Ruchi Soya FPO News : जानिए कैसे सिर्फ 1000 करोड़ खर्च कर 31000 करोड़ की कंपनी की मालिक बन गयी बाबा रामदेव की "पतंजलि"
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Ruchi Soya FPO News : बाबा रामदेव (Baba Ramdev) की पतंजलि ने जिस रुचि सोया इंडस्ट्रीज लिमिटेड (Ruchi Soya Industries Limited) कंपनी का अधिग्रहण किया था वहीं एक बार फिर चर्चा में है। अभी हाल ही में रुचि सोया 4300 करोड़ रुपए के FPO (फॉलो-ऑन-पब्लिक) लेकर बाजार में आयी थी। इस एफपीओ 28 मार्च को बंद होना था, लेकिन जब इसे 30 मार्च को भी बंद नहीं किया गया तो सेबी ने इसे वादाखिलाफी बताते हुए इस पर आपत्ति जतायी है।
इससे पहले बीते साल सितंबर में भी सेबी (SEBI) की ओर से कंपनी को चेतावनी दी गयी थी। उस समय सोशल मीडिया (Social Media) पर बाबा रामदेव का एक वीडियो भी सामने सामने आया था जिसमें वह रुचि सोया के एफपीओ में निवेश को करोड़पति बनने का मंत्र बताते दिखे थे। सेबी की ओर से इसे एफपीओ का प्रचार बताते हुए रुचि सोया को चेताया गया था।
आइए आपको बताते हैं बाबा रामदेव की रुचि सोया की वह कहानी जिसे जानकर आपका भी सिर चकरा जाएगा। आइए जानते हैं कि कैसे करतादाताओं के पैसे से इस देश में बिजनेस के नाम पर लीगल तरीके से गड़बड़झाला हो रहा है। बाबा रामदेव के ट्रस्ट पतंजलि ने जब रुचि सोया का अधिग्रहण किया था उस समय कंपनी पर बैंकों का करोड़ों रुपए बकाया था।
पर उसे नजरअंदाज करत हुए बैंकों ने बाबा रामदेव के ट्रस्ट को उसी रुचि सोया को खरीदने के लिए फिर से कर्ज दे दिया। जो पहले से बैंकों का पैसा डुबा चुकी थी। आपको यह बता दें कि पतंजलि की बाजार में क्रेडिट रेटिंग खराब होने के बावजूद पंजाब नेशनल बैंक और अन्य कई बैंकों के समूह ने रामदेव को 3250 करोड़ रुपए तक का लोन जारी कर दिया था।
आउटलुक बिजनेस की एक रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया गया है कि रुचि सोया के अधिग्रहण के लिए रामदेव को साल दिसंबर 2019 में लोन दिए गए। जबकि उसी साल अक्टूबर में क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों ICRA, CARE ने पतंजलि की रेटिंग को A+ से घटाकर BBB कर दिया था।
ICRA ने जहां पतंजलि आयुर्वेद कई पर सवाल उठाए तो CARE का भी आकलन था कि मार्च 2019 के वार्षिक आंकड़ों के अनुसार रुचि सोया के अधिग्रहण में रामदेव को अपने नेटवर्थ से भी 51 प्रतिशत अधिक खर्च करना था।
उसके बाद ब्रिकवर्क रेटिंग्स नाम की एक और रेटिंग एजेसीं ने 2019 में कहा कि रामदेव की कंपनियों की वित्तीय स्थिति अच्छी नहीं है और रुचि सोया को अपने नियंत्रण में लेने का उनका फैसला कंपनी के लिए आत्मघाती साबित हो सकता है।
ब्रिकवर्क की ओर से उसी साल नागपुर में स्थित पतंजलि की फूड एंड हर्बल पार्क की रेटिंग को गिराकर BBB+ कर दिया था। रेटिंग एजेंसी के अनुसार पतंजलि ग्रुप का पूरा ढांचा ही संदेह के घेरे में है। उसके बोर्ड में बाबा रामदेव के परिवार के लोग शामिल हैं। जिनमें राम भरत (रामदेव के भाई) और उनकी पत्नी भी शामिल हैं।
