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एक हफ्ते का नोटिस देकर हटाएं 29 एकड़ भूमि से अतिक्रमण, हल्द्वानी के बहुचर्चित रेलवे अतिक्रमण पर प्रशासन को हाईकोर्ट का आदेश

Janjwar Desk
20 Dec 2022 10:47 PM IST
एक हफ्ते का नोटिस देकर हटाएं 29 एकड़ भूमि से अतिक्रमण, हल्द्वानी के बहुचर्चित रेलवे अतिक्रमण पर प्रशासन को हाईकोर्ट का आदेश
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नैनीताल हाईकोर्ट।

हल्द्वानी में रेलवे की जिस भूमि से अतिक्रमण हटाया जाना है, वहां करीब 4,500 घर अवैध रूप से बने बताए गए हैं। इनमें कुछ झोपड़ियां हैं कुछ पक्के मकान शामिल हैं....

Nainital news : उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने हल्द्वानी के वनभूलपुरा में रेलवे विभाग की भूमि पर हुए अतिक्रमण के खिलाफ दायर जनहित याचिका को निस्तारित करते हुए 29 एकड़ भूमि पर हुए अतिक्रमण को एक हफ्ते का नोटिस देकर ध्वस्त करने के आदेश दिए है। मंगलवार 20 दिसंबर को न्यायमूर्ति शरद शर्मा व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने रविशंकर जोशी की याचिका पर सुनवाई पूरी करने के बाद सुरक्षित रखे निर्णय को सुनाया। हाईकोर्ट के फैसले के बाद करीब 4300 परिवार प्रभावित होंगे। जबकि कुछ लोग इन परिवारों की संख्या इससे ज्यादा बता रहे हैं।

बता दें कि हल्द्वानी निवासी रविशंकर जोशी की हल्द्वानी के ही वनफूलपूरा स्थित रेलवे विभाग की खाली पड़ी भूमि पर अतिक्रमण किए जाने की शिकायत करते हुए उत्तराखंड उच्च न्यायालय में यह जनहित याचिका दायर की थी। इसी याचिका पर सुनवाई के दौरान 9 नवंबर 2016 को हाईकोर्ट ने दस सप्ताह के भीतर रेलवे की जमीन से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया था।

कोर्ट ने कहा था कि जितने भी अतिक्रमणकारी हैं उनको रेलवे विभाग पीपी एक्ट के तहत नोटिस देकर जनसुनवाई करें। रेलवे की तरफ से कहा गया कि हल्द्वानी में रेलवे की 29 एकड़ भूमि पर अतिक्रमण किया गया है जिनमें करीब 4365 अतिक्रमणकारी मौजूद हैं। किसी भी व्यक्ति के पास जमीन के वैध कागजात नहीं पाए गए, जबकि इस मामले में सुनवाई के दौरान पूर्व में अतिक्रमणकारियों की तरफ से कहा गया था कि उनका पक्ष रेलवे ने नहीं सुना था, इसलिए उनको भी सुनवाई का मौका दिया जाए। लेकिन रेलवे की तरफ से कहा गया था कि रेलवे ने सभी अतिक्रमणकारियों को पीपी एक्ट के तहत नोटिस जारी किया हुआ है। इस मामले में राज्य सरकार का कहना था कि यह राज्य सरकार की भूमि नहीं है यह रेलवे की भूमि है। इसलिए उसका इससे कोई मतलब नहीं है।

याचिकाकर्ता का कहना था कि कोर्ट के बार-बार आदेश होने के बाद भी अतिक्रमण नहीं हटाया गया, इसलिए कोर्ट ने सभी अतिक्रमणकारियों से अपनी-अपनी आपत्ति पेश करने को कहा था। जिसके बाद कोर्ट ने सभी आपत्तियों व पक्षकारों को सुनने के बाद बीती एक नवंबर को अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया था। मंगलवार 20 दिसंबर को निर्णय सुनाते हुए न्यायमूर्ति शरद शर्मा व न्यायमूर्ति आर सी खुल्बे की खंडपीठ ने अतिक्रमणकारियों को एक हफ्ते का नोटिस देकर अतिक्रमण को ध्वस्त करने का आदेश दे दिया।

प्रशासन के लिए आसान नहीं अतिक्रमण हटाना

मंगलवार को जिस अतिक्रमण को एक सप्ताह के नोटिस पर हटाए जाने का हाईकोर्ट ने आदेश दिया है, उस पर अमल करना प्रशासन के लिए खासा सिरदर्द भरा साबित होगा। एक अनुमान के अनुसार इतने व्यापक पैमाने पर अतिक्रमण हटाने के लिए प्रशासन को कम से कम एक महीना लग सकता है। यह आकलन खुद प्रशासन का है। न्यायालय में चल रहे इस मुकदमे के दौरान बीते दिनों एक परिस्थिति ऐसी आई थी, जब यह अतिक्रमण हटना तय हो चुका था। तब प्रशासन ने अतिक्रमण हटाने के लिए जो तैयारी की थी उसके लिए जिला प्रशासन और रेलवे प्रशासन ने संयुक्त रूप से बैठक कर इसकी रणनीति बनाई थी।

जिला प्रशासन ने अतिक्रमण हटवाने के लिए नागालैंड और असम से अतिरिक्त पुलिस बल की मांग की थी। हल्द्वानी में रेलवे की जिस भूमि से अतिक्रमण हटाया जाना है, वहां करीब 4,500 घर अवैध रूप से बने बताए गए हैं। इनमें कुछ झोपड़ियां हैं कुछ पक्के मकान शामिल हैं। तब जिलाधिकारी धीराज सिंह गर्ब्याल का कहना था कि रेलवे की जिस जमीन को अतिक्रमणकारियों से मुक्त कराना है वह क्षेत्र बहुत बड़ा है। वहां पर करीब 4,500 परिवार रहते हैं। ऐसे में इतने बड़े इलाके से कब्जा हटाना आसान नहीं है और न ही ये एक दिन का काम है। अतिक्रमणकारियों को रेलवे की जमीन से हटाने के लिए करीब एक महीने का समय लग सकता है। इसके साथ ही इलाके का माहौल न खराब हो, उसका भी इंतजाम करना जरूरी है।

अतिक्रमणकारियों को नहीं मिल सकती कोई राहत

मंगलवार 20 दिसंबर को हाईकोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय के खिलाफ अतिक्रमणकारियों को सर्वोच्च न्यायालय से भी कोई राहत नहीं मिलने के कारण इस बार हल्द्वानी की रेलवे भूमि से अतिक्रमण हटना तय माना जा रहा है। बता दे कि कोर्ट ने एक हफ्ते का नोटिस देकर अतिक्रमण हटाने के निर्देश दिए हैं, जबकि सुप्रीम कोर्ट एक जनवरी तक (बारह दिन) शीतकालीन अवकाश के लिए बंद है। इस अवधि में कोई वेकेशन कोर्ट भी न होने के कारण अतिक्रमणकारियों का सुप्रीम कोर्ट में जाने का रास्ता का पूरी तरह बंद है।

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