Begin typing your search above and press return to search.
विमर्श

मोरबी की जनता ने दीवाली के बाद नहीं जलाये दीपक, शादियों में नहीं बज रहे बैंड-बाजे लेकिन पीएम मोदी के प्रचार में नहीं कोई बदलाव

Janjwar Desk
2 Nov 2022 11:14 PM IST
मोरबी की जनता ने दीवाली के बाद नहीं जलाये दीपक, शादियों में नहीं बज रहे बैंड-बाजे लेकिन पीएम मोदी के प्रचार में नहीं कोई बदलाव
x
Morbi bridge collapse: गुजरात के मोरबी में केबल ब्रिज गिरने की घटना से सारे देश में एक नई चर्चा जन्म ले चुकी है। इस चर्चा का एक पहलू यह है कि जो सैकड़ों मौतों के जिम्मेदार और असली गुनहगार हैं, क्या उनको सजा मिलेगी और दूसरा पहलू यह है कि इस घटना के बाद भी क्या हम नींद से जागे हैं।

दत्तेश भावसार की टिप्पणी

Morbi bridge collapse: गुजरात के मोरबी में केबल ब्रिज गिरने की घटना से सारे देश में एक नई चर्चा जन्म ले चुकी है। इस चर्चा का एक पहलू यह है कि जो सैकड़ों मौतों के जिम्मेदार और असली गुनहगार हैं, क्या उनको सजा मिलेगी और दूसरा पहलू यह है कि इस घटना के बाद भी क्या हम नींद से जागे हैं। मोरबी में हुई घटना की बात करें तो इस पुल की मरम्मत का काम जिस कंपनी ने किया था उस कंपनी के पास ऐसा पुल बनाने जैसे काम का कोई अनुभव नहीं था और न ही विशेषज्ञ व्यक्ति थे, जोकि इतने पुराने और ऐतिहासिक पुल की मरम्मत कर सकें। फिर भी ऐसी कंपनी को काम दिया गया जोकि इसे करने के लिए बिल्कुल भी सक्षम नहीं थी।

आरोप लग रहे हैं कि भाजपा सरकार में बैठे लोगों से नज़दीकियों के कारण मोरबी पुल का ठेका ओरेवा कंपनी को दिया गया, जबकि ओरेवा कंपनी घड़ी बनाती है, केलकुलेटर बनाती है और मच्छर मारने के रैकेट बनाती है, लेकिन कंस्ट्रक्शन के मामले में इनके पास कोई अनुभव नहीं था। मोरबी में घटी इस घटना के बाद जिम्मेदार लोगोंके खिलाफ कार्यवाही करने का और उन्हें जेल में डालने का दबाव सरकार पर लगातार बन रहा है। मोरबी के पुल टूटने की घटना जिसने सैकड़ों लोगों यानी 150 से भी ज्यादा लोगों की जान ली, उसकी जड़ में जायें तो सबसे बड़ी कोताही मोरबी नगरपालिका के चीफ ऑफिसर की ओर से की गई दिखती है।

मोरबी पुल की ओपनिंग बहुत बड़े कार्यक्रम में पत्रकार वार्ता करने के बाद की गयी थी। उसके बाद हर रोज लगभग चार हजार लोग उस पुल पर पुल को देखने के लिए जा रहे थे, लेकिन मोरबी नगरपालिका ने उस पुल को चेक करने की जहमत तक नहीं उठाई, जबकि यह नगरपालिका का प्राथमिक काम है कि उसकी मिल्कियत वाली जगह पर रिपेयरिंग काम कैसा हुआ है, वह लोगों को नुकसान पहुंचाने वाला तो नहीं है, पुल कितना वजन वहन कर सकता है, उस पुल का कंप्लीशन सर्टिफिकेट आया कि नहीं आया, ऐसी कई बातें सामने आ रही हैं, जोकि गहरे भ्रष्टाचार को निमंत्रण देती प्रतीत होती हैं।

इस घटना के बाद मोरबी के साथ-साथ पूरे गुजरात में माहौल गमगीन हो चुका है। मोरबी शहर में इस दुखद घटना के बाद दुखी लोगों ने दीवाली के लिए लगायी लाइटें भी अपने घरों से उतार दीं, ताकि जिन घरों में मातम पसरा हुआ है वह लोग रोशनी देखकर ज्यादा दुखी ना हों। मोरबी और आसपास के इलाकों में पिछले 4 दिनों से जो शादियां भी हो रही हैं, बहुत साधारण तरीके से हो रही हैं। इस दुख—तकलीफ की घड़ी में पीड़ितों की तकलीफों को समझते हुए लोग बिना बैंड बाजे के बहुत ही सिंपल तरीके से शादियां कर रहे हैं। जहां एक तरफ सौराष्ट्र के जाने माने संत जलाराम बापा की जयंती के उपलक्ष्य में लोहाना समाज ने अपने सारे कार्यक्रम स्थगित किए और गम के माहौल में सिर्फ पूजा अर्चना ही की, वहीं हमारे चुनावजीवी प्रधानमंत्री गुजरात में ही कई जनसभाओं में अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनवाते नजर आये।


