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राष्ट्रीय

Singhu Border News : दलित किसान की हत्या से सिख सवर्णों की जातिवादी गंदगी का सच देश में हो रहा सरेआम

Janjwar Desk
16 Oct 2021 3:42 PM GMT
Singhu Border News : दलित किसान की हत्या से सिख सवर्णों की जातिवादी गंदगी का सच देश में हो रहा सरेआम
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(आज से 74 साल पहले संविधान के द्वारा छुआछूत को खत्म कर दिया गया था लेकिन अभी भी एक चैथाई भारतीयों से ज्यादा लोग ऐसा करते हैं।)

Singhu Border News : मध्यकाल में जब भारत जातिवाद सहित अनेक तरह की सामाजिक कुरीतियों से जूझ रहा था तो श्री गुरु नानक देव जी ने समाज का नेतृत्व किया और दुनिया को बताया कि मानस की जाति एक ही है।

जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट

Singhu Border News। सिंघु बॉर्डर (Singhu Border) पर युवक का शव शुक्रवार की तड़के पुलिस बैरिकेड से बंधा मिलने की घटना की सिख धर्म से जुड़े निहंगों (Nihang Sikhs) के समुदाय ने जिम्मेवारी ली थी, और कहा कि हमारे धार्मिक ग्रंथों के अपमान की यह सजा दी गई है। लेकिन नृशंस हत्या के पीछे काम करनेवाली मानसिकता पर बहस होना अब स्वाभाविक है। इस बहस से सवाल उठता है कि सिख धर्म में भी ब्राम्हणवादी मानसीकता इतनी जड़े जमाई हुई है कि कभी ये धर्म के ठेकेदार तो कभी जाति के अगड़े-पिछड़े के रूप में अपनी पहचान को लेकर भिड़ते हुए नजर आ जाते है।

दिल्ली की सीमा पर पिछले दस माह से सड़कों पर डटे किसान हर दिन तीन कृषि कानूनों (Farm Laws) के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे हैं। किसान संगठनों का मानना है कि इस दौरान केंद्र की भाजपा सरकार (BJP Govt) व उनकी पुलिस आंदोलन को बदनाम करने के लिए कोई न कोई हथकंडा अपनाते रही है। इस दौरान ही किसानों को कभी आतंकी तो कभी कनाडा से फंडिंग की बात कही जाती रही। बात आगे बढ़ते हुए गणतंत्र दिवस पर लाल किला पर झंडा फहराकर उन संगठनों के आंदोलन (Farmers Movement) को बदनाम करने की कोशिश की, जिन्हें पूर्व में किसान संघर्ष समिति ने अपना हिस्सा मानने से इंकार कर दिया था। जिन्हें पुलिस व सीमा सुरक्षा बल ने अपने कैंप के पास धरना देने के लिए मंच मुहैया कराया। मौके पर पहुंची पुलिस की टीम ने शव को अपने कब्जे में ले लिया। आरोप लगाया जा रहा है कि वह व्यक्ति सिख धार्मिक पवित्र पुस्तक का अपमान करते हुए पकड़ा गया था, जिसके बाद निहंगों ने उसकी हत्या कर दी। हालांकि इस बारे में आधिकारिक पुष्टि अभी तक नहीं हुई है।

बीजेपी के आईटी सेल ने किसान संगठनों पर मढ़ा आरोप

घटना के तुरंत बाद बीजेपी आईटी सेल (BJP IT Cell) के प्रमुख अमित मालवीय ने ट्वीट किया, 'बलात्कार, हत्या, वैश्यावृत्ति, हिंसा और अराजकता... किसान आंदोलन के नाम पर यह सब हुआ है। अब हरियाणा के कुंडली बॉर्डर (Kundli Border) पर युवक की बर्बर हत्या। आखिर हो क्या रहा है? किसान आंदोलन के नाम पर यह अराजकता करने वाले ये लोग कौन हैं जो किसानों को बदनाम कर रहे हैं? अगर राकेश टिकैत ने लखीमपुर में मॉब लिंचिंग को सही नहीं ठहराया होता, कुंडली सीमा पर एक युवक की हत्या नहीं हुई होती। किसानों के नाम पर इन विरोध प्रदर्शनों के पीछे जो अराजकतावादी हैं, उन्हें बेनकाब करने की जरूरत है।''

