Sekyular Vs Naastikataavaad : चौराहों पर पेरियार की मूर्ति के खिलाफ SC पहुंचा विवाद, महापुरुषों की मूर्तियों पर रार का पुराना है इतिहास
Sekyular Vs Naastikataavaad : चौराहों पर पेरियार की मूर्ति के खिलाफ SC पहुंचा विवाद, महापुरुषों की मूर्तियों पर रार का पुराना है इतिहास
Sekyular Vs Naastikataavaad : देश में मंदिर, मस्जिद और हिजाब के बाद महापुरुषों की मूर्तियों का विवाद भी सुप्रीम कोर्ट ( Supreme court ) में दस्तक दे चुका है। हालांकि, मूर्तियों को लेकर विवाद कोई नया नहीं है, लेकिन तमिलनाुड ( Tamil Nadu ) में डीएमके सरकार आने के बाद तेजी से वहां के चैक-चैराहों पर पेरियार की मूर्ति लगाने को विवाद गंभीर हो गया है। इसकी गंभीरता का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि एक शख्स द्वारा दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने एमके स्टालिन ( MK Stalin ) सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
सेक्युलर देश में नास्तिकता को बढ़ावा कितना तर्कसंगत?
एम देवीनयंगम नाम के शख्स ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका में सवाल उठाया है कि क्या सेक्युलर देश में सरकार की तरफ से नास्तिकता को बढ़ावा देना कितना उचित माना जा सकता है। याचिका में डीएमके सरकार की तरफ से राज्य में जगह-जगह पेरियार की मूर्तियां लगवाने और नास्तिकता का प्रचार करने का भी आरोप लगाया गया है।
याची के अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने दलील दी है कि डीएमके सरकार की तरफ से राज्यभर में सार्वजनिक जगहों पर पेरियार की मूर्तियां लगाना दुर्भाग्यपूर्ण है। मूर्तियों के साथ ऐसे शब्द लिखे गए हैं जो आस्तिकों की भावनाओं को ठेस पहुंचाते हैं। शिलापट्टों पर तमिल में लिखे वाक्यों का अनुवाद है - कोई भगवान नहीं है, सच तो यह है कि भगवान का कोई अस्तित्व ही नहीं है। जिसने भगवान को बनाया वह मूर्ख है। जो भगवान की बात करता है वह दुष्ट है। जो भगवान को पूजता है वह बर्बर है। उन्होंने सवाल उठाया कि सरकार इस तरह नास्तिकता का प्रचार कैसे कर सकती है। यह अनुच्छेद 21 के तहत आस्तिकों की वैयक्तिक स्वतंत्रता में दखल है। याचिकाकर्ता ने पेरियार की मूर्ति के साथ उस पर लिखे भाषा पर भी सख्त ऐतराज जताया है। एम देवीनयंगम का आरोप है इससे धर्म में आस्था रखने वालों की भावनाएं आहत होती हैं। बता दें कि पेरियार कट्टर नास्तिक थे।फिलहाल जस्टिस संजय के कौल और जस्टिस एएस ओका की बेंच ने इस मसले पर तमिलनाडु सरकार को नोटिस जारी किया है।
हरियाणा: हर चौराहे पर देवी लाल की मूर्ति का हुआ था विरोध
महापुरुषों की मूर्तियों को लेकर देश में पहली बार विवाद सामने नहीं आया है। पेरियार के विचारधारा को लेकर विवाद दशकों पुूराना है। विवाद की पीछे मुख्य वजह देश की सियासत में मूर्तियों का अहम स्थान है। इतना अहम कि स्टैच्यू पॉलिटिक्स को लेकर एक अलग धारा ही देश में स्थापित है। एक वक्त था जब हरियाणा में पार्कों और चौक-चौराहों पर पूर्व पीएम देवीलाल ( Devilal ) की मूर्तियां धड़ाधड़ लग रही थीं। राज्य में 1999 से 2005 तक ओम प्रकाश चौटाला की सरकार रही। उस दौरान उन्होंने अपने पिता देवीलाल की मूर्तियों पर जमकर पैसा बहाया। राज्यभर में तमाम जगहों पर देवीलाल पार्क बनाए गए। उनकी मूर्तियां लगाई गईं। उनके नाम पर सड़कों के नाम रखे गए। स्टेडियम के नाम और थर्मल प्लांट बनाए गए। सब जनता के पैसे से हुए। हरियाणा में भी विपक्षी दलों ने इसको लेकर बवाल काटा था।
रोहतक में उद्घाटन से ठीक पहले हटानी पड़ी थी हुड्डा के पिता की मूर्ति