राजनीतिक मसलों पर दिलचस्पी रखने वाले गणेश भाई कहते हैं, 'ऐसे गमगीन माहौल में भी हमारे प्रधानमंत्री जिनके गृहराज्य में इतनी बड़ी त्रासदी हुयी है, लाशों के ढेर बिछे हैं, वह चुनावी सभाओं में उज्ज्वला योजना के फायदे गिनवाते रहे, मुफ्त वैक्सीन दवाइयों के गुणगान गाते रहे। संवेदनहीनता का आलम ये रहा कि उनको गुजरात में हुई मौतों का भी ख्याल न रहा। यह तक कि गुजरात के मुख्यमंत्री लाव लश्कर के साथ कच्छ के रण में जाने वाले हैं। हादसे वाले दिन और उसके बाद भी BJP के कई नेताओं ने स्नेह मिलन का कार्यक्रम भी आयोजित किया था। घटना के 10 दिन पहले मोरबी में झूलता पुल आपको विकास की तरफ ले जा रहा है ऐसे बैनर भी लगाए गए थे। प्रधानमंत्री के दौरे को लेकर मोरबी की सिविल अस्पताल को सजाया गया था। नए बेड बिस्तर लाए गए नए कलर लगाए गए। नए कूलर लगाए गए। अस्पताल में गिरी हुई छत की मरम्मत की गई, ताकि पीएम मोदी के फोटो सेशन में कोई खराब चीज न दिखे। सोचने वाली बात यह है कि 400 लोगों के जीवन को बचाने के लिए मोरबी जिले में कोई व्यवस्था नहीं थी, घटना के बाद अगल-बगल के 6 जिलों में से सहायता बुलाई गई। यह गुजरात की ट्रिपल इंजन की सरकार का कड़वा सत्य है।

इस हादसे के लिए जिम्मेदार ओरेवा कंपनी और कंपनी के मालिक जयसुख पटेल को बचाने के लिए सारा सरकारी अमला लगा हुआ है। FIR दर्ज करके कुछ लोगों की गिरफ्तारियां की गयी हैं, लेकिन वह लोग सिक्योरिटी गार्ड, टिकट क्लर्क और ठेके पर रखे हुए लोग थे। सामान्य लोगों का मानना है कि छोटी मछलियों को तो पकड़ा गया, जो कि अपने आकाओं के आदेश का पालन करते हैं, लेकिन गिरफ्तार हुए लोगों के आकाओं तक पुलिस अभी तक नहीं पहुंची है। ओरेवा कंपनी की नज़दीकियां सत्ता पक्ष से हैं, इससे कोई इनकार नहीं कर सकता इसलिए शायद तफ्तीश इमानदारी से हो ऐसा नहीं दिख रहा।


इस सिक्के की दूसरी तरफ यह भी है कि गुजरात में कई जगहों पर ऐसे ही घटनाएं अतीत में हो चुकी हैं। सौभाग्यवश उनमें जानहानि नहीं हुई, लेकिन जानहानि से इनकार नहीं किया जा सकता था। पूर्वांचल एक्सप्रेस के कंस्ट्रक्शन के काम को देखा और जनज्वार ने उस मुद्दे को कवर भी किया था, जिसका उद्घाटन होने के 5 दिन बाद ही एक्सप्रेस वे का एक हिस्सा ढह गया। गुजरात की बात करें तो अहमदाबाद में मेट्रो का काम चालू था, उसमें भी अचानक से एक ब्रिज गिर चुका थां अहमदाबाद के थलतेज में भी यह घटना दूसरी बार हो गई है, वहां पर भी निर्माणाधीन पुल गिर चुका हैं नर्मदा केनाल की बात करें तो कच्छ जिले में नर्मदा केनाल को चालू किए 24 घंटे भी नहीं बीते थे कि केनाल का कुद हिस्सा ताश के पत्तों की तरह बह गया और कैनाल 25 से 30 मीटर टूट गईं

बनासकांठा में भी नर्मदा केनाल का कोज़वे अचानक से टूट गया, जबकि बोरसद में हाईवे का ओवर ब्रिज अचानक से भरभरा कर गिर चुका है। नर्मदा जिले के रामपुर की बात करें तो वहां भी भारी बारिश से एक पुल टूटने की घटना सामने आई थी। भुज के नजदीक भुजोड़ी के ओवर ब्रिज का निर्माण 12 साल चला, लेकिन वह ब्रिज पूरी तरह से 2 महीने तक भी नहीं चल पाया था और ब्रिज का एक हिस्सा टूट गया था।

गुजरात में भ्रष्टाचार की बात करें तो कोई ऐसी जगह नहीं बची होगी, जहां लोगों के जानमाल से खिलवाड़ ना किया गया हो। भ्रष्टाचार में लिप्त सारे के सारे अधिकारी इन सब मामलों में खानापूर्ति करके किसी भी व्यक्ति को आज तक कटघरे में खड़ा नहीं कर पाए। गुजरात के मोरबी नगरपालिका में भी बीजेपी का शासन है, यानी यहां ट्रिपल इंजन सरकार है। गुजरात विधानसभा में भी बीजेपी का शासन है और केंद्र सरकार में भी बीजेपी का शासन है। ट्रिपल इंजन की सरकार होने के बावजूद डेढ़ सौ लोगों की हादसे में मृत्यु हो जाती है तो इसको एक्ट ऑफ गॉड तो नहीं माना जा सकता, निश्चित तौर पर भाजपा के 27 सालों के राज में यह एक्ट ऑफ फ्रॉड है।

Janjwar Desk

Janjwar Desk

    Next Story

    विविध