कोविड का खतरनाक असर, बाल मजदूरी के लिए बिहार और छत्तीसगढ़ से बच्चों को पंजाब ला रहे तस्कर
बाल तस्करी के बढ़ते मामलों को देखते हुए पंजाब रेलवे चाइल्ड लाइन की एक टीम छावनी स्टेशन पर तैनात की गई है
मनोज ठाकुर की रिपोर्ट
जनज्वार ब्यूरो चंडीगढ़। कोविड की वजह से बिहार और छत्तीसगढ़ में मजदूरी करने वाले लोगों की आर्थिक हालत खराब हो गई है। कई परिवार ऐसे हैं, जहां कमाने वाले की मौत हो गई। इस स्थिति में अब परिवार अपने बच्चों को बाल मजदूरी के लिए तस्करों के हवाले कर रह रहे हैं। शुक्रवार 30 जुलाई को अंबाला छावनी में रेलवे पुलिस से 22 बच्चों को रेस्क्यू किया। इससे पहले भी पुलिस ने अलग अलग ऑपरेशन में 12 बच्चों को रेस्क्यू किया है।
बच्चों से पूछताछ की गई तो पता चला कि उन्हें तस्कर बिहार और छत्तीसगढ़ से लेकर आते हैं। उनके परिजनों को लालच दिया जाता है कि बच्चों को काम मिल जाएगा। बाल तस्करी के बढ़ते मामलों को देखते हुए पंजाब रेलवे चाइल्ड लाइन की एक टीम छावनी स्टेशन पर तैनात की गई है। यह टीम हर गाड़ी में बच्चों की तलाश कर रही है।
आरपीएफ अंबाला छावनी के इंस्पेक्टर मानवेंद्र सिंह ने बताया कि हम हर ट्रेन की जांच कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि जिस वक्त रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया गया , पुलिस को आता देख कर तस्कर फरार होने में कामयाब हो गए। उन्होंने बताया कि बच्चों को अलग अलग डिब्बों में बिठाया जाता है जबकि तस्कर अलग बैठते हैं।
बच्चों को जब रेस्क्यू कर पूछताछ की गई तो उन्होंने किसी भी तरह की जानकारी से इंकार किया। ज्यादातर बच्चों ने यही बताया कि वे पढ़ाई के लिए अपने गांव से पंजाब में आए हैं। यहां अपने रिश्तेदारों के साथ रह कर पढ़ाई करेंगे।
रेलवे चाइल्ड टीम के कोऑर्डिनेटर राकेश चोपड़ा ने बताया कि बच्चों की जब काउंसलिंग की गई तो पता चला कि इन बच्चों से काम कराने के लिए उन्हें ट्रेन से लाया जा रहा है। बच्चों की उम्र चार साल से लेकर 18 साल के बीच है।
पिछले साल दिसंबर में भी पंजाब के जालंधर शहर के गांव कंगनीवाल से 5 बाल मजदूरों को छुड़ाया गया था। इन बच्चों से जब पूछताछ की तो पता चला कि एक मानव तस्करों का एक बड़ा नेटवर्क काम कर रहा है। वह कई शहरों में बच्चों को सप्लाई करता है।
तब एक तस्कर प्रवेश सादा का नाम सामने आया था। जो बच्चे कंगनीवाल से रेस्क्यू किए गए थे,उन्होंने बताया था कि प्रवेश ही उन्हें यहां लाता है। वह जालंधर में खेल का सामान बनाने वाली फैक्ट्री में बच्चों को लाता है। प्रवेश को अभी तक गिरफ्तार नहीं किया गया है। पुलिस मान कर चल रही है कि वह जालंधर में रहता ही नहीं है। वह किसी दूसरी जगह रहता है, उसका नेटवर्क जरूरतमंद परिवार से संपर्क कर बच्चों को वहां से तस्करी कर पंजाब व हरियाणा में लेकर आता है। यहां उन्हें स्थानीय लोगों के हवाले कर दिया जाता है। जो उन्हें अलग अलग जगह काम के लिए भेज देते हैं।
