RTI : जनता की भारी डिमांड पर नहीं बल्कि PM MODI के ट्वीट के बाद बदला गया था राजीव गांधी खेल रत्न अवार्ड का नाम!
विधानसभा और लोकसभा उपचुनावों में बीजेपी को बड़ा झटका लगा है(पीएम नरेंद्र मोदी file photo)
RTI (जनज्वार) : केंद्र की मोदी सरकार का एक और झूठ सामने आया है। आपको याद होगा की बीते कुछ समय पहले पीएम ने राजीव गांधी के नाम पर दिया जाने वाला खेल रत्न अवार्ड का नाम बदल दिया था। पीएम का कहना था कि यह उन्होने जनता की भारी मांग पर किया है, लेकिन अब इस झूठ से भी पर्दा उठ गया है।
इस बारे में पूर्व IPS विजय शंकर सिंह लिखते हैं, 'जनता का आग्रह' नहीं, प्रधानमंत्री मोदी के ट्वीट के चलते राजीव गांधी खेल रत्न का नाम परिवर्तित किया गया है। यह कहना सरकार का है। RTI के अनुसार, युवा कार्यक्रम और खेल मंत्रालय ने यह स्वीकार किया है कि उनके पास इस पुरस्कार का नाम बदलने को लेकर जनता से कोई निवेदन या आग्रह प्राप्त होने सम्बंधी कोई दस्तावेज नहीं हैं।
'द वायर' ने 8 अगस्त 2021 को एक RTI आवेदन में पूछा था कि इस अवॉर्ड का नाम बदलने को लेकर सरकार को कुल कितने निवेदन प्राप्त हुए हैं। इसके साथ ही इन निवेदन पत्रों की फोटोकॉपी की भी मांग की गई थी। इस पर मंत्रालय की केंद्रीय जन सूचना अधिकारी ने कहा, 'इस सम्बंध में कोई जानकारी नहीं है।'
मंत्रालय का कहना है कि, यह फैसला लेने से पहले मंत्रालय ने अन्य संबंधितों के साथ भी कोई विचार-विमर्श नहीं किया था और सिर्फ प्रधानमंत्री के ट्वीट के आधार पर ही पुरस्कार का नाम बदला गया। पहले ट्वीट किया गया और बाद पुरस्कार का नाम बदला गया।
'द वायर' ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस फैसले की फाइल में लगे दस्तावेजों की शुरुआत प्रधानमंत्री के ट्वीट से होती है। इसमें उनके तीन सिलसिलेवार ट्वीट्स की फोटो लगाई गई है, जिसके आधार पर पुरस्कार का नाम बदलने सम्बंधी मंजूरी प्राप्त करने के लिए फाइल नोटिंग्स तैयार की गई थी।
इस पूरी कवायद के दौरान मंत्रालय के अधिकारियों के सामने एक अन्य दुविधा खड़ी हुई थी कि चूंकि मेजर ध्यानचंद के नाम पर पहले ही एक पुरस्कार 'ध्यानचंद अवॉर्ड' दिया जाता है, तो इसके बारे में क्या किया जाए? बाद में उन्होंने यह फैसला लिया कि आगे चलकर इसका भी नाम बदल दिया जाएगा!
एक ट्वीट में 'अनेक देशवासियों ने आग्रह; करने की बात सफेद झूठ थी जिसके बाद हड़बड़ी में 'राजीव गांधी खेल रत्न अवॉर्ड' का नाम बदल दिया गया । पूर्व आईपीएस कहते हैं, आपत्ति, मेजर ध्यानचंद के नाम पर नहीं है, आपत्ति झूठ की प्रवृत्ति पर है। झूठ और अपनी मर्जी को ही जनता की इच्छा समझने की प्रवृत्ति फासिज़्म है।