रुचि सोया कंपनी के अधिग्रहण के लिए पतंजलि को स्टेट बैंक (State Bank) ने 1300 करोड़, पीएनबी (PNB) ने 700 करोड़, यूनियन बैंक (Union Bank) ने 600 करोड़, सिंडिकेट बैंक (Syndicate Bank) ने 400 करोड़ और बैंक ऑफ बड़ौदा (Bank of Baroda) ने 300 करोड़ रुपए का लोन दिया था।
ये लोन ऐसे समय में जारी किए गए थे जबकि भारतीय स्टेट बैंक के 933 करोड़, पीएनबी के 346 करोड़, यूनियन बैंक के 149 करोड़, सिंडिकेट बैंक के 147 करोड़ और बैंक ऑफ बड़ौदा के 121 करोड़ के लोन लेकर रचि सोया कंपनी पहले ही डुबो चुकी थी। इन्हें बैंकों की ओर से नॉन परफार्मिंग असेट्स (NPA) घोषित किया जा चुका था।
जब पतंजलि ने रुचि सोया का अधिग्रहण किया उससे बहुत पहले साल 2017 में ही रुचि सोया पर 12146 करोड़ का कर्ज था। इस कर्ज में से 9385 करोड़ रुपये के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के थे। कंपनी के खिलाफ एनसीएलटी में केस भी चल रहा था।
साल 2019 में कमेटी ऑफ क्रेडिटर्स ने जब रुचि सोया के अधिग्रहण के लिए पतंजलि का 4350 करोड़ रुपये के प्रस्ताव को मंजूरी दी तो उन बैंकों ने भी रामदेव को लोन देने में हिचकिचाहट नहीं दिखायी जिनका पैसा रुचि सोया के पास डूब चुका था। रुचि सोया को खरीदने के लिए 4350 करोड़ रुपये के खरीदारी प्रस्ताव पर बैंको ने पतंजलि को 3250 करोड़ रुपये के लोन जारी कर दिए।
रुचि सोया के पतंजलि के इस अधिग्रहण प्रस्ताव के अनुसार बैंकों को कुल 4053 करोड़ रुपये की राशि लौटायी जानी थी। आपको बता दें कि इस स्थिति से पहले ही रुचि सोया नाम की कपंनी पर बैंकों का 9385 करोड़ रुपये बकाया था। इसका साफ मतलब यह था कि अगर पतंजलि बैंको को 4053 करोड़ रुपए लौटा भी देती तो भी बैंकों के हिस्से अपनी डूब चुकी रकम का सिर्फ 57 फीसदी हिस्सा ही वापस मिलना था।
इस जमीनी सच्चाई के बावजूद बैंकों ने रुचि सोया के अधिग्रहण के लिए पतंजलि को लोन जारी कर दिया। अब इसके अतिरिक्त पतंजलि को वर्किंग कैपिटल रूप में भी 17 सौ करोड़ रुपये अलग से जारी किए गए। रामदेव के पतंजलि ग्रुप को लोन जारी करने वाले बैंकों में 11 बैंकों का पूरा समूह शामिल था। इस अधिग्रहण के तहत पतंजलि चेयरमैन आचार्य बाल कृष्ण को रुचि सोया की 50 प्रतिशत हिस्सेदारी मिली थी और कंपनी की सारी संपत्ति संपत्ति पतंजलि ट्रस्ट पास चली गई।
जहां एक ओर भारत के बैंक पंतजलि को रचि सोया का अधिग्रहण करने के लिए लोन देने में उदारता दिखा रहे थे वहीं सिंगापुर के डीबीएस बैंक ने रुचि सोया के अधिग्रहण के प्रस्ताव पर आपत्ति दर्ज की थी। लेकिन उस आपत्ति का अधिग्रहण पर कोई असर नहीं पड़ा।
आपको बता दें कि सिंगापुर के बैंक का भी पैसा रुचि सोया पर बकाया थे। साल 2019 में जब पतंजलि ने रुचि सोया को खरीदा था तो उनकी ओर से 4350 करोड़ रुपये निवेश का निवेश किया गया था। जिसे जुटाने के लिए बैंकों से 3250 करोड़ रुपए लोन लिए गए थे। आज रुचि सोया का एफपीओ जारी होने के बाद कंपनी की वैल्यू साढ़े तीन गुना तक बढ़ गयी है।
इस पूरी कहना का एक और दिलचस्प पहलू है वह भी समझ लिजिए। रुचि सोया जो कि एक लिस्टेड कंपनी थी। दिवालिया हो जाती है। कंपनी पर पब्लिक सेक्टर बैंकों का 12000 करोड़ रुपए का बकाया था। बताया जाता है कि बैंकों ने इस बकाए की राशि का 50 प्रतिशत एनपीए घोषित कर दिया था। अब कंपनी पर सिर्फ 50 प्रतिशत की ही देनदारी बची थी। उसके बाद शुरू हुई उसके अधिग्रहण की कहानी। एनसीएलटी की ओर से कंपनी को बेचने का प्रस्ताव लाया गया।
