Rajasthan News : गधों पर नमक बेचने वाली की बेटी 'तारा' की हिम्मत ने उसे पहुंचा दिया साउथ अफ्रीका, अब संवार रही है मजदूरों के बच्चों की जिंदगी
Rajasthan News : 'कौन कहता है आसमां में सुराख हो नहीं सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो।' जी हां, कुछ ऐसा ही कर गुजरने का माद्दा रखने वाली लड़की का नाम है तारा। तारा ( Tara ) का परिवार परिवार गधों पर नमक और मुल्तानी मिट्टी बेचता था। घर में बेटी पैदा हुई तो 4 महीने बाद ही उसकी शादी तय कर दी। खेलने और पढ़ने की उम्र में 8 साल की तारा रोड कंस्ट्रक्शन में मजदूरी करने लगी। जिंदगी ने एक के एक बाद एक विकट चुनौतियां पेश की, लेकिन तारा की हिम्मत के आगे एक भी न टिक पाईं। वही, तारा अब बाल मजदूरों के लिए उम्मीद की नई किरण बनकर सामने आई है।
आज भी झोपड़ी में रहता है तारा का परिवार
आठ साल की उम्र में कंस्ट्रक्शन के काम में मजदूरी करने वाली 17 साल की तारा ( Tara ) अपनी झोपड़ी से निकलकर साउथ अफ्रीका ( South Africa ) तक पहुंच गई है। वहां पर तारा की धूम है। तारा, वहां से दुनिया को चाइल्ड लेबर रोकने, बच्चों पर अत्याचार खत्म करने और उनका भविष्य संवारने का मंत्र देकर लौटी है। चार दिन पहले ही तो तारा राजस्थान ( Rajasthan ) के अलवर ( Alwar ) जिले के अपने गांव थानागाजी के नीमड़ी लौटी है। तारा के घर में 6 बहन, 1 भाई, माता-पिता और दादी हैं। 10 सदस्यों का परिवार एक झोपड़ी में रहता है, जिसमें 3 ही चारपाई हैं। पानी के लिए मटकों के बजाय सिर्फ 2 बोतल हैं। पिता अब प्याज और लहसुन बेचने के धंधे में मजदूरी करते हैं।
पहले नौकरी फिर शादी
दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के मुताबिक तारा का साउथ अफ्रीका ( South Africa ) तक का सफर इतना आसान नहीं था। तारा 8 साल की उम्र में सड़क बनाने का काम करती थी तो लगता था, जिंदगी भर अब यही करना है, कुछ नहीं बदलने वाला, लेकिन बाल आश्रम स्कूल ने मेरी किस्मत ही बदल दी। बाल आश्रम स्कूल के संपर्क में आने के बाद 2012 में पहली बार तारा का पढ़ाई से नाता जुड़ा। टीचर ने तारी की मेहनत देखकर 2012 से 3 साल में 7 क्लास पास करवा दी। वह अभी बीए फर्स्ट ईयर की छात्रा है। उसने तय कर रखा है, पहले नौकरी करूंगी, उसके बाद शादी।
22 बच्चों को बाल श्रम से बाहर निकाल चुकी है तारा
भास्कर से बातचीत में तारा ( Tara ) ने बताया घरवालों ने उसकी बहन आकाश की 5 साल की उम्र में सगाई कर दी थी। कोरोनाकाल में शादी करने वाले थे लेकिन मैंने शादी रद्द करा दी। भाई-बहनों में तारा सबसे बड़ी है। तारा से छोटी बहन आकाश है जो 10वीं में पढ़ती है। सैंपू 13 साल की है। वह 8वीं में पढ़ती है। नरेश 10वीं में, टुकला चौथी में, बब्बल दूसरी में और लट्टू ललित पहली में पढ़ती है। तारा को 12वीं में 85 प्रतिशत अंक मिले। तारा बाल श्रम कानून के तहत अभी तक 22 बच्चों को मजदूरी से मुक्त करा चुकी हैं।
ऐसे बदली तारा किस्मत
तारा कहती हैं कि उनके जीवन में 2012 में नया मोड़ उस समय आया जब वह कैलाश सत्यार्थी व सुमेधा के संपर्क में आई। बाल आश्रम स्कूल के संपर्क में आने के बाद 2012 में पहली बार तारा का पढ़ाई से नाता जुड़ा। टीचर ने तारा की मेहनत देखकर 2012 से 3 साल में 7 क्लास पास करवा दी। वह अभी बीए फर्स्ट ईयर की छात्रा है। बाल आश्रम स्कूल की वजह से ही उसे डरबन तक पहुंचने का मौका मिला है।
Rajasthan News : पोती के नाम दारी का खिल उठता है चेहरा
90 साल की तारा की दादी आबल कहती हैं कि इन दिनों बहुत खुश रहती हैं। उनके कुनबे से कोई इतनी दूर नहीं गया। पहले वे गधों पर नमक व मुल्तानी मिट्टी बेचते थे। अब कम से कम एक जगह रहकर मजदूरी करते हैं। पोती के नाम से दादी का चेहरा खिल उठता है। बाल मजदूरी के कारण स्कूल नहीं जाने वाले बच्चों के लिए तो तारा अब उम्मीद की नई किरण है।
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