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Power Shortage In India : देश में गहराता बिजली संकट, मौसम ही दिला पाएगा अब इससे निजात, मांग के मुकाबले कम आपूर्ति से मचा हाहाकार

Janjwar Desk
28 April 2022 12:00 PM IST
Power Shortage In India : देश में गहराता बिजली संकट, मौसम ही दिला पाएगा अब बिजली संकट से निजात, मांग के मुकाबले कम आपूर्ति से मचा हाहाकार
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Power Shortage In India : देश में गहराता बिजली संकट, मौसम ही दिला पाएगा अब बिजली संकट से निजात, मांग के मुकाबले कम आपूर्ति से मचा हाहाकार 

Power Shortage In India : उत्तराखंड राज्य को बिजली उत्पादन वाला राज्य माना जाता है, प्रदेश में बिजली की सालाना मांग 2468 मेगावाट है, जबकि विभिन्न परियोजनाओं से यहां 5211 मेगावाट बिजली पैदा होती है, लेकिन यह सारी बिजली राज्य से सेंट्रल पूल के लिए चली जाती है......

सलीम मलिक की रिपोर्ट

Power Shortage In India : अप्रैल में सूरज की तपिश बढ़ने से पहले ही देशभर में बिजली का संकट (Electricity Shortage) भले ही सतह पर आ गया हो लेकिन इसके लक्षण पिछले महीने मार्च की शुरुआत में ही दिखने लगे थे जब सभी क्षेत्रों में बिजली की मांग (Electricity Demand) अचानक बढ़ने लगी थी। सरकार की ओर से इसके लिए इस साल समय से पहले गर्मी की शुरुआत होना और कोविड के बाद काम धंधे की स्थिति का पटरी पर आना बताया जा रहा है जबकि कुछ लोग इसे देश में गहराते कोयला संकट से भी जोड़कर देख रहे हैं। फिलहाल मांग की अपेक्षा निरन्तर कम हो रही विद्युत आपूर्ति के चलते हाल फिलहाल बिजली संकट से निजात मिलने की सूरत नजर नहीं आ रही है। असहाय सरकार भी मौसम की ओर टकटकी लगाए देख रही है जिससे तापमान में कुछ कमी हो और बिजली की मांग-आपूर्ति के संतुलन की खाई कम होकर इस संकट से निजात मिल सके।

आजादी के समय 1362 मेगावाट बिजली पैदा करने वाले भारत में वर्तमान में 1,70,000 मेगावाट बिजली उत्पादन हो रहा है। शहरी इलाकों का हो रहा विस्तार और विद्युत उपकरणों पर बढ़ रही निर्भरता से देश में सात फीसदी सालाना की दर से बिजली की मांग बढ़ रही है। देश में बिजली उत्पादन (Electricity Production) का बड़ा हिस्सा 63 प्रतिशत कोयला आधारित ताप ऊर्जा प्लांट से तो 24 प्रतिशत हिस्सा जल विद्युत परियोजनाओं से आता है। बाकी का हिस्सा अन्य वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत के माध्यम से मिलता है। बारह वर्ष पूर्व तक देश में बिजली का एक बड़ा हिस्सा (करीब 25 फीसदी तक) लाइन लॉस की अव्यवस्था की भेंट चढ़ जाता था।

बिजली चोरी के साथ ही लाइन लॉस को भी काफी हद तक कम किए जाने के बाद भी बिजली उत्पादन (Electricity Production) और खपत के बीच का फासला कम होने का नाम नहीं ले रहा है। जिस वजह से हर साल गर्मी शुरू होते ही बिजली का संकट खड़ा हो रहा है। इस साल अन्य वर्षों की अपेक्षा गर्मी के मौसम की दस्तक मार्च से पहले ही होने और लगातार खुश्क होने की वजह से अप्रैल महीने में ही बिजली संकट अपने उस हाहाकारी मोड में पहुंच गया है, जिसकी अपेक्षा मई के महीने में की जाती थी। बिजली के इस संकट ने न केवल कई राज्यों का जनजीवन अस्त व्यस्त कर दिया है बल्कि उद्योग धंधे भी बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में भले इस संकट का प्रकोप कुछ हद तक कम हो लेकिन उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्य इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ समेत अन्य बड़े शहरों, जिला मुख्यालयों से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों तक रात और दिन में अघोषित बिजली कटौती का इतना बुरा हाल है कि सही आंकड़े सामने न आने पाए, इस लिहाज से स्टेट लोड डिस्पैच सेंटर ने विद्युत आपूर्ति की दैनिक रिपोर्ट तक अपनी वेबसाइट से हटा ली है। यूपी में बिजली की मांग 20 हजार मेगावाट के आसपास है जबकि 18 से 19 हजार मेगावाट बिजली ही उपलब्ध हो पा रही है।

