UAPA : शशि थरूर ने की यूएपीए खत्म करने की मांग, ये है विरोधियों को प्रताड़ित करने का खतरनाक टूल
कांग्रेस सांसद शशि थरूर।
नई दिल्ली। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और तिरुवनंतपुरम से सांसद शशि थरूर ( Shashi Tharoor ) केंद्र सरकार ( Central Government ) से गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम ( UAPA ) को समाप्त करने की मांग की है। उन्होंने यूएपीए को खत्म करने के लिए 1 अप्रैल को लोकसभा में निजी विधेयक ( Private Bill ) भी पेश किया। निजी बिल पेश करते हुए उन्होंने कहा कि यह एक ऐसा अधिनियम बनाना है जो यूएपीए ( UAPA ) को निरस्त कर देगा।
सजा की दर महज 2.4%
कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने निजी बिल पेश करते हुए कहा कि यह कानून उस राज्य के लिए 'दुरुपयोग का उपकरण' बन गया है जहां 66% गिरफ्तारियों में किसी भी तरह की हिंसा शामिल नहीं है। सजा की दर महज 2.4% है, इसलिए यूएपीए को समाप्त कर देना चाहिए। सरकार को प्रशासनिक एजेंसियों को यूएपीए को वास्तविक अपराधियों और आतंकवादियों से निपटने में उपयोग में लाना चाहिए।
लोकसभा सांसद शशि थरूर ने कहा कि केंद्र द्वारा पारित गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम साजिश को ठीक से परिभाषित नहीं करता है। लोगों को बाएं और दाएं से गिरफ्तार करता है। उन पर सीधे आरोप नहीं लगाता। जांच के दौरान पता चलता है कि उन्हें ऐसा करना चाहिए दोषी न ठहराया जाए। बता दें कि पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर यूएपीए कानून की लंबे अरसे से विरोध करते आये हैं। पिछले साल दिसंबर में उन्होंने दावा किया था कि यूपी में भाजपा सरकार लोगों पर देशद्रोह और यूएपीए के मामले थोप रही है।
7 साल में 10,552 यूएपीए के तहत गिरफ्तार
कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने यूएपीए पर आंकड़ों का जिक्र करते हुए दावा किया है कि कानून के तहत आरोपित लोगों के संबंध में दोषसिद्धि दर बहुत कम है। पिछले 7 वर्षों में लगभग 10,552 भारतीयों को इसके तहत गिरफ्तार किया गया है। केवल 253 को दोषी ठहराया गया है जिससे सजा की दर केवल 2.4 प्रतिशत है,
इसलिए कहा जाता है काला कानून
गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम पहली बार 30 दिसंबर 1967 को व्यक्तियों और संघों की कुछ गैरकानूनी गतिविधियों (Unlawful Activities (Prevention) Act-UAPA) की प्रभावी रोकथाम और आतंकवादी गतिविधियों और उससे जुड़े मामलों के लिए पारित किया गया था। इसमें 2004, 2008, 2012 और 2019 में इस कानून में बदलाव किए गए। 2009 में संसद ने आतंकवादी गतिविधियों को दंडित करने की दिशा में एक समर्पित अध्याय डाला। 2019 के संशोधन में इसमें कठोर प्रावधान जोड़े गए थे, जिसके बाद से ही यह सवालों के कठघरे में है। 2019 के संशोधनों में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि इस कानून के तहत सरकार किसी संगठन या संस्थाओं को ही नहीं बल्कि किसी व्यक्ति विशेष को भी आतंकी घोषित कर सकती है। यूएपीए के कड़े प्रावधान जमानत को बेहद मुश्किल बनाते हैं। नतीजतन, गिरफ्तार किए गए लोग अक्सर अदालत में मुकदमा चलाने की प्रतीक्षा में वर्षों तक सलाखों के पीछे रहते हैं।
विपक्षी दल और कुछ मानवाधिकार कार्यकर्ता इसे लोकतंत्र विरोधी बताते हैं। कांग्रेस के लिए तो यूएपीए गले का घेघ बन गया है। यही वजह है कि अब इसे काला कानून भी कहा जाने लगा है। वहीं यूएपीए के समर्थक इसे आतंकवाद के खिलाफ देश की एकजुटता और अखंडता को मजबूती देने वाला बताते हैं।
हाल के वर्षों में कई पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और छात्रों पर यूएपीए अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है, जिससे कानून की व्यापक आलोचना हुई है। 2018 भीमा कोरेगांव मामले में हिंसा भड़काने के आरोपी कार्यकर्ता और शिक्षाविद वर्षों से जेल में हैं। चौंकाने वाली बाता है कि इन मामलों में अभी कि व्यवस्थित तरीके से मुकदमा भी शुरू नहीं हुआ है।
ये हैं कठोर प्रावधान
यूएपीए कानून के सेक्शन 43डी (2) के तहत पुलिस हिरासत के समय को दोगुना तक बढ़ा सकती है। इसके अन्तर्गत 30 दिन की पुलिस हिरासत मिल सकती है। वहीं न्यायिक हिरासत 90 दिन तक की हो सकती है। अन्य कानून के तहत हिरासत केवल 60 दिन की होती है। यूएपीए कानून के तहत केस दर्ज होने पर अग्रिम जमानत नहीं मिलती है। यूएपीए कानून के सेक्शन 43डी (5) के अन्तर्गत यदि पहली नजर में केस बनता है तो अदालत भी उसे जमानत नहीं दे सकती। इसमें 7 साल की सजा से लेकर आजीवन कारावास तक का प्रावधान है। साथ ही आरोपी की संपत्ति जब्त भी की जा सकती है।
UAPA को लेकर विवाद क्यों
गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के मुताबिक किसी पर शक होने से ही उसे आतंकवादी घोषित किया जा सकता है। खास बात यह है कि इसके लिए उस व्यक्ति को किसी आतंकी संगठन से सीधा संबंध दिखाना भी जरूरी नहीं है। एक बार आतंकी घोषित होने के बाद ठप्पा हटवाने के लिए पुनर्विचार समिति के पास आवेदन करना होता है। फिर, यह एक लंबी और बोझिल प्रक्रिया है।