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Sri Lanka Economic Crisis : कर्ज में डूबे भारतीय राज्यों के लिए चेतावनी है दिवालिया श्रीलंका, जानिए कितने भयावह हैं हालात

Janjwar Desk
5 April 2022 12:38 PM GMT
Sri Lanka Economic Crisis : कर्ज में डूबे भारतीय राज्यों के लिए चेतावनी है दिवालिया श्रीलंका, जानिए कितने भयावह हैं हालात
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Sri Lanka Economic Crisis : कर्ज में डूबे भारतीय राज्यों के लिए चेतावनी है दिवालिया श्रीलंका, जानिए कितने भयावह हैं हालात

Sri Lanka Economic Crisis : श्रीलंका में दिनों-दिन गहराते आर्थिक संकट से बिलबिलाती जनता अब सड़क पर उतर आई है, इसने राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे की सरकार में घबराहट पैदा कर दी है, देशभर में जारी प्रदर्शनों के बीच राजपक्षे ने सार्वजनिक आपातकाल लगाने की घोषणा की है....

दिनकर कुमार की रिपोर्ट

Sri Lanka Economic Crisis : कर्ज के बोझ में डूबे पड़ोसी देश श्रीलंका (Sri Lanka) की आज जो हालत है वैसी ही स्थिति भारत के कुछ राज्यों की भी हो सकती है। अगर ये राज्य भारतीय संघ (States Of India) का हिस्सा नहीं होते तो अब तक कंगाल (Bankrupt) हो चुके होते। जिन राज्यों पर कर्ज का बोझ सबसे ज्यादा है उनमें पंजाब, दिल्ली, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल शामिल हैं।

इन राज्यों की लोकलुभावन घोषणाओं की वजह से इनकी वित्तीय सेहत खराब हो चुकी है। इसी तरह छत्तीसगढ़ और राजस्थान ने पुरानी पेंशन स्कीम (Pension Scheme) बहाल करने की घोषणा की है। कई राज्य मुफ्त बिजली दे रहे हैं जो सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ा रहे हैं। भाजपा (BJP) ने उत्तर प्रदेश और गोवा में मुफ्त रसोई गैस देने के साथ ही दूसरी कई लुभावनी घोषणाएं चुनाव में की थीं जिसे पूरे करने का वादा किया गया है।

विभिन्न राज्यों के बजट (State Budget) अनुमानों के मुताबिक, वित्त वर्ष 2020-21 में सभी राज्यों का कर्ज का कुल बोझ 15 वर्षों के उच्च स्तर पर पहुंच चुका है। राज्यों का औसत कर्ज उनके जीडीपी के 31.3 फीसदी पर पहुंच गया है। इसी तरह सभी राज्यों का कुल राजस्व घाटा के 17 वर्ष के उच्च स्तर 4.2 फीसदी पर पहुंच गया है। वित्त वर्ष 2021-22में कर्ज और जीएसडीपी (ग्रॉस स्टेट डोमेस्टिक प्रॉडक्ट) का अनुपात सबसे ज्यादा पंजाब का 53.3 फीसदी रहा।

इसका मतलब यह है कि पंजाब का जितना जीडीपी (GDP) है उसका करीब 53.3 फीसदी हिस्सा कर्ज है। इसी तरह राजस्थान का अनुपात 39.8 फीसदी, पश्चिम बंगाल का 38.8 फीसदी, केरल का 38.3 फीसदी और आंध्र प्रदेश का कर्ज-जीएसडीपी अनुपात 37.6 फीसदी है। इन सभी राज्यों को राजस्व घाटा का अनुदान केंद्र सरकार से मिलता है। महाराष्ट्र और गुजरात जैसे आर्थिक रूप से मजबूत राज्यों पर भी कर्ज का बोझ कम नहीं है। गुजरात का कर्ज-जीएसडीपी अनुपात 23 फीसदी तो महाराष्ट्र का 20 फीसदी है।