तस्कर को बच्चे ठेकेदार कहते हैं, वह उसके खिलाफ कुछ भी बोलने से बचते हैं, क्योंकि बच्चों को काम की एवज में जो पैसा मिलता है, वह ठेकेदार लेता है। वह अपना हिस्सा रख कर बच्चों के अभिभावकों को बाकी का पैसा देता है। पंजाब में बच्चों के लिए काम कर रही संस्था तरंग के अध्यक्ष संतोष सिंह ने बताया कि पुलिस इस नेटवर्क को तोड़ना ही नहीं चाहती। इसलिए छोटी मोटी गिरफ्तारी कर मामले को रफा दफा कर दिया जाता है। अन्यथा ऐसा है भी क्या कि पुलिस तस्करों तक पहुंच ही न पाए। कभी पुलिस दूसरे राज्य का मामला बता कर पल्ला झाड़ लेती है, कभी यह तर्क दे देते हैं कि सहयोग नहीं मिल रहा है। हकीकत यह है कि पुलिस के कुछ कर्मचारी भी मानव तस्करी के बारे में जानते हैं, लेकिन उन्हें भी इसमें हिस्सा मिलता है, इसलिए वह चुप रहते हैं। पुलिस तभी काम करती है, जब कोई संस्था बच्चों को रेस्क्यू करती है।
बच्चों के लिए काम करने वाली संस्था पाखी की प्रवक्ता मंजू खन्ना ने बताया कि जिन बच्चों को तस्करी कर लाया जा रह है, वह बेहद खराब माहौल में काम करते हैं। उनके रहने और खाने पीने की ओर कोई ध्यान नहीं देता। कृषि में इन बच्चों से खतरनाक काम लिए जाते हैं, जैसे धान और गेहूं मे कीटनाशक का स्प्रे कराना। जब से पंजाब में कैंसर के केस बढ़ गए हैं, तब से यहां के लोग और मजदूर कीटनाशक व अन्य रसायन फसलों पर स्प्रे करने से बचते हैं। इस काम में अब तस्करी से लाए गए बच्चों को इस्तेमाल किया जा रहा है। जो कि एक बहुत ही चिंताजनक चलन है। इस पर रोक लगनी चाहिए।
मंजू खन्ना ने बताया कि कई बच्चों ने बताया कि उनके घर पर रोटी भी खाने को नहीं है। भूखे मरने से बेहतर है वह कुछ काम कर लें। बिहार में उन्हें काम भी नहीं मिलता। इसलिए वह हरियाणा और पंजाब में आ रहे हैं।
मंजू ने बताया कि हरियाणा के गांवों में किसानों के यहां प्रवासी बच्चे काम करते हुए आसानी से देखे जा सकते हैं। दिक्कत यह है कि बच्चों के बारे में प्रशासन को कोई जानकारी भी नहीं देता। इस वजह से उनका रेस्क्यू भी नहीं किया जा सकता। गांव में यदि उनकी टीम जाती भी है तो उनके साथ ग्रामीण भी मारपीट कर सकते हैं। इसलिए उन्हें पहले पुलिस की मदद लेनी पड़ती है।
अब यदि पुलिसकर्मी मिल जाते हैं तो वह गांव में चले जाते हैं, अन्यथा जाने से बचते हैं। प्रवक्ता ने बताया कि शहर में यह बच्चे ढाबों और चाय की दुकान पर काम करते दिख जाएंगे। यदि इनसे पूछताछ करते हैं तो खुद को ढाबे वाले का बच्चा बता देते हैं। बता देते हैं कि क्योंकि स्कूल बंद है,इसलिए परिवार की मदद कर रहे हैं। लेकिन यह समझ में आता है कि वह झूठ बोल रहे हैं। जब ऐसे बच्चों को रेस्क्यू कर काउंसलिंग कर पूछताछ की जाती है तो सच सामने आता है।
अंबाला छावनी आरपीएफ के अधिकारियों ने बताया कि हम ओर से जो कर सकते हैं, कर रहे हैं। हर ट्रेन की निगरानी की जा रही है। कुछ सफलता भी मिल रही है। लेकिन समस्या बहुत बड़ी है। जब से कोविड आया है, तब से बच्चों की तस्करी बढ़ रही है। हम भी मुस्तैद हैं, इसके बाद भी इस पर पूरी तरह से रोक नहीं लगा पा रहे हैं।