उधर संयुक्त किसान मोर्चा (Samyukta Kisan Morcha) ने कहा कि, ''पंजाब के रहने वाले एक व्यक्ति लखबीर सिंह की सुबह सिंघु बार्डर पर हत्या कर दी गई। मृतक व्यक्ति पंजाब के तरनतारन जिले के ग्राम चीमा कला का रहने वाला था। इसके पिता का नाम दर्शन सिंह है। मृतक लखबीर अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखता था। घटनास्थल पर मौजूद एक निहंग समूह ने इसकी जिम्मेदारी लेते हुए कहा है कि यह घटना मृतक के सरबलोह ग्रांट के संबंध में बेअदबी करने की कोशिश के कारण हुई है। इससे किसानों के आंदोलन से कोई लेना देना नहीं है। किसान संगठन पुलिस के जांच में हर स्तर पर मदद करने को तैयार है।

सिख समाज में ब्राम्हणवाद की जड़ें बहुत गहरी

किसान आंदोलन से जुड़े संगठन अखिल भारतीय किसान महासभा (Akhil Bhartiya Kisan Mahasabha) के राष्ट्रीय सचिव पुरूषोतम शर्मा कहते हैं कि किसान आंदोलन को बदनाम करने की तमाम कोशिशें होती रही हैं। इसी का हिस्सा सिंघु बार्डर पर युवक के शव बरामदगी को भी भाजपा द्वारा बनाया गया। लेकिन सिखों से जुड़े निहंगों ने वारदात को अंजाम देने की जिम्मेदारी लेते हुए सरकार की साजिश पर विराम लगा दिया। निहंगों के संबंध में पूछे जाने पर श्री शर्मा कहते हैं कि भारतीय समाज में ब्राम्हणवाद की जड़ें बहुत गहरी हैं। यह सोच सभी धर्मों में भी देखने को मिलता है। इससे सिख समाज अछूता नहीं है। सिख समुदाय में भी अलग अलग जातियों के अपने गुरूद्वारे व डेरा है। डेरा में दलित समाज से जुडे लोग ताल्लुक रखते हैं। इन्हीं का वृहद संगठन डेरा सच्चा सौदा भी है। हिंदुओं में नागा समुदाय के तरह ही सिख समाज में निहंगों की प्रवृति होती है। इनकी कटटरता के आगे कानून का कोई मायने नहीं रह जाता है।

एनसीएईआर के सर्वे में सभी धर्मों में जातिवाद का हुआ था खुलासा

आज से 74 साल पहले संविधान (Indian Constitution) के द्वारा छुआछूत को खत्म कर दिया गया था लेकिन अभी भी एक चैथाई भारतीयों से ज्यादा लोग ऐसा करते हैं। अपनी तरह के सबसे बड़े सर्वे से ये बात सामने आई थी। सर्वे में जिन लोगों ने इस बात को कुबूल किया वो हर धर्म और जाति से थे। एनसीएईआर और मैरीलैंड विश्वविद्यालय के द्वारा इस सर्वे को पूरे भारत में कराया गया। सर्वे के दौरान 42 हजार घरों में बात की गई।

एनसीएईआर की स्थापना 1956 में की गई थी और ये भारत का सबसे पुराना और सबसे बड़ा नॉन प्रॉफिट इकॉनामिक पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट है। ये नतीजे इंडिया ह्यूमन डवलपमेंट सर्वे का हिस्सा हैं जो साल 2011-12 में किया गया था। सर्वे के पूरे नतीजे 2015 में प्रकाशित किया गया था। भारत भर में 27 प्रतिशत लोगों ने माना कि वे किसी ना किसी रूप में छुआछूत को मानते हैं। अगर धर्म की बात की जाए तो 30 प्रतिशत हिंदू, 23 प्रतिशत सिख, 18 प्रतिशत मुस्लिम और पांच प्रतिशत ईसाई छुआछूत को मानते हैं। मध्यकाल में जब भारत जातिवाद सहित अनेक तरह की सामाजिक कुरीतियों से जूझ रहा था तो श्री गुरु नानक देव जी ने समाज का नेतृत्व किया और दुनिया को बताया कि मानस की जाति एक ही है।