दरअसल, हरियाणा मूर्ति को लेकर एक रोचक घटना है। फरवरी 2013 की बात है। भूपेंद्र सिंह हु्ड्डा मुख्यमंत्री थे। उनके गृह जिले रोहतक में उनके पिता रणबीर सिंह हुड्डा की मूर्ति का अनावरण होना था। कैनाल रेस्ट हाउस गोलचक्कर में मूर्ति लग भी चुकी थी। बस पुण्यतिथि पर अनावरण होना बाकी था। शहर में उनकी तीन मूर्तियां पहले से ही लगी हुई थीं। रोहतक का एक शख्स पंजाब ऐंड हरियाणा हाईकोर्ट चला गया। कोर्ट ने नोटिस जारी किया तो जिला प्रशासन ने अनावरण से कुछ ही घंटे पहले रातोंरात मूर्ति को हटा दिया। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला दिया गया जिो सार्वजनिक जगहों पर मूर्तियाें पर बैन लगाने से जुड़ा है।
सार्वजनिक जगहों पर मूर्तियां लगाने पर 2013 से है बैन
रोहतक में रणबीर सिंह हुड्डा की मूर्ति जब हटाई गई उससे एक महीने पहले ही जनवरी 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने मूर्तियों को लेकर अहम फैसला दिया था। कोर्ट ने सड़कों, पेवमेंट और गोलचक्करों आदि सार्वजनिक जगहों पर किसी भी नए धार्मिक ढांचों के निर्माण, नेताओं या महापुरुषों की मूर्तियां लगाने पर बैन लगा दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला केरल सरकार के उस फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनाया जिसमें राज्य सरकार ने एक प्राइवेट सोसाइटी में एक हस्ती की मूर्ति लगाने की इजाजत दी थी।
के. कामराज और मायावती भी लगवा चुकी हैं खुद की मूर्तियां
फिर बात मूर्तियों को लेकर विवाद की हो तो बीएसपी चीफ मायावती ( Mayawati ) का जिक्र होना लाजिमी हो जाता है। उनकी बात न हो तो वो बात अधूरी ही होगी। 2007 से 2012 तक यूपी की मुख्यमंत्री रहते मायावती ने लखनऊ और नोएडा में भव्य पार्क बनवाएं। पार्कों में हाथियों की विशाल मूर्तियां लगवाईं जो संयोग से बीएसपी का चुनाव चिह्न भी है। दलित महापुरुषों के साथ-साथ मायावती ने अपनी भी तस्वीरें लगाईं। इसे लेकर वह विपक्ष के निशाने पर रहीं। 2012 के चुनाव में विपक्ष ने इसे बड़ा मुद्दा भी बनाया। चुनाव आयोग ने हाथी की मूर्तियों को ढकने का आदेश दिया। बीएसपी की हार हुई और अखिलेश यादव की अगुआई में पहली बार एसपी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी। वैसे मायावती पहली मुख्यमंत्री नहीं हैं जिन्होंने अपनी ही मूर्ति लगवाई हो। गुजरे दौर के कांग्रेस के दिग्गज नेता के कामराज ने भी तमिलनाडु का मुख्यमंत्री रहते अपनी मूर्ति लगवाई थी।
उत्तराखंड: रातों-रात गायब हो गई शक्तिमान घोड़े की मूर्ति
साल 2016 में उत्तराखंड की राजनीति में एक घोड़े की बहुत चर्चा हुई थी। तत्कालीन सीएम हरीश रावत के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी। 14 मार्च को भाजपा विधानसभा के बाहर विरोध प्रदर्शन कर रही थी। उस दौरान उत्तराखंड पुलिस के शक्तिमान ( Shaktiman ) नाम के घोड़े का एक पैर टूट गया। आरोप भाजपा विधायक गणेश जोशी पर लगा। विधायकजी गिरफ्तार हुए और 2 दिन जेल में भी बिताना पड़ा। शक्तिमान को नकली टांग लगाई गई लेकिन वह बच न सका। 20 अप्रैल को उसकी मौत हो गई। इसके बाद सूबे की सियासत गरमा गई। सीएम रावत ने घोड़े के सम्मान में रिस्पना पुलिस के नजदीक वाले चौराहे का नाम शक्तिमान चौक करने का ऐलान किया। चबूतरा बन गया। और तो और शक्तिमान की मूर्ति भी लगा दी गई। सोशल मीडिया पर लोगों ने सवाल उठाए कि सरकार केदारनाथ त्रासदी में मारे गए लोगों के लिए भले ही कोई स्मारक नहीं बनवा सकी लेकिन सियासी फायदे के लिए घोड़े का स्मारक जरूर बवना दिया। ये बात अलग है कि मूर्ति लगने के 56 घंटे बाद यानि अनावरण से पहले रातों-रात शक्तिमान की मूर्ति अचानक गायब हो गईं।