इस परिप्रेक्ष्य में श्रीलंका की बदहाली भारत (India) के लिए एक चेतावनी की तरह है। श्रीलंका अपने इतिहास में अब तक के सबसे बड़े आर्थिक संकट (Economic Crisis In Sri Lanka) से गुजर रहा है। हालात बेहद खराब हैं। महंगाई ने लोगों की कमर तोड़ रखी है। सरकार के पास स्‍कूलों में परीक्षा कराने के लिए पेपर और स्‍याही इंपोर्ट करने तक का पैसा नहीं है। देश की दुर्दशा की निशानियां जगह-जगह मिल रही हैं। ग्रोथ का बाजा बज गया है। निवेश का सूखा है। नौकरियां खत्‍म हो रही हैं। कर्ज गले तक चढ़ा है। विदेश मुद्रा भंडार खाली हो गया है। टूरिज्‍म से लेकर मैन्‍यूफैक्‍चरिंग सेक्‍टर तक उम्‍मीद की रोशनी दिखनी बंद हो गई है। कर्ज लेकर अनाप-शनाप खर्च करना लंका को भारी पड़ गया है। वह कर्ज लेकर घी पीने का सबसे ताजा उदाहरण बन गया है। पड़ोसी के इस आर्थिक संकट से भारत भी अछूता नहीं रहने वाला है। भुखमरी और बेरोजगारी को देख लंकावासी भारत में शरण मांग रहे हैं।

श्रीलंका में दिनों-दिन गहराते आर्थिक संकट से बिलबिलाती जनता अब सड़क पर उतर आई है। इसने राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे की सरकार में घबराहट पैदा कर दी है। देशभर में जारी प्रदर्शनों के बीच राजपक्षे ने सार्वजनिक आपातकाल लगाने की घोषणा की है। खाने-पीने से लेकर आम जरूरत की तमाम चीजों का दाम आसमान छू रहा है। महंगाई की दर 17 फीसदी के आसपास पहुंच गई है। ग्रोथ में तेज गिरावट आई है। इसने हजारों-हजार लोगों को गरीबी के दलदल में धकेल दिया है।

श्रीलंका की इस दुर्गति के लिए काफी कुछ वह खुद ही जिम्‍मेदार है। यह संकट मुख्‍य रूप से विदेशी मुद्रा भंडार की किल्‍लत के कारण खड़ा हुआ है। यह दो साल में 70 फीसदी घटकर फरवरी के अंत तक सिर्फ 2 अरब डॉलर रह गया था। यह दो महीने के इंपोर्ट के लिए भी नाकाफी था। वहीं, उस पर इस साल करीब 7 अरब की कर्जदेनदारी खड़ी है।

कर्ज प्रबंधन में श्रीलंका पूरी तरह नाकाम रहा है। 2007 से ही उसने बड़े पैमाने पर कर्ज उठाए। इस पैसे को उसने कम या बिल्‍कुल कमाई नहीं करने वाले प्रोजेक्‍टों में लगा डाला। बिना सोचे-समझे उसने कई तरह की टैक्‍स रियायतें दे डालीं। इसने संकट को और बढ़ाया। ऑर्गेनिक फॉर्म पॉलिसी पर आक्रामक तरह से आगे बढ़ने के कारण कृषि क्षेत्र को जबर्दस्‍त नुकसान पहुंचा।

पिछले साल उसने केमिकल फर्टिलाइजर पर बैन लगाया था। इससे उपज पर असर पड़ा। उपज घटने से कृषि उत्‍पादों की कमी हुई। इसने कृषि उत्‍पादों के दाम आसमान पर पहुंचा दिए। फरवरी में खाद्य महंगाई की दर 25.7 फीसदी पर पहुंच गई थी।

महंगे कर्ज लेकर उन्‍हें न चुका पाने के कारण समस्‍या गहराती गई। यह देश चीनी, दवाओं, ईंधन, दाल और खाद्यान्‍न जैसी आवश्‍यक चीजों के लिए आयात पर काफी ज्‍यादा निर्भर है। सूखे फॉरेन रिजर्व से इनके लिए पेमेंट न कर पाने से दिक्‍कतें बढ़ीं। इस बीच रही सही कसर कोरोना ने पूरी कर दी। इसके चलते देश के टूरिज्‍म सेक्‍टर की कमर टूट गई। यह सेक्‍टर देश की कमाई के प्रमुख स्रोतों में से एक है।

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