़ से ज्यादा खाते खोले गए हैं। जन-धन योजना के तहत खोले गए कुल खातों में से 86% खाते ही चालू हैं। केवल मध्यप्रदेश की बात करें तो बीते एक साल में ऐसे खातों की संख्या 28 से बढ़कर 30 लाख हो गई है, जिसमें एक रुपया भी जमा नहीं है। जनवरी 2020 तक बैंकिंग कर्ज में कमजोर तबके की हिस्सेदारी 0.27% घट गई है। राज्य में बैंकों के कुल लोन में कमजोर तबके की हिस्सेदारी भी घटकर 22.63% रह गई है। साफ है कि मोदी सरकार की नोटबंदी के बाद से देश की अर्थव्यवस्था को जो झटका लगा है, उसने लोगों की जिंदगी बजाय बेहतर बनाने के, उन्हें और भी गरीब कर दिया है।
4. किसान सम्मान निधि योजना- प्रधानमंत्री ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किया था, लेकिन बदले में उन्होंने किसानों को 2000 रुपए की तीन किस्तों में सालाना 6000 रुपए देना शुरू किया, जिसे उन्होंने सम्मान निधि बताया है। फरवरी 2019 के बजट में इस योजना का ऐलान करने के बाद से सरकार अभी तक 1.8 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा की सम्मान राशि बांट चुकी है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े बताते हैं कि 2019 के मुकाबले 2020 में किसानों की आत्महत्याओं के मामलों में 18% की बढ़ोतरी हुई है। मोदी सरकार के तीनों कृषि कानूनों के वापस लेने के बाद भी मंडियों के बंद होने और किसानों को उनकी उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य न मिलने की शिकायतें मीडिया की सुर्खियों में बनी हुई हैं।
5. बीमा और पेंशन योजनाएं- प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा (PMJJBY) और प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (PMSBY) की शुरुआत 2015 में हुई थी। इसके साथ ही बुजुर्गों के लिए अटल पेंशन योजना भी शुरू की गई। लेकिन जीवन ज्योति और सुरक्षा बीमा योजना के साथ शर्त यही है कि बीमे के नवीनीकरण के लिए बैंक खाते में 342 रुपए का बैलेंस होना ही चाहिए, अन्यथा बीमे का कवर नहीं मिलेगा। जन-धन योजना के तहत खोले गए कुल खातों में से 36.86 करोड़ यानी 86% खाते ही चालू हैं। दिसंबर 2021 तक देश में ऐसे 3.65 करोड़ ऐसे बैंक खाते थे, जिनमें एक रुपया भी जमा नहीं था। दोनों आंकड़ों को अगर जोड़ लें तो 12 करोड़ से ज्यादा खाते या तो बंद हैं या उनमें बैलेंस नहीं होने के कारण खाता धारकों को बीमा लाभ नहीं मिल पा रहा है। साफ है कि मोदी सरकार की वित्तीय समवेशीकरण की नीति 'सबका साथ, सबका विकास' कर पाने में नाकाम रही है।
6. सभी के लिए आवास- किसानों की आय दोगुनी करने के दावे की तरह ही 2022 तक सभी के लिए आवास की प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत सरकार ने मई 2022 तक 1.23 करोड़ मकानों के निर्माण को मंजूरी दी है, जिनमें से 98.4 लाख मकान बनकर तैयार हैं। हालांकि उनमें से भी 58.7 लाख मकानों (करीब 50%) की ही हकदारी सौंपी जा सकी है। योजना की धीमी गति को देखते हुए सरकार ने पिछले दिसंबर में योजना के ग्रामीण हिस्से को 2024 तक आगे बढ़ाने की स्वीकृति दी थी। दोनों ही योजनाएं अपने लक्ष्य से काफी पीछे है। अब शहरी हिस्से को भी 2 साल बढ़ाए जाने की संभावना है।
7. स्वच्छ भारत- खुले में शौच से मुक्त भारत के जिस दावे के साथ प्रधानमंत्री ने 2014 में कुर्सी संभालने के बाद स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की थी, उसकी हवा सरकार के ही राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) ने निकाल दी है। इससे पता चला है कि भारत में प्रत्येक पांच में से एक परिवार खुले में शौच करता है। मोदी सरकार ने दो साल पहले मई में भी देश को खुले में शौच से मुक्त घोषित कर दिया था, लेकिन अब पता चला है कि सरकार का यह दावा कागजी था, क्योंकि जमीनी हकीकत अलग है। देश में 83% लोगों को ही शौचालय की सुविधा हासिल है। शहरों के मुकाबले ग्रामीण इलाकों में हालात इससे भी बुरे हैं।
8. प्रधानमंत्री मुद्रा योजना- छोटे उद्यमियों के लिए शुरू की गई इस योजना का हाल यह है कि वित्त मंत्री ने बीते 8 अप्रैल को यह बताया कि 34 करोड़ से ज्यादा लाभार्थियों को योजना के तहत 18.60 लाख करोड़ का लोन बांटा गया है। जमीनी हकीकत यह है कि जून 2021 तक सरकारी बैंकों से बांटे गए मुद्रा लोन में से 20% डूब चुके हैं, यानी बैंकों ने इसे NPA मान लिया है। महाराष्ट्र में तो यह 31% तक पहुंच चुका है, जबकि झारखंड में यह 36% के आसपास है। असल में मोदी सरकार की 2016 में नोटबंदी ने छोटे और मझोले उद्योगों की कब्र खोद दी है। इसे देखते हुए मुद्रा लोन के डिफॉल्टरों का ताजा आंकड़ा और भी चौंकाने वाला हो सकता है।
कुल मिलाकर मोदी सरकार के 8 वर्षीय कार्यकाल (Modi @ 8 Schemes) में आंकड़ों के सहारे श्रेय लेने का खेल तो जोरों से चल रहा है, लेकिन जमीनी हकीकत को देखें तो एकाध को छोड़कर बाकी सारी योजनाएं परिणाम लक्षित हासिल करने के मामले में फेल हैं। शायद इसी को देखते हुए मोदी सरकार ने सब-कुछ दुरुस्त करने के मकसद से 140 करोड़ अवाम से और 25 साल मांगे हैं। देखना यह है कि तिमाही में फेल विद्यार्थी को जनता क्या अंतिम परीक्षा में भाग लेने देगी ?