राजस्थान में भी बिजली की मांग में करीब 31 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। जबकि इसके बरक्स बिजली उत्पादन के लिए राज्य को मिलने वाली कोयले के रैक की संख्या घट गई है। इससे भी प्रदेश में बिजली कटौती में रोज बढ़ोतरी की जा रही है। राजस्थान में अमूमन कोयले की 27 रैक की रोज जरूरत होती है। जबकि अभी राज्य को 18 से 20 रैक ही कोयला मिल रहा है। जाहिर है कि आने वाले दिनों में कोयले की कमी की वजह से परेशानियां बढ़ने ही वाली हैं। मध्य प्रदेश में तो कोयले की कमी और बिजली संकट को लेकर राजनैतिक घमासान ही शुरू हो चुका है।

प्रदेश के ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर ने सरकार का बचाव करते हुए कहा गया कि कुछ परेशानियां हैं जिनका समाधान हम युद्ध स्तर पर कर रहे हैं। उन्होंने दावा किया कि मध्य प्रदेश में कोयले कोई कोई कमी नहीं है। गर्मी अधिक बढ़ गई है ऐसे में बिजली की मांग भी बढ़ी है तो उत्पादन भी बढ़ाने की आवश्यकता है। हरियाणा में बिजली संकट के चलते उद्योगों में उत्पादन 40 प्रतिशत तक कम होने की खबरें मीडिया डोमेन में चल रही हैं। अप्रत्याशित स्थिति आने की वजह से उद्योगपतियों के पहले के करार टूटने की कगार पर हैं। क्योंकि जनरेटर से उद्योगों को चलाने से उत्पादन की लागत लगातार बढ़ रही है। इससे कारोबारियों को हजारों करोड़ रुपये का नुकसान झेलना पड़ रहा है। पड़ोसी राज्य पंजाब की स्थिति भी कमोबेश ऐसी ही है। यहां कई थर्मल प्लांट कोयले की भारी कमी से जूझ रहे है।

उत्तराखंड राज्य को बिजली उत्पादन वाला राज्य माना जाता है। प्रदेश में बिजली की सालाना मांग 2468 मेगावाट है। जबकि विभिन्न परियोजनाओं से यहां 5211 मेगावाट बिजली पैदा होती है। लेकिन यह सारी बिजली राज्य से सेंट्रल पूल के लिए चली जाती है। राज्य कोटे के तहत 1320 मेगावाट बिजली ही मिलती है।

प्रदेश में बिजली के लिए मचे हाहाकार के बीच मुख्यमंत्री के दखल के बाद यूपीसीएल (Uttarakhand Power Corporation Limited) ने बिजली की कमी को स्वीकार करते हुए एक सप्ताह में कटौती को नियंत्रण में लाने का दावा किया है। जिसके लिए यूपीसीएल ने 36 मेगावाट बिजली का अतिरिक्त इंतजाम किया है। जो कि प्रदेश की मौजूदा मांग को पूरा करने के लिए अभी भी कम है। प्रदेश को फिलहाल फौरी तौर पर 100 मेगावाट बिजली की जरूरत है। जबकि ऊर्जा निगम का खजाना पूरी तरह से खाली हो चुका है। बाजार से प्रतिदिन 15 करोड़ रुपये की बिजली खरीदते खरीदते ऊर्जा निगम की यह स्थिति हुई है। सरकार से जल्द मदद नहीं मिली तो राज्य में बिजली का अभूतपूर्व संकट गहरा सकता है। अभी की स्थिति यह है कि निगम के पास 10 से 15 दिन की बिजली खरीदने के पैसे बचे हैं। वो भी बैंकों से ओवरड्रा करने की स्थिति में। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार यूपीसीएल के पास बाजार से बिजली खरीदने के लिए बिलकुल भी पैसे नहीं हैं। अभी तक बैंकों से एफडी के विरुद्ध 90 करोड़ रुपये का ओवरड्रा किया जा चुका है। ओवरड्रा की भी लिमिट सिर्फ 250 करोड़ रुपये है।

यूपीसीएल मैनेजमेंट (UPCL Management) ने इस स्थिति को भांपते हुए राज्य सरकार से मदद की गुहार लगाई है। यूपीसीएल ने सरकार से सब्सिडी के रूप में 350 करोड़ की मदद मांगी है। यूपीसीएल का कहना है कि पिछले करीब दो महीने से जनता को बिजली संकट से राहत देने के लिए बाजार से महंगी दर पर बिजली खरीदी जा रही है। पहले 20 रुपये और बाद में 12 रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली खरीदकर दो से चार रुपये प्रति यूनिट में उपलब्ध कराई जा रही है। ऐसे में दूसरे राज्यों की तरह उत्तराखंड में भी सरकार यूपीसीएल को सब्सिडी उपलब्ध कराए ताकि जनता को निर्बाध बिजली उपलब्ध कराई जा सके। यूपीसीएल ने मार्च-अप्रैल में बाजार से करीब 390 करोड़ रुपये की अतिरिक्त बिजली खरीदी। इसके अलावा यूजेवीएनएल, एनटीपीसी व एनएचपीसी समेत तमाम छोटे-बड़े प्लांटों से 500 करोड़ रुपये की बिजली हर महीने नियमित रूप से खरीदी ही जा रही है।