उन्होंने केवल वचनों से ही नहीं बल्कि कर्मों से भी समाज को एकजुट करने का प्रयास किया और लंगर-पंगत की ऐसी प्रथा चलाई जहां सभी वर्गों, धर्मों, संप्रदायों, जातियों के लोग एक ही पंक्ति में बैठ कर प्रसाद ग्रहण करते हैं। सिख पंथ के सिद्धांतों में जातिवाद के खिलाफ विशेष आग्रह रहा है और गुरु ग्रंथ साहिब में कदम-कदम पर मानव की एकता पर जोर दिया गया है। इसी मार्ग पर चलते हुए श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की जिसमें जो पांच प्यारे सजाए गए वे उन जातियों व वर्गों से संबंधित थे। यह बातें धीरे-धीरे श्री गुरु ग्रंथ साहिब व गुरुद्वारों की पवित्र चारदिवारी में ही सिमट कर रहने लगीं। वास्तव में पंजाबी समाज जातिवाद के दकियानूसी बंधनों में फिर जकड़ा दिखाई देने लगा।

वर्तमान में हालात यह हैं कि गांवों में लगभग हर जातियों (Castes) के अपने-अपने गुरुद्वारे हैं। यहां पाठ मानस की जाति एक पहिचानबो का होता है परंतु एक दूसरे के गुरुद्वारों में जाने से लोग गुरेज करते हैं। जातिवाद (Castism) से परेशान हो कर वंचित जातियों के लोगों ने सिख पंथ को स्वीकार किया। रविदासी समाज, वाल्मीकि समाज, दर्जी, नाई, धोबी आदि लगभग हर कथित पिछड़ी जातियां गुरु साहिबानों की शरण में गईं परंतु धीरे-धीरे यहां पर भी इनके साथ जातिगत भेदभाव की शिकायतें सुनने को मिलने लगीं। दस वर्ष पूर्व संगरूर जिले में ही एक जाट समुदाय (कथित अगड़ी जाति) के गुरुद्वारा संचालकों ने गांव के दलित सिख परिवार को गुरु ग्रंथ साहिब देने से इंकार कर दिया। यह अकेली घटना नहीं बल्कि इस तरह की अनेकों घटनाएं घट चुकी हैं। गांवों में गुरुओं व महापुरुषों के नाम के स्थान पर जातियों के आधार पर धर्मस्थल बनने लगे। धर्मस्थल के साथ-साथ यहां के श्मशानघाट भी जातियों के आधार पर बनने लगे। इससे समाज में जातिगत दीवारें चैड़ी होती गई।

निहंग सिख की कट्टरता के रूप में है पहचान

पंजाब के वरिष्ठ पत्रकार सतनाम सिंह कहते हैं कि पुराने समय के सिख योद्धाओं के बीच एक खास सेना थी, जो 1699 में गुरु गोबिंद सिंह द्वारा खालसा के निर्माण के लिए बनाई गई थी और तब से उनकी शुरुआत या उत्पत्ति माना जाता है। इस सेना में शामिल लोगों को ही निहंग कहा जाता है। ये वैरागी या तपस्वी के समान रहते हैं, जो छावनियों में रहते हैं और रक्षा के लिए जाने जाते हैं। श्री गुरु ग्रंथ साहिब में निहंग का मतलब एक जिद्दी निडर व्यक्ति के तौर पर है। इनमें भी अलग अलग दल होते हैं, जिसमें तरुण दल, बुड्ढा दल आदि शामिल है। निहंग सिख हमेशा नीले रंग के कपड़ों में रहते हैं।

इसके अलावा उनके साथ बड़ा तेग (भाला) या तलवार होती है। वे हमेशा नीली या केसरी पगड़ी बांधे दिखाई देते हैं। साथ ही पगड़ी पर भी चांद तोरा लगा होता है। हाथ में कड़ा पहने होते हैं। कमर पर कटार होती है। कई सिख ढाल भी रखते हैं। उनका योद्धाओं की जैसा पहनावा होता है। सतनाम सिंह कहते हैं कि पंजाब में छह माह बाद चुनाव होने हैं। ऐसे में माहौल बिगाड़ने के लिए तमाम कोशिशें हो सकती हैं। इसी का हिस्सा इस तरह की घटनाओं के भी होने से इंकार नहीं किया जा सकता। वे स्वीकार करते हैं कि किसान आंदोलन को बदनाम करने के लिए भी पूर्व में कई घटनाएं हो चुकी हैं।

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