सिर्फ दो ही ग्रुप ने इस कंपनी की खरीदारी पर दांव लगाया। जिनमें एक था पतंजलि ग्रुप और दूसरा अडानी विल्मर ग्रुप। अडानी ग्रुप ने विड के शुरूआती दौर में ही इससे अपने हाथ खींच लिए। अब इस रेस में सिर्फ पतंजलि बची।
पतंजलि की ओर से रुचि सोया की खरीदारी के लिए 4350 करोड़ रुपए का प्रस्ताव दिया गया। जिसमें 3250 करोड़ रुपए बैंकों से कर्ज के रूप में लिए जाने थे। इस लोन की गारंटी देने के लिए रुचि सोया के वही स्टॉक इस्तेमाल किए जाने थे जिनका मूल्य डेब्ट रिकंस्ट्रक्शन प्लान के तहत शून्य कर दिया गया था। बैंकों ने भी इसके लिए हामी भर दी थी।
बैंकों के इस फैसले से वही स्थिति बनी थी जिसकी हमने कहानी की शुरू में चर्चा की है। मतलब जिस कंपनी ने बैंकों के करोड़ों डुबो दिए थे उसी को खरीदने के लिए बैंक एक दूसरी पार्टी को करोड़ों रुपए फिर लोन दे रही थी। बदले मेंं बैंकों का जितना पैसा डूबा था उसका आधा हिस्सा ही बैंकों के पास वापस आने वाला था। वह भी तब जब पतंजलि अधिग्रहण के प्रस्ताव के मुताबिक बैंकों को उनका पैसा वापस लौटाए।
उसके बाद उसी रुचि सोया की 25 प्रतिशत हिस्सेदारी पब्लिक को बेचने की सेबी की ओर से भी परमिशन दी गयी। केवल एक प्रतिशत पब्लिक शेयर होल्डिंग वाली कंपनी को शेयर बाजार में लिस्ट रहने दिया गया। एनसीएलटी के आदेश के बाद सेबी ने भी उस समय इस पर अहसमति नहीं जतायी।
उसके बाद शुरू हुआ रुचि सोया के शेयरों के उतार-चढ़ाव का खेल। बाजार के मौजूद एक प्रतिशत शेयरों को भी कोई बेचने को तैयार नहीं था। शेयरों की कीमत दो साल में 3.50 पैसे प्रति शेयर से 1053 रुपए प्रति शेयर पर पहुंच गए।
वर्तमान में वही रुचि सोया कंपनी जिसे खरीदने के लिए पतंजलि ने साल दिसंबर 2019 मे अपनी जेब से सिर्फ 1000 करोड़ रुपए लगाए थे उस कंपनी की वॅल्यू अब 31000 करोड़ रुपए हो गयी। इस कंपनी का 99.5 प्रतिशत मालिकाना हक पतंजलि के पास था। अब पतंजलि कंपनी में 20 प्रतिशत की अपनी हिस्सेदारी के बदले 4300 करोड़ रुपए जुटाने के लिए एफपीओ लेकर आ गयी।
इस पूरी कहानी में आप एक बाद याद करें कि पतंजलि ने रुचि सोया की पूरी कंपनी 100 प्रतिशत 4300 करोड़ रुपए में ही खरीदी थी। अब इस कंपनी के एफपीओ के आने के बाद कंपनी अपना सारा कर्ज भी केवल निवेशकों के पैसों से ही चुकाने में समर्थ हो जाएगी।
इस पूरी कहानी का सार यह होगा कि जिस कंपनी को रामदेवी की पतंजलि ने सिर्फ 4350 करोड़ खर्च किए थे। उसी कंपनी की सिर्फ 20 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचकर वो अपनी पूरी लागत निकाल लेगी और कंपनी की 80 प्रतिशत हिस्सेदारी पर उनका मालिकाना हक बना रहेगा।
पतंजलि, रुचि सोया और देश के बैंकों की यह कहानी किसी बॉलीवुड मूवी की कहानी से कम नहीं है। पर यह एक जमीनी सच्चाई भी है। इसी तरह हमारे देश में टैक्सपेयर्स के पैसे से ये सारा खेला होता रहता है और जनता सिर्फ जयकारे लगाते रह जाती है।