ऐसे में यदि यूपीसीएल को सरकार से वित्तीय मदद नहीं मिली, तो पावर सप्लाई में दिक्कत आनी तय है। बिना पैसे के यूपीसीएल बाजार से बिजली नहीं खरीद पाएगा। पैसे की कमी के चलते यूजेवीएनएल ने पिटकुल, एनटीपीसी, एनएचपीसी के भुगतान पर फिलहाल रोक लगा दी है। अभी जो स्थिति है, उसके अनुसार करीब एक महीने बिजली का ऐसा ही संकट रहने वाला है। इस स्थिति से निपटने के लिए यूपीसीएल अप्रैल में ही राजस्व जुटाने में जुट गया है।

राज्य में मंगलवार को उद्योगों और ग्रामीण क्षेत्रों में डेढ़ से दो घंटे की ही बिजली कटौती हुई। छोटे शहरों में भी एक घंटे की कटौती हुई। एमडी यूपीसीएल अनिल कुमार का कहना है कि महंगी बिजली खरीदकर जनता को सस्ती दर पर दी जा रही है। इससे यूपीसीएल पर लगातार वित्तीय भार बढ़ रहा है। सरकार से सब्सिडी के रूप में सहायता देने की मांग की गई है। वहीं उर्जा सचिव आर. मीनाक्षी सुंदरम का कहना है कि जनता को पर्याप्त बिजली मिलती रहे, इसके लिए हरसंभव कदम उठाए जा रहे हैं। यूपीसीएल को वित्तीय मदद भी दी जाएगी ताकि जनता को बिजली संकट से न जूझना पड़े।

जहां एक तरफ पूरा उत्तर भारत बिजली का गंभीर संकट झेल रहा है तो दूसरी तरफ देश के कोयला सचिव एके जैन ने देश में गहराए बिजली संकट के लिए कोयले की कमी को वजह मानने से साफ इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि इस बिजली संकट की प्रमुख वजह विभिन्न ईंधन स्त्रोतों से होने वाले बिजली उत्पादन में आई बड़ी गिरावट है। उन्होंने कहा कि ताप-विद्युत संयंत्रों के पास कोयले का कम स्टॉक होने के लिए कई कारक जिम्मेदार हैं। कोविड-19 के प्रकोप में कमी आने के बाद अर्थव्यवस्था में तेजी आई और बिजली की मांग बढ़ी, इसके अलावा इस साल जल्दी गर्मी शुरू हो जाना, गैस और आयातित कोयले की कीमतों में वृद्धि होना और तटीय ताप विद्युत संयंत्रों के बिजली उत्पादन का तेजी से गिरना जैसे कारक बिजली संकट के लिए जिम्मेदार हैं।

देश में बिजली संकट के बीच सरकार के मंत्री आंकड़े पेश करते हुए सरकार का बचाव कर रहे हैं। कोयला मंत्री प्रल्हाद जोशी के बीते शनिवार को दिए बयान के मुताबिक, वर्तमान में 7.250 करोड़ टन कोयला सीआईएल, सिंगरेनी कोलियरीज कंपनी लिमिटेड (SCCL) और कोल वाशरीज के विभिन्न स्रोतों में उपलब्ध है। इसके साथ ही उन्होंने ताप विद्युत संयंत्रों के पास 2.201 करोड़ टन कोयला उपलब्ध होने का भी दावा किया है।

बहरहाल बिजली संकट की वजह से जिम्मेदार मंत्रियों के जिस प्रकार से सफाई वाले बयान आ रहे हैं, उससे साफ है की आने वाले दिनों में बिजली का यह संकट अभी और गहराएगा। सरकार इस मामले में खुद रामभरोसे है कि किसी तरह कहीं बारिश हो और तापमान में कमी आए। जिससे बिजली की मांग कुछ कम होने पर यह संकट टल जाए। लेकिन जैसा की अप्रैल महीने के अंत तक बारिश का कहीं अता पता नहीं है, ऐसे में साफ है कि मई का आने वाला महीना बिजली के लिहाज से देश के लिए सर्वाधिक हाहाकारी साबित होने वाला होगा। जून में भी होने वाली बरसात में नदियों से बहकर आने वाला सिल्ट उत्तराखंड की जल विद्युत परियोनाओं पर आधारित विद्युत उत्पादन पर खासा असर डालेगा। लेकिन राहत की बात यह है कि कोयला आधारित उत्पादन पर निर्भर होने के कारण इसका खास असर नहीं पड़ेगा। लेकिन तपिश भरी मई के बिजली संकट से बचने की कोई सूरत फिलहाल नहीं दिख रही।

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